वायुसेना में लैंगिक भेदभाव: रेप विक्टिम को धमकाने के साथ प्रतिबंधित टू-फिंगर टेस्ट किया गया

वायुसेना में न केवल एक महिला अधिकारी के साथ बलात्कार के मामले में लैगिक भेदभाव किया गया,सबूतों को नष्ट करने की कोशिश की गयी, उच्चतम न्यायालय द्वारा कदम कदम पर उस पर दबाव डाला गया कि वह शिकायत न करे, उसे हतोत्साहित किया गया। शिकायत के 13 दिन बाद भी वायुसेना के अधिकारियों ने जब कोई कार्रवाई नहीं की तो महिला अधिकारी को पुलिस की सहायता लेनी पड़ी। यही नहीं उच्चतम न्यायालय द्वारा लिलु राजेश बनाम हरियाणा राज्‍य के मामले (2013) में टू-फिंगर टेस्‍ट असंवैधानिक घोषित होने के बाद महिला का टू-फिंगर टेस्‍ट किया गया। हालांकि बीते 26 सितंबर को वायुसेना के एक फ्लाइट लेफ्टिनेंट को एक महिला अधिकारी के बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था।

शिकायतकर्ता का आरोप है कि सितंबर महीने की शुरुआत में वे जख्मी होने के बाद जब दवा खाकर सो रही थीं, तो अमितेश ने उनसे बलात्कार किया। वायुसेना के अधिकारियों द्वारा उनकी शिकायत पर कार्रवाई न करने के बाद उन्होंने पुलिस में शिकायत की। द न्यूज़ मिनट की रिपोर्ट के अनुसार, एफआईआर में अमितेश के खिलाफ लगाए गए इल्ज़ाम के अतिरिक्त भारतीय वायुसेना पर भी गंभीर आरोप लगाए गए हैं।

एफआईआर में विस्तार से बताया गया है कि 10 सितंबर (जिस दिन यह घटना हुई) को क्या-क्या हुआ था। महिला ने बताया है कि 9 तारीख की शाम को उन्हें चोट लग गई थी और उन्हें दर्दनिवारक (पेनकिलर) दवाइयां दी गई थीं। इसी दिन देर शाम शिकायतकर्ता अपने कुछ साथियों के साथ ऑफिसर्स मेस के बार में गईं, जहां उन्होंने दो ड्रिंक लिए। अमितेश भी वहां मौजूद थे और एक ड्रिंक उन्होंने ही महिला के लिए खरीदा। उन्होंने बताया कि इसके बाद उनकी तबियत ख़राब हुई और उन्हें उल्टी हुई, जिसके बाद उनकी दो साथियों ने उन्हें उनके कमरे में ले जाकर सुला दिया। इसके बाद आरोपी अमितेश उनके कमरे में आए और उन्हें कई बार जगाने का प्रयास किया। इस पर महिला ने उन्हें कहा कि वे उन्हें सोने दें और वहां से चले जाएं।

शिकायत के अनुसार, महिला को अगली सुबह उनकी उसी दोस्त ने उठाया, जो पिछली रात उन्हें कमरे में छोड़कर गई थी। दोस्त ने महिला से पूछा कि अमितेश उनके साथ कमरे में क्यों थे और क्या उन्होंने इसके लिए सहमति दी थी। उनकी दोस्त ने जो देखा उसके आधार पर उन्हें संदेह हुआ कि महिला के साथ यौन उत्पीड़न हुआ है। इसके बाद महिला को भी अपनी शारीरिक अवस्था के चलते एहसास हुआ कि उनके साथ बलात्कार हुआ है। इसे लेकर जब उन्होंने अमितेश से सवाल किया तब उन्होंने कथित तौर पर उनकी निजता में दखल देने के लिए माफ़ी मांगी और कहा कि वे चाहें तो ‘उनके खिलाफ कोई भी कार्रवाई’कर सकती हैं।

महिला का यह कहना है कि उन्होंने और उनकी दोस्त ने जब इस बारे में अपने वरिष्ठ लोगों को बताया तब सर्वाइवर की शिकायत दर्ज करने या उनका साथ देने के बजाय एक विंग कमांडर ने कहा कि उन्हें अपने परिवार और उसकी प्रतिष्ठा के बारे में सोचना चाहिए। इन विंग कमांडर के साथ एक पुरुष अधिकारी भी थे, इन दोनों ने बाद में महिला से कहा कि वे शिकायत दर्ज करवा सकती हैं लेकिन पसोपेश और नाम बाहर आने के डर से उन्होंने तब ऐसा नहीं किया।

इसके अगले रोज इन अधिकारियों ने महिला और उनकी दोस्त को बुलाया और कथित तौर पर दो विकल्प दिए- या तो वे शिकायत दर्ज करवाएं या लिखित में स्वीकार करें कि यह सहमति से बनाया गया संबंध था। इसी के बाद महिला ने शिकायत दर्ज करवाने का निर्णय लिया और अपनी दोस्त के साथ मेडिकल जांच के लिए अस्पताल पहुंचीं।

महिला का आरोप है कि जब वे मेडिकल के लिए वायुसेना के अस्पताल पहुंचीं तब वहां मौजदू दो डॉक्टरों को इस बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं थी कि मेडिकल कैसे किया जाता है। उनका आरोप है कि जांच के दौरान वजाइनल स्वैब लेने के साथ चिकित्सक ने उनका टू फिंगर टेस्ट भी किया। सर्वाइवर का कहना है कि उन्हें यह बाद में मालूम चला कि रेप की मेडिकल जांच में यह टेस्ट वर्जित है। महिला का यह भी कहना है कि उनसे यहां उनकी सेक्सुअल हिस्ट्री (पूर्व में रहे यौन संबंधों) के बारे में भी सवाल किया गया, जो प्रतिबंधित है।

शिकायतकर्ता का कहना है कि उन्हें बताया गया कि 11 सितंबर को लिया गया स्वैब सैंपल टेस्ट में निगेटिव पाया गया, लेकिन उन्हें बाद में मालूम चला कि यह बात झूठ थी। उन्होंने एफआईआर दर्ज होने वाले दिन- 20 सितंबर को कहा था कि उस दिन तक यह सैंपल संबंधित अथॉरिटी को नहीं भेज गया था।

फॉरेंसिक विज्ञान के अनुसार वजाइनल स्वैब को उसी दिन टेस्ट करना चाहिए, जब उसे लिया गया। देर होने की स्थिति में स्वैब को एयरटाइट डिब्बे में रखा जाना चाहिए। ऐसा न किए जाने पर उस पर संक्रमण हो सकता है जिससे टेस्ट के नतीजे प्रभावित हो सकते हैं।

एफआईआर में अन्य साक्ष्यों के संरक्षण को लेकर भी संदेह जताया गया है। शिकायतकर्ता का कहना है कि उनके कमरे की चादर, जिस पर अमितेश के सीमेन के दाग थे, को उन्होंने वायुसेना अस्पताल में दे दिया था और बताया था कि गद्दे के गिलाफ को उनके कमरे से ले लिया जाए। इस समय तक उन्हें नया कमरा आवंटित कर दिया गया था और पुराने कमरे पर ताला डाला जा चुका था। इसी कमरे में वह गद्दा था। महिला का आरोप है कि 17 सितंबर तक उनके पुराने कमरे को अच्छी तरह सील नहीं किया गया था।

महिला की शिकायत के अनुसार, कथित बलात्कार के दो दिन बाद 12 सितंबर, 2021 को संस्था के दो अधिकारियों ने उन्हें और उनकी दोस्त को मिलने के लिए बुलाया। दोनों को अलग करने के बाद एक अधिकारी ने कहा कि उन्हें सर्वाइवर का बयान दर्ज करना है। जब महिला ने कहा कि वह ठीक मानसिक अवस्था में नहीं है, तो इन अधिकारी ने कथित तौर पर कहा कि वह बहुत व्यस्त हैं और महिला को तुरंत फैसला करना है कि क्या वह शिकायत दर्ज करना चाहती हैं या फिर लिखित में देना चाहती हैं कि वह ऐसा नहीं करना चाहतीं।

एफआईआर के अनुसार, सर्वाइवर जब शिकायत वापस लेने के लिए अपना बयान लिख रही थीं, उस समय यह अधिकारी बहुत ख़राब तरीके से पेश आए। अधिकारी ने कथित तौर पर शिकायतकर्ता की दोस्त से शिकायत वापस लेने के बयान पर दस्तखत करवाने का भी प्रयास किया। जब इस दोस्त ने कहा कि वह ऐसा करने से पहले कानूनी सलाह लेना चाहेगी, तो उन पर कथित तौर पर चिल्लाया गया, कहा गया कि वे किसी को फोन नहीं कर सकतीं।; सर्वाइवर और दोस्त दोनों को कथित तौर पर उनके फोन बंद करने और उन्हें मेज पर रखने के लिए कहा गया था।

एफआईआर के अनुसार, सर्वाइवर ने बताया कि वे जिनके मार्गदर्शन में कोर्स कर रही थीं, उन कानूनी अधिकारियों से उन्हें किसी तरह की मदद नहीं मिली। उनका आरोप है कि उन्हें ‘ब्लैकमेल’किया गया कि या तो पुलिस में शिकायत दर्ज करवाएं या ‘सिस्टम पर भरोसा’ करें। महिला का आरोप है कि उनसे कई बार उनकी शिकायत वापस लेने की अर्जी हाथ से लिखकर देने को कहा गया। 15 सितंबर को जब उन्होंने अपने बयान का प्रिंट मांगा तब उन्हें मालूम चला कि उनके और उनकी दोस्त के बयान को बदला गया था।

गौरतलब है कि देश में टू-फिंगर टेस्‍ट पर बैन है। उच्चतम न्यायालय इस पर रोक लगा चुका है। स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय ने भी इस टेस्‍ट को 2014 में ही अनसाइंटिक बताया था। हालांकि बैन के बाद भी शर्मिंदा करने वाला यह टू-फिंगर टेस्‍ट होता रहा है। 2019 में ही करीब 1500 रेप सर्वाइवर्स और उनके परिजनों ने कोर्ट में शिकायत की थी। इसमें कहा गया था कि उच्चतम न्यायालय के आदेश के बावजूद यह टेस्‍ट कराया जा रहा है। याचिका में इस टेस्‍ट को करने वाले डॉक्‍टरों का लाइसेंस कैंसिल करने की मांग की गई थी। संयुक्‍त राष्‍ट्र भी इस तरह के टेस्‍ट को मान्‍यता नहीं देता है।

हेल्‍थ मिनिस्‍ट्री इस टेस्‍ट को अवैज्ञानिक यानी अनसाइंटिफिक बता चुका है। मार्च 2014 में मंत्रालय ने रेप पीड़‍ितों के लिए नई गाइडलाइंस बनाई थीं। इसमें सभी अस्‍पतालों से फॉरेंसिक और मेडिकल एग्‍जामिनेशन के लिए खास कक्ष बनाने को कहा गया था। इसमें टू-फिंगर टेस्‍ट को साफ तौर पर मना किया गया था।गाइडलाइंस में असॉल्‍ट की हिस्‍ट्री रिकॉर्ड करने के लिए कहा गया था। पीड़‍ित की शारीरिक जांच के साथ मानसिक तौर पर उन्‍हें परामर्श देने की राय दी गई थी। हाल में महाराष्‍ट्र यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्‍थ साइंसेज ने ‘फॉरेंसिक मेडिसिन एंड टॉक्‍सिकोलॉजी’ विषय के लिए अपने पाठ्यक्रम में बदलाव किया था। यह विषय दूसरे साल के मेडिकल स्‍टूडेंट को पढ़ाया जाता है। इसमें ‘साइन्‍स ऑफ वर्जिनिटी’ टॉपिक को हटा दिया गया है।

इस तरह के टेस्‍ट में पीड़‍िता के प्राइवेट पार्ट में एक या दो उंगली डालकर उसकी वर्जिनिटी टेस्‍ट की जाती है। टेस्‍ट का मकसद यह पता लगाना होता है कि महिला के साथ शारीरिक संबंध बने थे कि नहीं। प्राइवेट पार्ट में अगर आसानी से दोनों उंगलियां चली जाती हैं तो माना जाता है कि महिला सेक्‍चुली एक्टिव है। अगर ऐसा नहीं होता है और उंगलियों के जाने में दिक्‍कत होती है तो इसे प्राइवेट पार्ट में हाइमन का ठीक होना माना जाता है। यही महिला के वर्जिन होने का भी सबूत मान लिया जाता है। साइंस इस तरह के टेस्‍ट को पूरी तरह से नकारती है। वह महिलाओं की वर्जिनिटी में हाइमन के इनटैक्‍ट होने को सिर्फ मिथ मानती है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

जेपी सिंह
Published by
जेपी सिंह