बेचैन करती है जलवायु परिवर्तन पर यूएन की ताजा रिपोर्ट

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की अंतर-सरकारी समिति (आईपीसीसी) की ताजा रिपोर्ट बेचैन करने वाली है। इस रिपोर्ट ने पहली बार जलवायु परिवर्तन के लिए मानवीय गतिविधियों को ‘असंदिग्ध’रूप से जिम्मेवार ठहराया है। यह जलवायु परिवर्तन पर छठी मूल्यांकन रिपोर्ट है। अगस्त में जारी इस रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री की बढ़ोत्तरी अपरिहार्य है। अभी ही 1.1 डिग्री बढ़ोत्तरी हो गई है। वर्तमान आकलन है कि वैश्विक तापमान औद्योगीकरण के पहले के तापमान के मुकाबले हुई 1.1 डिग्री की बढ़ोत्तरी के नतीजे दुनिया भर में दिखने लगे हैं।

वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री की सीमा को 2035-40 तक पार कर जाने की आशंका है और इस शताब्दी के अंत तक बढ़ोत्तरी 2 डिग्री के पार जा सकती है। उल्लेखनीय है कि वैश्विक तापमान में 2 डिग्री बढ़ोत्तरी हो जाने पर पृथ्वी पर मनुष्य और अनेक जीव-जंतु व पौधों का जीवन कठिन हो जाएगा। पूरे वातावरण में ऐसे परिवर्तन हो जाएंगे जिन्हें पहले की स्थिति में वापस लाना नामुमकिन होगा। इसलिए तत्काल ठोस कार्रवाई की जरूरत है, हालांकि इन कार्रवाइयों का असर 12-15 वर्षों में दिख सकेंगे।

भारत के लिए यह रिपोर्ट अधिक गंभीर चेतावनी देती है क्योंकि जलवायु परिवर्तन से होने वाली अतिरेक मौसम की घटनाओं की यह लीलाभूमि है। यहां गर्म हवाएं (लू) चलना, अत्यधिक और असमय वर्षा, भूस्खलन, समुद्री स्तर में खतरनाक बढ़ोत्तरी, दीर्घकालीन सूखा और ग्लेशियरों के टूटने, पिघलने की घटनाएं अक्सर होने लगी हैं। देश के विभिन्न इलाकों में विभिन्न किस्म की आपदाएं आती हैं, उनमें दिनानुदिन बढ़ोत्तरी हो रही है। हालांकि इस छठी रिपोर्ट में कुछ भी ऐसा नहीं है जो पहले कभी नहीं कहा गया, सिवा इसके कि सारी बातें असंदिग्ध रूप से कही गई हैं और अधिक जानकारी व साक्ष्यों के साथ कही गईं हैं।

रिपोर्ट को जारी करते हुए आईपीसीसी कार्यदल के सह-अध्यक्ष वीएम डेलमोटे ने कहा कि पृथ्वी की जलवायु के बारे में अब वैज्ञानिकों के पास अधिक ठोस व स्पष्ट जानकारी हैं। वैज्ञानिकों के पास अब पृथ्वी की जलवायु कैसे काम करती है और मानवीय गतिविधियां उसे किस तरह प्रभावित कर रही हैं, इसकी अधिक स्पष्ट जानकारी है। हम अब बेहतर ढंग से जानते हैं कि जलवायु में कैसे परिवर्तन हुए हैं, कैसे परिवर्तन हो रहे हैं और कैसे परिवर्तन होने वाले हैं।

आईपीसीसी ने पिछली रिपोर्टों में कहा था कि मानवीय गतिविधियां वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी का कारण हो सकती हैं, पर इस बार कहा है कि वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी मानवीय गतिविधियों की सीधा परिणाम हैं। इसमें अब कोई संदेह नहीं रह गया है। इस रिपोर्ट में केवल औसत में बात नहीं की गई है, बल्कि इस औसत का मतलब भी बतलाया गया है। चिंताजनक इस औसत के बीच आने वाला अधिकतम है। मतलब यह कि अगर तापमान में 2 डिग्री बढ़ोत्तरी की बात करें तो यह मतलब नहीं कि हमेशा तापमान केवल 2 डिग्री अधिक ही रहेगा, यह कभी 4डिग्री या कभी 6 डिग्री अधिक भी हो सकता है। वह स्थिति अत्यधिक चिंताजनक और खतरनाक है। इस रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि अगर वायुमंडल से ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा को कम करने के लिए तत्काल ठोस कार्रवाई नहीं हुई तो इस शताब्दी के अंत तक 2 डिग्री बढ़ोत्तरी हो सकती है।

जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम की अतिरेक घटनाएं-अत्यधिक वर्षा, गर्म हवाएं, तूफान, सूखा आदि अधिक होगी। अतिरेक की ऐसी घटनाएं कभी-कभार नहीं, बल्कि नियमित या सामान्य घटनाएं बन जाएंगी। तापमान में बढ़ोत्तरी, वर्षा या ग्लेशियर पिघलने आदि घटनाओं की चर्चा आमतौर पर औसत के रूप में की जाती है। यह औसत आम तौर पर चरम को छिपा लेता है।
इंडियन इंस्टीच्यूट आफ साइंस, बंगलोर के सेंटर फार ऐटमास्फियरिक एंड ओसियानिक साइंसेज के प्रोफेसर बाला गोविंदासामी ने कहा कि तापमान में बढ़ोत्तरी के साथ वर्षा, समुद्र स्तर में बढ़ोत्तरी, या अन्य परिवर्तनों में हमें चरम स्थिति को लेकर चिंतित होने की जरूरत है। चरम स्थितियों को देखते हुए ही सरकारों को तत्काल अधिक प्रभावी कार्रवाई करने की जरूरत है। चरम स्थितियों की बारंबारता से औसत भी बदल जाएगा जो पहले से ही खतरनाक स्तर पर होगा।

जो चेतावनी वैज्ञानिक बार-बार देते रहे हैं, वह है कि जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभाव वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री या 2 डिग्री की बढ़ोत्तरी के बाद नहीं, अभी से होते रहेंगे। तापमान बढ़ने के साथ-साथ स्थिति खराब होती जाएगी। वैश्विक तापमान में हर बढ़ोत्तरी का प्रभाव होता रहेगा। हर आधा डिग्री की बढ़ोत्तरी पर गर्म हवाओं का चलना, अत्यधिक वर्षा व सूखे की तीव्रता में बढ़ोत्तरी होगी। इसका असर मानव स्वास्थ्य और कृषि जगत पर होगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि तापमान में हर एक डिग्री के बढ़ने से दैनिक वर्षापात में 7 प्रतिशत को बढ़ोत्तरी हो जाएगी।

आईपीसीसी वर्षों से तत्काल जलवायु के संबंध में व्यापक कार्रवाई की सिफारिश करती रही है। पहली बार उसने यह भी कहा है कि इन तत्काल आरंभ हुई कार्रवाइयों का फायदा कितने दिनों में दिख सकेगा। रिपोर्ट ने संभावना जताई है कि तत्काल कार्रवाइयों का फायदा दिखने में 10 से 20 वर्ष लग सकते हैं।

इस रिपोर्ट में एक अन्य मुद्दे की चर्चा भी की गई है। यह सहवर्ती घटनाओं के बारे में है अर्थात दो या अधिक अतिरेक की घटनाओं का साथ-साथ होना, या एक का दूसरे को प्रभावित करना। हाल में उत्तराखंड में अत्यधिक वर्षा के साथ भूस्खलन व बाढ़ से जनजीवन की तबाही अधिक हो गई। हिमालय क्षेत्र में ग्लेसियर झीलों का टूटना भी सहवर्ती घटनाओं का उदाहरण है। भारी वर्षा से झील टूटते हैं और भयानक बाढ़ आ जाती है। ऐसी घटनाएं कई गुना विनाशकारी होती हैं। वैश्विक तापमान के बढ़ने के साथ ऐसी सहवर्ती घटनाओं के बढ़ने की आशंका है। यही नहीं, तापमान बढ़ने से मौसम के अतिरेक की ऐसी घटनाएं भी हो सकती हैं जिनके बारे में अभी सोचा भी नहीं जा सका है।

(अमरनाथ वरिष्ठ पत्रकार हैं और पर्यावरण और जलवायु के मसलों के विशेष जानकार हैं। आप आजकल पटना में रहते हैं।)

अमरनाथ झा
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अमरनाथ झा