पंजाब में सजा काट रहे एक किसान नेता को जब जेल से छुड़ायी जनता!

यह मामला दरअसल 29 जुलाई 1997 से शुरू होता है, जिस दिन जिला बरनाला के कस्बा नुमा गांव महल कलां के निवासी मास्टर दर्शन सिंह – जो फिजिकली हैंडीकैप्ड हैं और एक सरकारी स्कूल टीचर हैं- की 17 वर्षीय बेटी किरणजीत कौर जब कॉलेज से पढ़ कर घर लौट रही थी, तो रास्ते में ही उस को कुछ लोगों ने अगवा कर लिया। परिवार व गांव के लोगों द्वारा देर शाम तक ढूंढने के बाद भी जब लड़की नहीं मिली, तो इसकी रिपोर्ट पुलिस में दर्ज करवाई गई।

परिवार व गांव वासियों का शक गांव के एक बड़े धनाड्य व दबंग किस्म के परिवार के लड़कों पर था, जो बदमाशी व ऐसी बातों के लिए पहले भी लोगों की आंखों में खटकते थे। मगर उस परिवार के पास पैसे के साथ-साथ ऊंचे राजनीतिक संपर्क भी थे। पुलिस प्रशासन व नौकरशाही के साथ-साथ वह परिवार कांग्रेस व अन्य दलों के बड़े लीडरों तक के साथ भी काफी नजदीकी रखता था। जाहिर है कि ऐसी हालत में जनता के शक करने के बावजूद पुलिस उस परिवार की तरफ देखने तक की हिम्मत नहीं कर सकती थी। पुलिस अफसरों की तरफ से उल्टा लड़की के परिवार वालों को कहा गया कि शायद लड़की अपने किसी प्रेमी के साथ कहीं भाग गई होगी। इंतजार करो कुछ दिन के बाद वह खुद ही आ जाएगी।

ऐसी हालत में लड़की व उस के परिवार को इंसाफ दिलाने के लिए इस संघर्षशील इलाके के तमाम किसान, मजदूर, कर्मचारी व जनवादी संगठनों ने एक मीटिंग करके वहां एक संयुक्त कमेटी का निर्माण किया, जिसने किरणजीत को ढूंढने के लिए एक बड़ा जन आंदोलन शुरू करने का फैसला किया। जबरदस्त रैलियां निकली गईं, थाने और पुलिस अफसरों के घेराव किये गये। संघर्ष के दबाव के चलते जब पुलिस को उस परिवार के खेतों की तलाशी लेनी पड़ी, तो वहां से जमीन में गड़ी हुई लड़की की लाश, उसके कपड़े व किताबें सब कुछ मिल गया। यह 11 अगस्त 1997 का दिन था।

पोस्टमार्टम से सामने आया कि अगवाकारों ने लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार करने के बाद उसकी हत्या कर दी थी, और सबूत मिटाने के लिए उसे वहीं जमीन में दबा दिया था। यह सब सामने आने पर इलाके की जनता में जबरदस्त आक्रोश भर गया और बलात्कारियों व कातिलों को सजा दिलाने के लिए पंजाब के मालवा क्षेत्र में एक बहुत बड़ा जन आंदोलन खड़ा हो गया। लालझंडे की पार्टियों के जन संगठन – जैसे ऐपवा , किसान संगठन वह मज़दूर मुक्ति मोर्चा – भी इस संघर्ष में शामिल थे और मरहूम कामरेड जीता कौर सहित पार्टी के कई नेता उन बड़ी जनसभाओं व किरणजीत कौर की याद में हर साल 12 अगस्त को होने वाले समागमों को संबोधित करते रहे हैं। वह संयुक्त कमेटी “किरणजीत कत्ल कांड विरोधी एक्शन कमेटी महल कलां” के नाम से पूरे पंजाब में जानी जाती है।                

महल कलां के पड़ोसी गांव धनेर के निवासी किसान नेता मनजीत सिंह धनेर, बिजली कर्मचारियों के नेता कामरेड नारायण दत्त और डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट के नेता मास्टर प्रेम कुमार उस कमेटी के सक्रिय सदस्य थे। एक्शन कमेटी ने एक ताकतवर लोक आंदोलन संगठित करते हुए इस लड़ाई को निरंतर आगे बढ़ाया। जिसके चलते अंत में अगस्त 2001 में सेशन कोर्ट बरनाला ने इस कांड के चार नामजद दोषियों को कत्ल व रेप के जुर्म में उम्रकैद की सजा सुना दी।

मगर यह फैसला आने से कुछ पहले ही एक ऐसी बात और हुई जिसने जन आंदोलन के सामने एक गंभीर व नई चुनौती खड़ी कर दी। दोषी लड़कों के उस दबंग परिवार की गांव में कुछ और लोगों से भी पुरानी दुश्मनी चली आ रही थी। उसी सिलसिले में उनका एक दूसरा मुकदमा भी बरनाला की अदालत में चल रहा था। 3 मार्च 2001 को उस मुकदमे की पेशी थी। उस दिन वहां अदालत में दोषी परिवार के मेंबरों व उनके विरोधियों के बीच आपस में झगड़ा हो गया। जिसमें दोषी परिवार के एक 85 वर्षीय बुजुर्ग दलीप सिंह को भी चोटें लगीं व इलाज के दौरान करीब 10 दिन बाद हस्पताल में उसकी मौत हो गई।

जेल से छूटने के बाद मनजीत सिंह धनेर।

दोषियों के परिवार ने संघर्ष कमेटी के नेतृत्व के ऊपर अपने बुजुर्ग की इस हत्या का क्रॉस केस के ज़रिए दबाव बना कर रेप व कत्ल के मुकदमे में जेल में बंद अपने 4 नौजवान लड़कों को बचाने के लिए एक खतरनाक साजिश रची। जिसके तहत उन्होंने एक्शन कमेटी के उक्त तीनों सक्रिय नेताओं- मनजीत सिंह धनेर, नारायण दत्त व प्रेम कुमार का नाम भी इस कत्ल केस की FIR में लिखवा दिया। उनकी इस बदमाशी के खिलाफ भी जनता की ओर से जबरदस्त आंदोलन व प्रतिरोध हुआ। जिसके चलते पुलिस को मामले की जांच करनी पड़ी। पुलिस की इस जांच में पाया गया कि यह तीनों लोग उस लड़ाई के वक्त वहां उस अदालत के कहीं आस-पास भी मौजूद नहीं थे, लिहाजा वे बेकसूर हैं। इसलिए उन तीनों के नाम खाना नंबर दो में डालने की सिफारिश की गई।

मगर उस कत्ल केस की सुनवाई करने वाला जज वामपंथी व जनवादी धारा के खिलाफ कटृर विचार रखने वाला व्यक्ति था। इसलिए जब दोषियों के परिवार के वकील ने मुकदमे की सुनवाई के दौरान पुलिस जांच को दरकिनार करके इन तीनों लोगों को भी कत्ल केस में तलब करने की मांग की, तो उस जज ने बिना किसी देरी के इन तीनों को अदालत में पेश होने का हुक्म दिया और गिरफ्तार करके जेल भेज दिया। 3 मार्च 2001 को जब उसने इस कत्ल का फैसला सुनाया तो तीनों जन नेता व 4 दूसरे मुजरिम समेत कुल सातों लोगों को उम्र कैद की सजा सुना दी।                

अदालत के इस बेइंसाफी भरे फैसले को सुनकर जनता में गुस्से का एक तूफान सा उमड़ पड़ा और एक के बाद एक हजारों लोगों के हुजूम वाले करीब 18 बड़े प्रर्दशन बरनाला शहर में इन बेकसूर नेताओं को रिहा करने की मांग करते हुए किये गये। इस जबरदस्त जन आंदोलन के दबाव में आखिर तत्कालीन अकाली दल बादल की सरकार को पंजाब के राज्यपाल के पास इन लोगों की उम्र कैद की सजा को माफ करने की सिफारिश करनी पड़ी। जिसके चलते पंजाब के राज्यपाल ने 24 जुलाई 2007 को इनकी सजा माफ कर दी और ये तीनों जेल से रिहा हो गए।

मगर दूसरी ओर इस केस में अपील की सुनवाई अभी पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट में चल रही थी। हाई कोर्ट ने 11 मार्च 2008 को जब इस पर अपना फैसला सुनाया तो अदालत ने कहा कि यह तो ठीक है कि देश के राष्ट्रपति व राज्यपालों को किसी केस का अंतिम फैसला होने के बाद गुण दोष के आधार पर किसी भी दोषी की सजा माफ करने का संवैधानिक अधिकार है , मगर जब तक कोई केस की ऊपर की अदालतों में सुनवाई अधीन है तब राष्ट्रपति या राज्यपाल अदालत का फैसला आने से पहले ही दोषियों को कैसे माफ कर सकते हैं ? यह टिप्पणी दर्ज करने के बाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में नारायण दत्त और मास्टर प्रेम कुमार को इस कत्ल केस से बाइज्जत बरी कर दिया, मगर व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण लड़ाई करने वाले गांव के चार दूसरे मुजरिमों के साथ किसान नेता मनजीत सिंह धनेर की उम्र कैद को भी बरकरार रखा।

हालांकि राज्यपाल की ओर से माफी दिए जाने के कारण मनजीत सिंह धनेर जेल से बाहर ही थे, मगर तब भी इस फैसले से सजा की तलवार उनके ऊपर दोबारा लटक गई। उनकी ओर से इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई। अब तक मनजीत सिंह धनेर पंजाब के एक जाने पहचाने किसान नेता व भारतीय किसान यूनियन (डकौंदा गुट) के प्रांतीय सीनियर उपाध्यक्ष बन चुके थे। सुप्रीम कोर्ट ने इस अपील पर अपना फैसला 11 साल बाद 3 सितंबर 2019 को सुनाया, मगर उसमें भी मनजीत सिंह धनेर की उम्र कैद की सजा को बरकरार रखा गया।

सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला सुनते ही पंजाब के किसान मजदूर आंदोलन में एक बार फिर जबरदस्त उबाल आ गया। लोगों में इस फैसले की बड़ी प्रतिक्रिया हुई। प्रांत में सैंकड़ों जगह पर इस फैसले के खिलाफ रैलियां व रोष प्रदर्शन संगठित किए गए। पंजाब की जनता ने इस फैसले को इंसाफ का कत्ल होने के बराबर माना। प्रांत के 44 किसान मजदूर कर्मचारी व अन्य जनवादी संगठनों की संयुक्त संघर्ष कमेटी ने पंजाब में इस अन्याय के खिलाफ एक बड़ा जन आंदोलन खड़ा करने का फैसला किया। 11 सितंबर को जन नेताओं के एक बड़े प्रतिनिधि मंडल ने पंजाब के राज्यपाल से एक मुलाकात करके इस सजा को रद्द करने की मांग की। उसी दिन इस फैसले के लिए पंजाब सरकार की मिलीभगत वह नालाईकी को मुख्यरुप से जिम्मेदार मानते हुए 20 सितंबर से मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के शहर पटियाला में एक पक्का मोर्चा लगाने का भी ऐलान किया गया।

जेल से छूटने के बाद मनजीत सिंह धनेर।

इस फैसले के तहत 20 सितंबर को जब हजारों की संख्या में किसान मजदूर विद्यार्थी नौजवान व औरतों का एक बड़ा काफिला पटियाला पहुंचने के लिए सड़क पर था तो शहर से कुछ किलोमीटर बाहर भारी पुलिस फोर्स ने उसको नेशनल हाईवे के ऊपर ही रोक दिया। शाम 5:00 बजे तक उसी जगह रोष प्रदर्शन चलता रहा। रात तक सैंकड़ों ट्रैक्टर ट्राली के जरिए पहुंचे इस काफिले ने वहां पर ही एक नया गांव बसा लिया। अगले दिन से महमदपुर नामक उस गांव की अनाज मंडी में ही एक अनिश्चित धरना शुरू हो गया। जब संघर्ष कमेटी ने 22 सितंबर को शहर की ओर कूच करने का ऐलान किया, तो प्रशासन की जान पर बन आई।

इसके बाद एसडीएम पटियाला ने स्टेज पर आकर मुख्यमंत्री के प्रिंसिपल सचिव के साथ 26 सितंबर को चंडीगढ़ में फिक्स हुई एक मीटिंग का पत्र कमेटी को सौंपा। 26 सितंबर को हजारों लोग – खास करके महिलाएं घरों के दायरे से बाहर निकलकर संघर्ष के मैदान में आन पहुंची और जनता के हर हिस्से की ओर से इस संघर्ष में शामिल होने के संदेश आने लगे। हालत यह थी कि जब 26 सितंबर को यहां से मोर्चा खत्म करने का ऐलान किया गया तो वहां डटे हुए लोग जाने के लिए तैयार ही नहीं थे। इसी दौरान जब पता चला कि राज्यपाल के ऑफिस से कुछ आपत्ति लगाकर इस केस की फाइल पंजाब सरकार के पास वापस आई है। वह करीब 2 महीने से दफ्तरों में पड़ी धूल फांक रही है, तो संघर्ष कमेटी ने तय किया कि अब यह मोर्चा पटियाला की बजाए जिला जेल बरनाला के सामने लगाया जाएगा। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक मनजीत सिंह धनेर को 30 सितंबर को  जेल जाने के लिए बरनाला की अदालत में पेश होना था।                    

30 सितंबर को हजारों लोगों के एक बड़े काफिले के साथ मनजीत सिंह धनेर अदालत में पेश होने के बाद अपनी सजा काटने के लिए जेल के दरवाजे तक पहुंचे। उस वक़्त संघर्ष कमेटी की ओर से वहां ऐलान किया गया कि जैसे जोशो खरोश से हम मनजीत सिंह को जेल तक लेकर आए हैं, उसी शान से उसको वहां से रिहा करवा कर वापस भी ले जाएंगे। और जब तक यह नहीं होगा तब तक जेल के सामने यह अनिश्चित कालीन धरना चलता रहेगा। जेल के आगे लगा वह धरना जल्दी ही एक ‘संघर्ष ग्राम’ के रूप में स्थापित हो गया। इस आंदोलन में समाज का हर तबका शामिल होने के लिए आगे आने लगा। किसान, मजदूर, महिलाएं, लेखक, साहित्यकार, रंगकर्मी बुद्धिजीवी, वकील, इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया, तर्कशील जनवादी कार्यकर्ता मतलब के सभी इंसाफ पसंद लोग इस संघर्ष का हिस्सा बन गए।

इस संघर्ष में सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा महिलाओं का था। हर बड़े आह्वान में वह अपने सर पर हरे व बसंती रंग के दुपट्टे ओढ़ के हजारों की संख्या में जोशो खरोश से शामल होती रहीं। बेशक शुरुआती दौर में प्रशासन ने गैरकानूनी ऐलान के इस धरने को जबरन उठाना चाहा, पर जनता की एकता व दृढ़ता के आगे उनके सब हथकंडे फेल हो गए। और हर आए दिन धरने में जनता की भागीदारी पहले से बढ़ती ही चली गई। अंत में 22 अक्टूबर को पंजाब सरकार इस मुद्दे पर संघर्ष कमेटी के साथ मीटिंग करने के लिए मजबूर हो गई। इस मीटिंग में तय हुआ कि पंजाब सरकार मनजीत सिंह की रिहाई का केस अपनी सिफारिशों के साथ 2 हफ्ते के अंदर अंदर राजपाल तक पहुंचाएगी और उनसे इसके बारे में जल्दी से जल्दी फैसला लेने की अपील करेगी।

जन संघर्ष के लगातार बढ़ते हुए दबाव को महसूस करते हुए पंजाब के राज्यपाल ने आखिर 7 नवंबर को मनजीत सिंह धनेर की सजा माफ करने के हुकुम जारी कर दिया। इस तरह अकल्पनीय ढंग से सिर्फ 54 दिन के बाद ही मनजीत सिंह जेल की सलाखों से बाहर आ गए और फिर से जन संघर्षों का हिस्सा बन गए। 15 नवंबर को हजारों लोगों के जोशो खरोश से भरे काफिले ने धरने के मंच पर अपने इस जुझारू नेता का स्वागत किया और ढोल की ताल पर नाचते हुए, आतिशबाजी करते हुए शानो शौकत के साथ उन को बरनाला से करीब 40 किलोमीटर दूर उनके गांव धनेर स्थित उनके घर तक पहुंचाया।                    

इस यादगार मौके पर मनजीत सिंह का स्वागत करने के लिए अनेक दूसरे नेताओं के साथ साथ ऑल इंडिया किसान महासभा के अध्यक्ष कामरेड रुलदू र्सिंह मानसा, भाकपा माले लिबरेशन पार्टी के केंद्रीय कमेटी मेंबर कामरेड सुखदर्शन सिंह नत्त व पंजाब किसान यूनियन की ओर से कामरेड करनैल सिंह मानसा, हरजिंदर सिंह मानशाहीया, एडवोकेट बलकरन सिंह बल्ली व बलबीर कौर भी वहां मौजूद थे। इस मिसाली संयुक्त व अनुशासित जनवादी संघर्ष ने लोक लहर पर हुकूमत की ओर से किए जा रहे व किये जाने वाले दमन का मुंहतोड़ जवाब देने का नया रास्ता खोला है। यह संघर्ष देश में जनवादी और क्रांतिकारी लहर व कार्यकर्ताओं पर हो रहे हमलों को रोकने के लिए एक नई मिशाल बन कर उभरा है।

(लेखक सुखदर्शन सिंह नत्त सीपीआई (एमएल) की केंद्रीय कमेटी के सदस्य हैं।)

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