बीजेपी की बढ़त और विपक्ष की चूक के क्या हैं कारण

महेंद्र नाथ

बीजेपी देश में एक के बाद दूसरा किला फतह करती जा रही है और पूरा विपक्ष भौचक है। ऐसा कहा जा रहा है कि कलिंगा पर कब्जे के लिए ही कार्यकारिणी की बैठक को भुवनेश्वर में रखा गया है। उड़ीसा के पंचायत चुनावों में जीत और पश्चिम बंगाल उपचुनाव में आए उत्साहजनक नतीजों ने उसके हौसले बढ़ा दिए हैं।

अस्तित्वहीन दिख रहा है विपक्ष

असम ने पहले ही उसे इस मोर्चे पर बहुत आगे खड़ा कर दिया था। पार्टी अब उत्तर-पूर्व पर कब्जे की तैयारी में है। माना जा रहा है कि भुवनेश्वर में पार्टी इसकी रणनीति तैयार करेगी। बीजेपी के इस रोडरोलर के आगे विपक्ष अस्तित्वहीन दिख रहा है। चुनौती देने की बात तो दूर पूरे परिदृश्य को देखकर विपक्षियों के हाथ पांव जैसे फूल गए हैं।

बीमारी की पहचान जरूरी

कहते हैं कि किसी मर्ज को दूर करने से पहले डाक्टर उसकी पहचान करता है। फिर उसी के हिसाब से बीमारी का इलाज करता है। लिहाजा मर्ज की पहचान सबसे अहम बात होती है। राजनीति या फिर किसी क्षेत्र के मामले में भी यही बात सच है। बीजेपी अगर आगे बढ़ रही है तो उसकी मुख्य वजहें क्या हैं? इसकी छानबीन बहुत जरूरी है। बगैर इसको जाने उसका विकल्प भी नहीं तैयार किया जा सकता।

बीजेपी ने खींची बड़ी लकीर

एक बात बिल्कुल साफ दिख रही है कि हर मामले में विपक्ष के मुकाबले वो एक बड़ी लकीर खींचने में सफल है। मसलन सूबों में जगह-जगह उसे टक्कर देने वाले राजनीतिक दल जाति पर आधारित हैं या फिर उसके संकीर्ण दायरे से बाहर निकलने की स्थित में नहीं हैं ऐसे में बीजेपी के पास हिंदुओं की गोलबंदी का एक बड़ा फलक है। दूसरा, इन विपक्षी दलों का भौगोलिक दायरा एक सूबे से बाहर नहीं दिखता है। जबकि बीजेपी के पास एक राष्ट्रीय ढांचा है। ऐसे में राष्ट्रवाद को अपना स्वाभाविक नारा बनाना उसके लिए आसान हो जाता है।

परिवारवाद के पिंजरे में बंद विपक्ष

तीसरा, ऐसे समय में जबकि क्षेत्रीय दल या फिर उनके नेता परिवारवाद के पिंजरे में कैद हैं बीजेपी अकेली पार्टी दिखती है जिसको इस बीमारी ने नहीं पकड़ा है। सूबे या स्थानीय स्तर पर ये रोग कहीं-कहीं उसमें भी मौजूद है। लेकिन राष्ट्रीय ढांचे में इसका कोई असर नहीं दिखता। साथ ही बहुत दूर तक भविष्य में इसके पकड़ने की कोई आशंका भी नहीं दिख रही है।

कारपोरेट का खेल

चौथी और सबसे प्रमुख चीज कारपोरेट है। छोटे दल टुटपुजिया बनियों या स्थानीय साहूकारों या फिर सरकारी भ्रष्टाचार से हासिल धन के सहारे अपनी राजनीति की गाड़ी खींच रहे हैं। ऐसे मौके पर बीजेपी को कारपोरेट के एक बड़े हिस्से का समर्थन और विश्वास हासिल है।

जनता को भी इस बात की उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी उनके सहारे देश को विकास की एक नई ऊंचाई पर ले जाएंगे। वो विकास किसका होगा ? कितना होगा ? और उसका स्वरूप क्या होगा? उसे नहीं पता है। खास बात ये है कि उसको मोदी भी बताने की स्थिति में नहीं हैं। लेकिन जो भी होगा कुछ बड़ा होगा। ऐसी कुछ उम्मीद लोगों ने पाल रखी है।

पैमाने जिन पर बीजेपी कमतर

लेकिन इसी के साथ एक दूसरा सच भी है जिसे देखे जाने की जरूरत है। लेकिन न तो उसे कोई दिखाने वाला है और न ही उस पर कोई बात हो पा रही है। जिस मामले में बीजेपी दूसरे दलों को कमतर साबित करने की कोशिश कर रही है वो खुद एक दूसरे पैमाने पर उसमें बहुत पीछे खड़ी है।

मसलन जाति से बड़ी इकाई अगर हिंदू है तो हिंदू से बड़ी इकाई सभी धर्मों की एकता और उनका भाईचारा है। भौगोलिक सीमाओं के लिहाज से सूबे से अगर बड़ा राष्ट्र है तो बीजेपी की सांप्रदायिकता उसको खंड-खंड में बांटकर सूबे से भी छोटी इकाइयों में सीमित कर देने की हैसियत रखती है।

कई मामलों में बीजेपी ज्यादा खतरनाक

इस लिहाज से वो किसी क्षेत्रीय दल से भी ज्यादा खतरनाक है। अगर विपक्षी राजनीतिक दल किसी परिवारवाद के शिकार हैं और उनमें लोकतंत्र का अभाव है तो बीजेपी इस क्षेत्र में कैंसर से ग्रस्त है। उसके पास संघ जैसा एक संगठन है जिसकी न तो जनता के प्रति कोई जवाबदेही है और न ही उसके संगठन का लोकतांत्रिक तरीके से संचालन होता है।

विकृत पूंजीवाद को बढ़ावा

आखिर में बात कारपोरेट की। इस देश में स्वस्थ पूंजीवाद का विकास वक्त की जरूरत थी। कारपोरेट को आगे कर मोदी जी उसी का फायदा उठा रहे हैं। सच्चाई ये है कि देने के नाम पर उनके पास एक विकृत पूंजीवाद है जिसे क्रोनी कैप्टिलिज्म भी कहा जा रहा है। जिसमें सभी उद्योगपतियों, कारोबारियों और उद्यमियों की बजाय कुछ खास घरानों को तवज्जो दिया जा रहा है। देश के पूरे संसाधनों और संपत्तियों को इसी हिस्से के हवाले कर दिया जा रहा है। बाकी को या तो दरकिनार कर दिया गया है या फिर उनको नुकसान पहुंचाने की कोशिश की जा रही है।

उत्तर-पूर्व पर कब्जे की तैयारी

अनायास नहीं उड़ीसा की बैठक में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने काग्रेंस मुक्त भारत से आगे बढ़कर विरोधी मुक्त भारत का नारा दे दिया है। साथ ही उनका ये कहना कि उत्तर प्रदेश की जीत के बाद अब ये मिथक टूट गया है कि बीजेपी किसी क्षेत्रीय दल के मुकाबले जीत हासिल नहीं कर सकती। ये बताता है कि बीजेपी मानसिक तौर पर अब एक दूसरे मुकाम पर पहुंच गयी है।

वैकल्पिक राजनीति और सक्षम विचारधारा है रास्ता

बहरहाल अगर कोई दल अपनी ऊपर दी गई कमियों और कमजोरियों को दूर कर बीजेपी के इस पक्ष को उजागर करता है तो उसकी संभावनाएं प्रबल हो सकती हैं। इस लिहाज से वैकल्पिक राजनीति के साथ-साथ एक सक्षम विचारधारा से लैस होना उसकी बुनियादी शर्त बन जाती है।

 

(लेख में दिए गए विचार लेखक के अपने हैं इससे जनचौक का सहमत होना जरूरी नहीं है)

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