ग्राउंड रिपोर्ट: भारत जोड़ो यात्रा में आधी जमीन की रही पूरी भागीदारी

पठानकोट/ श्रीनगर। कश्मीर के श्रीनगर में भारत जोड़ो यात्रा का आज यानि 30 जनवरी को समापन हो गया। “भारत जोड़ो, नफरत छोड़ो” नारे से आज पूरा देश वाकिफ हो चुका है। देश के लगभग हर कोने में कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा की चर्चा रही। कांग्रेस की इस यात्रा को कोई सकरात्मक पहलू बता रहा था तो कोई इसे एक इंवेट की संज्ञा दे रहा था। यात्रा के मुख्य किरदार राहुल गांधी रहे। भारी भीड़ और कड़ी सुरक्षा के बीच एक डिग्री तापमान में उत्तर भारत में ब्लैक पैंट, व्हाइट हॉफ टीशर्ट और स्पोटर्स शूज में चलते कांग्रेस सांसद और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पर हर किसी की नजर टिकी थी।

भारत की यह पहली यात्रा नहीं है। इससे पहले साल 1983 में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने देश को समझने के लिए कन्याकुमारी से दिल्ली तक की छह महीने की यात्रा की थी। जिसमें गांव को समझने का मुख्य बिंदु रखा गया था। ऐसा कहा जाता है कि इस यात्रा से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी डर गयी थीं।

अब देखना है कि कांग्रेस के शीर्ष नेता के तौर पर राहुल गांधी की इस यात्रा का आने वाले समय में क्या असर होगा। लेकिन इस यात्रा से एक बात जो जरूर देखी गयी वो कांग्रेस के कार्यकर्ता और नेताओं में पार्टी की मौजूदा स्थिति को लेकर जो निराशा आई थी, उसमें जरूर बदलाव आयेगा। आने वाले समय में यात्रा का क्या परिणाम होगा यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। लेकिन इससे पार्टी के कार्यकताओं में जोश और मनोबल जरूर बढ़ेगा।

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सितंबर की सात तारीख को शुरू हुई यह यात्रा लगभग पांच महीने के समय लगाकर कन्याकुमारी से कश्मीर में समाप्त हो चुकी है। इस यात्रा का आज यानि 30 जनवरी को कश्मीर के श्रीनगर में समापन हो गया। यह यात्रा देश के कई राज्यों से होकर गुजरी है। इस यात्रा को और करीब से जानने के लिए जनचौक संवाददाता ने कुछ दिनों के लिए यात्रा में हिस्सा लिया। जिसमें राहुल गांधी और कांग्रेस के नेताओं के अलावा कई लोगों ने हिस्सा लिया है। जिनके संघर्ष के बारे में जानना जरुरी है।

टीम ने पठानकोट से यात्रा की

हमने इस यात्रा की शुरुआत पंजाब के पठानकोट से की। जहां दोपहर में पहले दिन राहुल गांधी की रैली हुई उसके बाद यात्रा। यात्रा लगभग शाम को साढ़े चार बजे शुरू हुई। इससे पहले मुझे पंजाब के एक वरिष्ठ पत्रकार राशपाल सिंह मिलते हैं जो पंजाब के माझा क्षेत्र (अमृतसर, गुरुदासपुर, पठानकोट, तरनतारन) के राजनीतिक महत्व को बताते हैं। वह कहते हैं इस वक्त जहां हम खड़े हैं। यहां कांग्रेस की अच्छी पैठ हैं। वह कुछ मंत्रियों के नाम गिनाते हैं और कहते हैं कि जहां कांग्रेस के इतने बड़े-बड़े नेता दिए हो वहां राहुल गांधी की रैली में उतनी भीड़ न होना अपने आप में प्रश्न है। वह कहते हैं कि यहां स्थिति ऐसी होनी चाहिए थी कि फ्लाईओवर में लोगों की बड़ी भीड़ होनी चाहिए थी। लेकिन उम्मीद से थोड़ी कम है।

कड़ी सुरक्षा के बीच राहुल गांधी बढ़ रहे थे आगे

इसके बाद शाम को साढ़े चार बजे भारत जोड़ो यात्रा शुरू हुई। जिसकी शुरुआती पंक्ति में सिविल सोसायटी के लोग एक बैनर लेकर चल रहे थे। इस बैनर को महिलाएं लेकर आगे बढ़ रही थी। साथ ही नारे लगा रही थी- नफरत छोड़ो, भारत जोड़ो। इनके पीछे कांग्रेस का सेवादल जिसका नेतृत्व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह, जयराम रमेश और कन्हैया कुमार कर रहे थे। इनसे लगभग एक किलोमीटर पीछे राहुल गांधी का काफिला चल रहा था।

चारों ओर से सुरक्षा के घेरे के बीच राहुल गांधी और उनके साथ राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत चल रहे थे। इस घेरे को “डी” कहा जा रहा था। जिसमें राहुल गांधी लोगों से मुलाकात करते हैं। मेरी पहली दिन की यात्रा में शाम का समय था। इसमें सड़कों पर लोगों की संख्या कम दिख रही थी। लेकिन हिमाचल की पहाड़ियां दिखने के साथ ही भारत जोड़ो यात्री के मन में अपने मुकाम पाने की खुशी झलकने लगी। इन पहाड़ियों का झलक इस बात का सबूत था कि यात्रा अपने आखिरी पड़ाव यानि की जम्मू-कश्मीर में प्रवेश कर रही है।

आखिर पड़ाव पर पहुंची यात्रा

रावी नदी को पार करने के साथ ही लखनपुर बॉर्डर पर यात्रा जम्मू में प्रवेश करती है और यहां से एक बार फिर यात्रियों में बस खोजने के प्रक्रिया शुरु हो जाती है। हर कोई अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचकर अपने पैरों को आराम देना चाहते थे। यहां मैंने देखा कि कुछ लोग कैंप में पहुंचने के बाद अपने पैरों को मालिश कर रहे थे। ताकि दूसरे दिन भी 25 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर सकें।

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एक तरफ ठंड दूसरी तरफ थकान इतनी चुनौतियों के बीच एक बार फिर सभी भारत जोड़ो यात्रियों को रात के खाने के लिए एक लंबी लाइन का सामना करना पड़ा। क्योंकि यही एक रास्ता है सैंकड़ों की संख्या में शामिल लोगों को खाना खिलाने का।

मुझे किसी जान पहचान वाले के जरिए सिविल सोसायटी के कैम्प में एंट्री मिल गई और यहीं से शुरू हुआ यात्रियों के संघर्ष और जज्बे को देखने का सिलसिला। जिसमें बड़ी संख्या में पुरुषों के साथ महिलाएं भी थीं। एक गाड़ी से दूसरी गाड़ी में सामान रखना हो या एक दो डिग्री में ठंडे पानी से अपनी जरुरत को पूरा करना हो, यह एक ऐसा मंजर था। जो किसी को भी लोगों के जोश पर सोचने के लिए मजबूर कर सकता है।

ठंड- बारिश का सामना कर रहे थे यात्री

जम्मू में यात्री ठहराव के लगभग चार पडाव थे। लखनपुरा, चडवाल, सांबा और जम्मू सिटी। इन चार दिनों के पड़ाव में मेरा ठंड, बारिश, लगातार बढ़ती भीड़ और कई चीजों से सामना हुआ।

पहले दिन मैं जैसे ही कैंम्प में पहुंची। नासिक से आई एक महिला जिसकी उम्र लगभग 55 से 58 के बीच थी। वह कैम्प में आती है और एक बाथरुम की तलाश करती हुई। सबको यह बताती है कि फलां जगह पर बाथरुम है। जहां महिलाएं कपड़े बदल सकती हैं। इन सबके बीच सबसे बड़ी चुनौती थी ठंडा पानी। जिस ठंड में लोग पीने के लिए भी गर्म पानी का इस्तेमाल करते हैं। वैसी ठंड में लोग दिनभर की थकान को मिटाने के लिए ठंडे पानी का इस्तेमाल करते थे।

पंजाब में कैम्प में ओस के कारण रजाई भींग गई

इसी कैंप में मेरे दो साथी और थे जो पंजाब से इस यात्रा को कवर कर रहे थे। बातचीत में उन्होंने बताया कि पंजाब के मुकेरियां में ऐसी स्थिति थी कि कैंप के टेंट में ओस पड़ने से रजाई भी भींग गई थी। लेकिन इतनी ठंड के बावजूद भी लोग सुबह छह बजे ही उठकर तैयार हो जाते थे और सात बजे अंधेरे में ही भारत को जोड़ने को नारा लगाते हुए यात्रा शुरू कर देते हैं।

मेरी यात्रा के दूसरे दिन जम्मू में बारिश हो रही थी। लेकिन यात्रा नहीं रुकी। ठंडी हवा, बारिश और कंपकपते हाथों के साथ मैं भी यात्रा में शामिल हो गई। सेवादल के लोगों ने भी बारिश में ही यात्रा में हिस्सा लिया। ठंड और बारिश के बीच मैंने भी यात्रा को कवर किया। लोगों ने भी हिस्सा लिया। बारिश होने के बावजूद का लोगों का जोश देखने लायक था। जम्मू की सड़कों पर लोग बारिश में भी इस यात्रा की एक झलक देखना चाहते थे।

जम्मू में एक बार में ही 25 किलोमीट की यात्रा

जम्मू की तीन दिन की यात्रा में एक बार में ही 25 किलोमीटर की यात्रा पूरी की गई। उसके बाद लोगों को आराम करने का समय दिया गया। चड़वाल में एक दिन का ब्रेक दिया गया। ताकि यात्री नहा लें और कपड़े धो लें। यही शुरू हुआ यात्रियों के लिए अग्नि परीक्षा।

सुबह मैंने जैसे ही पानी को अपने हाथ में लिया। हाथ एकदम सुन्न हो गए। इसी पानी से लोग नहाने के लिए तैयार थे। क्योंकि यात्रा के दौरान रोज ऐसा मौका नहीं मिल रहा था। तभी किसी ने बताया कि मोटर चलाई है। जिसे भी नहाना है वह उसके गुनगुने पानी से नहा सकता है।

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यहां भी महिलाओं के लिए खुले में नहाना संभव नहीं था। बड़ी खोजबीन के बाद एक दूसरी जगह बाथरुम दिया गया। जहां वह नहा सकीं। इस दिन लोगों ने अपने शरीर को आराम दिया। सारे दिन की थकान को कम करने के लिए कोई पढ़ रहा था। तो किसी से हॉट स्पॉट मांगकर नेट चला रहा था। क्योंकि जम्मू में लोगों के फोन नहीं चल रहे थे। जिन्होंने जम्मू जाकर नई सिम ले ली। वह ही अपने बाकी साथियों का साथ दे रहे थे। कैंम्प में ही एक महिला जो पुणे से आई थी शाम के वक्त अपने पैरों को तेल से मालिश कर रही थी। एक ग्रुप में बैठे लोग 70, 80, 90 के दशक के गीतों को गा रहे थे जो इस यात्रा को और रोमांचक बना रहे थे। इनमें से कुछ लोग कर्नाटक से आए थे। वह लोग मलयाली गाने गा रहे थे। कोई हरियाणवी तो कुछ भोजपुरी सोहर गाकर अपने राज्यों के संस्कृति के बारे में बता रहे थे। इस तरह से नहाने, कपड़े धोने और मौज मस्ती के बीच छुट्टी का दिन पार हो गया।

अगले दिन से फिर से वही रुटीन शुरू हो गई। सबसे पहले लोग सुबह ठंडे पानी से दो चार होते हैं। उसके बाद तैयार होने के बाद फिर से यात्री अपना सारा सामान लेकर अगले पड़ाव के लिए बस पर सामान रखते हैं और यात्रा के शुरुआती प्वॉइंट से चलना शुरू कर देते हैं। जम्मू में सुबह 7.30 बजे होती है लेकिन यात्रा के शुरू होने का समय सात बजे है इसलिए अंधेरे में ही लोग यात्रा को आगे बढ़ाते हैं। यात्रा में चलते लोग अपने हौसले का परिचय दे रहे थे।

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नासिक से आई एक महिला को देखकर मैं भी हैरान थी। वह चल पाने में सक्षम नहीं थी। लेकिन वह कमर में बेल्ट लगाकर चल रही थी। यह बेल्ट इस बात का प्रतीक था कि कोई भी परेशानी भारत को जोड़ने से रोक नहीं सकता है। इस तरह से मैंने भारत जोड़ो के यात्रा के दूसरे पहलू को सामने से महसूस किया।

आखिरी दिन जम्मू सिटी में प्रवेश करने के बाद जहां यात्रियों के ठहरने की व्यवस्था थी, वह जगह बाकी की जगह से काफी बेहतर थी। जहां लोगों को बेड मिले थे। जिस कमरे में मैं रुकी थी। वहां रूकने वाली महिला यात्रियों ने पूरी यात्रा की बात करते हुए अपने-अपने अनुभव बता रही थी। जिसमें सबसे कॉमन बात यही थी कि उन्हें यात्रा के दौरान बाथरुम को लेकर सबसे ज्यादा दिक्कत हुई। एक महिला कहती है कि स्थिति ऐसी हो गई थी कि खेतों में जाने के अलावा हमारे पास दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा था।

(पूनम मसीह जनचौक की संवाददाता हैं।)

पूनम मसीह
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