उत्तर प्रदेश: सिर चढ़कर बोलने लगी है बीजेपी की बौखलाहट

उप चुनावों के परिणामों, विशेषकर उत्तर भारत के राज्यों, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में भाजपा का सूपड़ा साफ होने के कारण भाजपा खब्तुलहवास हो गयी है। एक ओर जहां मोदी सरकार ने पेट्रोल पर पांच रुपये और डीजल पर दस रुपये की रियायत दी है वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में होली तक मुफ्त राशन की स्कीम जारी रखने का ऐलान भी किया गया है। यूपी में अगले साल चुनाव हैं और भाजपा की हालत बैड गवर्नेंस,आंतरिक कलह और प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह तथा यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के बीच चल रहे शह और मात के कारण पतली दिख रही है। इसमें भाजपा के कोर वोट बैंक ब्राह्मणों कि नाराजगी कोढ़ में खाज साबित हो रही है।

राजनीति के अंधे को भी दिखायी दे रहा है कि केंद्र की मोदी सरकार और भाजपा की चूलें चुनावी हार की आशंका से हिल गयी हैं। इसी बौखलाहट के नतीजे के रूप में पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी में कटौती को माना जा रहा है। लेकिन भाजपा को सबसे ज्यादा घबराहट उत्तर प्रदेश को लेकर है जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। जाहिर है पश्चिम बंगाल चुनावों में हार का जख्म अभी भरा भी नहीं था कि उपचुनावों ने उस जख्म पर नमक और मिर्च छिड़क दिया है।

केंद्र ने बुधवार को पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी घटाई तो आनन-फानन में बीजेपी शासित राज्यों ने वैट कटौती का ऐलान करना शुरू कर दिया। उधर, उत्तर प्रदेश सरकार ने गरीबों को दिए जाने वाले मुफ्त राशन को होली तक जारी रखने का ऐलान किया। यह वह समय है जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हो रहे होंगे। बुधवार को अयोध्या में लोगों को संबोधित करते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ऐलान किया कि केंद्र द्वारा गरीबों को मुफ्त राशन देने की योजना को होली तक बढ़ाया जा रहा है।

इस योजना को कोविड महामारी के दौरान शुरू किया गया था। पार्टी सूत्रों का कहना है कि यह एक सोचा-समझा रणनीतिक फैसला है और इसे विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए ही लिया गया है। योगी आदित्यनाथ ने अपनी घोषणा में कहा कि इस योजना में अब सिर्फ 35 किलो गेंहू-चावल ही नहीं मिलेगा, बल्कि दालें, तेल और नमक भी दिया जाएगा। इसके अलावा हर महीने चीनी भी दी जाएगी।

पिछले सप्ताह जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लखनऊ में कहा था कि मोदी जी के नेतृत्व में अगला जो लोकसभा चुनाव जीतना है 2024 में, उसकी नींव डालने का काम उत्तर प्रदेश का 2022 का विधानसभा (चुनाव) करने वाला है। यह मैं यूपी की जनता को बताने आया हूं कि मोदी जी को फिर से एक बार 24 में प्रधानमंत्री बनाना है तो 22 में एक बार फिर योगी जी को मुख्यमंत्री बनाना पड़ेगा। तब जाकर देश का विकास आगे बढ़ सकता है।

तेल पर एक्साइज ड्यूटी में कटौती के बावजूद उत्तर प्रदेश में चुनाव जीतना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा। किसानों के आंदोलन और लखीमपुर खीरी की घटना से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी को मैदान में उतरने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। पूरे उत्तर प्रदेश में ओम प्रकाश राजभर की पार्टी के सपा से गठबंधन के कारण भी भाजपा की चुनावी सम्भावनाएं धूमिल हुई हैं। राजभर की भारतीय समाज पार्टी पूर्वांचल में 30 से 35 सीटों पर हार जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पिछली बार राजभर के साथ होने का फायदा भाजपा को मिला था।

ब्राह्मणों में बहुत नाराजगी है। पिछले 3 दशकों से राजनीतिक पार्टियों के लिए ब्राह्मण समुदाय महज एक वोटबैंक बनकर रह गया है। नारायण दत्त तिवारी के बाद यूपी में कोई भी ब्राह्मण समुदाय से मुख्यमंत्री नहीं बन सका। सूबे में आजादी के बाद यूपी की सियासत में 1989 तक ब्राह्मण का वर्चस्व कायम रहा और 6 ब्राह्मण मुख्यमंत्री बने। इनमें गोविंद वल्लभ पंत, सुचेता कृपलानी, कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा, श्रीपति मिश्र और नारायण दत्त तिवारी शामिल थे। ये सभी कांग्रेस से थे। इनमें नारायण दत्त तिवारी तीन बार यूपी के सीएम रहे।

इस तरह करीब 23 साल तक प्रदेश की सत्ता की कमान ब्राह्मण समुदाय के हाथ में रही है। लेकिन मंडल और कमंडल की राजनीति ने उन्हें हाशिए पर धकेल किया। पिछले 3 दशकों से राजनीतिक पार्टियों के लिए ब्राह्मण समुदाय महज एक वोटबैंक बनकर रह गया है। हालांकि भाजपा में अटल विहारी वाजपेयी और मुरली मनोहर जोशी से लेकर कलराज मिश्रा जैसे ब्राह्मण नेता चेहरा हुआ करते थे, पर सूबे की सत्ता में कांग्रेस की तरह उनकी हनक नहीं रही।

1989 के बाद से कांग्रेस सत्ता में नहीं आई है, जबकि पिछले दिनों से सपा से लेकर बसपा और बीजेपी की कई बार सरकारें बनीं, लेकिन सूबे को ब्राह्मण मुख्यमंत्री नहीं मिला। इसके बावजूद 2017 के चुनाव में ब्राह्मणों ने बीजेपी का जमकर समर्थन किया, लेकिन इस समुदाय का मानना है कि बीजेपी सरकार में उन्हें वैसी तवज्जो नहीं मिली जैसी वो उम्मीद लगाए बैठे थे। साल 2017 में बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की तो राजपूत समुदाय से आने वाले योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने। यही वजह है कि योगी सरकार में राजपूत बनाम ब्राह्मण के विपक्ष के नैरेटिव के मद्देनजर ब्राह्मण वोटों का अपने पाले में जोड़ने के लिए बसपा से लेकर सपा और कांग्रेस तक सक्रिय हैं।

उत्तर प्रदेश में 10 से 12 फीसदी ब्राह्मण हैं। 2017 के चुनाव में बीजेपी के कुल 312 विधायकों में 58 ब्राह्मण समुदाय के प्रतिनिधि चुनकर आए थे। इसके बावजूद राज्य सरकार में ब्राह्मणों की हनक पहले की तरह नहीं दिखी। सूबे के 56 मंत्रियों के मंत्रिमंडल में 9 प्रतिनिधि ब्राह्मण समुदाय से हैं। इसके बावजूद योगी सरकार पर ब्राह्मण विरोधी होने का ठप्पा लगा हुआ है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

जेपी सिंह
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