अमेरिकी रिसर्च इंस्टीट्यूट्स ने भी माना कि कुदरती है कोरोना वायरस

दुनिया भर के लिए महामारी बन चुका मौजूदा वायरस कोरोना आया कहां से? यह चीन के वुहान स्थित फ़ूड मार्केट तक कैसे पहुंचा? जहां से यह इंसानों में फैल गया। इन सवालों के जवाबों की कड़ियाँ अब एक दूसरे से जुड़ती जा रही हैं और जो कहानी बनकर सामने आ रही है वह बेहद परेशान करने वाली है।

आइये शुरू से बात करते हैं। जहां तक सार्स-CoV-2 (कोरोना वायरस परिवार का एक सदस्य जो श्वास तंत्र की बीमारियों का कारण बनता है। यही कोविड-19 है।) की बात है तो यह वायरस कुदरती विकास की पैदाइश है। कैलीफोर्निया स्थित स्क्रिप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट इन ला जोला की इंफेक्शियस डिजीज की विशेषज्ञ क्रिस्टियन जी एंडरसन और उनके सहयोगियों ने इसके जेनेटिक विकास क्रम के एक अध्ययन में इस संभावना को ख़ारिज कर दिया है कि इसे लैब में बनाया जा सकता है या फिर कृत्रिम रूप से तैयार किया जा सकता है।

अगला कदम कुछ ज़्यादा ही अनिश्चितता भरा है। लेकिन ऐसा लगता है कि वायरस के लिए जानवर से जुड़ा स्रोत चमगादड़ था। एंडरसन की टीम यह दिखाती है कि सार्स-CoV-2 का विकास क्रम कोरोना परिवार के दूसरे वायरसों की ही तरह है। यह चमगादड़ों को संक्रमित करता है। इससे पहले चीनियों ने भी यही कहा था।

आपको बता दें कि दूसरे कोरोना वायरसों का इंसानों में संक्रमण एक दूसरे जानवर के जरिये होता है जिसे मध्यस्थ मेजबान (intermediary host) कहा जाता है।लिहाजा रिसर्च टीम का मानना है कि इसने भी ऐसा ही किया होगा। मध्यस्थ मेजबान की भूमिका वाला वही जानवर बताया जा रहा है जिसे चीनी खाना पसंद करते हैं। और उसे वेट मार्केट ( ऐसा बाज़ार जहां फ्रेश मीट, मछली, सी फ़ूड और ढेर सारे उत्पाद बेचे जाते हैं) में बेचा भी जाता है। यह वही स्तनधारी परतदार जानवर हो सकता है जिसे पैंगोलिन कहते हैं। हालांकि इसको लेकर अभी किसी अंतिम नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका है। एडंरसन की टीम ने सार्स-CoV-2 और चमगादड़ को संक्रमित करने वाले दूसरे कोरोना वायरसों में एक ही तरह की समानताएं पायी हैं।

हुआन स्थित सी फ़ूड मार्केट। साभार- गार्जियन

अगर वास्तव में वायरस ने इंसानों तक पहुँचने का यही रास्ता अख़्तियार किया है तो इसमें दो महत्वपूर्ण अंतराल हैं: पहला- हम और मध्यस्थ मेज़बान। यह शायद पैंगोलिन हो। दूसरा- वह मध्यस्थ मेज़बान यानि पैंगोलिन और चमगादड़। चीनी वेट मार्केट को चिन्हित करते हुए ज़्यादा ध्यान इंसानों और मध्यस्थ मेज़बानों वाले अंतराल और चीनियों के खाने की आदतों पर केंद्रित किया गया। लेकिन वैश्विक महामारी को इतना उग्र रूप लेने के लिए इन दोनों अंतरालों की ज़रूरत थी। इसलिए कहां और कैसे चमगादड़ से पैंगोलिन में संक्रमण हुआ। या फिर दूसरे जंगली जानवर या अर्ध जंगली मध्यस्थ मेजबान के ज़रिये यह संभव हुआ। यह सब रहस्य बना हुआ है।

एंडरसन ने बताया कि “हमारा अध्ययन सीधे तौर पर वायरस की भौगोलिक उत्पत्ति पर प्रकाश नहीं डालता है।” “हालांकि, अभी तक मौजूद सभी सबूत दिखाते हैं कि यह चीन के भीतर था।”

इसका मतलब है कि मामला समाप्त हो गया? और राष्ट्रपति ट्रंप जो सार्स-CoV-2 को चीनी वायरस बता रहे हैं वह ठीक है? बिल्कुल नहीं। क्योंकि अगर आप यह जानना चाहते हैं कि यह वैश्विक बीमारी आज क्यों पैदा हुई 20 साल पहले क्यों नहीं? तो आपको ढेर सारे दूसरे कारणों को भी इसमें शामिल करना होगा। वैसे भी चीनी लोगों के खाने की आदतों के चलते ही पश्चिम उसे इसका ज़िम्मेदार मान रहा है। और यह कोई नई बात नहीं है। सेंट पॉल में ऐग्रोकोलाजी एंड रुरल इकोनामिक्स रिसर्च कॉरपोरेशन में जीव विज्ञानी मिन्नेसोटा ने बताया कि “हम वस्तु के तौर पर वायरस और सांस्कृतिक अभ्यास दोनों पर दोषारोपण कर सकते हैं, लेकिन मौतें लोगों और इकोलाजी के बीच रिश्तों तक पहुंचती हैं।”

1990 में शुरू होने वाले आर्थिक परिवर्तन के हिस्से के तौर पर चीन अपने खाद्य उत्पादन की व्यवस्था को औद्योगिक स्तर तक ले गया। एक तरफ़ इसका प्रभाव यह पड़ा कि छोटी जोत के किसान बिल्कुल अलग-थलग पड़ गए और इसके साथ ही पशुधन उद्योग से बिल्कुल बाहर फेंक दिए गए। मानव विज्ञानी लाइन फियर्नली और क्रिस्टोस लिंटरिस ने इन बातों को दस्तावेज के साथ पेश किया है। इस प्रक्रिया में जीवन के नये रास्ते की तलाश में उनमें से कुछ ने जंगली जंतुओं की फार्मिंग शुरू कर दी। ख़ास बात यह है कि पहले इन जंतुओं को बेहद मजबूरी में ही भोज्य पदार्थ के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था।

इसके साथ ही जंगली खाद्य औपचारिक रूप से एक सेक्टर के तौर पर देखा जाने लगा। और फिर आगे बढ़ने के साथ ही एक लक्ज़री प्रोडक्ट के रूप में उसकी ब्रांडिंग शुरू हो गयी। लेकिन छोटी जोत वालों को न केवल आर्थिक रूप से बाहर कर दिया गया बल्कि ये छोटे किसान भौगोलिक तौर पर भी बहिष्कृत हो गए। और खेती न करने योग्य ज़मीन के बिल्कुल करीब धकेल दिए गए। जंगलों के बिल्कुल नज़दीक ये वही स्थान थे जहां चमगादड़ और उसके वायरस संक्रमित करने के लिए घात लगाकर बैठे हुए थे। इस पहले अंतराल में घनत्व और संपर्कों की आवृत्ति दोनों बढ़ जाती है। इस तरह से उसके फैलाव का ख़तरा भी बढ़ जाता है। यह सब कुछ इसलिए हुआ क्योंकि औद्योगिक खेती के लिए ज़्यादा से ज़्यादा खेतों की ज़रूरत थी। और सरकार ने इन किसानों की ज़मीनें अधिग्रहीत कर ली थी।

पैंगोलिन।

दूसरे शब्दों में इसे इस रूप में कहा जा सकता है कि हाल के दशकों में एक विस्तारित इंसानी आबादी का ग़ैर प्रभावित इकोसिस्टम की तरफ़ धकेले जाने की घटना ने जूनोज यानि जानवर जनित मानव संक्रमण की संख्या को बढ़ाने का काम किया है। इबोला और एचआईवी मामले में इस बात को पहले ही दस्तावेज़ों के ज़रिये साबित किया जा चुका है। लेकिन इस शिफ़्टिंग के पीछे दूसरे खाद्यों का उत्पादन भी शामिल है। यही नहीं जूनोज की उत्पत्ति में खेती व्यवसाय के आधुनिक मॉडल का भी योगदान है।

फ़्लू को ही लीजिए एक ऐसी बीमारी है जिसमें महामारी बनने की सबसे ज़्यादा आशंका होती है। यह पिछले 500 सालों में अब तक 15 महामारियों का कारण बन चुकी है।

बेल्जियम स्थित यूनिवर्साइट लिबरे डि ब्रक्सेल्स में महामारी विशेषज्ञ मैरियस गिलबर्ट ने कहा कि “ उभरने वाले उच्च पैथोेजेनिक एवियन इंफ्लुएंजा वायरस और पोल्ट्री उत्पादन व्यवस्था में आयी तेज़ी के बीच बिल्कुल साफ-साफ रिश्ता है। ”        

इनसे जुड़े बहुत सारे कारणों को वालेस की 2016 की किताब ‘बिग फ़ार्म्स मेक बिग फ़्लू’ में दस्ताबद्ध किया जा चुका है, उसमें फ़ैक्ट्री फार्मों में पैक किए जाने वाले चिकेन, टर्की या फिर दूसरी पोल्ट्री शामिल हैं। यह बात बिल्कुल सच है कि किसी फार्म में रहने वाले जंतु एक दूसरे के लगभग क्लोन रूप होते हैं। और दशकों से इन्हें हल्के मीट के ज़रूरतमंदों द्वारा चुना जाता रहा है। खुदा न ख़ास्ता अगर वायरस इस तरह के किसी झुंड में घुस जाता है तो वह बग़ैर किसी जेनेटिक प्रतिरोध के तेज़ गति से दौड़ने लगेगा। असली दुनिया में प्रयोगात्मक जोड़ तोड़ और निगरानी दोनों ने इस बात को दिखाया है कि यह प्रक्रिया वायरस के विषैलेपन को और बढ़ा सकती है। और अगर उसके बाद यह इंसानों में फैल जाता है तो हम निश्चित रूप से ख़तरे में पड़ जाएँगे।

फ़्रांस में लॉक डाउन के दौरान एक इबारत। साभार-गार्जियन

2018 में प्रकाशित एक पेपर में गिल्बर्ट समूह ने ऐतिहासिक कनवर्जन घटना की समीक्षा की है। जब कोई एक छोटा विकारयुक्त एवियन फ़्लू ज़्यादा ख़तरनाक बन जाता है और ऐसा पाया जाता है कि उनमें से ज़्यादातर व्यवसायिक पोल्ट्री फार्म प्रणाली के हिस्से बन जाते हैं। और यह सब कुछ ज़्यादातर धनी और संपन्न देशों में होता है। अनायास नहीं यूरोप, आस्ट्रेलिया और अमेरिका ने चीन से ज़्यादा इन सब चीजों को पैदा किया है।

इससे चीन का गुनाह कम नहीं हो जाता है। एवियन फ़्लू के दो बड़े रोगाणु रूप- H5N1 और H7N9 हाल के दशकों में इसी देश में पैदा हुए थे। दोनों इंसानों को संक्रमित करते हैं। हालांकि ऐसा आसानी से नहीं होता है। H7N9 का पहला इंसानी केस 2013 में सामने आया था और उसके बाद यह तकरीबन वार्षिक आउटब्रेक का हिस्सा बन गया। लेकिन गिल्बर्ट का कहना है कि “इस पर तब तक कुछ नहीं किया गया जब तक कि यह वायरस चिकेन के लिए रोगजनक नहीं हो गया। उसके बाद यह महत्वपूर्ण आर्थिक मसला बन गया। और चीन ने H7N9 के खिलाफ व्यापक पैमाने पर पोल्ट्री टीकाकरण का कार्यक्रम संचालित कर दिया। और फिर इसके साथ ही इंसानों में इसके संक्रमण का अंत हो गया।”

चीन दुनिया के मुख्य पोल्ट्री निर्यातक देशों में एक है। लेकिन इसका पोल्ट्री उद्योग पूरी तरह से चीन के मालिकाने वाला नहीं है। उदाहरण के लिए 2008 की मंदी के बाद न्यूयार्क स्थित निवेशक बैंक गोल्डमैन सच ने अपनी मालिकाना पूँजी के एक हिस्से का चीन के पोल्ट्री फार्म में निवेश कर दिया। लिहाजा इन घटनाओं को फैलाने में चीन अकेले जिम्मेदार नहीं है। इसीलिए जब बीमारी के कारणों की पहचान की बात आती है तो वालेस केवल भौगोलिकता के बजाय संबंधात्कम भूगोल पर ज़ोर देते हैं। या फिर जैसा कि वह कहते हैं: ‘पैसे के पीछे जाओ।’

हर कोई फ़ैक्ट्री फ़ार्मिंग और नये एवं फ़्लू के ख़तरनाक फार्मों के बीच सीधा रिश्ता नहीं देख पाता है। अरिजोना विश्वविद्यालय के एक जीव विज्ञानी माइकेल वोरोबी इस बात को चिन्हित करते हैं कि फ़ैक्ट्री फार्म में ले आए जाने से पहले पोल्ट्री को बाहर रखा जाता था। फ़ैक्ट्री मॉडल ने शायद उसके विषैलेपन को बढ़ा दिया है। लेकिन शायद पहले स्थान पर यह एक झुंड को वायरस से संक्रमित होने से रोकता है।

फिर भी वोरोबी इस बात में कोई संदेह नहीं करते हैं कि फ़ार्मिंग और दूसरे इंसानों एवं जानवरों के बीच संपर्कों ने हमारी पारिस्थितिकीय बीमारियों को आकार दिया है। उनके समूह ने एक समय के दौरान फ़्लू वायरसों के पूरे विकासक्रम को जुटाया है और फिर उसके जरिये इंसान समेत मेज़बान जानवरों की पूरी रेंज का एक फ़ैमिली ट्री बनाया है। फ्लू लगातार परिवर्तनशील है- यही वजह है कि हर साल मौसमी फ़्लू टीका को अपडेट करना पड़ता है। लेकिन यहाँ यह बात नोट करने की है कि यह अलग-अलग मेज़बानों में अलग-अलग तरीक़े से परिवर्तित होता है। इसका मतलब है कि उनका फ़्लू फ़ैमिली ट्री उसके अपने पैरेंट्स और मध्यस्थ मेज़बान के बारे में बेहद सूचनाप्रद है। और इसमें पिछली आउटब्रेक का संभावित समय भी दिया गया है।

इंडोनेशिया में चमगादड़ों को भूनकर खाने का बाज़ार। साभार-गार्जियन

यह बिल्कुल संभव है कि फ़्लू पहली बार इंसान की बीमारी के तौर पर तब सामने आया हो जब चीन ने 4000 साल पहले बत्तखों को अपना पालतू बनाया। और इसके ज़रिये जानवरों के उस झुंड को पहली बार इंसानी समुदायों के बीच ले आने का काम किया। लेकिन इंसान सुअरों से भी फ़्लू ले सकता है और उसे दे भी सकता है। यह एक ऐसा जानवर है जिसके साथ हम हज़ारों साल से रह रहे हैं। कुछ साल पहले वोरोबी ने कहा था कि चिड़िया हमेशा इंसानों में वायरसों के संक्रमण के लिए मध्यस्थ मेज़बान नहीं हो सकती है। एक सदी पहले तक लोगों को घोड़ों से भी फ़्लू का संक्रमण हो जाता था। उस समय जब घोड़ों को मोटर गाड़ियाँ स्थानांतरित कर रही थीं तो पोल्ट्री फ़ार्मिंग का पश्चिमी देशों में विस्तार हो रहा था। वोरोबी का कहना है कि यह बिल्कुल संभव है कि उसके बाद इंसानों में फ्लू के संक्रमण के लिए चिड़िया ने मुख्य मेज़बानी की ज़िम्मेदारी ले ली हो।

हर कोई उनसे सहमत नहीं है। इंपीरियल कॉलेज लंदन में वायरस विज्ञानी वेंडी बर्कले कहते हैं कि अगर एक दौर में घोड़े फ़्लू के मुख्य मध्यस्थ मेजबान थे तो ज़्यादातर एवियन वायरस स्तनधारी एडाप्टेशन का गुण रखते होंगे जबकि उनके पास ऐसा नहीं था। अमेरिकी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी की डेविड मोरेंस तथा इंफेक्शियस डिजीज इन बेथेस्डा के मैरीलैंड का कहना है कि इस बात की पूरी संभावना है कि घोड़े कुछ दिनों के लिए मेज़बान का काम किए हों लेकिन इंसानों में फ़्लू के लिए हमेशा ख़ासकर जंगली चिड़िया ही मध्यस्थ का काम करती रही हैं।

लेकिन इस बात पर सभी सहमत हैं कि इन रोगाणुओं से रिश्तों की मेज़बानी को इंसानों ने ही आकार दिया है वह चाहे हमारी ज़मीन के इस्तेमाल के ज़रिये रहा हो या फिर दूसरे जीव जंतुओं के ज़रिये। और वोरोबी इस बात को चिन्हित करते हैं कि आज 21 वीं सदी में मानव आबादी का इतना बड़ा होना ही इस बात को साबित करता है कि यह सब कुछ अभूतपूर्व पैमाने पर हो रहा है। उदाहरण के लिए उनके अनुमान के मुताबिक़ जंगली जानवर पालतू बत्तखों को स्थानांतरित कर देंगे।

हम केवल चिड़ियों के बारे में बात नहीं कर रहे हैं। गिल्बर्ट का यह विश्वास है कि वायरसों का विषैलापन सुअरों के झुंडों में भी घटित हो रहा है। पोरसीन रिप्रोडक्टिव एंड रेसपिरेटरी सिंड्रोम (पीआरआरएस) सुअरों की एक बीमारी अमेरिका में पहली बार 1980 में सामने आयी थी। अब वह दुनिया के सुअरों के झुंडों में फैल गयी है। हाल में इसे चीन में चिन्हित किया गया है। और यह पहले की अमेरिकी बीमारी से ज़्यादा विषैली है। अमेरिकी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के मार्थ नेल्सन और उनके सहयोगी ने 2015 में एक अध्ययन किया था जिसमें उन्होंने स्वाइन फ़्लू वायरस के जेनेटिक विकासक्रम को मापा था। इसमें उन्होंने पाया कि सुअरों के सबसे बड़े निर्यातक यूरोप और अमेरिका स्वाइन फ़्लू के भी सबसे बड़े निर्यातक हैं।

सोशल मीडिया पर इस बात का दावा किया जा रहा है कि अगर हम कम मीट खाते हैं तो कोई कोविद-19 नहीं होगा। दिलचस्प बात यह है कि आंशिक तौर पर झूठा करार देकर इनमें से कुछ को मुख्यधारा के मीडिया आर्गेनाइजेशन ने ब्लॉक कर दिया। लेकिन दावा भी आंशिक रूप से ही सही है। हालांकि इस मामले में जिस लिंक का हवाला दिया गया है वह बेहद सरलीकृत है। अब इस बात के बहुत मज़बूत प्रमाण हैं कि चीन समेत दुनिया के मीट उत्पादन के तरीक़ों ने भी कोविद 19 में योगदान दिया है। 

यह बात बिल्कुल साफ़ है कि रोकने या फिर कम से कम नये जूनोज के पैदा होने की गति को धीमा करने के लिए चीन की वेट मार्केट की अच्छे तरीक़े से रेगुलेशन की ज़रूरत है। लेकिन वैश्विक स्तर पर हमारे भोजन का कैसे उत्पादन किया जाता है हमें उन बाज़ारों को भी देखने की ज़रूरत है।

वालेस कहते हैं कि हालाँकि इस समय यह उस तरह से महसूस नहीं किया जा सकता है लेकिन सार्स-CoV-2 के मामले में हम लोग भाग्यशाली हैं। यह H7N9 से कम खतरनाक है। क्योंकि H7N9 संक्रमित लोगों के एक तिहाई हिस्से को मार देता है। H5N1 तो उससे भी ज्यादा को मारता है। बहरहाल यह हमें अपने जीवन जीने के तरीक़ों पर सवाल करने का एक अवसर देता है। क्योंकि चिकेन अगर लाखों लोगों को मारता है तो वह सस्ता नहीं है। और उन राजनेताओं को वोट करिए जो खेती के व्यवसाय को पारिस्थितिकी, सामाजिक और विषाणुगत स्थायित्व के उच्च मापदंडों की तरफ ले जाते हैं। उनके मुताबिक आशा है कि यह कृषि उत्पादन, ज़मीन के इस्तेमाल और संरक्षण को लेकर हमारी सोच को बिल्कुल बदल देगा।

(लौरा स्पिनी द्वारा गार्जियन में लिखे गए अंग्रेज़ी के इस लेख का हिंदी अनुवाद किया गया है।)

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