तमिलनाडु में जातीय उत्पीड़न: दलित महिला को ‘सीएम नाश्ता योजना’ में रसोइया रखने पर हंगामा

नई दिल्ली/ पुदुक्कोट्टई। उत्तर भारत और हिंदी भाषी राज्यों में जातीय उत्पीड़न, भेद-भाव और छुआ-छूत की घटनाएं अक्सर होती रहती हैं। अखबारों में सवर्णों और पुरुषों द्वारा दलितों और महिलाओं के साथ मारपीट और तमाम तरह की उत्पीड़न की खबरें भरी होती हैं। आमतौर पर यह माना जाता रहा है कि दक्षिण भारत में दलितों-महिलाओं के साथ जातीय और लैंगिक भेदभाव नहीं होता है। क्योंकि दक्षिण में सत्ता प्रतिष्ठान और नौकरशाही में पिछड़ी जातियों का कब्जा है। वहां सवर्ण और ब्राह्मणवादी तत्व हासिए पर हैं। लेकिन यह सोचना की दक्षिण भारत में दलितों का उत्पीड़न नहीं होता है, यह गलतफहमी होगी। दक्षिण भारत में भी दलितों के साथ उत्तर भारत की तरह ही उत्पीड़न होने की घटनाएं सामने आती रहती है।

दक्षिण भारत का तमिलनाडु राज्य ब्राह्मणवाद के विरोध में बहुत पहले से मुखर रहा है। तमिलनाडु की वर्तमान सरकार भी ब्राह्मणवाद की विरोधी है। राज्य के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन हैं। लेकिन साल भर के अंदर वहां दलितों के साथ घटित तीन घटनाओं ने यह साबित कर दिया कि दक्षिण के राज्य भी जातीय उत्पीड़न पर अभी तक अंकुश नहीं लगा पाए हैं। यह बात अलग है कि दक्षिण के राज्यों में दलितों का उत्पीड़न करने वाले सवर्ण नहीं बल्कि पिछड़े समुदाय के लोग हैं।

उत्तर भारत के राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार में यह देखा जाता है कि सरकारी विद्यालयों में चलने वाले मिड-डे- मील में दलित रसोइया के हाथ का बना खाने से इनकार करने की घटनाएं सामने आती रही हैं। लेकिन अब तमिलनाडु में भी यह देखने के मिला है।

सूचना के मुताबिक तमिलनाडु के सरकारी स्कूलों में ‘मिड-डे-मील’ की तरह ही ‘मुख्यमंत्री नाश्ता योजना’ चल रही है। लेकिन विद्यालय में दलित रसोइया को नाश्ता बनाने की अनुमति नहीं मिली। राज्य में यह घटना वेंगैवायल घटना (दलितों को पानी की आपूर्ति करने वाले ओवरहेड टैंक के अंदर मानव मल पाए जाने की घटना) के एक साल बाद आया है।

पुदुक्कोट्टई जिले के अन्नावासल टाउन के सरकारी प्राथमिक विद्यालय में ‘मुख्यमंत्री नाश्ता योजना’ के लिए खाना बनाने वाली एक दलित महिला राजरथिनम ने आरोप लगाया है कि जातिगत भेदभाव के कारण उसे अब नाश्ता बनाने से रोक दिया गया है। यानि अब उसे काम से हटा दिया गया है, महिला ने बताया कि उसी स्कूल में उसकी बेटी पढ़ती है।

दलित महिला को नाश्ता बनाने से रोकने के लिए पहले स्कूल के कर्मचारियों ने गुप्त रूप से बैठक की। स्कूली बच्चों के एक दिन स्कूल आने से मना किया गया और दो रसोइया भी नहीं आए। घटना के बारे में राजरथिनम ने बताया कि “तीन महीने पहले, मैं अन्नवासल टाउन प्राइमरी स्कूल में काम करने के लिए रसोइया चुनी गई।मेरे साथ दो और लोग भी चुने गए। एक दिन, मैं स्कूल गयी और अधिकांश छात्र स्कूल नहीं आए, जिनमें मेरे दो साथी रसोइया भी शामिल थे, जो हिंदू जाति के थे। वे सभी मेरे खाना पकाने का बहिष्कार कर रहे थे क्योंकि मैं दलित समुदाय से हूं।”

इस कथित बहिष्कार के बारे में पूछे जाने पर राज्य के संबंधित विभाग के अधिकारियों ने कहा कि यह रसोइयों के प्रशिक्षण का आखिरी दिन था और उनके द्वारा उन्हें पद भी नहीं सौंपा गया था। हालांकि, एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, राजरथिनम को एक फील्ड अधिकारी द्वारा सूची में जोड़ा गया था।

राजरथिनम ने कहा कि “मेरी बेटी स्कूल में एकमात्र एससी छात्रा है। वेंगैवायल घटना के बाद, उसे वहां सभी लोगों द्वारा बहिष्कृत किया जा रहा है और इससे वह बहुत असुरक्षित महसूस कर रही है।”

वहीं इस घटना के सामने आने पर जिला कलेक्टर आईएस मर्सी राम्या ने मीडिया से कहा कि “वेंगैवायल निवासियों के साथ कुछ राजनीतिक संगठनों ने हमसे संपर्क किया और आरोप लगाया कि एक अनुसूचित जाति की महिला को काम से गलत तरीके से निकाला गया है। महलिर थित्तम के अधिकारियों ने कहा कि वह महिला कभी भी प्रशिक्षण में पूरी तरह शामिल नहीं हुईं और पद के लिए तय मानदंडों को भी पूरा नहीं करतीं। हमने कहा था कि जिन लोगों को लगता है कि महिला के साथ गलत हुआ है, वह उनका पक्ष रखने आ सकते हैं, और महिला का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं, लेकिन अभी तक कोई नहीं आया।’

वेंगैवायल मामले में एक साल बाद भी कोई गिरफ्तारी नहीं

पुदुकोट्टई में वेंगैवायल के अनुसूचित जाति के निवासियों को पानी की आपूर्ति करने वाले ओवरहेड टैंक के अंदर मानव मल पाए जाने के एक साल बीत चुके हैं, फिर भी जांच में कोई गिरफ्तारी या महत्वपूर्ण सफलता नहीं मिली है। इस घटना ने प्रभावित दलित गांव और आसपास के हिंदू जाति के ग्रामीणों को असमंजस की स्थिति में छोड़ दिया है।

गौरतलब है कि वेंगैवायल घटना 26 दिसंबर, 2022 को सामने आई थी। शुरुआत में पुदुकोट्टई जिला पुलिस द्वारा जांच की गई और बाद में मामले को इस साल जनवरी में सीबी-सीआईडी को स्थानांतरित कर दी गई। फिलहाल पानी की टंकी का उपयोग नहीं किया जा रहा है क्योंकि यह मामले के साक्ष्य का हिस्सा है। उस दिन से गांव में लगातार पुलिस की तैनाती है।

एरायूर गांव के एक किसान एम कथिरेसन ने कहा, “हमारी एकमात्र मांग यह है कि चाहे कोई भी हो, उसे गिरफ्तार किया जाना चाहिए और न्याय के कटघरे में लाया जाना चाहिए। पुलिस, सीबी-सीआईडी और मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त सेवानिवृत्त न्यायाधीश एम सत्यनारायणन के नेतृत्व में एक आयोग की जांच के बावजूद, किसी को कुछ भी पता नहीं चल सका। हमें संदेह है कि सरकार जांच के नतीजों में बाधा डाल रही है।”

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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