बीजेपी ने ख़ुद बताया कि ख़तरे में हैं मोदी

चुनाव में तो सभी दल ये दावा करते ही हैं कि उनकी लहर चल रही है और विरोधी कहीं नहीं टिक रहे। मतगणना से ही ऐसे दावों की पोल खुलती है। तब पता चलता है कि किसके दावे हवा-हवाई निकले और कौन-कितना सच्चा साबित हुआ? लोकसभा चुनाव के नतीज़े 4 जून को आएंगे। उससे पहले चुनाव प्रचार के दावों को परखना ज़रूरी और बेहद रोचक है। फ़िलहाल, ख़ुद बीजेपी के ही आंकड़े बता रहे हैं कि मोदी जी ख़तरे में हैं।

चुनाव में भी राजनीतिक दलों की ताक़त के लिए उन्हें सकारात्मक अंक और कमज़ोरियों के लिए नकारात्मक अंक देकर उनका आंकलन किया जाता है। चुनाव भी एक प्रतियोगी परीक्षा है। प्रतियोगी परीक्षाओं की तरह चुनाव में भी निगेटिव मार्किंग होती है यानी ऋणात्मक अंक मिलते हैं। मसलन, ज़्यादातर प्रतियोगी परीक्षाओं में सही उत्तर के लिए प्रति सवाल तीन अंक मिलते हैं तो ग़लत उत्तर के लिए प्रति सवाल एक अंक घटाकर हासिल हुए प्राप्तांक की मेरिट लिस्ट बनती है।

नदारद है ‘मोदी की आंधी’

आइए जैसे परखें कि दस साल से सत्ता पर क़ाबिज नरेन्द्र मोदी का ‘अबकी बार 370 और 400 पार’ का दावा कितना व्यावहारिक और कितना हवा-हवाई है? 2019 में बीजेपी ने 302 सीटें मिलीं। तब उत्तर भारतीय राज्यों में इसने तक़रीबन शत-प्रतिशत सीटें जीतीं। लिहाज़ा, इस बार 370 का आंकड़ा छूने के लिए पार्टी को ऐसे अनेक राज्यों में ज़बरदस्त प्रदर्शन करना होगा, जहां पिछली बार ‘मोदी की आंधी’ बेअसर साबित हुई थी। फ़िलहाल, इस सवाल को अधर में छोड़ते हैं कि बीजेपी कहां नया विस्तार कर पाएगी और कहां नहीं?

अब बात बीजेपी के सकारात्मक और नकारात्मक अंकों की। जनसंघ के ज़माने से ही बीजेपी की सबसे बड़ी ताक़त ये रही है कि वो चुनाव बेहद दक्षता से लड़ते हैं। संघ के स्वयंसेवकों का समर्पित नेटवर्क इनका बूथ मैनेजमेंट करता है। अफ़वाह और झूठ फैलाने में इन्हें महारत हासिल है। कोई इनका मुक़ाबला नहीं कर सकता। ख़ुद मोदी जी भी इसी विरासत की अनुपम देन हैं। इन सकारात्मक अंकों के बाद अब रुख़ करते हैं-अब तक घोषित बीजेपी की दो लिस्ट की। इसमें 267 भाग्यशाली लोगों की लाटरी निकली है।

‘जीत की प्रत्याशा’ से खुली कलई

मोदी जी की नज़र में परिवारवाद और जातिवाद को धता बताकर 267 चेहरे ही ‘जीत की प्रत्याशा’ यानी Winnability Factor के पैमाने पर ख़रे उतरे हैं। सार्वभौमिक Winnability Factor का नकारात्मक अंक बेहद ख़तरनाक है। 267 में से 140 मौजूदा सांसदों को ही रिपीट होने का मौक़ा मिला है। इनका अनुपात 52.43 प्रतिशत है। 137 नये चेहरे हैं। इनके लिए 63 मौजूदा सांसदों का बलिदान हुआ। इस बलि का अनुपात क़रीब 24 प्रतिशत या एक-चौथाई है।

ज़ाहिर है, टिकट काटकर बीजेपी ने स्वीकार किया है कि उनके एक-चौथाई मौजूदा सांसद इस क़दर निकम्मे हैं कि वो मोदी जी के तिलिस्मी नेतृत्व, उनकी सरकार की अद्भुत उपलब्धियों, अजेय सांगठनिक क्षमता, अपार धन-बल और गोदी मीडिया के पूर्ण समर्थन के बावजूद ‘कमज़ोर’ विपक्ष को हराने में सक्षम नहीं हैं। लिहाज़ा, ‘दीवार पर लिखी इबारत को पढ़ने में माहिर’ बीजेपी नेतृत्व ने अपने एक-चौथाई मौजूदा सांसदों को घर बिठा दिया। इनमें बाग़ी बनने की क्षमता नहीं है।

47 प्रतिशत नये मुखौटे

63 सांसदों को मोदी जी भले ही तानाशाह लगें लेकिन पार्टी हित में उनका बलिदान हो चुका है। ये भी निर्विवाद है कि बड़े पैमाने पर मौजूदा विधायकों और सांसदों को पतंग की तरह उड़ा देने वाला मोदी जी का नुस्खा कई राज्यों में उपयोगी साबित हुआ है। लिहाज़ा, उन्हें पूरा हक़ है कि वो अपने आज़माये हुए नुस्ख़ों के आधार पर ‘अबकी बार 370 पार’ की बिसात बिछाएं। बहरहाल, अब 24 प्रतिशत निकम्मे सांसदों की जगह आपको 47 प्रतिशत नये और दक्ष चेहरे मोदी जी का मुखौटा बनकर जनता से वोट मांगते हुए दिखेंगे।

दूसरे शब्दों में कहें तो भले ही ‘370 और 400 पार’ का नगाड़ा बजा रहा हो, बीजेपी नेतृत्व ख़ुद को अजेय और चक्रवर्ती बता रहा हो लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त है कि 2019 में जीती गयी उसकी एक-चौथाई सीटों पर हालत इतनी पतली है कि वहां वो अपने 63 मौजूदा सांसदों को फिर से नहीं जीता सकती। इन्हीं बेचारों को पांच साल पहले मोदी जी बेहद पराक्रमी, होनहार और समर्पित कार्यकर्ता तथा उत्कृष्ट जन सेवक बता रहे थे। पिछली बार ये जिस ‘मोदी की आँधी’ में जीते थे वो जादू अब उड़न-छू हो चुका है।

सत्ता विरोधी लहर का असर

बेशक़, मोदी जी ने निकम्मे पुराने चेहरों पर दांव नहीं खेलने का सूझ-बूझ भरा क़दम उठाया है। उनके फ्रेश या नये चेहरे भी ‘भागते भूत की लंगोटी’ वाले ही हैं। इन्हें अब बीजेपी के 63 पुराने क़िलों में मोदी जी ने अपने नये मुखौटे की तरह पेश किया जाएगा। नये चेहरों की दक्षता और प्रतिभा नतीज़ों में दिखेगी।

मोदी जी भली-भाँति जानते हैं कि टिकट गंवाने वाले सांसद न तो पार्टी के नाम जीतने वाले हैं, ना उनके नाम पर और ना ही ख़ुद अपने बूते। उनके निर्वाचन क्षेत्रों में ‘मोदी की गारंटी’ वाले झांसों ने भी रंग नहीं दिखाया। इसीलिए 63 सीटों पर तो मोदी जी के ‘मन की बात’ इतनी ही होगी कि ‘भाइयों-बहनों, लीजिए मैंने अपनी ही पिछली और निकम्मी पसन्द को बदल दिया। किताब पर नयी ज़िल्द चढ़ा दी है। लिहाज़ा, अब इसे ही वोट दीजिए क्योंकि इसमें भी भीतर पहले की तरह सिर्फ़ मैं ही मैं हूँ। निखालिस मैं!’

Winnability Factor का दंश

अब ज़रा दूसरे आंकड़े की महिमा को परखा जाए। इसमें 52 प्रतिशत यानी 267 में से 140 सांसदों को ही रिपीट होने का मौक़ा दिया गया है। ये अनुपात भी बताता है कि रात के समय और बादलों में लड़ाकू विमान के छिपकर रडार से बोझल रहने का नया विज्ञान गढ़ने वाले विश्व गुरु भी स्वीकार कर चुके हैं कि दुनिया भर में फैली उनकी अतुलित लोकप्रियता के बावजूद उनके सिर्फ़ आधे या इसके ज़रा ज़्यादा या समझिए कि 52 प्रतिशत सांसदों के साथ ही अब Winnability Factor क़ायम है।

चुनाव में Winnability Factor को ही ब्रह्मास्त्र माना जाता है। ये सार्वभौमिक भी है। तभी तो सभी पार्टियां अनेकानेक आपराधिक मामलों से ओत-प्रोत लोगों को भी टिकट देने से गुरेज़ नहीं करती। ‘चाल-चरित्र-चेहरा’ की दुहाई देने वाली, ‘न खाऊंगा, ना खाने दूंगा’ का नारा बुलन्द करने वाली, विचारधारा से संचालित और ग़ैर-परिवारवादी, बीजेपी पर भी Winnability Factor का भूत सवार होना लाज़िमी है।

यही लाचारी चीख-चीखकर बता रही है कि कमज़ोर और बिखरे विपक्ष के सामने भी बीजेपी के पिछले उम्मीदवारों की जीत की प्रत्याशा महज 50 से 55 प्रतिशत ही है। दूसरे शब्दों में ये स्वीकारोक्ति है कि बाक़ी बची 137 सीटों पर उसके 45 से 50 प्रतिशत मौजूदा सांसद ‘हार की दहलीज़’ पर खड़े हैं। निश्चित रूप से मोदी जी को यक़ीन होगा कि 2024 में अखाड़े में उतारे गये उनके चहेते 137 नये चेहरे ‘हार की दहलीज़’ को ‘जीत का चौखट’ में बदल देंगे।

क्या सत्ता गंवा रहे हैं मोदी?

अब ज़रा सोचिए कि यदि इन 137 सीटों पर बह रही मोदी या सत्ता विरोधी लहर में विरोधियों ने बीजेपी को कड़ी डटकर दे दी तो क्या 137 में 100 सीटें गंवाने की नौबत नहीं आ जाएगी? यदि ये तर्क सही हैं तो 370 की तो छोड़िए, क्या मोदी जी सत्ता गंवाने वाले हैं? दूसरे शब्दों में कहें तो दो राउंड के टिकट वितरण तक क्या ख़ुद मोदी जी ये स्वीकार नहीं कर रहे कि 2019 में बीजेपी को मिली 302 सीटों में से 157 या 52 प्रतिशत ही फिर से उनके हाथ आ पाएंगी। बाक़ी 145 सीटों पर पार्टी की हालत डांवाडोल है या कहें कि ये 145 सीटें हाथ से फिसलने के कग़ार पर हैं।

पानी की तरह बहता पैसा

ये समझना भी बहुत ज़रूरी है कि ‘हार की दहलीज़’ पर खड़ी बीजेपी के 45% सांसदों की ही नहीं बल्कि 2019 में उन्हें जीताकर लाने वाले मोदी जी की भी लोकप्रियता में ज़मीनी स्तर पर उसी अनुपात में गिरावट ज़रूर आयी है। मोदी जी अपने विज्ञापनों और प्रचार पर पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं। ज़ाहिर है, यदि उनकी लोकप्रियता गिरी नहीं होती, उनके सांसदों ने अपने वोटर्स को और गोदी मीडिया ने केन्द्र सरकार की ‘चमत्कारिक’ योजनाओं और ‘युगान्तरकारी’ उपलब्धियों के बारे में विश्वसनीय प्रचार किया होता तो जनता भी मोदी जी के असंख्य दावों को सच्चा क्यों नहीं मानती।
‘विकसित भारत संकल्प यात्रा’ और ‘मोदी की गारंटी’ का ज़ुमला यदि परवान चढ़ रहा होता, यदि वाकई ‘इंडिया शाइनिंग’ हो रहा होता तो मोदी जी और उनके मौजूदा सांसद के अच्छे दिनों पर संकट के बादल क्यों गहराते! चुनाव से पहले पोल सर्वे भी झूठी तस्वीर दिखा रहे हैं। ये पेड सर्वे भला क्यों बताएंगे कि ‘400 पार’ का दावा सिर्फ़ माहौल बनाने के लिए है। वास्तव में मोदी जी गहरे संकट से जूझ रहे हैं। नयी सीटें जीतने की तो क्या कहें, उनके हाथ से मौजूदा 45% सीटें भी फिसलने वाली हैं।

‘मोदी है तो मुमकिन है’

मोदी जी के फ्रेश चेहरे महज लॉलीपॉप है। भले ही इनका नाता किसी परिवारवादी परम्परा से हो या जिसे मोदी जी ने ‘चीन और पाकिस्तान सरीखी दुश्मन’ पार्टियों से आयात किया हो और उसे ‘मोदी वाशिंग पाउडर’ से धो-पोंछकर ED, CBI, IT, NIA, PMLA आदि से सुरक्षित रखने का टीका लगाया गया हो। मोदी जी का दृढ़ विश्वास है कि उनके पोशाकों की तरह पार्टी बदलने वाले, बौद्धिक रूप से दिवालिया और अपंग दलबदलू नेताओं की शिखंडी जमात की बदौलत वो चुनावी मैराथन जीतकर दिखा देंगे। 400 पार का कीर्तिमान बनकर रहेगा क्योंकि चुनाव आयोग, उसका EVM तथा VVPAT ख़ुद मोदी जी की coding के मुताबिक़ चलता है। यही है- ‘मोदी है तो मुमकिन है’।

विषधर इलेक्टोरल बॉन्ड

‘ट्रेन में हाथ देखने का ढोंग करके सीट हथियाने वाले फ़रेबी’ को भी बेशक, जागते हुए सपने देखने का पूरा हक़ है। इस कला-कौशल को इलेक्टोरल बान्ड की तरह असंवैधानिक नहीं ठहराया जा सकता। अभी तो इलेक्टोरल बान्ड रूपी सांप ने बिल से ज़रा सा मुंह निकालकर सिर्फ़ फूंफकारा ही है। जब चुनावी मैदान में ये सांप पूरी तरह बाहर आकर मोदी जी को जहां-तहां डसने लगेगा तब वो कैसी मूर्छा में नज़र आएंगे! इसकी कल्पना करके ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि क्या भारत फिर से 2014 वाले अजन्मे और अन्धे युग में लौट जाएगा!

काल का पहिया क्या घूमकर उसी जगह पर आने वाला है? लोकसभा की 543 सीटों में से बीजेपी ने अभी 267 पर टिकट घोषित किये हैं। 276 सीटों की घोषणा बाकी है। अभी तक 49 प्रतिशत टिकट तय हुए हैं। 51 प्रतिशत बाक़ी हैं। इस 51 प्रतिशत में बीजेपी के अलावा एनडीए की भी सीटें होंगी। ‘400 पार’ में मोदी जी ने एनडीए के पराक्रमी महारथियों के लिए सिर्फ़ 30 सीटों का टारगेट रखा है।

क्या इन्हीं 30 सीटों तक नीतीश कुमार, एकनाथ शिन्दे, अजीत पवार, चन्द्रबाबू नायडू, नवीन पटनायक, सुखबीर सिंह बादल, चिराग़ पासवान, उपेन्द्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी जैसे शूरमाओं की शक्ति सीमित रहने वाली है? क्या इन नेताओं और इनकी पार्टियों को मोदी जी की विश्वस्तरीय लोकप्रियता से कोई ख़ास फ़ायदा नहीं होने वाला!

(मुकेश कुमार सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

मुकेश कुमार सिंह
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