मैं कमेटी नहीं, किसानों के साथ: भूपिंदर सिंह मान

“मैं पंजाब और किसानों के समर्थन में खड़ा हूँ” और किसानों के सेंटीमेंट को देखते हुए मैं खुद को कमेटी से अलग कर रहा हूँ।” यह कहते हुए वरिष्ठ किसान नेता भूपिंदर सिंह मान ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गयी कमेटी से खुद को अलग कर लिया है।

पंजाब के खन्ना में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके भारतीय किसान यूनियन नेता भूपिंदर सिंह मान ने खुद को कमेटी से अलग करने का ऐलान करते हुए कहा, “केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के मुद्दे पर किसानों से बात करने के लिए चार सदस्यीय कमेटी में शामिल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का आभार,  एक किसान और संगठन का नेता होने के नाते मैं किसानों की भावना जानता हूं। मैं अपने किसानों और पंजाब के प्रति वफादार हूं। इन के हितों से कभी कोई समझौता नहीं कर सकता। मैं इसके लिए कितने भी बड़े पद या सम्मान की बलि चढ़ा सकता हूं। मैं कोर्ट की ओर से दी गई जिम्मेदारी नहीं निभा सकता। मैं खुद को इस कमेटी से अलग करता हूं।

वहीं आल इंडिया किसान समन्वय समिति (AIKSCC) के सदस्य विनोद आनंद  ने मीडिया को बताया है कि कमेटी में सुप्रीम कोर्ट द्वारा रखे जाने के बाद भूपिंदर सिंह मान के परिवार को कनाडा से धमकियों वाले कॉल आ रहे हैं। उनकी ट्रॉलिंग की जा जाती रही है इसी वजह उन्होंने खुद को कमेटी से अलग किया है।

हालांकि भूपिंदर सिंह मान ने अपनी प्रतिक्रिया में ऐसी किसी भी बात का ज़िक्र नहीं किया है। उन्होंने कहा है कि मैं “किसानों के हितों से समझौता नहीं  करुंगा। मैं हमेशा किसानों के साथ खड़ा रहूंगा।”

बता दें कि 12 जनवरी को कुछ याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सीजेआई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों वाली बेंच ने कृषि क़ानून पर स्टे लगाते हुए चार सदस्यीय कमेटी गठित किया था। सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनाई गई इस कमेटी में भारतीय किसान यूनियन के भूपिंदर सिंह मान, शेतकारी संगठन के अनिल घनवंत, कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी और अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के प्रमोद के जोशी को शामिल किया गया था। इस कमेटी को किसान संगठनों से बात करके अपनी रिपोर्ट सीधे सुप्रीम कोर्ट को को सौंपना था। लेकिन आज भूपिंदर सिंह मान द्वारा खुद को कमेटी से अलग कर लिये जाने के बाद इस कमेटी का कोई मतलब नहीं रह गया है।

इससे पहले किसान यूनियनों द्वारा सिंघु बॉर्डर पर प्रेस कांफ्रेंस करके सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनायी गयी कमेटी को सरकार की शरारत और इसके सदस्यों के सरकार समर्थक होने का आरोप लगाते हुए कमेटी के सामने न पेश होने का ऐलान किया गया था।

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