हमारे जमीनों, घरों पर कब्जा करने का साधन है एनआरसी-सीएए

जंतर मंतर पर ‘संविधान बचाओ देश बचाओ’ के नारे के साथ सीएए-एनआरसी-एनपीआर के खिलाफ़ महिलाओं ने विरोध प्रदर्शन किया। इस विरोध प्रदर्शन में हिंदू-मुस्लिम समुदाय के कई महिला संगठनों ने हिस्सा लिया।   

भारतीय राष्ट्रवादी संघ की मीनाक्षी सखी ने कहा, “सदियों से जिन स्त्रियों को घरों की चहारदीवारी में क़ैद करके रखा गया था वो महिलाएं मजबूर होकर सड़कों पर निकल आई हैं। सनातन शक्तियों ने उस समय भी संविधान का विरोध किया था जिन्होंने महिलाओं और दलितों का सदियों से शोषण करते आए थे। ये समानता आधारित हमारे संविधान को हटाकर अपनी सत्ता कायम करना चाहते हैं। ये समाज के हजारों साल पुराने ताने-बाने को खत्म करके देश और समाज को वापिस हजारों साल पीछे ले जाना चाहते हैं।”

उन्होंने कहा कि इतिहास गवाह है कि हजारों छोटे-छोटे हिंदू राजे रजवाड़े मुग़ल बहादुर शाह जफर को अपना शहंशाह चुनकर उनके नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ़ युद्ध छेड़ा था। अंग्रेजों ने उस समय किसी तरह इस विरोध को दबा तो दिया पर उन्हें भविष्य में हिंदू-मुस्लिम एक्य बल द्वारा उनकी सत्ता को उखाड़ फेंकने की चिंता और घबड़ाहट हुई। फिर उन्होंने समाज के सांप्रदायिक बनाकर हिंदू-मुस्लिम को आपस में लड़ाने की साजिश शुरू की।

मीनाक्षी ने कहा कि अंग्रेजों की उस साजिश को आज सावरकर के वंशज इस्तेमाल कर रहे हैं। सबके साथ सबके विकास के नारे के साथ सत्ता में आए इन सत्तासीन दरिंदो के मुखौटे खुल चुके हैं। ये दरअसल एनआरसी-सीएए को हथियार बनाकर हमारी जमीनों हमारे घरों को हड़पना चाहते हैं। इन्होंने भूमि के अधिकार कानून को भी इसी प्रयोजन से खत्म कर दिया।”

ऑल इंडिया महिला सांस्कृतिक संगठन की दिल्ली प्रतिनिधि ने कहा, “जिनके आदर्श हिटलर और मुसोलिनी हों वो लोग देश और समाज को कहां ले जाएंगे। ये लोग पूरे देश को गुजरात बनाना चाहते हैं। गुजरात जहां हजारों बुजुर्गों, महिलाओं और बच्चों को जलती भट्ठियों में झोंक दिया गया था। सीएए-एनआरसी के शोर- शराबे के पीछे इन्होंने रेलवे को प्राइवेट हाथों में बेंच दिया। रेलवे की लाखों एकड़ जमीन पर इनके दोस्त की नज़र थी। इनके दोस्त की नज़र जेएनयू की जमीन पर भी है।”

उन्होंने कहा कि टियां, दलित, आदिवासी, पिछड़े पढ़ेंगे तो इनकी नाक में दम कर देंगे इसीलिए ये आज जेएनयू, एएमयू, जामिया समेत तमाम विश्वविद्यालयों पर हमले करवा रहे हैं। ये देश की आजादी के खिलाफ़ काम करते थे। ये अंग्रेजों के लिए मुख़बिरी करते थे, ये चाहते थे कि अंग्रेज कभी इस देश से जाएं हीं न इसीलिए ये अंग्रेजों के तलवे चाटते थे। ये धर्म के आधार पर 80 प्रतिशत हिंदुओं को लामबंद करना चाहते हैं। 800 साल तक इस देश में मुस्लिम शासन रहा, लेकिन हिंदू धर्म कभी खतरे में नहीं पड़ा। आज चार गुंडों के सत्ता में आते ही देश के हिंदू खतरे में आ गया!

उन्होंने कहा कि मजहब के नाम पर बना कोई भी देश मानवतावादी नहीं हो सकता। आप धर्म के रक्षक नहीं भक्षक हैं। आप हमें लड़ा रहे हैं। सीएए के जरिए अपने पड़ोसी के प्रति हमारे दिमाग में आप शक़ पैदा कर रहे हैं। आप हमारे अधिकारों को रौंदकर अंबानी-अडानी को हाथों देश की बागडोर सौंपना चाहते हो।”

जामिया मिलिया इस्लामिया की प्रोफेसर हसीना हासिया कहती हैं, “आईन बचाओ, यही हमारी सबसे बड़ी लड़ाई है। ये आईन ही है जो सबको समानता का अधिकार देता है। सबको मजहबी आजादी है, सबको अपनी तरह से रहने-जीने का अधिकार है। डिग्निटी के साथ रहने का अधिकार है। आम तौर पर हमारी कौम की स्त्रियों को पर्दे के पीछे रहने वाला माना जाता है, लेकिन आज जब ज़रूरत पड़ी तो हम पर्दे के साथ संघर्ष के लिए निकल पड़ी हैं। अपना इतिहास हमें याद रखना है जो बेहद ख़ूबसूरत है।”

वह कहती हैं कि सलाद बाउल की तरह यूनिटी इन डायवर्सिटी हमारी देश की खूबसूरती में चार चांद लगा देता है। बंगाली, बिहारी, कश्मीरी, असमी, गुजराती, नागा, तमिल सबकी अपनी संस्कृतियां हैं, लेकिन फिर भी हम साथ रहते हैं। हम सब अपनी अलग संस्कृतियों के साथ भारतीय हैं। एक हैं हमें मत बांटो। हमें एक संस्कृति वाला इंडिया नहीं चाहिए। हमें हमारे सोशल फैब्रिक को बचाना है। जिसे हमारे पूर्वजों ने बनाया था, उसे हमें बचाना है। चाहे जेल जाना पड़े। हम गांधी के उसूलों पर चलने वाले लोग हैं। हम गांधी के रास्ते ही अपना संघर्ष करेंगे। 

जेएनयू की जहां राशिद ने कहा, “फासीवाद को जिंदा रहने के लिए झूठ की ज़रूरत होती है। उन्होंने पिछले छह साल से लगातार हम पर हमले कर करके हमें अपनी आइडेंटिटी के प्रति जागरूक और सतर्क कर दिया। हमें कभी लगा ही नहीं कि हम मुस्लिम हैं, लेकिन इनके हमले के बाद हम अपनी आईडेंटिटी को लेकर सतर्क हुए।”

भारतीय कम्युनिस्ट गदर पार्टी की महिला प्रतिनिधि ने कहा, “हमारी नागरिकता हमारे धर्म के आधार पर नहीं हो सकती। इस देश की महिलाएं एलान करती हैं कि आप (मोदी-शाह) देश की तहजीब के खिलाफ़ काम कर रहे हैं। नानक, कबीर की तहजीब ये थी कि इंसान और भगवान के बीच में बिचौलिये नहीं स्वीकारे जाएंगे।”

उन्होंने कहा कि आप उन्हें बिचौलियों को पुनः स्थापित करने के लिए मुस्लिम, दलित आदिवासी और महिलाओं को कागज के नाम पर भयभीत कर रहे हैं। कबीर, नानक, रैदास ने कहा था कि समाज का बंटवारा धर्म और जाति के आधार पर नहीं होना चाहिए और हम धर्म के नाम पर बंटवारा नहीं स्वीकार करेंगे। मौलाना बरकत अली, नेहरू, गांधी, मौलाना अबुल कलाम आजाद की तहजीब वाले भारत की आप हत्या कर रहे हैं, लेकिन हम आपको ऐसा नहीं करने देंगे।

इशरत जहां ने ‘हिंदुस्तान के चार सिपाही, हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई’ नारे के साथ अपनी बात की शुरुआत की। उन्होंने कहा, “जो लोग गांव में पैदा हुए हैं। जो अस्पताल में नहीं पैदा हुए बल्कि घर पर ही दाई ने जो प्रसव करवाया है वो जन्म प्रमाणपत्र कहां से लाएं? क्या मोदी के पास अपनी मां का जन्म प्रमाण पत्र है? आप सत्ता में बैठे हो तो इसका मतलब क्या कि आप बकवास करेंगे।”

दिल्ली माइनॉरिटी कमीशन की सेक्रेटरी एडवोकेट एनसटेसिया गिल ने कहा, “असम में हुए एनआरसी ने परिवार को बांट दिया। किसी का बच्चा डिटेंशन सेंटर में है और मां बाहर है। तो कोई बच्चा बाहर है तो उसकी मां डिटेंशन सेंटर में है। कोई पिता किसी दूसरे डिटेंशन सेंटर में है, मां किसी और कैंप में है और बच्चा तीसरे कैंप में है। जिस एनआरसी ने परिवार को बांट दिया है वो क्या देश और समाज को छोड़ेगा। ये बहुत ही खतरनाक कदम है। हमें ऐसी नागरकिता की ज़रूरत नहीं है जो हमारे परिवार को ही बांट दे। इसका एकजुट होकर विरोध कीजिए।”

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की सदस्य ममदुहा मजीद कहती हैं, “शाहीन बाग़ में चार औरतें उठी थीं। उनमें से एक ने कहा था कि ये क्या हो रहा है, बहुत हो चुका अब हम नहीं सहेंगे। इस आंदोलन का स्त्रियां नेतृत्व कर रही हैं, लेकिन पुरुषों बच्चों ने भी पीछे से उनको ताकत दी है। इनके सहयोग के बिना मुश्किल था। अब हमारी ताकत जाहिर हुई है।”

उन्होंने कहा कि मेरी उम्र 74 साल हो गई है। मैंने सोचा कि अब मुझे रिटायर हो जाना चाहिए। युवा पीढ़ी आगे आए और इस लड़ाई को लड़े, लेकिन जब मैं शाहीन बाग गई और एक 90 वर्ष की महिला को देखा उनसे पूछा कि इस उम्र में इतनी ठंड में रात में यहां क्यों डेरा डाले हो तो उन्होंने कहा हमारे बच्चे पर आफत आई हो और हम घर बैठे रहें तो ये तो न होगा। उनके हौसले और उम्र के बाद मुझे लगा कि अभी तो मैं जवान हूं। मैं फहमीदा रियाज की ये नज्म के साथ सबको संघर्ष के इसी रास्ते पर चलने की आवाज़ देती हूं…

कुछ लोग तुम्हें समझाएंगे
वह तुमको खौफ़ दिलाएंगे
जो है वह भी खो सकता है
इस राह में रहजन हैं इतने
कुछ और तो अक्सर होता है
पर तुम जिस लम्हे में ज़िंदा हो
यह लमहा तुमसे ज़िंदा है
यह वक्त नहीं फिर आएगा
तुम अपनी करनी कर गुज़रो
जो होगा देखा जाएगा। 

सुशील मानव
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सुशील मानव