यमुना की सफाई और बाढ़: अंतर्विरोधों से भरे दावे और योजनाएं

ये तीन महीने पहले की बात है, जून के पहले हफ्ते में दावा किया गया था कि दिल्ली में यमुना साफ हो रही है। इस सफाई का श्रेय, दिल्ली की राज्य सरकार और केंद्र की ओर से कमान संभाले राज्यपाल दोनों ने ही अपने-अपने हिस्से कर लेने का दावा किया। बाद में, जब एनजीटी ने इस रिपोर्ट को देखा, तब उसने साफ कहा कि दावा उपयुक्त नहीं है। और, जिन प्रयासों के लिए नीति-निर्देश जारी हुए थे, उस पर संतोषजनक काम नहीं हुआ है।

16 अगस्त, 2023 को फिर से खबरें छपीं कि यमुना सामान्य से अधिक साफ हुई है। जारी रिपोर्ट में दिखाया गया कि डिजॉल्व ऑक्सीजन आटीओ पुल पर पिछले साल अगस्त के मुकाबले चार गुना से अधिक बढ़ गई है। जबकि पानी में ऑक्सीजन की मांग पिछले साल के मुकाबले आधी और कई जगहों पर तो उससे भी कम हो गई है। यहां इस संदर्भ में इतना ही समझना है कि पानी में आक्सीजन की मात्रा की घुलनशीलता ही उसकी जीवंतता को बरकरार रखती है। अर्थात उस पानी में कोई जीव सांस ले सकता है।

बीओडी का अर्थ पानी में वे घुलनशील रासायनिक तत्व हैं जो अपनी रासायनिक क्रिया के लिए ऑक्सीजन की मांग करते हैं। यदि उसे ऑक्सीजन कम मिले तो एक भिन्न रासायनिक प्रक्रिया अपना लेते हैं। ऐसा अनुमान किया जा रहा है कि यमुना का पानी इतना जहरीला होता जा रहा है कि इससे कैंसर होने का खतरा बढ़ रहा है। इस संदर्भ में, इस बार के मानसून सत्र में (टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के हवाले से) संसद में सवाल भी उठाया गया था।

अब इन दोनों रिपोर्ट के बीच का समय महज तीन महीने के आसपास ही है। ऐसे में ऐसा क्या हो गया कि यमुना के डीओ और बीओडी लेबल में सुधार दिखने लगा है? यहां एक बात याद रखना जरूरी है कि जून के महीने में दिल्ली में सामान्य बारिश हुई थी और यह जून के औसत से थोड़ी अधिक बारिश थी। यही स्थिति जुलाई में बदल गई और सामान्य से कुछ ज्यादा ही बारिश हुई। अगस्त के महीने में सामान्य से कम बारिश हुई है। साफ है कि मौसम में बेहद खतरनाक स्तर का उतार चढ़ाव है।

लेकिन, इतना साफ है कि इन गुजरे तीन महीनों में यमुना की सफाई के लिए चलाये जा रहे अभियान इस स्तर तक नहीं जा सकते कि वह इतनी साफ हो जाए। इसकी ज्यादा संभावना मानसून की वह बारिश ही है जो न सिर्फ नालों में पानी के बहाव को बढ़ाकर सिल्टिंग को खत्म करने की ओर ले जाती है, साथ ही उन तत्वों को सक्रिय भी करती है जिनसे पानी में ऑक्सीजन की घुलनशीलता बढ़ जाती है।

इसके साथ ही पानी में पैदा होने वाले पौधे, मछलियां, मौलस्का वर्ग के जीव और वे रसायनिक तत्व भी जो ऑक्सीजन की घुलनशीलता को संभव बनाते हैं, बड़ी भूमिका निभाने की स्थिति में आ जाते हैं। इससे एक स्वतः शुद्धता की प्रक्रिया बनने लगती है।

यहां समस्या दो स्तरों की है। एक, दिल्ली में घुसने के पहले यमुना के पानी का एक बड़ा हिस्सा हरियाणा सरकार प्रयोग में लाती है। दिल्ली में यमुना के घुसने के पहले ही उसके पानी को रोककर दिल्ली वासियों के लिए पीने के पानी की आपूर्ति का काम शुरू हो जाता है। ऐसे में, दिल्ली में आ रहे कुल पानी का प्रयोग इस तरह होता है कि यमुना में बहाव का स्तर बेहद कम होता जाता है। जिससे खुद यमुना न सिर्फ अपने पाटों से दूर होती जाती है, यह अपने तल की सफाई की स्थिति में नहीं रह जाती। 

दूसरे, इसमें विभिन्न नालों से गिरने वाला जहरीला पानी, जो कार्बनिक और अकार्बनिक रासायनिक तत्वों से भरा होता है, अपनी ऑक्सीजन की मांग के साथ यमुना में जब उतरता है, तब एक मर रही नदी को वो खत्म करने में लग जाता है। ऐसे में, शहर के कचड़े और पानी की सफाई की विभिन्न योजनाएं क्या एक सीमा से अधिक कारगर होंगी, जब तक कि यमुना में पानी का प्रवाह ठीक न हो जाये। इस सफाई से ही यह संभव है कि उसमें पानी को साफ करने की एक स्वतः प्रक्रिया भी शुरू हो जाये।

जैसा कि इस अगस्त के महीने में, जिस साफ पानी का दावा किया गया है, उससे यही लगता है कि पानी में स्वतः सफाई के तत्व सक्रिय हुए हैं। संभव है कि जैसे-जैसे पानी का बहाव कम होता जायेगा और कचड़ा-रासायनिक तत्वों की मात्रा बढ़ती जायेगी, पानी की जीवंतता भी कम या खत्म होती जायेगी। ऐसे में, संभव है कि आज जो सुधार दिख रहा है, वह उस समय तक गायब दिखे या बदतर रिपोर्ट को साथ लेकर आये।

फिलहाल, ऐसा लगता है कि यमुना की सफाई को लेकर केंद्र और राज्य सरकार के बीच की टकराहट खत्म होने की ओर नहीं जा रही है। दिल्ली राज्य के गवर्नर को संसद में पास किये प्रावधानों से कई ऐसे विशेषाधिकार मिल चुके हैं, जिससे अब वही सरकार होने की स्थिति में आ चुके हैं। ऐसे में, राज्य सरकार पर जो ‘अडंगेबाजी’ का आरोप लगता रहा है, वह अब खत्म हो जायेगा और केंद्र और गवर्नर यमुना की कितनी सफाई कर सकेंगे, यह भविष्य ही बतायेगा।

इस बीच दिल्ली में आई बाढ़ पर कुछ रिपोर्ट की चर्चा कर लेना भी ठीक रहेगा। अगस्त, 2023 के पहले हफ्ते में हरियाणा सरकार की ओर से दिल्ली में आई बाढ़ को लेकर एक रिपोर्ट जारी की गई। इसमें उन्होंने बताया कि वजीराबाद से लेकर आईटीओ के बीच के फ्लड प्लेन पर अतिक्रमण से बाढ़ की स्थिति बनी और साथ ही आईटीओ बैराज पर कुछ गेटों के न खुलने की वजह से पानी के बहाव में कमी की वजह से फ्लड प्लेन में पानी भरता गया और बाढ़ की स्थिति बन गई।

इसके बाद ही एक और रिपोर्ट प्रकाशित हुई, जिसमें बताया गया कि दिल्ली को बाढ़ से बचाने के लिए हथिनीकुंड के अलावा एक और डैम बनाया जायेगा। इस बीच केंद्र सरकार ने भी एक पैनल बनाकर यमुना के किनारों का अध्ययन करने की योजना की घोषणा की, जो अगले 6 महीने में अपनी रिपोर्ट दे देगा। यह पैनल- दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश- तीनों ही राज्यों का अध्ययन करेगा।

एक नदी और उसके लिए इतनी योजनाएं आगे क्या रंग ले आयेंगी, यह हमें देखना है। भारत में नदी की सफाई की परियोजनाएं कोई नई बात नहीं है और इसके परिणाम फिलहाल संतोषजनक नहीं रहे हैं। उत्तर प्रदेश में यमुना और गोमती की सफाई के नाम पर चमड़ा और कपड़ा उद्योग को गंभीर तरीके से प्रभावित किया गया और लोगों का रोजगार छीन लिया गया।

इसी तरह, दिल्ली में यमुना के फ्लड प्लेन को साफ करने के लिए लाखों लोगों को उजाड़ दिया गया। लेकिन, यमुना और गंगा के किनारों पर पर्यावरणविदों के लाख विरोधों के बावजूद बड़ी-बड़ी परियोजनाएं अंजाम पाती रही हैं और इन नदियों को बर्बाद करने का काम करती रही हैं। आगे ऐसा नहीं हो, हम उम्मीद कर सकते हैं। ऐसा होगा, ऐसी उम्मीद तो फिलहाल अभी नहीं दिख रही है।

(अंजनी कुमार पत्रकार हैं।)

अंजनी कुमार
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