ओडिशा सरकार ने आदिवासियों की जमीन को गैर-आदिवासियों को बेचने के फैसले पर रोक लगाई

नई दिल्ली। ओडिशा सरकार ने आदिवासियों की जमीन को गैर-आदिवासियों को बेचने के संबंध में कैबिनेट के एक विवादास्पद फैसले पर रोक लगा दी है। राज्य सरकार ने चौतरफा आलोचना के बाद ये कदम उठाया है।

ओडिशा के राजस्व और आपदा प्रबंधन मंत्री सुदाम मरांडी ने कहा कि “आदिवासियों की जमीन बेचने के संबंध में 14 नवंबर, 2023 को हुई कैबिनेट बैठक में लिए गए फैसले के तहत 1956 के विनियमन-2 (ओडिशा अनुसूचित क्षेत्र अचल संपत्ति हस्तांतरण (अनुसूचित जनजातियों द्वारा) विनियमन, 1956 में प्रस्तावित संशोधन को रोक दिया गया है।”

मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की अध्यक्षता में कैबिनेट ने आदिवासियों की जमीन को गैर-आदिवासियों को सशर्त बेचने पर सहमति दे दी थी।

कैबिनेट नोट में कहा गया था कि “अनुसूचित जनजाति का व्यक्ति, उप-कलेक्टर की लिखित अनुमति से, सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए उपहार या विनिमय कर सकता है या कृषि, आवासीय घर बनाने, बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए सार्वजनिक वित्तीय संस्थान में अपनी जमीन गिरवी रख कर लोन ले सकता है।“

प्रस्ताव के अनुसार, ऐसे स्थानांतरण के बाद व्यक्ति (आदिवासी) भूमिहीन या आवासहीन नहीं होना चाहिए। सरकार ने कहा कि, “यदि उप-कलेक्टर अनुमति नहीं देता है, तो व्यक्ति छह महीने के भीतर कलेक्टर के पास अपील कर सकता है, जिसका फैसला अंतिम होगा।”

वर्तमान में, राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों में ओडिशा अनुसूचित क्षेत्र अचल संपत्ति हस्तांतरण (अनुसूचित जनजातियों द्वारा) विनियमन, 1956 लागू है जिसमें आदिवासियों की जमीन गैर आदिवासियों को देने पर रोक है।

कैबिनेट नोट के मुताबिक, “2002 में इस अधिनियम में कुछ संशोधन किए जाने के बाद, अनुसूचित जनजाति वर्ग से संबंधित व्यक्ति अपनी अचल संपत्ति केवल अनुसूचित जनजाति से संबंधित व्यक्ति को हस्तांतरित कर सकता है। अनुसूचित क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति से संबंधित व्यक्ति अपनी जमीन को केवल कृषि कार्य के लिए किसी भी सार्वजनिक वित्तीय संस्थान के पास गिरवी रख सकता है।

इसमें कहा गया है कि, “ऐसे प्रावधानों के कारण अनुसूचित जनजाति के शिक्षित युवाओं को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था।”

‘आदिवासियों की सुरक्षा ख़त्म’

कैबिनेट के फैसले पर काफी प्रतिक्रियाएं आईं थीं जिसमें सरकार के फैसले की काफी आलोचना की गई थी। ओडिशा सीपीआई (एम) सचिव अली किशोर पटनायक ने कहा कि “आदिवासियों को अपनी ज़मीन गैर-आदिवासियों को बेचने की अनुमति देने वाला फैसला आदिवासी बहुल क्षेत्रों में बाढ़ के द्वार खोल देगा। कॉरपोरेट घरानों और खनन दिग्गजों के लिए जमीन अधिग्रहण करना आसान हो जाएगा। सरकार ने आदिवासियों के लिए सुरक्षा को कम कर दिया है।”

पटनायक ने कहा, “अच्छी भावना है कि राज्य सरकार ने फैसले को रोक दिया है। लेकिन, हम तब तक लड़ते रहेंगे जब तक सरकार इसे पूरी तरह से वापस नहीं ले लेती। आदिवासियों की जमीन को गैर-आदिवासियों को बेचने से राज्य के आदिवासी बहुल जिलों में जनसांख्यकीय चरित्र में बदलाव की आशंका है।

नबरंगपुर विधायक और राज्य भारतीय जनता पार्टी के आदिवासी मोर्चे के अध्यक्ष नित्यानंद गोंड ने कहा कि “किसी भी आदिवासी संगठन ने आदिवासियों से गैर-आदिवासियों को जमीन बेचने की मांग नहीं की। यह आदिवासी जमीन को गैर-ओडिया कॉरपोरेट घरानों को सौंपने की नवीन पटनायक सरकार की चाल थी। इस फैसले से उन लोगों के हाथों में सैकड़ों एकड़ जमीन नियमित हो जाएगी, जिन्होंने आदिवासियों की जमीन पर अवैध कब्जा कर रखा है।“

गोंड, जो जनजातीय सलाहकार परिषद (टीएसी) के सदस्य हैं, ने कहा कि आदिवासियों की जमीन को बेचने के संबंध में परिषद की बैठकों में कभी कोई चर्चा नहीं हुई और इस बारे में कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया गया है। ओडिशा प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने भी कैबिनेट के फैसले को पूरी तरह वापस लेने की मांग की।

(‘द हिंदू’ में प्रकाशित खबर पर आधारित।)

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