कोविड महामारी पर भारी पड़ा चीनी संकल्प, अर्थव्यवस्था नये उछाल की ओर

(चौबे जी छब्बे बनने चले थे, और दुबे बनकर लौटे। कुछ इसी तरह का हाल भारत और अमेरिका का इस वर्ष के फरवरी, मार्च महीनों के दौरान देखने को मिला था। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की ओर से लगातार बयान बाजी आ रही थी कि चीन कोरोनावायरस की मार से उबर नहीं पायेगा और अमेरिका को मिल रही चुनौती एक बार फिर से ध्वस्त होने जा रही है। इसी क्रम में भारतीय प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री की टिप्पणियों को भी गौर करें तो मानो भारत अपने प्रतिद्वंदी पड़ोसी चीन के पराभव और उसके देश से पूँजी के माइग्रेशन को समेटने के लिए पलक पांवड़े बिछाए हुए है। 

लेकिन अंततः ये दोनों देश अपने घर की चिंता छोड़, जिस तरह से लार टपकाए दूसरे की बर्बादी का नजारा देखने को आतुर थे, उल्टा उन्हें ही इन सबसे दो चार होना पड़ रहा है। इस लेख का सम्बंध इस अर्थ में महत्वपूर्ण हो जाता है कि किस प्रकार से हमें वास्तविक अर्थों में आत्मनिर्भरता के मायनों को समझना होगा। दूसरे देशों में कोरोनावायरस से निपटने के लिए जनता को पहुंचाई गई आर्थिक मदद भी आख़िरकार किस प्रकार से चीनी अर्थव्यवस्था को मदद पहुंचाने के काम में आई, क्योंकि चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था और नीतियों को चाक चौबंद बना रखा था। यह लेख न्यूयॉर्क टाइम्स में 19 अक्तूबर को प्रकाशित हुआ था। उसका स्वतंत्र टिप्पणीकार और अनुवादक रविंद्र सिंह पटवाल द्वारा किया गया हिंदी अनुवाद दिया जा रहा है-संपादक)

एक तरफ विश्व का ज्यादातर हिस्सा अभी भी कोरोना वायरस महामारी से जूझ रहा है, वहीं दूसरी तरफ चीन ने वायरस पर मजबूती से अपना नियंत्रण बनाते हुए इस बात को साबित किया है कि तीव्र गति से आर्थिक तौर पर उछाल को वापस हासिल करना काफी हद तक संभव है।

नेशनल ब्यूरो ऑफ़ स्टेटिस्टिक्स के अनुसार इस साल के जुलाई से लेकर सितंबर के आंकड़ों को यदि पिछले वर्ष से तुलना करें तो चीनी अर्थव्यवस्था 4.9% की रफ्तार से बढ़ी है। इस जबर्दस्त प्रदर्शन ने चीन को पिछले वर्ष के महामारी पूर्व की विकास दर जो कि तकरीबन 6% के आस-पास थी, की स्थिति में वापस ला खड़ा कर दिया है, जो अपने आप में किसी अजूबे से कम नहीं है।  

दुनिया की कई मुख्य अर्थव्यवस्थाएं इस बीच अपने-अपने आर्थिक सिकुड़न से लगभग वापस लौट चुकी हैं, जिसमें तकरीबन सभी अर्थव्यवस्थायें बंदी की स्थिति में पहुँच चुकी थीं। लेकिन उन सभी में चीन वह पहली बड़ी अर्थव्यवस्था है जिसने पिछले वर्ष की विकास दर से महत्वपूर्ण बढ़त हासिल कर ली है। अमेरिका एवं अन्य देशों से उम्मीद है कि इस तीसरी तिमाही में उनके यहाँ अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ेगी, लेकिन अभी भी वहां स्थिति काफी कमजोर है या महामारी-पूर्व के स्तर को वे छूने की स्थिति में पहुँचने वाले हैं।

संघाई के एक स्टोर पर सामानों को खरीदने के लिए लगी कतार।

जबकि चीन की यह बढ़त आने वाले महीनों में और अधिक बढ़ने जा रही है। आज के दिन वहां स्थानीय स्तर पर वायरस संक्रमण का कोई खतरा नहीं है, जबकि अमेरिका और यूरोप को एक बार फिर से मामलों में तेजी से उछाल का सामना करना पड़ रहा है।

पेकिंग यूनिवर्सिटी के नेशनल स्कूल ऑफ़ डेवलपमेंट के मानद डीन एवं कैबिनेट सलाहकार जस्टिन लिन यिफू ने बीजिंग में एक हालिया सरकारी समाचार सम्मेलन के दौरान इस बात का खुलासा किया है कि चीनी अर्थव्यवस्था जिस तेजी से विस्तार कर रही है, वह इस वर्ष दुनिया के कुल आर्थिक विकास के कम से कम 30% के बराबर है और आने वाले वर्षों में भी इस ट्रेंड में कोई बदलाव नहीं होने जा रहा है। 

महामारी के दौरान दुनिया के कुल निर्यात में चीनी कम्पनियों की हिस्सेदारी में लगातार वृद्धि देखने को मिली है, खासकर महामारी के दौरान कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक, पीपीई एवं अन्य वस्तुओं की भारी माँग रही। इसी दौरान यह भी देखने को मिल रहा है कि चीन अब ब्राज़ील से पहले की तुलना में कहीं अधिक लौह अयस्क, अमेरिका से पहले से ज्यादा भुट्टे और सुअर का गोश्त एवं मलेशिया से पाम आयल का आयात कर रहा है। इसके चलते कुछ वस्तुओं की कीमतों में कमी आई है और कुछ उद्योगों में महामारी के असर से मुक्ति मिली है। 

इस सबके बावजूद चीन के इस आर्थिक स्तर पर उबरने की वजह से शेष विश्व को पहले के दौर की तरह कोई विशेष फायदा नहीं हो सका है। इसकी एक वजह यह है कि पूर्व की तुलना में इस बार चीन का आयात इसके निर्यात की तुलना में नहीं बढ़ा है। इसके चलते चीन में तो नई नौकरियों में बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है, लेकिन बाकी जगह विकास पर रोक लगी हुई है।

इसके साथ ही चीन के इस आर्थिक स्थिति में सुधार के पीछे राजमार्गों पर किये जा रहे भारी निवेश, हाई-स्पीड ट्रेन एवं अन्य बुनियादी निर्माण क्षेत्र में कई महीनों के भारी निवेश का बड़ा हाथ है। और हाल के हफ़्तों में देखने में आ रहा है कि देश की घरेलू खपत में भी बढ़ोत्तरी हो रही है।

संपन्न तबके के साथ-साथ जो लोग निर्यात-उन्मुख तटीय राज्यों में निवास करते हैं, वहां पर सबसे पहले एक बार फिर से खर्च करने की शुरुआत हुई है। लेकिन साथ ही साथ वुहान जैसे केन्द्रीय चीनी शहर में जहाँ पहले-पहल यह नया कोरोनावायरस फैला था, वहां पर भी आर्थिक गतिविधियों ने रफ्तार पकड ली है। 

वुहान में रह रहीं लेई यानकिउ, जो कि अपने 30 के शुरुआती वर्षों में हैं, का कहना है कि “वुहान के कई रेस्तरां में आपको लाइन लगाना पड़ सकता है। वुहान के जो रेस्तरां इन्टरनेट पर काफी लोकप्रिय हैं, वहाँ प्रवेश के लिए तो दो से तीन घंटे तक लग रहे हैं।” वहीं पश्चिमी चीन के चेंगडू शहर (सिचउअन प्रान्त की राजधानी) के निवासी जॉर्ज ज्होंग ने बताया कि पिछले दो महीने से उन्होंने तीन प्रान्तों की यात्रा की है और जब भी वे घर पर होते हैं तो जमकर शॉपिंग करते हैं। “इस साल मैंने पिछले वर्ष से कम खर्च नहीं किया है।” ज्होंग बताते हैं।

पिछले महीने वुहान का एक रेस्तरां।

चीन की आर्थिक रिकवरी लगातार बेहतर होती जा रही है, इसे देखने के लिए सितंबर में जारी हुए आंकड़ों से भी समझा जा सकता है जो कि सोमवार को ही जारी हुए हैं। रिटेल सेल में पिछले वर्ष की तुलना में पिछले महीने 3.3% का इजाफा हुआ है, जबकि औद्योगिक उत्पादन में यह वृद्धि 6.9% दर्ज की गई है।

चीनी मॉडल का यह विकास भले ही बेहद असरकारक हो, लेकिन कई अन्य देशों के लिए हो सकता है कि यह आकर्षक न लगे। चीन ने देश में वायरस के संचरण पर पूरी तरह से रोकथाम लगाने के लिए जिन कठोर कदमों को अपनाया उसमें अपनी जनसंख्या पर सेलफोन के जरिये हर समय ट्रैकिंग करने, कई हफ़्तों तक आस-पड़ोस और शहरों में पूर्ण लॉकडाउन को थोपना और वायरस के छोटे से छोटे फैलाव को काबू में लाने के लिए व्यापक स्तर पर टेस्टिंग की बेहद खर्चीली प्रक्रिया को अपनाना सबके लिए संभव नहीं है।

चीन की यह आर्थिक वापसी अपने साथ कुछ कमजोरियों को भी इंगित करती है, विशेषकर इस वर्ष कुल कर्जों में उछाल की स्थिति बनी हुई है, जो कि कुल अर्थव्यवस्था के उत्पादन के 15% से 25% के बराबर बैठती है। इसमें से ज्यादातर अतिरिक्त ऋण को या तो स्थानीय सरकारों ने और राज्य के अधीन संस्थानों ने नए इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण के लिए लिया है या उन परिवारों और कम्पनियों ने ऋण लिया है जिन्हें अपार्टमेंट या नई बिल्डिंग के लिए इसकी दरकार है।

सरकार इस बात को लेकर सचेत है कि कहीं जल्द ही कर्ज बढ़ता न चला जाए। लेकिन नए कर्जों पर यदि लगाम कसते हैं तो यह रियल एस्टेट के काम-काज पर असर डाल सकता है, जबकि यह क्षेत्र कुल अर्थव्यवस्था के एक चौथाई हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है।

चीन की इस रिकवरी में एक रिस्क इसके निर्यात के क्षेत्र में अतिशय निर्भरता से भी सम्बद्ध है। पिछले कुछ महीनों में इसके आर्थिक विकास के पीछे पिछले तीन महीनों के दौरान निर्यात में भारी वृद्धि के साथ-साथ कम दाम पर वस्तुओं के आयात का हाथ रहा है, जो कि पिछले एक दशक में सबसे बड़े हिस्से के तौर पर देखने को मिला है। निर्यात को देखें तो यह चीन की अर्थव्यवस्था में 17% से अधिक की हिस्सेदारी रखता है, जबकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में निर्यात इसकी तुलना में आधे का योगदान भी नहीं रखता। 

चीन के नेता इस बात को देख पा रहे हैं कि भू-राजनीतिक तनाव के बीच देश का निर्यात लगातार संकट में बना हुआ है, जिसमें ट्रम्प प्रशासन द्वारा लगातार अमेरिका और चीन के बीच के व्यापारिक रिश्तों को लगातार झकझोरने के प्रयास शामिल हैं। वैश्विक माँग में बदलाव भी लगातार निर्यात को खतरे में डालने वाली साबित हो रही है क्योंकि महामारी ने विदेशों की अर्थव्यवस्था को तबाह कर डाला है। चीन के सर्वोच्च नेता शी जिनपिंग ने लगातार आत्म-निर्भरता पर जोर दिया है, यह एक ऐसी रणनीति है जिसमें सेवा उद्योगों को लगातार बढ़ाने और उत्पादन के क्षेत्र में नवाचार के साथ-साथ देशवासियों को पहले से अधिक खर्च करने के प्रति सक्षम बनाना है।

साउथ चाइना सी के सनाया में हाल के सप्ताह में शॉपिंग का एक दृश्य।

बीजिंग में एक न्यूज़ कांफ्रेंस के दौरान हाउसिंग मामलों के पूर्व उप मंत्री एवं कैबिनेट सलाहकार किउ बाओक्सिंग ने कहा “हमें उपभोक्ताओं को अपना मुख्य आधार स्तंभ बनाना होगा।” वे आगे कहते हैं “घरेलू खपत पर खुद को केन्द्रित रखकर असल में हम अपने खुद की क्षमता को विकसित करेंगे।”

लेकिन उपभोक्ताओं को सक्षम बना पाना हमेशा से चीन के लिए एक कठिन चुनौती बना रहा है। सामान्य स्थितियों में ज्यादातर चीनी नागरिक खराब सामाजिक सुरक्षा चक्र के चलते शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और रिटायरमेंट को लेकर अपनी बचत को बढ़ाने की चिंता करने के लिए बाध्य हैं। आर्थिक मंदी के साथ महामारी का अर्थ है नौकरियों से हाथ धोना जिसने इस समस्या को गहराने का काम किया है, जिसमें खासतौर पर कम आय वर्ग एवं ग्रामीण निवासियों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है।

इस आर्थिक मंदी के दौर में एक आम चीनी को मदद करने को लेकर बीजिंग का नजरिया यह रहा है कि कंपनियों को टैक्स में छूट दी जाए और राजकीय बैंकों से बड़ी मात्रा में ऋण मुहैय्या कराये जाएं, जिससे कि उद्योगों को श्रमिकों को काम से छुट्टी न करनी पड़े। लेकिन वहीं कुछ अर्थशास्त्रियों का इस बारे में यह मानना था कि इसके बजाय बीजिंग को कूपन या चेक बांटने चाहिए थे, जिससे कि देश के जो गरीब नागरिक हैं उन्हें सीधे तौर पर मदद की जा सकती थी।

दसियों लाख चीनी प्रवासी मजदूरों को इस वसंत के दौरान कम से कम एक या दो महीने की बेरोजगारी का सामना करना पड़ा था, क्योंकि महामारी के बाद कारखाने खुलने में देरी हुई थी। युवा चीनियों को इस दौरान या तो अपनी बचत में से अपना गुजारा चलाने को मजबूर होना पड़ा था या कम पारिश्रमिक मिलने की हालत में उन्हें दूसरे कामों के जरिये अपने आय में हुए नुकसान की भरपाई करनी पड़ी थी।

लेकिन चीनी सरकारी अर्थशास्त्रियों का उपभोक्ताओं को सीधे भुगतान करने को लेकर भिन्न मत था। उनका कहना था कि सरकार की प्राथमिकता निवेश आधारित विकास को बनाये रहने के साथ-साथ उत्पादकता में वृद्धि एवं जीवन-स्तर में सुधार को लेकर है, जैसे कि नए सीवेज सिस्टम या 30 लाख पुराने अपार्टमेंट्स में स्वचालित सीढ़ियों की व्यवस्था करना, जहाँ पर ये नहीं हैं।

नेशनल ब्यूरो ऑफ़ स्टेटिस्टिक्स के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री याओ जिंगयुआन जो आजकल कैबिनेट के लिए पॉलिसी शोधकर्ता के तौर पर कार्यरत हैं, के अनुसार “उपभोग को बढ़ाने को लेकर हमें कई प्रकार के सुझाव प्राप्त होते हैं, लेकिन मूल बात यह है कि किस प्रकार से सर्वप्रथम लोगों को संपन्न बनाया जाए।”

पश्चिम के देशों ने अतिरिक्त बड़े बेरोजगारी के चेकों का भुगतान किया, या एकमुश्त धनराशि मुहैया कराई और यहाँ तक कि रेस्तरां में सस्ते दरों पर भोजन मुहैया कराया। इन भुगतानों का मकसद था महामारी के दौरान परिवारों को न्यूनतम जीवन स्तर को बरकरार रखना- जिसने अंततः चीन से आयात में तेजी लाने में मदद पहुंचाने का ही काम किया है।

पेकिंग यूनिवर्सिटी में वित्त मामलों के प्रोफेसर माइकल पेटटिस कहते हैं कि दूसरे देशों में सरकारों ने लोगों को महामारी के दौरान जो मदद की, उसने उत्पादों के लिए लगातार चीन का रुख किया, जिसे देखते हुए “हम देख रहे हैं कि व्यापार संघर्ष एक बार फिर से उभर रहा है, जो कि सिर्फ अमेरिका-चीन तक सीमित नहीं है बल्कि वैश्विक स्तर पर देखने को मिल सकता है।”

ग्लासगो में जून महीने में चीन के मेडिकल सप्लाई को उतारते कर्मी।

इस दौरान चीनी कम्पनियों ने विश्व निर्यात का पहले से भी बड़े हिस्से को हथियाने का काम किया है, क्योंकि महामारी के दौरान कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स, पीपीई किट सहित अन्य वस्तुओं की भारी माँग बनी हुई थी।

रविंद्र सिंह पटवाल।
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