चक्रव्यूह में फंसीं ममता: कल आ सकता है कलकत्ता हाईकोर्ट का भवानीपुर पर फैसला

पूरे देश की निगाहें कलकत्ता हाईकोर्ट पर टिकी हैं। भवानीपुर विधानसभा सीट के लिए निर्वाचन आयोग द्वारा जारी विज्ञप्ति को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है। इस सीट से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी विधानसभा चुनाव लड़ रही हैं। हाई कोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस राजर्षि भारद्वाज की डिवीजन बेंच में सुनवाई पूरी हो चुकी है। फैसला आरक्षित कर लिया गया है।

यहां गौरतलब है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी विधायक नहीं हैं। विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम से शुभेंदु अधिकारी ने उन्हें पराजित कर दिया था। इसलिए उन्हें छह माह के अंदर, यानी नवंबर के पहले सप्ताह तक, मुख्यमंत्री बने रहने के लिए विधायक का चुनाव जीत कर आना है। इसीलिए विधानसभा चुनाव में भवानीपुर विधानसभा सीट से चुनाव जीतने वाले शोभन देव चट्टोपाध्याय ने इस्तीफा दे कर यह सीट खाली कर दिया है। अब मुख्यमंत्री इस विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रही हैं और उनका मुख्य मुकाबला भाजपा उम्मीदवार प्रियंका टिबरेवाल से है। इस विधानसभा क्षेत्र के चुनाव परिणाम को लेकर किसी के मन में कोई आशंका नहीं है। पर इस बाबत दायर जनहित याचिका ममता बनर्जी के लिए गले की फांस बन गई है। अब हाईकोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच क्या फैसला सुनाएगी इस पर पूरे देश की निगाहें लगी हैं।

यह कयास लगाया जा रहा है कि हाई कोर्ट का फैसला मंगलवार तक आ जाएगा। यहां याद दिला दें कि भवानीपुर विधानसभा का चुनाव 30 सितंबर को होना है। आइए पहले इस बात पर गौर करते हैं कि किन कानूनी बिंदुओं पर यह जनहित याचिका दायर की गई है। इसमें निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव के लिए जारी विज्ञप्ति के पैरा 6 और 7 को आधार बनाया गया है।निर्वाचन आयोग द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि जिन राज्यों में उपचुनाव कराए जाने हैं उनके मुख्य सचिवों से एक सितंबर को इस पर चर्चा हुई थी। इसके पैरा छह में कहा गया है कि उड़ीसा के मुख्य सचिव ने कहा कि राज्य में कोविड नियंत्रण में है और उपचुनाव कराए जा सकते हैं।

पर पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव कई कदम आगे बढ़ गए। उन्होंने निर्वाचन आयोग को भेजे गए पत्र में लिखा था कि कोविड परिस्थिति नियंत्रण में है। जिन विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव कराए जाने हैं वहां बाढ़ का कोई असर नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने संविधान की धारा 164 (4) का उल्लेख करते हुए कहा था कि अगर कोई मंत्री छह माह तक विधानसभा का सदस्य नहीं रहता है तो वह मंत्री नहीं रह पाएगा और इस तरह एक संवैधानिक संकट पैदा हो जाएगा। इसलिए अगर तत्काल चुनाव नहीं कराया जाता है तो सत्ता के शीर्ष पर एक खालीपन पैदा हो जाएगा। इसके साथ ही उन्होंने लिखा था कि प्रशासनिक आवश्यकता, जनहित और सत्ता के शीर्ष पर एक खालीपन की स्थिति नहीं बने इस लिहाज से भवानीपुर विधानसभा का चुनाव कराया जाना बहुत आवश्यक है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया था कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहती हैं। निर्वाचन आयोग द्वारा जारी विज्ञप्ति के पैरा सात में कहा गया है कि संवैधानिक आवश्यकता और राज्य सरकार के विशेष अनुरोध के मद्देनजर भवानीपुर विधानसभा का चुनाव कराए जाने का फैसला लिया गया है।

मुख्य सचिव के इस अनुरोध को मुद्दा बनाते हुए हाईकोर्ट के एक एडवोकेट सायन बनर्जी ने जनहित याचिका दायर कर दी है। इसमें सवाल उठाया गया है कि क्या मुख्य सचिव किसी विधानसभा क्षेत्र का चुनाव कराने के लिए निर्वाचन आयोग से सिफारिश कर सकते हैं। क्या मुख्य सचिव यह कह सकते हैं कि किस विधानसभा क्षेत्र से कौन चुनाव लड़ेगा। यह फैसला तो राजनीतिक दल करते हैं। इस जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान निर्वाचन आयोग के एडवोकेट सिद्धांत कुमार से जस्टिस बिंदल का यही सवाल था कि क्या निर्वाचन आयोग किसी एक विधानसभा क्षेत्र के लिए मुख्य सचिव के अनुरोध के आधार पर फैसला ले सकता है। क्या किसी राज्य का मुख्य सचिव किसी विधानसभा क्षेत्र का चुनाव कराने के लिए पत्र लिख सकता है जहां से मुख्यमंत्री ने चुनाव लड़ने की इच्छा जताई है।

एक मुख्य सचिव राज्य की मुख्यमंत्री की इच्छा को जताते हुए क्या इस तरह का पत्र लिख सकता है। मुख्य सचिव कैसे कह सकते हैं कि अगर मुख्यमंत्री अपने पद पर नहीं बनी रहीं तो संवैधानिक संकट खड़ा हो जाएगा। नेता का चयन तो सत्तारूढ़ दल का आंतरिक मामला है। इसके जवाब में निर्वाचन आयोग के एडवोकेट का कहना था कि तृणमूल कांग्रेस का एक प्रतिनिधिमंडल भी निर्वाचन आयोग से मिलने गया था। इसके जवाब में जस्टिस बिंदल ने सवाल किया कि निर्वाचन आयोग द्वारा जारी विज्ञप्ति में तो कहा गया है कि मुख्य सचिव के अनुरोध पर चुनाव कराने का फैसला लिया गया है। जस्टिस बिंदल ने कहा कि बहस पूरी हो चुकी है और मुख्य सचिव की इस भूमिका की बाबत आप कोई जवाब नहीं दे पाए हैं। इसके बाद पिछले शुक्रवार को उन्होंने फैसला आरक्षित कर लिया।

इस जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान इंदिरा गांधी के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा के फैसले का भी जिक्र किया गया। आइए जानते हैं जस्टिस सिन्हा का फैसला क्या था। जस्टिस सिन्हा ने दो मानदंडों पर इंदिरा गांधी को दोषी ठहराया था। पहला पीएमओ के स्पेशल अफसर यशपाल कपूर का इस्तेमाल चुनावी प्रचार में किया गया था। यशपाल कपूर ने 7 जनवरी 1971 से रायबरेली के चुनाव प्रचार की कमान संभाल ली थी लेकिन उन्होंने इस्तीफा 13 जनवरी को दिया था। दूसरा दोष यह था कि इंदिरा गांधी ने चुनावी प्रचार के लिए सरकारी कर्मचारियों से मंच बनवाया था।

इस मामले का एक और दिलचस्प पहलू भी है। जस्टिस बिंदल की डिवीजन बेंच क्या फैसला सुनाएगी यह किसी को नहीं मालूम। एडवोकेट सायन बनर्जी ने जनहित याचिका निर्वाचन आयोग के खिलाफ दायर की है। यह सच है कि इस मामले में किसी भी फैसले का असर सीधा ममता बनर्जी पर पड़ेगा, पर इस मामले में उन्हें पार्टी नहीं बनाया गया है। अगर फैसला उनके खिलाफ जाता है तो वे सुप्रीम कोर्ट में अपील भी नहीं कर पाएंगी। निर्वाचन आयोग को ही सुप्रीम कोर्ट में जाना पड़ेगा। अगर फैसला विपरीत गया तो क्या निर्वाचन आयोग सुप्रीम कोर्ट में जाएगा। यह लाख टके का सवाल है।
(कोलकाता से वरिष्ठ पत्रकार जेके सिंह की रिपोर्ट।)

जेके सिंह
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