सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में 172 स्वतंत्र निदेशकों में 86 भाजपाई

सेंट्रल पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग के 172 स्वतंत्र निदेशकों में 86 भाजपाई हैं। ये खुलासा हुआ है अंग्रेजी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस द्वारा PSUs के मामले में एक आरटीआई के जरिये जुटाये गये डेटा से। 

सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम (PSUs) मामले में इंडियन एक्सप्रेस ने एक आरटीआई के तहत जो डेटा जुटाया है उसमें बहुत ही शर्मनाक खुलासा हुआ है। आरटीआई से प्राप्त डेटा के मुताबिक सेंट्रल पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग के 172 स्वतंत्र निदेशकों में 86 भाजपाई हैं। इंडियन एक्सप्रेस ने 146 पीएसयू की पड़ताल की है, जिसमें पता चला कि 98 पीएसयू में 172 स्वतंत्र निदेशक हैं। इनमें 67 के बोर्ड पर 86 बीजेपी के नेता बतौर निदेशक काबिज हैं।

एक्सप्रेस ने ब्लू चिप पीएसयू समेत महारत्नों ( 25 हजार करोड़ से ज्यादा सालाना टर्न ओवर वाले पीएसयू) के स्वतंत्र निदेशकों से बात की। ऐसे 86 लोगों से संपर्क साधा गया, जिनमें से 81 ने अपने विचार साझा किए। इनमें मनीष कपूर यूपी बीजेपी के डिप्टी ट्रेजरार हैं। राजेश शर्मा बीजेपी सीए सेल के एक्स नेशनल कन्वीनर हैं। राज कमल बिंदल 1996 से बीजेपी से जुड़े हैं। ये सभी भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स के स्वतंत्र निदेशकों की फेहरिस्त में शामिल हैं।

वहीं इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के स्वतंत्र निदेशकों में राजेंद्र अरलेकर गोवा असेंबली के पूर्व स्पीकर हैं। लता उसेंदी छत्तीसगढ़ बीजेपी की उपाध्यक्ष हैं। वो एमएलए और मंत्री भी रह चुकी हैं। स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया में एन शंकरप्पा कर्नाटक बीजेपी के स्टेट एग्जीक्यूटिव मेंबर हैं। हिंदुस्तान पेट्रोलियम में जी राजेंद्रन पिल्लई केरल बीजेपी के स्टेट एग्जीक्यूटिव मेंबर हैं।

वहीं गेल में बंतो देवी कटारिया बतौर स्वतंत्र निदेशक काबिज हैं। वो केंद्रीय मंत्री रतन लाल कटारिया की पत्नी हैं। कटारिया हरियाणा के अंबाला से सांसद चुने गए थे। पॉवर ग्रिड कॉरपोरेशन में एआर महालक्ष्मी काबिज हैं। वो तमिलनाडु बीजेपी की उपाध्यक्ष हैं। कुल मिलाकर पूरी लिस्ट देखें तो बीजेपी के तमाम उन नेताओं को सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम में निदेशक का पद तोहफे में दिया गया है जो चुनाव में फेल हो गए या फिर जिनकी किसी बड़े नेता के साथ नजदीकी है।

गौरतलब है कि पीएम मोदी ने भी कहा है कि कई सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम घाटे में हैं। बीमार पीएसयू को वित्‍तीय मदद देने से अर्थव्‍यवस्‍था पर बोझ बढ़ता है। पुरानी परंपरा के आधार पर पीएसयू को बनाए रखना उचित नहीं है। सरकार के पास कई ऐसी संपत्तियां हैं, जिसका पूर्ण रूप से उपयोग नहीं हुआ है या बेकार पड़ी हुई हैं। 100 परिसंपत्तियों को बाजार में चढ़ाकर 2.5 लाख करोड़ रुपये जुटाए जाएंगे।

प्रधानमंत्री मोदी का कहना है कि निजीकरण, संपत्ति के मौद्रीकरण से जो पैसा आएगा उसे जनता पर खर्च किया जाएगा। लेकिन सरकार के पास इस बात का जवाब नहीं है कि इनकी हालत सुधारने के लिए सही कदम क्यों नहीं उठाए जा रहे हैं। स्वतंत्र निदेशकों का चयन जिस तरह से किया जा रहा है उसे देखकर तो बिल्कुल भी नहीं लगता कि सरकार इनको लेकर गंभीर है।

इन सबके बीच मार्केट रेगुलेटर सिक्युरिटीज और एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया आज इस बात पर चर्चा करने जा रहा है कि स्वतंत्र निदेशकों के मामले में किस तरह से सुधार किए जा सकते हैं। उनकी नियुक्ति, बोर्ड में उनके रोल को लेकर मंथन किया जाएगा। दो साल पहले केंद्र के थिंक टैंक आईआईसीए तीखा वार करते हुए कहा था कि पीएसयू के स्वतंत्र निदेशकों का चयन कहने को तो निष्पक्ष होता है पर ऐसा है नहीं। एक्सपर्ट के चयन के बजाए सरकार रिटायर नौकरशाहों और राजनीतिक व्यक्तियों को तरजीह देती है।

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