UCC और मणिपुर में चर्चों पर हमले से केरल में भाजपा के जीत का स्वप्न ध्वस्त

भले ही 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को केरल में कोई सीट नहीं मिली थी, लेकिन भाजपा गठबंधन (NDA) को 15 प्रतिशत वोट मिला था। केरल जैसे राज्य में भाजपा गठबंधन को 15 प्रतिशत वोट हासिल होना काफी मायने रखता है। केरल में मुस्लिम 28.6 प्रतिशत और ईसाई 18.4 प्रतिशत हैं। इस तरह इन दोनों समुदायों की कुल आबादी 47 प्रतिशत है। केरल की 53 फीसदी आबादी हिंदू है। सूबे में भाजपा को राजनीतिक सफलता तभी मिल सकती है, जब उसे हिंदुओं के अलावा मुसलमानों या ईसाइयों के वोट का बड़ा हिस्सा मिले। 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को हिंदुओं के वोट का तकरीबन 28 प्रतिशत मिला था।

हिंदुओं के वोट का 50 प्रतिशत पाकर भी भाजपा केरल में बड़ी चुनावी सफलता नहीं प्राप्त कर सकती है। इसके लिए उसे हिंदुओं का करीब 80 प्रतिशत से अधिक वोट प्राप्त करना होगा, जो कि नामुमकिन संभावना है, क्योंकि केरल में सिर्फ 53 प्रतिशत हिंदू हैं। इस स्थिति में भाजपा के लिए ईसाइयों के बीच पैठ बनाना सबसे सुगम लगा। हालांकि मुसलमानों के बीच पैठ बनाने की उसने कोशिश की। आप को बता दें कि केरल में लोकसभा की कुल 20 सीटें हैं।

मुसलमानों और ईसाइयों ने चुनावों में अधिकतर कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) का समर्थन किया है। हालांकि 2021 के विधानसभा सभा चुनाव में ईसाइयों के एक बड़े हिस्से ने वामपंथ के नेतृत्व वाले एलडीएफ को वोट दिया था। अगर बीजेपी राज्य में अपना विस्तार करना चाहती है तो उसे इस गठबंधन को तोड़ना होगा। इस रणनीति के तहत बीजेपी कई तरीक़े से ईसाई समुदाय को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश पिछले दिनों कर रही थी।

इसी कड़ी में 25 अप्रैल को जब प्रधानमंत्री ने केरल की यात्रा की, तब विशेष तौर पर वो चर्च गए, उन्होंने ईसाई धर्म गुरुओं से मुलाकात की। उनसे कई वादे किए। केरल कैथोलिक बिशप काउंसिल (केसीबीसी) ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ईसाई धर्म गुरुओं से कोच्चि में हुई भेंट एक ‘दोस्ताना मुलाक़ात’ थी। उन्होंने कहा, “गिरिजाघरों के प्रमुखों और प्रधानमंत्री के साथ बैठक अच्छी रही। बेशक, हमने ईसाई समुदाय की सभी ज़रूरतों को साझा किया। साथ ही केरल के लोगों की जरूरतों को भी साझा किया।”

कार्डिनल ने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी की सरकार की केरल के लोग वास्तव में सराहना कर रहे हैं और हम केंद्र सरकार की पहल पर केरल में और विकास की आशा करते हैं। हमने उनके सामने किसानों, मछुआरों और तटीय क्षेत्र में रहने वाले लोगों की दिक्क़तों का ज़िक्र किया। हमने दलित ईसाइयों और उन ग़रीबों की बात की जो हाशिए पर हैं। प्रधानमंत्री ने हमारी बातें ध्यान से सुनीं।” नरेंद्र मोदी ने ईसाइयों को लुभाने की रणनीति के तहत साल 2021 में पोप फ्रांसिस से मुलाक़ात की थी। उन्होंने उन्हें भारत आने का निमंत्रण भी दिया था। 

भाजपा ने केरल के ईसाइयों में अपनी जगह बनाने के लिए ‘लव जिहाद’ और ‘नारकोटिक्स जिहाद’ का इस्तेमाल किया। क्योंकि ईसाई धर्म के बीच एक ऐसा धड़ा है, जो हिंदूवादी संगठनों की तरह ‘लव जिहाद’ के नारे का मुसलमानों के खिलाफ इस्तेमाल करता है। इसमें ‘नारकोटिक्स जिहाद’ भी जोड़ दिया जाता है। ‘लव जिहाद’ के मुद्दे पर केरल में हिंदूवादी संगठन और कुछ ईसाई संगठन एक साथ मुसलमानों के खिलाफ दिखते हैं।

इन सब घटनाक्रमों से ऐसा लग रहा था कि ईसाई केरल में भाजपा के करीब आ रहे हैं, लेकिन मणिपुर की हिंसा ने स्थिति को पूरी तरह बदल दिया। मैतेई (हिंदू) लोगों ने मणिपुर में ईसाई चर्चों को विशेष तौर पर निशाना बनाया। करीब 253 चर्च जलाए गए। जिन कुकी लोगों को बड़े पैमाने पर हिंसा का सामना करना पड़ा वे भी धार्मिक तौर पर ईसाई हैं। मणिपुर चर्चों और कुकी ईसाइयों पर हमले की केरल के ईसाइयों में तीखी प्रतिक्रिया हुई। केरल में कैथोलिक चर्च के धर्म सभा के मुख्य सदस्यों में से एक, आर्कबिशप जोसेफ पैम्प्लानी ने कहा कि “दंगों के पीछे एक ठोस रणनीति प्रतीत होती है। लोगों को आशंका है कि सरकार दंगा करने वालों को बचा रही है।”

आर्कबिशप ने कहा कि “मणिपुर में हिंसा नरसंहार में बदल गई है। केंद्र और राज्य दोनों सरकारें हिंसा को रोकने में विफल रही हैं। मणिपुर में तनाव एक ऐसे नरसंहार में बदल गया है जो देश के इतिहास में अनसुना है। यह गुजरात में दंगों का एक और संस्करण बन गया है।” यह बयान केरल के ईसाइयों के वर्तमान मनोदशा को बताता है।

अभी मणिपुर में हिंसा जारी ही है, इसी बीच नरेंद्र मोदी ने समान नागरिक संहिता का एजेंडा जोर-शोर से प्रस्तुत कर दिया। इस एजेंडे ने मुसलमानों के साथ ईसाइयों को भी बेचैन कर दिया। इसका सीधा अर्थ लगाया जा रहा है कि समान नागरिक संहिता के नाम पर आरएसएस-भाजपा धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना चाह रही हैं और उनके संस्कारों, रीति-रिवाजों और प्रथाओं पर हमला करने की तैयारी कर रहे हैं। समान नागरिक संहिता के विरोध की जरूरत ने केरल में दोनों बड़े अल्पसंख्यक समुदायों (ईसाइयों-मुसलमानों) को करीब ला दिया है। केरल में कांग्रेस नेतृत्व वाले यूडीएफ और वामपंथी पार्टियों के नेतृत्व वाले एलडीएफ ने खुलकर समान नागरिक संहिता का विरोध किया।

केंद्रीय स्तर पर भले ही कांग्रेस अभी समान नागरिक संहिता पर तटस्थ और चुप हो, लेकिन केरल में कांग्रेस खुलकर समान नागरिक संहिता का विरोध कर रही है। समान नागरिक संहिता के मामले में केरल की एलडीएफ और यूडीएफ दोनों एक साथ खड़े हैं, दोनों खुलकर इसके विरोध में हैं। राज्य के एकमात्र केंद्रीय मंत्री (विदेश राज्यमंत्री)  वी मुरलीधरन ने कहा कि समान नागरिक संहिता से मुसलमान और ईसाइयों को संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत प्राप्त धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर कोई चोट नहीं पहुंचती है। उन्होंने यहां तक कहा कि मुसलमानों और ईसाइयों को समान नागरिक संहिता के मामले में वामपंथियों और कांग्रेसियों के बहकावे में नहीं आना चाहिए। 

यूसीसी का सबसे अधिक विरोध मेघालय, मिजोरम और नागालैंड में होता रहा है। जहां 2011 की जनगणना के अनुसार ईसाइयों की संख्या क्रमशः 74.59%, 86.97% और 87.93% है। करीब सभी को अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त है।

यहां के लोगों के विरोध का परिणाम यह है कि यहां के भाजपा के सहयोगी राजनीतिक दलों ने भी इसका विरोध शुरू कर दिया। जिसमें नेशनल ‘डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी’ (एनडीपीपी), नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) और ‘मिज़ो नेशनल फ्रंट’ (एमएनएफ) शामिल है। एनडीपीपी नगालैंड में चल रही सरकार का नेतृत्व करती है, जिसमें भाजपा भी शामिल है। मेघालय में एनपीपी के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार है, जिसमें भाजपा शामिल है। एमएनएफ भाजपा के साथ मिजोरम में सरकार में साझेदार तो नहीं है, लेकिन वह भाजपा के नेतृत्व में बने ‘राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन’ (एनडीए) का हिस्सा है।

इन राजनीतिक दलों के अलावा कई आदिवासी निकायों और संगठनों ने भी ‘समान नागरिक संहिता’ का विरोध किया। नागालैंड के ये संगठन संविधान के अनुच्छेद 371 एक तहत नागा आदिवासी समुदायों के रीति-रिवाजों, परंपराओं, संस्कारों, अनुष्ठानों और प्रथाओं के प्राप्त विशेष संरक्षण को खत्म करने के पूरी तरह खिलाफ हैं। इन सभी का एक स्वर में कहना है कि ‘समान नागरिक संहिता’ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के “एक राष्ट्र, एक धर्म, एक भाषा” को पूरे देश में लागू करने की कोशिश की दिशा में उठाया गया कदम है।

समान नागरिक संहिता (UCC) को देश पर थोपने की कोशिश ने भले ही हिंदी पट्टी के भाजपा के कोर वोटरों को लुभा रहा हो, लेकिन केरल में इस मुद्दे ने ईसाइयों को अपने साथ लाने और मुसलमानों के एक हिस्से को लुभाने की सारी कोशिश पर पानी फेर दिया है। केरल में भाजपा के प्रवेश की कोशिशों पर लंबे समय के लिए विराम लगा दिया है।

( सिद्धार्थ जनचौक के संपादक हैं।)

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