धारा 370 खत्म होने के बाद कश्मीर में हथियार की जगह बढ़ा नशे का कारोबार

अगस्त 2019 में भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में अचानक घोषणा कर दी कि जम्मू-कश्मीर में धारा-370 को तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जाता है। यह एकतरफा फैसला था। तत्काल इस पर कोई बहस नहीं हुई और उस दिन जम्मू-कश्मीर अचानक तीन भागों में विभाजित हो गया।

जम्मू और कश्मीर को अलग-अलग राज्य का दर्जा देते हुए लद्दाख को भी तीसरे राज्य के तौर पर वजूद में लाया गया। यह भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का पुराना सपना था लेकिन कश्मीर घाटी के लोगों के लिए दु:स्वपन! उनसे मूल अधिकारों को छीन लिया गया और पूछा तक नहीं गया।

महीनों तक कश्मीर कर्फ्यू और भुखमरी की जद में रहा। वहां जाने वाली सारी रसद, जो पंजाब से होकर जाती थी, रोक ली गई। अभिव्यक्ति की आजादी तो क्या तमाम मौलिक अधिकारों पर ऐसा शिकंजा कस दिया गया कि एकबारगी कश्मीर, कश्मीरी और कश्मीरियत को, दिल्ली से शासन व्यवस्था की कमान संभाल रहे लोगों ने सिरे से लापता कर दी।

चौतरफा फैला सन्नाटा और सिर्फ फौजी गाड़ियों एवं बूटों की आवाज से सन्नाटा टूटता था। परिंदे तक मानो आजादी का मतलब भूल गए थे। अगस्त और सितंबर में जो मंजर था, उसे बिसराया नहीं जा सकता। कर्फ्यू में कोई ढील नहीं और लोगों के पास खाने को कुछ नहीं। रसद तो वाया पंजाब जाती थी, पठानकोट से आगे कश्मीर को जाते तमाम रास्ते बंद कर दिए गए थे गोया जम्मू और कश्मीर इस देश का अंग ही न हों।

घाटी में आलम यह था कि फौत हुए लोगों को घरों में ही दफ़न करना पड़ रहा था। आखिरी रस्मों के लिए मौलवी नहीं आते थे। सड़क पर आवाजाही का मतलब मौत भी हो सकता था और लंबे अरसे की जेल भी। खैर, यह तब की बात है। सवाल है कि अब कश्मीर के हालात क्या हैं? खासतौर से श्रीनगर के लाल चौक पर राहुल गांधी के तिरंगा लहराने के बाद!

फोन-वार्ता में घाटी के कुछ लोग बताते हैं कि भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी की कश्मीर और श्रीनगर यात्रा में किसी भारतीय राजनीतिक शख्सियत के लिए अगस्त 2019 के बाद पहली बार लोग घरों से निकले। बाखुशी। उम्मीदों के उत्साह से लबरेज होकर। अल्ताफ आतिश जालंधर स्थित एक बड़े विश्वविद्यालय के मेधावी छात्र हैं और साहित्य में उनकी खास रूचि है। वह पठानकोट से ही ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के हमसफर हो गए थे और श्रीनगर तक साथ चले। वह बताते हैं, “राहुल गांधी की यात्रा ने कश्मीरियों में बहुत बड़ी उम्मीद की लौ जगाई है और बहुतेरे कश्मीरी मानते हैं कि वही आस की आखिरी उम्मीद हैं।

अखबारों में आपको अलग कश्मीर नजर आता है। हकीकत से परे। केंद्र से जब किसी का घाटी में दौरा होता है तो चौतरफा कर्फ्यू लगा दिया जाता है। जो लोग कश्मीरी बाशिंदे बताकर केंद्र सरकार के शक्तिशाली नुमाइंदों के आगे खड़े किए जाते हैं वे दरअसल सरकारी एजेंसियों के ही कारकुन होते हैं।

मीडिया को खुशहाल कश्मीर की जो तस्वीर और हंसते हुए चेहरे दिखाए जाते हैं, वह सब फर्जी है। हकीकत है कि कश्मीरी आज भी नारकीय जिंदगी जीने को मजबूर हैं और अघोषित कैद में रहने को भी ।आतिश बताते हैं कि राहुल से पहले दिल्ली से आए किसी भी नेता ने ईद पर भी भूल कर किसी कश्मीरी को गले नहीं लगाया लेकिन राहुल गांधी बेशुमार बुजुर्गों से लेकर बच्चों तक के गले लग कर मिले। गले लगने वालों की आंखें नम थीं। अल्ताफ ने यह मंजर खुद अपनी आंखों से देखा और इस पत्रकार को बताया।

Kashmir rahul

खुद राहुल गांधी ने क्या कहा, दोहराना जरूरी है। राहुल गांधी ने वहां प्रेसवार्ता में कहा कि वह अपनी जम्मू और कश्मीर की यात्रा में ऐसे किसी शख्स से नहीं मिले जो खुश था। यहां का हर व्यक्ति मायूस है।”

श्रीनगर के एक चिकित्सक कहते हैं कि धारा-370 निरस्त होने के बाद यहां का कोई भी व्यक्ति सरकार के विरोध में कुछ बोलता है या उसकी नीतियों पर एतराज जाहिर करता है तो उस पर पब्लिक सिक्योरिटी ऐक्ट लगा दिया जाता है। सरकार का खुफिया तंत्र यहां पहले से कहीं ज्यादा सक्रिय है। वह कहते हैं कि किसी अनजान आदमी से मिलिए तो मिलने वाले दोनों लोगों को लगता है कि कहीं सामने वाला खुफिया एजेंट न हो। अविश्वास की ऐसी खाई कश्मीर के इतिहास में पहली बार देखने को मिल रही है। वह वक्त ज्यादा दूर नहीं जब एक पड़ोसी अपने दूसरे पड़ोसी पर ही शक करेगा! रिश्तेदार तक बेयकीनी के दायरे में आ जाएंगे।

30 जनवरी को बीबीसी से बातचीत में ‘केंद्र के प्रतिनिधि’ उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा कहते हैं कि, ‘देश की संसद के बने कई कानून जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होते थे, अब 890 ऐसे कानून हैं जो जम्मू-कश्मीर में लागू हो गए हैं। जैसे शिक्षा का अधिकार और जम्मू-कश्मीर का पूरे देश के साथ एकीकृत होना।”

राज्यपाल का कथन कितना हास्यास्पद है! अनुच्छेद-370 रद्द होने से पहले क्या वहां के बच्चे स्कूल या कॉलेज नहीं जाते थे?  जम्मू और कश्मीर के जो युवा दिल्ली, पंजाब, चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश और अन्य प्रदेशों के शिक्षण संस्थानों में उच्च शिक्षा के लिए आते थे, वे क्या प्राथमिक शिक्षा के लिहाज से अनपढ़ थे?

जालंधर के एक नामी शिक्षण संस्थान के मुख्य प्रबंधक ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि उनके यहां सन 2010 से लेकर अब तक 7000 कश्मीरी युवक और युवतियां उच्च शिक्षा हासिल करके बड़ी-बड़ी नौकरियों पर हैं। कश्मीर से आईएएस और आईपीएस तक हुए हैं। राज्य प्रशासनिक सेवाओं में भी कश्मीरियों की तादाद अच्छी-खासी है। ऐसे में केंद्र किस आधार पर शिक्षा व्यवस्था में ‘सुधार’ की बात कर रहा है?

अब जरा कश्मीर के एक बीएड अध्यापक की बात सुनिए। वह भी पब्लिक सिक्योरिटी ऐक्ट यानी पीएसए से बेतहाशा खौफ़ज़दा हैं। श्रीनगर के पास के एक स्कूल में उनकी ड्यूटी है। जिस स्कूल में वह पढ़ाते हैं वहां दिन में बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं और रात को सुरक्षाकर्मी विश्राम के लिए! कक्षाओं में पड़ा उनका सामान और तनी पर लटकती वर्दियां बच्चों के दिलो-दिमाग में खौफ भरती हैं।

कुछ साल पहले यह आलम नहीं था। उनका कहना था कि घाटी के आधे से ज्यादा स्कूलों में आपको यही आलम मिलेगा। बच्चे मानसिक रोगी हो रहे हैं और युवा भी अवसाद का जबरदस्त शिकार हैं।

Kashmir Nashsa

ऐसा नहीं है कि अगस्त 2019 से पहले कश्मीर खामोश था लेकिन इस कदर असामान्य नहीं था। वहां के सूत्र बताते हैं कि बड़ी तादाद में किशोर और युवा विभिन्न नशों का शिकार हो रहे हैं। अफीम और हीरोइन वहां आम तौर पर पाई जाती हैं। पंजाब में जिसे ‘चिट्टा’ कहते हैं, वह भी। गौरतलब तथ्य है कि तमाम नशे शेष देश की बनिस्बत कश्मीर में बहुत सस्ते मिलते हैं। उपलब्ध भी आसानी से हो जाते हैं। क्यों? इसका पुख्ता जवाब किसी के पास नहीं।

Kashmir Nasha

पंजाब में कश्मीर से आई नशे की खेप कई बार पकड़ी गई लेकिन जम्मू और कश्मीर में कभी कोई नशा तस्कर गिरफ्त में आया हो, यह खबर शायद आपने देखी-सुनी भी नहीं होगी। सरहद पर सख्त पहरा है तो आखिर मौत का यह ज़खीरा आ कहां से रहा है? नशों के फैलते नर्क और उनके सौदागरों की बाबत शासन-व्यवस्था का कोई अंग कभी नहीं बोलता। इस पर रिपोर्ट भी नहीं होती।

कश्मीर के एक वरिष्ठ पत्रकार का कहना है कि यह सौ फ़ीसदी सच है कि अब घाटी में हथियारों से ज्यादा नशे का दबदबा है लेकिन मुख्यधारा का मीडिया इसे कवर नहीं करता। हमारी कलम पर पहरेदारी है। इससे ज्यादा क्या कहा जाए कि किसी ‘साजिश’ के तहत नशे में डूबे कश्मीर को न देखा जाता है और न दिखाया जाता है। यकीनन कश्मीर नई अंधी सुरंग की ओर बढ़ता जा रहा है। खासकर युवा वर्ग।

बेरोजगारी और अवसाद तो मुख्य वजहें हैं ही। कदम-दर-कदम अपमानित होने की भावना भी इससे वाबस्ता है। कश्मीरी नौजवान किससे ‘अपमानित’ हो रहे हैं, यह जगजाहिर है। थोड़ी छानबीन करने के बाद पता चलेगा कि पंजाब के नशा मुक्ति केंद्रों में कश्मीरी युवाओं के प्रतिशत में 2019 के बाद कितना ज्यादा इजाफा हुआ है। खासकर स्वयंसेवी संगठनों और राज्य सरकार द्वारा संचालित नशा मुक्ति केंद्रों में।

जालंधर स्थित एक बड़े अस्पताल के डीएडिक्शन विभाग के प्रभारी डॉक्टर कहते हैं कि हम अपने यहां दाखिल किसी भी मरीज का, चाहे वह कहीं का भी हो, रिकॉर्ड शेयर नहीं करते। उन्हीं डॉक्टर से पता चलता है कि बड़ी तादाद में कश्मीरी युवाओं के अभिभावक उन्हें जैसे-तैसे नशा मुक्ति केंद्र में लाते हैं और उनका इलाज शुरू होता है। कई ऐसे हैं जो इलाज के बाद चले गए लेकिन वापिस आ गए क्योंकि नशे ने उन्हें फिर अपनी जद में ले लिया था।

केंद्र का दावा है कि कश्मीर में खूब विकास हो रहा है लेकिन ‘विकास’ का एक चेहरा यह भी है! राहुल गांधी ने भी साफ शब्दों में कहा था कि उन्हें कश्मीर में विकास नाम की चिड़िया कहीं नहीं दिखी। राहुल गांधी ने अपनी प्रेस वार्ता में कहा कि कश्मीर में बेइंतहा बेरोजगारी है, बिजली और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ती जा रही हैं और आजिज़ लोगों की आवाज सुनने वाला कोई नहीं। हुकूमत बहरी है। राहुल के शब्दों पर गौर कीजिए कि, “मुझे लगा कि जो कुछ भी जम्मू और कश्मीर में हो रहा है, इसे लेकर कोई भी एक्साइटेड नहीं है।”

जम्मू विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान की पूर्व प्रोफेसर रेखा चौधरी कहती हैं कि घाटी का युवा निराशा के दौर में है। आम आदमी भी। राहुल गांधी के आने से कुछ माहौल तो जरूर बना क्योंकि इससे पहले राजनीतिक गतिविधियां नहीं हो रही थीं। श्रीनगर स्थित रियासत के प्रमुख राजनीतिक विश्लेषक बशीर मंजर के अनुसार, “घाटी में निराश लोगों को राहुल गांधी में एक उम्मीद नजर आई है।‘’

जबसे अनुच्छेद-370 हटा, सियासी गतिविधियां ठप हो गईं। तमाम नेताओं को जेलों में बंद कर दिया गया था या फिर घरों में कैद। अधिकांश को छोड़ तो दिया गया लेकिन शून्य बरकरार रहा।” बशीर मंजर आगे कहते हैं, “अवाम का कोई प्रतिनिधि नहीं है। हुकूमत नौकरशाह चला रहे हैं। उनका आम लोगों से कोई संपर्क ही नहीं है। बेतहाशा परेशानी के आलम में अगर कोई राष्ट्रीय स्तर का राजनीतिक रहनुमा आकर उनके साथ संवाद रचाता है तो उनमें उम्मीद जगना स्वाभाविक है कि कोई हमारी भी बात करने लगा है। सियासी तौर पर 2019 के बाद कश्मीरी आवाम तो लावारिस हो गया था।”

बहरहाल, राहुल गांधी की अगुवाई वाली भारत जोड़ो यात्रा ने बेशक जो उम्मीद जगाई/जताई हो लेकिन सूरत-ए-हाल यह है कि कश्मीर में हालात उतने सुखद कतई नहीं हैं, जिनकी बाबत सरकार के लोग दावा करते हैं। अपने अंतर्विरोध में डूबी केंद्र सरकार कश्मीर के प्रति रत्ती भर भी ईमानदार, कम से कम घाटी में तो दिखाई नहीं देती।

Manoj Sinha

ऐसा वहां के लोगों का मानना है। नहीं तो क्या वजह है कि जब अमित शाह, अजीत डोभाल या राज्यपाल मनोज सिन्हा जब लाल चौक की ओर जाते हैं तो कर्फ्यू लगा दिया जाता है या फिर खुद ही लोग घरों से बाहर नहीं निकलते। निकलें भी तो कैसे? हर दहलीज पर संगीनों का पहरा है!

सत्यपाल मलिक जब राज्यपाल थे तो न्यूनतम ही सही, लोगों की थोड़ी-बहुत सुनवाई हो जाती थी। लेकिन यह सिलसिला अब बंद है। जब तमाम बड़े-छोटे कश्मीरी आतंकवादी धरे-पकड़े गए या मार दिए गए तो फिर भी कश्मीर सामान्य क्यों नहीं है? हुर्रियत नेता गिलानी फौत हो गए और यासीन मलिक तिहाड़ में उम्र भर के लिए बंद हैं। बेशुमार अन्य कश्मीरी अतिवादी भी बाहर की जेलों में सलाखों के पीछे हैं तो फिर अब आगे क्या ?

(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पंजाब में रहते हैं।)

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