नरेंद्र निकेतन के पुनर्निमाण की मांग को लेकर आज जंतर-मंतर पर धरना

नई दिल्ली। समाजवादी चिंतक आचार्य नरेंद्र देव की स्मृति में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर द्वारा स्थापित नरेंद्र निकेतन को षड्यंत्र पूर्वक ढहाए जाने के खिलाफ आज जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन किया जाएगा। धरने का आयोजन “नरेंद्र निकेतन पुनर्निर्माण समिति” कर रहा है। समिति ने “समाजवादी कार्यकर्ताओं के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के चाहने वालों से अपील की है कि वे जंतर-मंतर पहुंच कर समाजवादी स्मारक को संघी स्मारक में बदलने के षड्यंत्र का विरोध करें।” नरेंद्र निकेतन को ध्वस्त करने के इतने दिन बीत जाने के बाद भी पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर चुप हैं। वह घर में बैठ कर इंतजार कर रहे हैं कि लोग उनके पास आयें और पूछें कि देखिये न नरेंद्र निकेतन पर बुल्डोजर चला दिया गया है। कहावत है कि ‘बढ़े वंश तो होये डफाली’…माना कि चंद्रशेखर ने जीते जी सेन्टर फ़ॉर अपलायड पॉलिटिक्स के ट्रस्ट में आपका नाम नहीं जुड़वाया था। लेकिन अन्याय का विरोध करने से आपको किसने रोका है?
नीरज शेखर के चुप्पी के बावजूद देश भर में इस अशोभनीय कृत्य की निंदा और विरोध-प्रदर्शन का सिलसिला चल पड़ा है। जिससे नरेंद्र निकेतन को ध्वस्त करने वाले षड्यंत्रकारी सकते में हैं। उनको लगता था कि चुपचाप वे चंद्रशेखर की विरासत को ध्वस्त कर संघ प्रचारकों के नाम पर स्मारक बना देगें। लेकिन समाजवाद की संघर्षशील विरासत के आगे यह संभव नहीं होगा। नरेंद्र निकेतन के ढहाए जाने से देश भर में आक्रोश की लहर है। जिसके चलते चंद्रशेखर के गृह जनपद बलिया में समाजवादी विचारों से जुड़े युवाओं ने उपवास पर बैठ कर विरोध जताया। इसके साथ ही बिहार के कई जिलों में भारी संख्या में लोग प्रदर्शन करके अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं।
दिल्ली के आईटीओ पर जहां नरेंद्र निकेतन स्थित था वहां पर 14 फरवरी से समाजवादी जनता पार्टी के कार्यकर्ता और पदाधिकारी धरने पर बैठे थे। इस कायर सरकार में शाहीन बाग में रास्ता रोक कर बैठे लोगों को हटाने का साहस नहीं है लेकिन नरेंद्र निकेतन को बुल्डोजर से ढहाये जाने और चंद्रशेखर की यादों को मिटाने के कुकर्म के बाद उनकी यादों को संजोने बैठे लोगों को जबरन हटा दिया गया। अध्यक्ष जी को अपना मानने वाले और उनके बताये रास्ते पर चलने वाले लोगों को डराने-धमकाने की कोशिश चल रही है। लेकिन चंद्रशेखर के लोग कहां हार मानने वाले हैं, आज जंतर-मंतर पर प्रदर्शन रखा गया है। इस जोर जुल्म के टक्कर में संघर्ष ही हमारा सहारा है।
वैशाली से पूर्व सांसद लबली आनंद और उनके सुपुत्र चेतन आनंद ने नरेंद्र निकेतन को ध्वस्त करने के विरोध में अपील की है कि संख्याबल की परवाह किए बग़ैर जो जहां हैं आज और अभी से ‘शांतिमय प्रतिकार’ शुरु करे।
चेतन आनंद कहते हैं कि, “पिछले 14 फरवरी को अचानक दिल्ली के आईटीओ स्थित ‘नरेंद्र निकेतन’ पर जिस तरह तुगलकी अंदाज में बुल्डोजर चलाकर तोड़-फोड़ किया गया और गांधी जी की प्रतिमा सहित आचार्य नरेंद्र देव और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की तस्वीरों एवं महत्वपूर्ण दस्तावेजों को ध्वस्त किया किया गया, वह अत्यंत आपत्तिजनक और अशोभनीय है। यह देश के माथे पर कलंक है। मैं इसकी घोर निंदा करता हूं। ‘नरेंद्र निकेतन’ समाजवादी पुरोधा आचार्य नरेंद्र देव और चंद्रशेखर का ‘वैचारिक केंद्र स्थल’ था। जिसकी नींव और निर्माण स्वयं चंद्रशेखर के हाथों हुआ था। इस पर बुल्डोजर चलाना उन्हें चाहने वाले लाखों दिलों पर बुल्डोजर है। यह सोशलिस्ट-सेकुलर-ऑइडियोलॉजी पर बुल्डोजर है। जिसे ‘चंद्रशेखर के लोग’ कतई बर्दाश्त नहीं कर सकते। और न ही इस कुकृत्य के लिए गुनहगारों को क्षमा ही कर सकते हैं।’फ्रेंड्स ऑफ आनंद’ इसके खिलाफ शांतिपूर्वक विरोध-प्रदर्शन करेगा।”
बात केवल नरेंद्र निकेतन की ही नहीं है। सत्ता के दलालों की नजर में चंद्रशेखर के जीवनकाल में समाजवादी चिंतकों की स्मृति में स्थापित कई स्मारक हैं। जिसमें दिल्ली के दीनदयाल मार्ग पर स्थित चंद्रशेखर भवन और बलिया के जेपी नगर स्थित जेपी स्मारक भी है। सत्ता के दलालों की इस कुत्सित मानसिकता को इसी मोड़ पर रोकना होगा।
मौजूदा संघ-भाजपा सरकार का चंद्रशेखर के प्रति यह रवैया नया नहीं है। अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने 16 राजेंद्र प्रसाद रोड स्थित सजपा के दफ्तर से चंद्रशेखर को बेदखल किया तो चंद्रशेखर नरेंद्र निकेतन में बैठने लगे यानी सेंटर फॉर अप्लायड पॉलिटिक्स के दफ्तर से सजपा भी चलने लगी। अब चूंकि अध्यक्ष जी बैठने लगे तो नरेंद्र निकेतन में जमावड़ा भी होने लगा था। लेकिन आज न अध्यक्ष जी हैं और न उनके लोगों में वैसा आत्मबल, तो नतीजा सामने है।
नरेंद्र मोदी की सरकार में बगलबच्चा बने कुछ लोग जो कि खुद को चंद्रशेखर के सबसे बड़े हितैषी और सेवक बताते हैं वही लोग नरेंद्र निकेतन को जमींदोज कराने के दोषी हैं। हालांकि अब सेवक का मालिक के घर पर कब्जा करने की महत्वाकांक्षा चरम पर है और उसी का नतीजा है कि साजिशन अध्यक्ष जी के आसन पर बुल्डोजर चला दिया गया। जो लोग यह तर्क दे रहे हैं कि चूंकि यहीं से यशवंत सिन्हा ने सीएए के खिलाफ प्रेस कांफ्रेंस कर अपनी यात्रा शुरू की थी, इस लिहाज से ये राजनीतिक गतिविधि हुआ, तो फिर मैं पूछना चाहता हूं कि राजेंद्र प्रसाद रोड खाली करने के बाद जब अध्यक्ष जी यहां से पार्टी चला रहे थे तो फिर उस वक्त क्यों नहीं बुल्डोजर चलवाया गया।
सीएए और यशवंत तो बहाना है चंद्रशेखर और उनकी यादों पर बुल्डोजर चला कर उनकी यादों को मिटाना ही षड्यंत्रकारियों का असली मकसद है, लेकिन हमलोग चुप नहीं बैठेंगे। यह वो दौर है जब रहबर खुद तो जरूरी सवालों से मुंह चुराते हैं और यदि कोई जननायक आचार्य नरेंद्र देव की याद में चंद्रशेखर जी द्वारा बनवायी गयी ईमारत को ढहाने पर सवाल करता है तो कहते हैं शायद कहीं से कुछ लाभ हो रहा होगा। आप चाहते हैं कि नरेंद्र निकेतन पर बुल्डोजर चले और कथित अपनों द्वारा उनकी विरासत को तहस नहस कर दिया जाये और समाज तमाशा देखे, माफ कीजियेगा यह नहीं हो सकेगा।
आचार्य नरेंद्र निकेतन एक कंकड़-पत्थर से बनी ईमारत और चंद्रशेखर की विरासत चंद कागज पर उकेरे गये चंद शब्द मात्र नहीं हैं। माना की आपने अध्यक्ष जी के साथ बैठकर,उनके साथ रहकर, खुद को उनका शुभचिंतक बताते हुए यानी अपनी दुकान चलाते हुए उनके पीठ में खंजर भोंका है, लेकिन उनकी विरासत इतनी विस्तृत है कि आपको चैन से बैठने नहीं दिया जायेगा।
(संतोष कुमार सिंह पंचायत खबर के संपादक हैं। लेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं।)

संतोष कुमार सिंह
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संतोष कुमार सिंह