लखनऊ में लगे सामाजिक कार्यकर्ताओं के पोस्टरों पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिया स्वत:संज्ञान, लखनऊ प्रशासन को किया तलब

नई दिल्ली। एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लखनऊ में सूबे की योगी सरकार द्वारा विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ताओं के चौराहों पर लगाए गए पोस्टर का स्वत: संज्ञान लेकर मामले की सुनवाई करने का फैसला किया है। छुट्टी होने के बावजूद कोर्ट आज रविवार को ही मामले की सुनवाई करेगा। गौरतलब है कि इनमें तमाम उन शख्सियतों का फोटोग्राफ शामिल है जिन्होंने नागरिकता संशोधन कानून का 16 दिसंबर को विरोध किया था।

मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस रमेश सिन्हा की बेंच करेगी। गौरतलब है कि इन बैनरों में सामाजिक कार्यकर्ताओं की फोटो के साथ ही उनके पते भी दिए गए हैं। और राजधानी लखनऊ के कई हिस्सों में इन्हें चस्पा किया गया है। इसके साथ ही उनसे आंदोलन के दौरान हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए भी कहा गया है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता रमेश कुमार के मुताबिक कोर्ट ने लखनऊ के डीएम और डिवीजनल पुलिस कमिश्नर से पूछा है कि कानून के किस प्रावधान के तहत लखनऊ की सड़कों पर इस तरह के पोस्टर लगाए गए हैं। हाईकोर्ट का मानना है कि किसी सार्वजनिक स्थान पर संबंधित व्यक्ति की अनुमति के बिना उसका फोटो या पोस्टर लगाना गलत है। यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है।

सरकार के एक प्रवक्ता ने बताया कि इन पोस्टरों को योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर लगाया गया है। एक पोस्टर हजरतगंज में लगा है तो दूसरा असेंबली बिल्डिंग के सामने। इसमें चर्चित सामाजिक कार्यकर्ता सदफ जफर, मानवाधिकार कार्यकर्ता और रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शोएब, एक्टिविस्ट और आईपीएस अफसर एस आर दारापुरी के नाम शामिल हैं।

कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि वह किसी की निजता का कैसे हनन कर सकती है। इसके साथ ही उसने कहा है कि यह किसी नागरिक के मूल अधिकारों के खिलाफ है।

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