बिहार भी बीजेपी के हवाले, आगे है कई खतरनाक ऑपरेशन!

नीतीश कुमार पिछले लगभग 20 साल से एक दिन भी बिना सत्ता के नहीं रहे।बीजेपी के साथ आज तीसरी बार नीतीश फिर से सत्तारूढ़ हुए। सीएम बने। सीएम तो रविवार की सुबह में महागठबंधन के थे। इसके बाद महागठबंधन के सीएम पद से उन्होंने राज्यपाल को इस्तीफा दिया और फिर अपने आवास पर लौट आये। आवास पर लौटते समय ही पत्रकारों ने उन्हें घेरा। सवाल किया लेकिन नीतीश के जवाब में कोई तर्क नहीं था। न कोई  पावर था और न ही कोई कॉन्फिडेंस। लग रहा था मानो वे जो भी कह रहे हैं, बनावटी है। दिखावटी है। सच से परे है।

यह भी दिखा कि वे बेबस और लाचार भी हैं। इस्तीफे के बाद जो उन्होंने कहा उसका लब्बोलुआब यही था कि महागठबंधन से लेकर इंडिया गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था। वे कुछ दबाव में थे इसलिए यह सब निर्णय लेना पड़ा। एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि आप पर विश्वास नहीं करने के आरोप लग रहे हैं तो वे झेंप गए। कुछ नहीं बोला और भाव भंगिमा बनाते रहे। सीएम नीतीश की यह भंगिमा बीजेपी को कैसी लगी होगी वह तो बीजेपी ही जाने लेकिन उनके बयान को जो देश वासी देख रहे होंगे उन्हें ज़रूर लग रहा होगा कि नीतीश कुमार कितने बदल गए हैं। थके और हारे से हो गए हैं। 

नीतीश जी इस्तीफे के बाद अपने आवास पर पहुंचे तो बीजेपी के नेताओं के साथ बैठक शुरू हो गई। खबर के मुताबिक पहले तो नीतीश कुमार ने बीजेपी से समर्थन की मांग की थी लेकिन जानकारी के मुताबिक नीतीश स्टैंड को देखते हुए बीजेपी ने ही उनसे कहा था कि पहले आप इस्तीफा दीजिए फिर आपके साथ सरकार बनाने की बात की जाएगी। वही हुआ भी। इस्तीफे के साथ ही बीजेपी की बैठक नीतीश के घर पर होने लगी। सब कुछ वहीं साफ़ हो गया। 

कौन सीएम बनेगा और कौन उप मुख्यमंत्री इसका भी ऐलान लगभग वहीं हो गया। जीतनराम की पार्टी को मनाया गया। उनकी शर्तों को स्वीकारा गया और फिर एनडीए के साथ सरकार बनाने की बात हुई और शाम को नीतीश फिर से बिहार के 9 वीं बार सीएम हुए। सुबह में महागठबंधन के सीएम थे और शाम को एनडीए के सीएम हो गए। राजनीति में इस खेल के लिए किसी नाम का भी ढूंढ पाना मुश्किल हो रहा है।

कोई इसे ‘आया राम-गया राम’ वाली राजनीति कह रहा है तो कोई पल्टू राम या फिर किसी और नाम से पुकार रहा है। अगर देश की जनता से लेकर राजनीतिबाज भी नीतीश के पलटी मार खेल पर लज्जित हो जाएं तो इस पर किसी को हैरान नहीं होना चाहिए। सच तो यही है कि पूरा देश राजनीति के इस चरित्र पर मौन है। वैसे लोग भी जो किसी भी पार्टी के समर्थक हैं वे भी आज यह कहने से पीछे नहीं हट रहे हैं कि इस तरह की राजनीति देश को शोभा नहीं देती। 

लालू यादव और महागठबंधन के लोग आगे क्या कुछ करेंगे यह तो समय ही बताएगा। और इसकी उम्मीद भी कम ही है कि विपक्ष अब कोई बड़ा खेल कर पाएगा क्योंकि जो खेल हो सकता है उसमें क़ाफी रिस्क है। फिर सामने लोकसभा चुनाव की दुंदुभि है। जानकारी मिल रही है कि लोकसभा चुनाव को साधने के लिए ही तो नीतीश और बीजेपी का मिलन हुआ है। लेकिन इस मिलन को विपक्ष कितना कमजोर कर पाता है यह देखने की बात होगी।

बीजेपी को लोकसभा चुनाव की चिंता है। अगले विधान सभा चुनाव में क्या होगा इस पर बीजेपी अभी चिंतन नहीं कर रही है। मोदी और शाह की नजर तो लोकसभा चुनाव पर है और अब उनकी चाहत है कि 2019 की तरह से वह बिहार की सभी सीटों को जीत जाएं। अब नीतीश और बीजेपी मिलकर क्या कुछ खेला करते हैं इसे देखने की बात है। 

एक जानकारी और भी सामने आ रही है कि बीजेपी और नीतीश मिलकर पहले लालू परिवार को कमजोर करेंगे। ईडी की फांस को तेज किया जाएगा और संभवतः गिरफ्तारी भी की जा सकती है। इसके साथ ही जिन राज्यों में विपक्षी नेताओं पर जांच चल रही है वहां से भी कई नेताओं की गिरफ्तारी की जा सकती है।

हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी किसी भी वक्त की जा सकती है क्योंकि हिंदी पट्टी में अब झारखंड ऐसा राज्य है जो बीजेपी के चंगुल से बाहर है। खबर मिल रही है कि नीतीश अब हेमंत के खिलाफ भी कोई काम कर सकते हैं। लेकिन जो सबसे बड़ी जानकारी मिल रही है वह यह है कि नीतीश और बीजेपी का साझा मिशन अब हेरल्ड मामले में सोनिया गांधी और राहुल गांधी को फांसने की है। 

बीजेपी की कोशिश है कि राहुल जब यात्रा से लौटें तो उनको गिरफ्तार कर लिया जाए। अब तो बिहार में भी यात्रा को लेकर कई तरह की खबर सामने आ रही है। पहले कहा जा रहा था कि 30 को राहुल की पूर्णिया सभा में नीतीश कुमार भी जायेंगे लेकिन अब जब सरकार ही बदल गई तब यह भी कहा जा रहा है कि नीतीश की सरकार राहुल की यात्रा को असम की तरह ही डिस्टर्ब कर सकती है। और यहां से राहुल की यात्रा निकल भी गई तो यूपी की योगी सरकार में राहुल की यात्रा कितनी दूर तक चलेगी कहना मुश्किल है। 

बीजेपी के लोग तो अब यह भी कह रहे हैं कि पिछले दो महीने से यह सब कहानी गढ़ी जा रही थी लेकिन सब कुछ शांत तरीके से चल रहा था। इस दौरान पीएम मोदी और शाह से भी नीतीश के बीच बातचीत हुई थी और सब कुछ तय हो गया था। तय होने के बाद ही जदयू की बैठक बुलाई गई। ललन सिंह को पद से हटाया गया और फिर इंडिया गठबंधन के संयोजक के पद को नीतीश ने ठुकरा दिया था।

यानी सब कुछ एक रणनीति के तहत किया जा रहा था और इसकी जानकारी जदयू के केवल चार नेताओं को ही थी। एक नेता थे संजय झा, दूसरे थे अशोक चौधरी, तीसरे थे वीके चौधरी और चौथे थे दिल्ली में एक संवैधानिक पद पर बैठे एक पत्रकार। उधर बीजेपी की तरफ से सभी खेल सुशील मोदी और बिहार के बीजेपी प्रभारी तावड़े कर रहे थे। खबर ये भी है कि अमित शाह इस खेल को अंजाम नहीं देना चाहते थे लेकिन, मोदी की इस खेल के लिए स्वीकृति थी। 

अब खबर मिल रही है कि नीतीश कुमार बीजेपी के साथ मिलकर फरवरी महीने में एक बड़े अभियान की शुरुआत कर सकते हैं। इस पहल में कई और विपक्षी नेताओं को एनडीए के साथ जोड़ने की बात है। जो दल अभी तक किसी भी गठबंधन में नहीं हैं उस पर बीजेपी और जदयू की नजर होगी।

नवीन पटनायक, जगन रेड्डी के साथ ही चंद्रबाबू नायडू और केसीआर को भी एनडीए में लाने की कोशिश की जानी है। अकाली दाल को बीजेपी के साथ जोड़ने की बात तो है ही और अंत में शिवसेना के साथ भी बातचीत की जा सकती है। नीतीश का यह प्लान अगर सफल होता है तो बीजेपी की राजनीति चरम पर पहुंच सकती है लेकिन बड़ा सवाल तो यही है कि क्या नीतीश का इकबाल अब बचा है जो कोई भी नेता उनकी बात को स्वीकार करेगा?

(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

अखिलेश अखिल
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