शाहजहांपुर में आशाओं पर हुई पुलिस बर्बरता के ख़िलाफ़ तेज हुआ महिलाओं का आंदोलन

शाहजहां पुर की आशाओं पर पुलिसिया दमन क्यों

योगी सरकार जवाब दो ……

“आशा” पूनम पांडे पर बर्बरता करने वाले पुलिस कर्मियों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई क्यों नहीं… मुख्यमंत्री जवाब दो…..

शाहजहां पुर की आशाओं पर से फर्जी मुकदमें रद्द करने होंगे….. 

आदि नारों के साथ बीते 17 नवंबर को देशभर में एक्टू से सम्बद्ध आशा वर्कर्स यूनियन के बैनर तले उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, उत्तराखंड, झारखंड आदि जगहों पर हजारों आशाओं ने आंदोलन किया और शाहजहांपुर की अपनी आशा बहनों के लिए योगी सरकार से इंसाफ मांगा। 

आख़िर शाहजहांपुर में आशाओं के साथ क्या हुआ 

जिसे लेकर विभिन्न जगहों पर आशाओं को आंदोलित होना, इसे जानना जरूरी है…..

 घटना क्रम कुछ यूं है। ऑल इंडिया आशा बहू कार्यकत्री कल्याण सेवा समिति के बैनर तले शाहजहांपुर जिले की आशा बहुएं अपनी वाजिब मांगों के साथ शहर के खिरनीबाग़ स्थित जीआईसी मैदान में कई दिनों से धरने पर बैठी हुई थीं। बीते नौ नवंबर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का शाहजहांपुर में ही कार्यक्रम था धरने पर बैठी आशा बहुओं के मुताबिक उनका केवल इतना ही फैसला था कि उनका चार या पांच लोगों का प्रतिनिधि मण्डल मुख्यमंत्री को अपना मांगपत्र सौंपेगा और बाकी आशा बहनें कार्यक्रम स्थल से दूर ही खड़ी रहेंगी।  उनका यह भी निर्णय था कि कोई नारेबाजी नहीं होगी जो होगा शांतिपूर्वक होगा । 

समिति की जिलाध्यक्ष कमलजीत कौर के मुताबिक मुख्यमंत्री को मांगपत्र सौंपे जाने की जानकारी जिला प्रशासन को पूर्व में दे दी गई थी, सब कुछ तय फैसलों के हिसाब से ठीक चल रहा था और आशा बहनें पूरी आश्वस्त थीं कि उनका मांगपत्र मुख्यमंत्री जी तक पहुंच जाएगा लेकिन हुआ ठीक इसके विपरीत। पुलिस बल द्वारा न केवल आशा बहुओं को रोका गया बल्कि उनके साथ अति हिंसक व्यवहार भी किया जिसका सबसे ज्यादा शिकार हुई पूनम पांडे। पूनम को वहां मौजूद महिला पुलिस कर्मियों द्वारा जिस बेरहमी से गिराकर बूटों से मारा गया वह वीडियो आज सबके सामने है। सब आशा बहुओं को बस में ठूंस कर हिरासत में ले लिया गया और पूनम सहित लगभग तीस आशाओं पर धारा 186 और 353  के तहत मुकदमा दर्ज कर दिया गया। 

समिति की जिला मीडिया प्रभारी रविंद्र जी का कहना था कि आख़िर पूनम का कसूर क्या था, केवल इतना ही कि उसने पुलिस से यह पूछने की हिम्मत दिखाई कि उन्हें क्यों रोका जा है और यदि रोका जा रहा है तो क्या उसका कोई लिखित प्रमाण है। रविन्द्र जी कहती हैं हमारा प्रदर्शन उग्र नहीं था, न ही हम कोई नारे बाजी कर रहे थे हम शांत थे। मुख्यमंत्री को मांगपत्र सौंपकर सब आशा बहनें शांतिपूर्वक मार्च कर वापस चली जातीं। हमारी नीयत मुख्यमंत्री जी के कार्यक्रम को डिस्टर्ब करने की नहीं थी। बस इसलिए पूनम ने पुलिस से सवाल किया। जिसका खामियाजा उसे बेहद गंभीर चोटों के रूप में झेलना पड़ा और अभी भी उसकी तबीयत ठीक नहीं। 

पुलिस दमन की शिकार इन आशा बहुओं से मिलने जब यह रिपोर्टर शाहजहांपुर पहुंची तो देखा कि इस घटना के बाद आशा बहुएं और पूरी ताकत के साथ पूनम को न्याय देने की मांग और अपनी अन्य मांगों के साथ चौबीसों घंटे धरने में डटी हैं। बेहद अस्वस्थ और चोटिल होने के कारण फिलहाल पूनम को अभी धरने से दूर रखा गया है। उन्होंने आश्वस्त किया कि मेरे लखनऊ पहुंचने से पहले वे पूनम का वीडियो बनाकर मुझे भेज देंगे जिसमें पूनम अपने साथ हुई ज्यादती को बताएगी। 

अत्याचार की कहानी खुद पूनम की जुबानी

इस घटना के बाद भी धरने में डटी शाहजहांपुर की आशा बहुओं और पूनम से मिलने जब यह रिपोर्टर धरना स्थल पहुंची तो पता चला की गंभीर रूप से चोटिल होने के कारण पूनम अभी धरने में शामिल नहीं हो पा रही हैं लेकिन अपने पर हुए पुलिसिया क्रूरता का घटनाक्रम बताते हुए पूनम ने हम तक अपने वीडियो भेजे जिन्हें सुनकर किसी की भी रूह कांप जाए। पूनम के मुताबिक जब उन्हें रोका गया तो उसने पुलिस से पूछा कि आखिर उन्हें क्यों रोका जा रहा है, योगी जी हम सब के मुख्यमंत्री है और उनसे मिलने का हक सब का है तो पुलिस ने इसके जवाब में कहा कि अन्य कोई भी मिल सकता है लेकिन तुम लोग नहीं मिल सकते। जब उसने यह सवाल किया कि तो क्या मुख्यमंत्री जी का ऐसा कोई लिखित आदेश है तो इसके जवाब में पुलिस ने कहा कि तुम्हें लिखित आदेश देखना है और फिर इसी के साथ महिला पुलिस ने पूनम को पीटना शुरू कर दिया, मोबाइल छीन लिया जिसमें वीडियो बन रहा था सब डिलीट कर दिया,  कान की बालियां भी छीन ली, गर्दन में दुपट्टा कसकर मारने की कोशिश की गई।

पूनम ने बताया कि जब उसे जबरदस्ती गाड़ी में बैठाकर ले जाया जा रहा था तो गाड़ी के अंदर न केवल महिला बल्कि पुरुष पुलिस ने भी पीटा। वहां मौजूद एसआई ने उसका हाथ मरोड़ दिया जिसके कारण उसका हाथ टूट गया, महिला पुलिस कर्मी ने उसकी छाती पर बैठकर उसे पीटा। अन्य महिला पुलिस कर्मियों द्वारा भी बूटों से उसके प्राईवेट पार्ट्स में बहुत मारा गया। गाड़ी में जो दूसरी आशा बहनें उसे बचाने आईं उन्हें भी पुलिस वालों ने धक्का देकर गिरा दिया। आंखों में इतना मारा कि खून जम गया। गर्दन तक कसी गई। पूरे रास्ते  पुलिस मारती रही और जब वह बेहोश होने लगी तब जाकर मारना बंद किया गया। पूनम के मुताबिक थाने ले जाकर उसे धमकी दी गई कि यदि पुलिस के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई की गई तो अंजाम बुरा होगा।

कोविड काल में अपनी जान की बाजी लगाने वाली इन्हीं आशा बहनों के कंधों पर स्वास्थ्य क्षेत्र की तामाम जिम्मेदारियां टिकी हैं फिर भी इनका आर्थिक, शारीरिक और मानसिक दमन जारी है,  पूनम को बेतहाशा पीटा गया,  उल्टे पूनम और अन्य आशा बहनों पर मुकदमा दर्ज कर लिया गया बावजूद इसके आज भी वे आशा बहनें अपना आंदोलन जारी रखे हुए हैं। उनके इस आंदोलन में ट्रेड यूनियन AICCTU से संबद्ध उत्तर प्रदेश आशा वर्कर्स यूनियन , राष्ट्रीय स्तर पर कार्यरत स्कीम वर्कर्स फेडरेशन ने अपनी साझीदारी व्यक्त करते हुए आगामी समय में भी तब तक इस आंदोलन को गति देने का निश्चय किया है जब तक शाहजहांपुर की आशा बहनों और पूनम पांडे को न्याय नहीं मिल जाता।

सरोजिनी बिष्ट
Published by
सरोजिनी बिष्ट