एटक के स्थापना दिवस कार्यक्रम में बोले फिलिस्तीनी राजदूत- हमें जड़ से उखाड़ने के लिए खेला जा रहा खूनी खेल

नई दिल्ली। 31 अक्टूबर 2023 के दिन दिल्ली में एटक मुख्यालय में भारतीय ट्रेड यूनियन आंदोलन में संगठन के 104वें स्थापना दिवस के मौके पर यूनियन की राष्ट्रीय महासचिव अमरजीत कौर और पार्टी सांसद एवं एटक के कार्यकारी अध्यक्ष बिनॉय विश्वम की अगुआई में दिल्ली-एनसीआर में यूनियन के तमाम पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं ने अपने आंदोलन के इतिहास को याद करते हुए फिलिस्तीन के साथ अपनी एकजुटता का इजहार किया। इस आयोजन में मेहमान एवं मुख्य वक्ता के तौर पर भारत में फिलिस्तीन के राजदूत अदनान मोहम्मद जाबेर हैजा भी उपस्थित थे।

यह देखना वास्तव में सुखद रहा जब भारत सरकार की ओर से फिलिस्तीन-इजराइल विवाद को लेकर अभी तक चली आ रही निर्विवाद नीति के बजाय अस्पष्ट और पश्चिम परस्त नीति की ओर झुकने का संकेत मिल रहा है, देश की एक प्रमुख मजदूर यूनियन की ओर से फिलिस्तीन के संघर्ष के साथ एकजुटता का इजहार, मोदी राज में लड़खड़ाती भारतीय विदेश नीति को फिर से पटरी पर लाने और ग्लोबल साउथ के साथ अपनी ऐतिहासिक एकजुटता के संकल्प को दोहराता नजर आता है।

इस मौके पर फिलिस्तीनी राजदूत ने गाजापट्टी में इजरायली सेना के बर्बर हवाई हमलों एवं वहां की नवीनतम स्थिति से सभा को अवगत कराया और साथ ही फिलिस्तीन के लोगों के लिए भारत में मिल रहे निरंतर समर्थन एवं एकजुटता के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया।

बैठक की शुरुआत भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को याद कर किया गया, जिनकी 1984 में इसी दिन 31 अक्टूबर को हत्या कर दी गई थी। एटक के पूर्व महासचिव गुरुदास दासगुप्ता को भी याद किया गया, और पुष्पांजलि अर्पित की गई। गुरुदास दासगुप्ता का भी निधन आज ही के दिन 2019 में हुआ था। इसके अलावा, सरदार वल्लभभाई पटेल को भी याद किया गया, जिनका जन्म आज ही के दिन 1875 में हुआ था।

बैठक की अध्यक्षता संसद सदस्य एवं कार्यकारी अध्यक्ष, बिनॉय विश्वम ने की। एटक की राष्ट्रीय महासचिव, अमरजीत कौर ने देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल को याद करते हुए सभा में मौजूदा भाजपा-आरएसएस सरकार के प्रति पटेल के रुख का जिक्र किया, जिन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जघन्य हत्या के लिए हिंदू महासभा और आरएसएस को दोषी करार दिया था, और आरएसएस को प्रतिबंधित किया था।

उन्होंने फिलिस्तीन-इजराइल संघर्ष की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का जिक्र करते हुए अपने वक्तव्य में कहा कि किस प्रकार ब्रिटिश हुकूमत की ही कुटिल नीति के चलते फिलिस्तीन में भी यूरोप से यहूदियों को यहां पर बसने के लिए मजबूर किया गया, और बड़ी चालाकी के साथ यूरोप में सबसे अधिक प्रताड़ना झेल रहे यहूदियों को फिलिस्तीन में आक्रामक सेटलर के तौर पर शांतिपूर्ण ढंग से हजारों वर्षों से रह रहे मूल अरब आबादी को ही विस्थापित करने के लिए मजबूर कर दिया।

उन्होंने जोर देकर कहा कि जिस प्रकार से ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने 1947 में भारत को आजाद करने से पहले भारत विभाजन की इबारत लिख दी थी, ठीक उसी तर्ज पर 1948 में पश्चिमी एशिया में फिलिस्तीन के भीतर भी यहूदियों को शेष विश्व से आकर बसने और इजराइल राज्य के निर्माण के साथ इस भूभाग में भी अपने भू-राजनैतिक हितों का ही पक्षपोषण किया।

1920 में एटक की स्थापना से पहले देश में मजदूर आंदोलन के इतिहास के बारे में जानकारी साझा करते हुए अमरजीत कौर ने बताया कि किस प्रकार बाल गंगाधर तिलक को जब अंग्रेज सरकार ने 1908 में 6 वर्ष के कारावास की सजा मुकर्रर की तो यह हमारा मजदूर वर्ग ही था, जिसने 6 वर्ष के कारावास के बदले 6 दिन मुंबई बंद कर देश को अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा होना सिखाया था।

उन्होंने 1920 में एटक की स्थापना और इसके साथ देश में श्रमिक आंदोलन के शानदार इतिहास एवं लाला लाजपतराय, जवाहरलाल नेहरू सहित सुभाषचंद्र बोस जैसे राष्ट्रीय नायकों के साथ-साथ हाल तक के अपने समृद्ध नेतृत्व का जिक्र किया।

इसके अलावा सभा को भारत में फिलिस्तीन के राजदूत अदनान मोहम्मद जाबेर हैजा ने भी संबोधित किया। अपने वक्तव्य में उन्होंने स्पष्ट किया कि इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष कोई 7 अक्टूबर 2023 से शुरू नहीं हो गया है, बल्कि इसकी जड़ें हमें अरब मुल्कों को ब्रिटिश-फ्रेंच उपनिवेशवाद द्वारा आपस में बांटने से शुरू होती है। ब्रिटिश हुक्मरानों के हाथ में फिलिस्तीन आया, और उनकी कुटिल कूटनीतिक चालों का ही आज यह सिला है, जिसकी परिणति पिछले 75 वर्षो के दौरान फिलिस्तीन की जनता को अपने घर से विस्थापित और हर वर्ष सैकड़ों की संख्या में मौत के घाट उतारे जाने के रूप में दर्ज है।

अदनान मोहम्मद जाबेर हैजा ने कहा कि आज इजराइल की ज़ायनिस्ट विचारधारा की अति-दक्षिणपंथी सरकार नेतन्याहू, विदेश और वित्त मंत्री के नेतृत्व में गाजापट्टी और वेस्ट बैंक से फिलिस्तीनियों को जड़ से उखाड़ने के लिए सबसे बड़ा खूनी खेल खेला जा रहा है, जो संयुक्त राष्ट्र के महासचिव की अपील को भी दरकिनार कर लगातार गाजा के भीतर रोज सैकड़ों बच्चों, बूढों, गर्भवती महिलाओं के उपर भारी बमबारी करना जारी रखा है।

उपस्थित लोगों में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विद्या सागर गिरि और राष्ट्रीय सचिव सुकुमार दामले और रामकृष्ण पांडा शामिल थे।

एटक की ओर से 31 अक्टूबर को पूरे देश में स्थापना दिवस के मौके पर ध्वजारोहण समारोहों और बैठकों में फ़िलिस्तीनियों को उनके राज्य का दर्जा दिलाने के प्रति एकजुटता व्यक्त करते हुए एक प्रस्ताव अपनाया गया।

इस दिन को फिलिस्तीनी मुद्दे के साथ एकजुटता के लिए समर्पित किया गया और संयुक्त राष्ट्र से अब तक की सबसे खराब मानवीय त्रासदी वाले क्षेत्र में शांति लागू करने की मांग की गई।

प्रस्ताव में कहा गया है कि फिलिस्तीनी कई दशकों से अमेरिकी साम्राज्यवादियों के समर्थन से इजरायल के सत्तारूढ़ शासनों के आक्रमण का सामना कर रहे हैं, और वर्तमान में इजरायली सेना के सबसे खराब आक्रमण का सामना कर रहे हैं, जिससे बच्चों, महिलाओं, बीमारों और बुजुर्गों के जीवन को गंभीर नुकसान हो रहा है। नागरिकों और अस्पतालों पर बमबारी से अब तक 8000 लोगों की जान जा चुकी है। दवाओं, पानी, बिजली, भोजन की कमी के कारण भारी क्षति हो रही है।

इस युद्ध को तत्काल ख़त्म होना चाहिए। एटक तत्काल युद्ध विराम के संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का स्वागत करता है। शांति बहाल करने के लिए संयुक्त राष्ट्र का हस्तक्षेप बढ़ाया जाना चाहिए। शांति के समर्थक भारत को इस संबंध में अपनी भूमिका निभानी चाहिए।

मजदूर वर्ग हमेशा से युद्ध का विरोध करता रहा है, बल्कि उसने संसाधनों का उपयोग रोजगार, स्कूल, अस्पताल, लोगों के लिए आश्रय बनाने, आम जनता की गरीबी और कठिन परिश्रम को कम करने के लिए किए जाने की मांग की है। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और भारतीय मजदूर वर्ग और उसकी यूनियनें हमेशा फिलिस्तीन के मुद्दे के साथ खड़ी थीं और अब हमारे रुख को दोहराने का समय आ गया है।

इसके साथ ही एटक द्वारा देश के स्वतंत्रता आंदोलन में श्रमिक वर्ग की भूमिका और आज के सबक पर फिर से विचार करने के लिए देश भर में सेमिनार/कार्यशालाएं आयोजित की गईं। कई राज्यों में जुलूस और सार्वजनिक सभाएँ आयोजित की गईं।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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