झुग्गीवासियों ने मीडिया कर्मियों को लिखा खत, कहा-बन जाइये हमारी आवाज़

(सुप्रीम कोर्ट के फैसले की जद में आयी झुग्गी बस्तियों के लोगों ने उन्हें बचाने का संघर्ष तेज कर दिया है। इस कड़ी में उन्हें राजनीतिक दलों से लेकर तमाम सामाजिक संगठनों का समर्थन हासिल हो रहा है। इस दायरे से अपनी लड़ाई को और आगे बढ़ाने तथा उसे और मजबूत करने के लिए बाशिंदों ने तरह-तरह की तरकीब ईजाद करनी शुरू कर दी है। उसी के तहत उन्होंने मीडिया और उससे जुड़े लोगों को एक पत्र लिखा है। पेश है उनका पूरा खत-संपादक)

माननीय/आदरणीय,

                                       सम्माननीय पत्रकार बंधु  

आप सभी लोगों को पता ही होगा कि जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने 3 महीने के अंदर दिल्ली की रेल पटरियों के आस-पास की 48 हजार झुग्गियों को उजाड़ने का आदेश 31 अगस्त को दिया है।

आप लोग सच को उजागर करते हैं और मूक लोगों की आवाज बनते हैं और उनकी ओर से सवाल पूछते हैं, आप सब से अनुरोध है कि एक बार हमारी भी आवाज बन जाइए।

हमारा आप सभी से अनुरोध है कि  सिर्फ एक बार हमारी किसी एक भी झुग्गी में आ जाइए, हम क्यों इन झुग्गियों-झोपडियों में रहते हैं, कैसी है हमारी झुग्गी-झोपड़ियां, कैसे हम रहते हैं, क्या हम खाते हैं, क्या हम पहनते हैं, कौन सा काम हम करते हैं, कैसा पानी हम पीते हैं, कहां शौच के लिए जाते हैं, हमारे बच्चे कहां खेलते हैं, हम बीमार पड़ते हैं तो हमारा क्या होता है, हम कहां इलाज कराते हैं, हम लेबर मार्केट में खुद को बेचने के लिए खड़े क्यों होते हैं, जिस दिन नहीं बिक पाते उस दिन हमारी हालत क्या होती है, जब हमें कई-कई दिनों तक काम नहीं मिलता है तो कैसे हम आधा पेट खाकर जीते हैं, या कुछ टाइम भूखे ही गुजारते हैं, उस समय हम कैसे अपने बच्चों के पेट की आग बुझाते हैं,

गर्मी से बचने के लिए हमारे पास क्या साधन हैं, हमारे घरों में बिजली है या नहीं, प्लास्टिक की झुग्गियां तपती हैं, तो क्या बीतती है, बरसात होती है, तो हमारी क्या हालत होती है,  हम औरतें किनके घरों में झाड़ू- पोछा लगाती हैं, या खाना बनाती हैं, हमारे साथ वहां क्या व्यवहार होता है, हमें कितना पैसा मिलता है, हम अपने दुधमुंहे बच्चों को किसके भरोसे छोड़कर काम पर झाड़ू-पोछा लगाने जाती हैं, यदि कभी साथ लेकर चली जाती हैं, तो मालिक-मालकिन कैसा व्यवहार करते हैं, हम क्यों कूड़ा बीनते हैं, हम कोई भी कठिन से कठिन और गंदा से गंदा काम क्यों करने को तैयार हो जाते हैं, हमारी क्या मजबूरी है कि शरीर में ताकत न होने पर भी हम क्यों रिक्शा खींचते हैं, ठेला खींचते हैं, पल्लेदारी करते हैं, हम क्यों जब तक जान न निकल जाए, तब तक काम करते रहते हैं?

एक बार आइए यह भी तो जान लीजिए और सबको बता दीजिए कि हम कहां से दिल्ली आए हैं, हम क्यों आए हैं, हमारी कौन सी मजबूरी थी, कि हमें अपना गांव-कस्बा या शहर छोड़कर यहां आना पड़ा, क्या हम मनबढ़ई में आए, या मजबूर और बेबस होकर आए, क्या हमारे आस-पास अपने गांव-जवार में रहने का कोई विकल्प था, जिसे हम छोड़कर आए? क्या देश के किसी कोने में धरती का कोई टुकड़ा है, जिसे हम अपना कह सकें, जिस पर हक के साथ खड़े होकर कह सकें कि यह मेरा है, यहां से हमें कोई हटा नहीं सकता। 

आइए एक बार यह भी पता लगा लीजिए कि हम कहां-कहां से आए हैं, यह भी देख जाइए कि कोई बिहार से, कोई पंजाब, कोई उड़ीसा से कोई झारखंड़ से, कोई छत्तीसगढ़ से, कोई उत्तर प्रदेश से, कोई मध्यप्रदेश से और कोई राजस्थान से किन-किन कारणों से यहां आकर रह रहा है? किन हालात ने, किन मजबूरियों ने और किस बेबसी ने हमें यहां आने और इन झुग्गियों में रहने के लिए मजबूर किया?

हमारे पास भले ही अच्छे घर न हों, लेकिन हम अच्छे से अच्छे घरों में काम करते हैं, हम जानते हैं कि अच्छा घर कैसा होता है, हमारी ये झुग्गी-झोपड़ियां उसकी तुलना में नरक या महानरक हैं, लेकिन यही नरक या महानरक हमारे ठिकाने हैं। यहां दिन भर खटकर जब हम आते हैं, तो रात बिताते हैं, यही हमारे सिर टिकाने की जगहें हैं, यहीं हम अपने बच्चों और बीमार बूढ़े मां-बाप को छोड़कर काम पर जाते हैं, यही हमारे आराम की जगहें हैं, यहीं से हम अपने बच्चों को स्कूल भेजते हैं, इस उम्मीद में कि शायद उन्हें पढ़-लिख कर इस नरक से मुक्ति मिल जाए।

बस इतना निवेदन है कि एक बार आ जाइए, हमारे बारे में और हमारी हालात के बारे में देश को बता दीजिए। बस इतना बता दीजिए कि हम यहां क्यों और कैसे रहते हैं और यदि उजाड़ दिए जाएंगे, तो कहां जाएंगे, हमारे पास कहीं जाने की  कोई जगह है भी या नहीं?

हमें पता है कि हमारे चेहरे फोटोजेनिक नहीं हैं, आकर्षक नहीं हैं, हमें यह भी पता है कि हमारे नारकीय हालात की तस्वीरें टीवी पर न तो अच्छी लगती हैं न ही बिकती हैं, वे आपकी टीआरपी नहीं बढ़ायेंगी, न आपके मालिकों के और न ही आप में से कुछ लोगों के सत्ता के साथ रिश्ते को मजबूत करेंगी और न ही आपको बड़ा पत्रकार बनायेंगी। 

हमें यह पता है कि यहां आने में आपको कष्ट होगा, आते ही आपको बदबू और गंदगी का सामना करना पड़ेगा, बजबजाती गलियों में आकर हमारी तस्वीर दिखाना आपके लिए मुश्किल होगा, गंदगी के अंबार के बीच चलना आपके लिए कष्टदायक होगा।

लेकिन मानवता के नाते एक बार आ जाइए।

यदि आप राष्ट्रवादी हैं, तो भी आइए क्योंकि हम इसी राष्ट्र के हैं, यदि आप हिंदू राष्ट्रवादी हैं, तो भी आइए, क्योंकि हम में से अधिकांश हिंदू हैं, यदि उदारवादी है, तो भी आइए क्योंकि सुनते हैं कि उदारवाद सबको जगह देता है, यदि वामपंथी है, तो भी आइए, क्योंकि हम सब मेहनतकश हैं, यदि आप सामाजिक न्यायवादी तो भी आइए, क्योंकि हम में से बहुलांश सामाजिक तौर पर पिछड़े वर्ग के हैं, यदि आप दलित पत्रकारिता करते हैं, तो भी आइए क्योंकि यहां एक बड़ा हिस्सा दलितों का है,

यदि आप आदिवासी पत्रकारिता करते हैं, तो भी आइए क्योंकि यहां विभिन्न तरीकों से उजाड़े गए आदिवासी भी मिल जाएंगे, यदि आप नारीवादी हैं, तो भी आइए क्योंकि यहां 30 से 40 प्रतिशत महिलाएं हैं और यदि आप मुसलमानों के हितों के लिए पत्रकारिता करते हैं, तो भी आइए, क्योंकि इनमें मुसलमान भी हैं और आप देश के किसी कोने या भाषा के हैं, तो भी आइए क्योंकि यहां देश के कोने-कोने के लोग आपको मिल जाएंगे। यदि आप किसी पार्टी के सपोर्टर हैं, तो भी आइए, क्योंकि हम वोटर भी हैं।

हमारी विनती है कि एक बार जरूर आइए, हमारे नारकीय जीवन को देख जाइए और लोगों को दिखा दीजिए और हमारी ओर से यह सवाल पूछ लीजिए कि बिना बसाए यदि हमें उजाड़ दिया जायेगा तो हम कहां जायेंगे? हमारी ओर से यह सवाल देश के प्रधानमंत्री जी से, दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल जी से, राहुल गांधी-प्रियंका गांधी से, अन्य विभिन्न पार्टियों के नेताओं से और समाज से एक बार ज़रूर पूछ लीजिए।

हम आप से कुछ अधिक नहीं चाहते हैं, सिर्फ यह चाहते हैं कि हमारी हालत एक बार देख लीजिए, उसे एक बार देश को दिखा दीजिए और पत्रकार होने के चलते कुछ सवाल ज़रूर पूछ लीजिए। अपने कीमती समय में से कुछ समय निकाल लीजिए और अपना कैमरा एक बार इधर भी घुमा लीजिए, अपनी कलम एक बार हम लोगों के लिए भी चला दीजिए। बड़ी मेहरबानी होगी।

इंतजार मत कीजिए, कि जब हमारी झुग्गियां तोड़ी जाएंगी, और सनसनी फैलेगी, तब आप आएंगे और झुग्गियों को तोड़ने एवं हमारे चीखने की आकर्षक तथा टीआरपी बढ़ाने वाली तस्वीरें अपने टीवी पर दिखाएंगें। उसके पहले एक बार आ जाइए।

बस यही विनम्र निवेदन है।

                                     प्रस्तुति

                                     सिद्धार्थ 

डॉ. सिद्धार्थ
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