नासिक टू मुंबई लांग मार्च: अबकी आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं किसान

लोकमित्र गौतम

मर जाएँ या मिट जाएँ 

अब लेके रहेंगें अपना हक़ 

ओ शेतकर किंवा शेतकरी

पुढे जा पुढे जा

[ओ किसानों ओ किसानों 

आगे बढ़ो आगे बढ़ो ]

ओ शेतकर किंवा शेतकरी

मुंबईला ये, मुंबईला जा

[ ओ किसानों ओ किसानों 

मुंबई चलो, मुंबई चलो ]

हिन्दी, मराठी और बीच-बीच में पारधी व गुजराती में भी गूंजते ये नारे उस विशालकाय किसान जत्थे के हैं, जो 6 मार्च 2018 से नासिक टू मुंबई कूच पर है। किसानों के हितों के लिए संघर्षरत किसानसभा ने 1 महीने से भी पहले ही इस 180 किलोमीटर लम्बे नासिक टू मुंबई किसान लांग मार्च की घोषणा कर दी थी। बकायदा प्रेस कांफ्रेंस करके किसानसभा ने चेतावनी दी थी कि अगर सरकार किसानों की मांगों पर ध्यान नहीं देती तो लाखों किसान राज्य विधानसभा को इसके बजट सत्र के दौरान घेरेंगे। यह घेराव अनिश्चितकालीन होगा। लेकिन इस चेतावनी के बावजूद सरकार के कान में जूँ तक नहीं रेंगी। जिस कारण 6 मार्च की रात महाराष्ट्र की कुम्भ नगरी नासिक के सीबीएस चौक में हजारों किसान अपना-अपना राशन-पानी, तुरई, बिगुल और झंखड़ी के साथ इकट्ठे हुए और अगली सुबह यानी 7 मार्च 2018 को मुंबई कूच पर निकल पड़े।

किसान हर रोज करीब 30 किलोमीटर चलते हैं। नासिक से करीब 10, हजार किसानों का जत्था अपनी 6 प्रमुख मांगों को लेकर रवाना हुआ था जो वीरवार यानी 8 मार्च की दोपहर तक 25 हजार किसानों के जत्थे में बदल चुका था और इस जत्थे की अगुवाई कर रहे अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक धवले व स्थानीय विधायक जेपी गावित की मानें तो 12 मार्च को जब यह जत्था मुंबई पहुंचेगा तब इसमें 1,00000 से ज्यादा किसान होंगे। महाराष्ट्र के इतिहास में किसानों का इतना बड़ा मुंबई कूच पहले कभी नहीं हुआ। लेकिन हैरानी की बात यह है कि सरकार अब भी फिक्रमंद नहीं लगती। जबकि हकीकत यही है कि किसानों का जत्था न केवल बढ़ता जा रहा है बल्कि उनका गुस्सा भी बढ़ता जा रहा है। जो कि स्वाभाविक ही है।

आखिरकार देवेंद्र फडनवीस की सरकार ने पिछले साल जून में राज्य के किसानों के 34,000 करोड़ रूपये के ऋण को 31 अगस्त 2017 तक माफ़ कर देने का वायदा किया था। लेकिन अभी तक नहीं हुआ।

किसान पूर्णतः कर्जमाफी के अलावा बिजली बिल की माफी भी चाहते हैं साथ ही तुरंत प्रभाव से स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग भी कर रहे हैं। किसानों का आरोप है कि 34000 करोड़ रुपये की कर्जमाफी की घोषणा के बाद भी अब तक 1753 किसान आत्महत्या कर चुके हैं इससे साफ़ पता चलता है कि राज्य सरकार की नीतियां किसान विरोधी हैं।

ऑल इंडिया किसान सभा के सचिव राजू देसले ने किसानों की इस लड़ाई को आरपार की लड़ाई कहा है और बहुत साफ़-साफ़ शब्दों में घोषणा की है कि किसान राज्य सरकार की तथाकथित विकास परियोजनाओं के नाम पर सुपर हाइवे और बुलेट ट्रेन के लिए खेती वाली जमीन नहीं देगी। अगर सरकार जबर्दस्ती अधिग्रहण करने की कोशिश करेगी तो इसके बहुत ही बुरे परिणाम होंगे। किसानसभा के नेताओं के मुताबिक़ यह निर्णायक लड़ाई है। 

गौरतलब है कि मार्च 2016 में भी किसानसभा ने एक लाख से ज्यादा किसानों के साथ दो दिन तक नासिक के सीबीएस चौक पर सत्याग्रह किया था, उस वक्त भी सरकार के समक्ष किसानों की यही सब समस्याएं रखी गई थीं। उस समय महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री नासिक आये थे और किसानों की सभी मांगे ज्यों की त्यों मानने का वायदा किया था। लेकिन जैसा कि राजनेता करते हैं, यहाँ से जाते ही अपने इस वायदे को भूल गए। बहरहाल अब ये मांगे इस प्रकार हैं-

-कृषि उपज की लागत मूल्य के अलावा 50 प्रतिशत लाभ दिया जाए। 

-सभी किसानों के कर्ज माफ किए जाएं। 

-नदी जोड़ योजना के तहत महाराष्ट्र के किसानों को पानी दिया जाए। 

-वन्य जमीन पर पीढ़ियों से खेती करते आ रहे किसानों को जमीन का मालिकाना हक दिया जाए। 

-संजय गांधी निराधार योजना का लाभ किसानों को दिया जाए। 

-सहायता राशि 600 रुपये प्रतिमाह से बढ़ाकर 3000 रुपये प्रति माह की जाए।

वैसे मुख्यमंत्री ने इस लांग मार्च को लेकर अभी तक कोई ब्यान नहीं दिया लेकिन कृषि मंत्री पांडुरंग फण्डकर ने मीडिया को एक आंकड़ा दिया है जिसके मुताबिक़ राज्य में अब तक 37 लाख किसानों के बैंक खातों में कर्ज माफी की राशि जमा करा दी गई है। गौरतलब है कि महाराष्ट्र में कुल 1 करोड़ 9 लाख परिवारों ने कर्ज माफी के लिए आवेदन किया था। जिसमें से 54 लाख 72 हजार किसान कर्ज माफी योजना के लिए पात्र पाए गए थे। इस तरह सरकार के अपने आंकड़े तक बताते हैं कि करनी और कथनी में कितना फर्क है।

(लोकमित्र गौतम वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल मुंबई में रहते हैं।)

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