भागवत जी! हिंदू थका नहीं, सतत चलने वाले आपके नफरत और घृणा के एजेंडे से ऊब गया है

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने एक बयान में कहा है कि हिन्दू थका हुआ है और जब जागेगा तब दुनिया को रौशन करेगा। थका हुआ तो जगा हुआ ही होता है, लेकिन खुद को कमजोर, लाचार महसूस करता है। भागवत जो बयान दे रहे हैं वो जनता समझ रही है। इसको थका हुआ नहीं बूढ़ा हिन्दू कहते हैं, जड़ पुरातनपंथी हिन्दू कहते हैं। नवाचारों/सुधारों के अभाव में खुद के ही गूंथे जाल में उलझा बेबस व लाचार हिन्दू कहते हैं।

आज हिन्दू 95 साल का हो गया है और शतक से पहले आप का बयान बेबसी प्रकट करता है। इन 95 सालों में हिन्दू-मुस्लिम वाले एक ही सरीखे नारों व दंगों जैसे एक सरीखे कार्यों से हिन्दू का जी उचट गया है। एक ही नारा एक ही काम बेचारा हिन्दू कब तक उठाये घूमेगा? वक्त-बे-वक्त हिन्दू को जगा कर नफरतों के नारे लगाए गए, वक्त-बे-वक्त हिन्दू को उठा कर दंगों में लगाया लेकिन उसके पोषण का ध्यान नहीं रख गया। कोल्हू के बैल की तरह हिन्दू थक चुका है। जगा हुआ तो है भागवत जी, लेकिन थका हुआ है।

आप के पास हिंदुओं के बड़े-बड़े रेवड़ हैं। तकरीबन 630 अलग-अलग नस्लों की भेड़ें भी हैं जिनको आप उपयोग के समय हिन्दू कहते हो और चारा-पानी मांगने पर जातियों में बांटते हुए गद्दारी की घास फेंकने लग जाते हो। चुनावों में मतदान की फसल काटनी हो, चुनावों से पहले दंगा करवाना हो, एकदम हिंदुओं को जगाने का प्रयास ढोल-नगाड़ों के साथ होता है, मानसून के काले बादलों की तरह हिंदुओं पर खतरा उमड़ता बताया जाता है।

फिर हिन्दू जागता है, निर्दोषों के खून की बारिश होती है, चुनाव में मतदान की फसल काट ली जाती है। फसल कटने के बाद हिन्दू को पोषण कहां से मिलेगा उसकी कोई व्यवस्था नहीं होती इसलिए हिन्दू थका हुआ है।

आम अवाम अब आप की लाचारगी समझ रहा है। इस बयान के पीछे का दर्द जानता है। 90 साल की मेहनत के बाद 100% शुद्ध हिन्दू प्रधानमंत्री बनाने में सफल हुए लेकिन शाखाओं का चोला उतार कर महावीर जैन वाले पाले में कूद गया। मानें तो व्यापारियों के बाड़े में। काम उन के लिए करें और जनता के निशाने पर आरएसएस। अब नियंत्रण भी नहीं रहा। विरोध में कुछ बोले तो प्रवीण तोगड़िया की तरह पीछे वाले दरवाजे से भाग कर खुद के अपहरण की कहानी गढ़नी पड़ेगी।

किसान आंदोलन ने आग में घी का काम कर दिया। पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर राजस्थान के कई इलाकों में शाखाओं में लाठियां लहराने वाले गायब हो गए। आरएसएस के कार्यालयों पर ताले लटकने शुरू हो गए हैं।

पांचवें साल में जब स्वर्ण जयंती धूमधाम से मनाने का स्वर्णिम अवसर आ रहा हो और उसके पहले इस तरह के हालात हो जाये तो हिन्दू थक ही जाता है। वैसे भी हिन्दू 95 साल का बुजुर्ग है और बेऔलाद है। कब तक भेड़, बकरियों, बंदरों के बच्चों को पकड़-पकड़ कर हिन्दू बनाने की फर्जी फैक्ट्री चलाते रहे।

मुंशी प्रेमचंद की “पंच-परमेश्वर” कहानी में अलगू चौधरी के बैलों की कहानी पढ़ी ही होगी। समझू साहू ने उस बैल का उपयोग तो बहुत लिया लेकिन चारे पानी का कोई ख्याल नहीं रखा। मरने के बाद अलगू चौधरी की तरह समझू साहू को गरियाते रहना। 95 साल में बेचारे हिन्दू का बैलों की तरह उपयोग लिया और दानापानी दिया नहीं।

इस महंगाई के जमाने मे 2-2 रुपये में ट्वीट/पोस्ट कर के गालियां तो खाते ही रहे लेकिन अब दूसरों की गाड़ियों से पेट्रोल चुराते अच्छा नहीं लगता इसलिए थक कर बैठ गया है।

जगा हुआ तो है लेकिन आंखों के आगे अंधेरा छाया हुआ है। मुझे तो इनके खुद के रोशन होने में ही संदेह है। 700 किसान महापंचायतों के बाद जिस तरह जाति विशेष के मंत्रियों, सांसदों, विधायकों को अपने समाज को जगाने के लिए भेजा है उसी तरह अपने विस्तारकों को जगाने के लिए प्रचारकों को भेज कर कोशिश कर लीजिए।

(मदन कोथुनियां स्वतंत्र पत्रकार हैं और आज कल जयपुर में रहते हैं।)

मदन कोथुनियां
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