गृहमंत्री अमित शाह ने तोड़ी चुप्पी, कहा- नेताओं के भड़काने वाले बयानों का पड़ा होगा चुनाव नतीजों पर असर

नई दिल्ली। दो दिनों की चुप्पी को तोड़ते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि दिल्ली विधानसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन की वजह चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी नेताओं के दिए गए भड़काने वाले बयान भी हो सकते हैं। गौरतलब है कि नतीजों के बाद अमित शाह ने बिल्कुल चुप्पी साध रखी थी।

टाइम्स नाऊ की समिट में आज बोलते हुए शाह ने कहा कि ‘गोली मारो’ और ‘भारत-पाक मैच’ जैसे बयान नहीं दिए जाने चाहिए थे। इसके साथ ही उन्होंने यह भी चिन्हित किया कि इन टिप्पणियों से पार्टी ने खुद को अलग कर लिया था।

आप को बता दें कि चुनाव प्रचार अभियान के दौरान बीजेपी नेता और वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर ने रिठाला विधानसभा क्षेत्र में एक सभा को संबोधित करते हुए मंच से नारा दिया था- ‘देश के गद्दारों को’ और फिर उसको पूरा सामने मौजूद जनता ने ‘गोली मारो सालों को’ बोल कर किया। ऐसा उन्होंने एक-दो बार नहीं बल्कि कई बार किया। और उसके बाद तमाम टीवी चैलनों से हजारों बार इसको दोहराया गया। 

इसी तरह से मॉडल टाउन से बीजेपी प्रत्याशी कपिल मिश्रा ने दिल्ली विधानसभा के चुनाव की तुलना भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाले मैच से की थी। इसके साथ ही उन्होंने आप और कांग्रेस पर शाहीन बाग जैसे मिनी पाकिस्तान बनाने का आरोप लगाया था। हालांकि चुनाव आयोग ने इन बयानों का संज्ञान लिया था और दोनों नेताओं के चुनाव प्रचार पर कुछ दिनों के लिए पाबंदी लगा दी थी।

11 फरवरी को आए नतीजों में आम आदमी पार्टी एक बार फिर बंपर बहुमत के साथ सत्ता में आ गयी। लेकिन चुनाव प्रचार बेहद निचले स्तर पर चला गया था। खासकर बीजेपी नेताओं ने ऐसे-ऐसे बयान दिए जो किसी भी सामान्य चुनाव या फिर सभ्य समाज के लिए ग्राह्य नहीं हो सकते थे। दिलचस्प बात यह है कि अमित शाह ने भले ही उसमें अनुराग ठाकुर और कपिल मिश्रा के बयानों का हवाला दिया हो लेकिन शाहीन बाग के लोगों को करेंट लगाने वाले अपने बयान का उन्होंने कोई जिक्र नहीं किया। उनसे यह जरूर पूछा जाना चाहिए कि उनका यह बयान किस श्रेणी में आता है। 

उससे भी अहम बात यह है कि अमित शाह उस दौरान चुनाव अभियान का नेतृत्व कर रहे थे। और इस तरह का कोई पहला बयान उन्होंने ही दिया था। एक तरह से उन्होंने अपने नेताओं को रास्ता दिखाया था। 

सार्वजनिक तौर पर भले ही शाह इस बात पर अफसोस जाहिर करें। लेकिन पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि ये सारे बयान स्वत:स्फूर्तता में नहीं दिए गए थे। बल्कि एक सोची-समझी रणनीति के हिस्से थे। जिन्हें इन नेताओं से दिलवाया गया था। दरअसल लाख कोशिशों के बाद भी जब सांप्रदायिक ध्रुवीकरण होता नहीं दिखा तब पार्टी को इन बयानों का सहारा लेना पड़ा। लेकिन सच यह है कि उसके बाद भी पार्टी इच्छित लक्ष्य नहीं हासिल कर सकी। जनता ने नेताओं के बयानों को न केवल खारिज किया बल्कि उसकी सजा भी दे दी।

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