अमृतपाल सिंह के विरोध में अकाल तख्त-एसजीपीसी और मोदी-मान सरकार की चुप्पी का रहस्य?                                                 

पंजाब में अजनाला घटनाक्रम के बाद अब ‘वारिस पंजाब दे’ के मुखिया अमृतपाल सिंह खालसा का खुला विरोध होने लगा है। पांच दिन बीत गए लेकिन अजनाला पुलिस थाने पर हमलावारों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। बेशक मुख्यमंत्री भगवंत मान और उनके मंत्री तथा राज्य के कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक गौरव यादव ने घटनाक्रम को निंदनीय बताया है लेकिन थाने पर हमले को लेकर एफआईआर तक नहीं दर्ज की गई। जबकि आतंकवाद के काले दौर में भी ऐसा नहीं हुआ था कि पालकी साहिब को सामने रखकर किसी पुलिस स्टेशन पर इस मानिंद कब्जा कर लिया जाए।

केंद्रीय एजेंसियां भी कमोबेश इतने बड़े घटनाक्रम पर खामोश हैं। छुट्टा घूम रहा अमृतपाल सिंह खालसा खुलेआम यह भी कहता है कि वह भारत का नागरिक नहीं और पासपोर्ट सिर्फ आवाजाही के लिए है। एक तरह से यह भी राज्य-व्यवस्था को बहुत बड़ी चुनौती है। सर्वोच्च सिख संस्थाएं; जिनमें श्री अकाल तख्त साहिब और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) और दमदमी टकसाल शुमार हैं-अब अमृतपाल सिंह खालसा की खिलाफत में हैं। चौतरफा पूछा जा रहा है कि हुकूमत उस पर क्यों ‘हाथ’ नहीं डाल रही?

पंजाब के धर्मनिरपेक्ष और अमनपसंद सिख और अल्पसंख्यक समुदाय हालात के मद्देनजर एकबारगी फिर खौफ के साए में हैं। पुलिस का मनोबल भी टूटा है। अजनाला घटनाक्रम और अमृतपाल सिंह खालसा की अब तक की तमाम कारगुजारियां भी संदेह के दायरे में हैं। पवित्रतम् श्री गुरुग्रंथ साहिब की आढ़ लेकर अमृतपाल ने अजनाला पुलिस स्टेशन पर कब्जा किया। थाने के भीतर वह एसएचओ की कुर्सी पर बैठकर पुलिस अधिकारियों से बात करता है और सामने बैठे पुलिस अधिकारी जब उसके सामने बैठे होते हैं तो उन्होंने उसके ‘सम्मान’ में सिर पर रुमाल रखा होता है!

यह वीडियो पूरी दुनिया में वायरल हुआ। संदेश यह गया कि पुलिस उसके आगे नतमस्तक है। रवायत रही है कि अति धार्मिक शख्सियतों के आगे ही सिर पर रुमाल रखकर बात की जाती है। तो क्या अमृतपाल सिंह खालसा को सर्वोच्च सिख धार्मिक शख्सियत माना जाए? एक ऐसे शख्स को जो खुलेआम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान को पुलिस की मौजूदगी में चुनौती देता है और अलगाववादी तेवरों के साथ खालिस्तान की बात करता है, गिरफ्तार क्यों नहीं किया जा रहा?

श्री गुरुग्रंथ साहब की आढ़ उसने ली। पालकी साहब में बैठकर वह पुलिस स्टेशन पहुंचा। सिख विद्वानों के मुताबिक यह सरासर गलत इसलिए भी है कि श्री गुरुग्रंथ साहिब से वाबस्ता परंपरागत मर्यादा कहती है कि जब पालकी चलती है तो ‘पांच प्यारे’ उसके आगे चलते हैं और राह में फूल बिछाए जाते हैं। झाड़ू और पानी के इस्तेमाल से रास्ते को साफ किया जाता है। लेकिन जो कुछ अमृतपाल सिंह खालसा की अगुवाई में हुआ, वह ‘बेअदबी’ है।

शिरोमणि अकाली दल के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री बिक्रमजीत सिंह मजीठिया कहते हैं, “कौन नहीं जानता कि थानों के भीतर पुलिस द्वारा पकड़ी गई शराब, अफीम और दूसरे मादक पदार्थ होते हैं। ऐसे में श्री गुरुग्रंथ साहिब की पालकी को वहां ले जाना घोर अवमानना है। अमृतपाल सिंह को फौरन गिरफ्तार किया जाए। उस पर बेअदबी का केस भी दर्ज किया जाए।”

पूर्व मुख्यमंत्री और अब भाजपा के वरिष्ठ नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह के मुताबिक “अमृतपाल सिंह खालसा ने कानून- व्यवस्था को तो चुनौती दी ही है, साथ ही श्री गुरु ग्रंथ साहब की बेअदबी करके बहुत बड़ा जुर्म किया है। समूह पंजाबियों की, खास तौर पर सिखों, की भावनाएं आहत हुईं हैं। उस पर मुकदमा दर्ज करके जेल में डाला जाए। पंजाब सरहदी सूबा है। आईएसआई यहां नए सिरे से साजिश रच रही है और मुझे लगता है कि अमृतपाल सिंह खालसा उसी के इशारे पर काम कर रहा है।” पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांता चावला भी ऐसा मानती हैं।

आम आदमी पार्टी के कई वरिष्ठ नेता अमृतपाल सिंह खालसा को केंद्रीय एजेंसियों का एजेंट बताते हैं। इस बाबत नाम कोई भी नहीं देना चाहता लेकिन सभी का मानना है कि वह केंद्र के इशारे पर पंजाब का माहौल खराब कर रहा है ताकि यहां राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सके। अवाम में भी ऐसा मानने वालों की कमी नहीं है। लेकिन इसका जवाब किसी के पास नहीं कि खालिस्तान के सवाल पर सार्वजनिक तौर पर प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृहमंत्री को धमकी देने वाले अमृतपाल सिंह खालसा को राज्य पुलिस क्यों गिरफ्तार नहीं करती? पंजाब पुलिस के दो पूर्व महानिदेशक जूलियो रिबेरो और एसएस विर्क भी यह कह चुके हैं।

उधर, अजनाला थाने पर आक्रमण की बाबत केंद्रीय एजेंसियों ने भी अपनी विशेष रिपोर्ट गृह मंत्रालय को भेजी है। इसमें पंजाब पुलिस के ढुलमुल रवैए पर कई सवाल उठाए गए हैं। कहा गया है कि राज्य पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने लापरवाही बरती। उक्त रिपोर्ट के अनुसार अगर पंजाब पुलिस गंभीरता दिखाती तो थाने पर हमले जैसी हिंसक घटना टाला जा सकता था। पुलिस अगर अमृतपाल सिंह खालसा को उसके गांव जल्लूपुर खेड़ा में ही रोक लेती, तो अजनाला कांड नहीं होता।

घटनाक्रम से पहले अमृतपाल तीन दिनों से प्रचार कर रहा था कि उस पर और उसके साथियों पर दर्ज एफआईआर रद्द न की गई तो वह अजनाला पुलिस स्टेशन का घेराव करेगा। बावजूद इसके पंजाब पुलिस के कुछ अधिकारियों के आदेशों पर अमृतपाल सिंह के काफिले को श्री गुरुग्रंथ साहिब के प्रकाश वाली पालकी साहिब के साथ जल्लूपुर खेड़ा से अजनाला आने के लिए अस्सी किलोमीटर तक सुरक्षित रास्ता दिया गया। इससे अमृतपाल के साथ हथियारबंद समर्थकों की संख्या अजनाला पहुंचने तक बढ़ती गई। केंद्र की ओर से इस रिपोर्ट पर कोई प्रतिक्रिया फिलहाल तक सामने नहीं आई है।

अगर केंद्र की खामोशी कहीं न कहीं ‘संदिग्ध’ है तो पंजाब पुलिस व सरकार की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठ रहे हैं। कई पुलिसकर्मियों सहित एसपी स्तर के अधिकारी को जख्मी कर देना और एक आरोपी को रिहा करवाना कोई मामूली बात नहीं। जिस व्यक्ति लवप्रीत को रिहा करवाया गया, उस पर आरोप था कि उसने अमृतपाल सिंह खालसा की मौजूदगी में रूपनगर के रहने वाले वरिंदर सिंह को कुछ अन्य लोगों के साथ मिलकर अमानवीय यातनाएं दीं।

वरिंदर सिंह का आरोप है कि उसे बेतहाशा मारा-पीटा गया और जान बख्शने की एवज में उसका वीडियो बनाया गया। मुक्त होने के बाद वह पुलिस में चला गया और पूरी जांच के बाद पुलिस ने उसकी रिपोर्ट दर्ज की। अमृतपाल सिंह खालसा और लवप्रीत उसमें नामजद थे। पुलिस ने लवप्रीत को पकड़कर एक दिन के रिमांड के बाद अदालत के आदेशानुसार जेल भेज दिया।

अमृतपाल सिंह की बाबत एसएसपी का कहना था कि उसकी तलाश में ‘छापेमारी’ की जा रही है। जबकि वह छुट्टा घूम रहा था। उसी अजनाला पुलिस थाने पर हमला किया गया; जहां का वह नामजद आरोपी था। उसे उस थाने की सलाखों के पीछे होना चाहिए था लेकिन 23 फरवरी को वह ठीक उसी जगह एसएचओ की कुर्सी पर विराजमान था! पूछा जा रहा है कि अगर लवप्रीत और अमृतपाल का वरिंदर सिंह मामले से कुछ लेना-देना नहीं था तो उन पर एफआईआर क्यों हुई? अब शिकायतकर्ता वरिंदर पाल सिंह भी मीडिया को सहज उपलब्ध नहीं है। वरिंदर पाल सिंह को दमदमी टकसाल के अजनाला डेरे से उठाया गया था।

गौरतलब है कि अमृतपाल सिंह खालसा खुद को ‘दूसरा भिंडरांवाला’ के बतौर उभार रहा है। संत जरनैल सिंह भिंडरांवाला दमदमी टकसाल का मुखिया था और बाद में उसने अपना ठिकाना श्री अकाल तख्त साहिब को बना लिया था। दमदमी टकसाल लंबे अरसे तक प्रचारित करती रही कि भिंडरांवाला जिंदा है और पाकिस्तान में है लेकिन खुद भिंडरांवाला के परिवारियों ने जब कहा कि उसे मृत मान लिया जाना चाहिए तो दमदमी टकसाल ने यह प्रचार छोड़ दिया। यानी लंबे अरसे तक दमदमी टकसाल भिंडरांवाला को अपना मुखिया मानती रही।

दमदमी टकसाल के आखिरी वक्त तक मुखिया रहे संत जरनैल सिंह भिंडरांवाला की जगह लेने की कवायद करने वाले अमृतपाल सिंह खालसा की बाबत दमदमी टकसाल का कथन जिक्रेखास है कि अमृतपाल ने खुद को बचाने के लिए और अपने सहयोगी की रिहाई के लिए जिस तरह श्री गुरुग्रंथ साहिब को ढाल बनाया, वह मर्यादा के खिलाफ है। प्रमुख सिख धार्मिक संस्थाएं पहले ही ऐसा कह चुकी हैं।

अमृतपाल सिंह खालसा का यह बयान भी विवादास्पद है कि वह खुद को हिंदुस्तान का नागरिक नहीं मानता। पासपोर्ट सिर्फ आवाजाही का माध्यम है। वह कहता है कि वह भारतीय नहीं बल्कि पंजाबी जरूर है। उसके इस बयान पर तीखी प्रतिक्रियाएं हो रही हैं। पटियाला से सांसद और पूर्व विदेश राज्य मंत्री परनीत कौर कहती हैं, “अगर वह (अमृतपाल) भारत का नागरिक नहीं है तो उसे तुरंत देश छोड़ देना चाहिए। वह पंजाब में आग क्यों लगा रहा है।”

इस बीच शहीद भगत सिंह के साथी क्रांतिकारी शहीद सुखदेव के वंशज और सुखदेव मेमोरियल ट्रस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक थापर ने कहा है कि अगर अमृतपाल सिंह खालसा खुद को हिंदुस्तानी नहीं मानता तो उसे तत्काल अपना पासपोर्ट भारत सरकार को लौटा देना चाहिए। अशोक थापर कहते हैं कि केंद्र और राज्य सरकार को चाहिए कि वे सियासी नफा-नुकसान दरकिनार करके देश की एकता व अखंडता को तार-तार कर रहे ऐसे लोगों को तत्काल काबू करें।

(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पंजाब में रहते हैं।)

                                                       

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