मणिपुर में चरमपंथी समूहों का इतिहास

मणिपुर में हिंसा बेकाबू हो गयी है और गृहमंत्री अमित शाह इस समय सूबे के दौरे पर हैं। उन्होंने मैतेयी और कूकी समुदाय के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की है। लेकिन अभी तक उसका कोई असर जमीन पर होता हुआ नहीं दिख रहा है। इसके पहले मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने कहा था कि 40 कूकी आतंकियों को मार गिराया गया है। लेकिन कूकी नेशनल ऑर्गेनाइजेशन (केएनओ) ने इसका खंडन किया है। क्या है सूबे में चरमपंथी समूहों का इतिहास आइये इसको जानने की कोशिश करते हैं।
विवाद का इतिहास
भारतीय इतिहास के में चंद सबसे पुराने हिंसात्मक विवादों में मणिपुर का नाम आता है। 1950 के दौर में सामने आया नगा नेशनल मूवमेंट और स्वतंत्र नगालिज्म की लड़ाई भी मणिपुर के एक हिस्से से जुड़ती है। अभी जबकि यह आंदोलन आगे बढ़ रहा था उसी समय मणिपुर में मैतेयी समुदाय के लोगों ने मणिपुरी राजा महाराजा बोधिचंद्र और भारत के बीच होने वाले विलय के समझौते का विरोध करना शुरू कर दिया। 1964 में मैतेयी यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) का निर्माण हुआ जिसकी प्रमुख मांग भारत से अलग होना था। इसी के साथ ढेर सारे चरमपंथी मैतेयी समूह और घाटी के दूसरे अतिवादी समूह सामने आए।

इसमें पीपुल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी आफ कांग्लेई पाक (पीआरईपीएके) और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है। इन सब को हथियार मुहैया कराने और ट्रेनिंग देने का काम चीन करता था। वैली ग्रुप्स के दो उद्देश्य थे। पहला भारत से स्वतंत्रता और दूसरा नगा विद्रोही समूहों को पीछे धकेलना (क्योंकि उनसे भी उनकी लड़ाई चलती थी)। इसी नगा हमले के खिलाफ कूकी-जोमी समूह बाकायदा गोलबंद होकर उसका मुकाबला किए। 1993 में एनएससीएन-आईएम द्वारा किए गए कूकियों के एक नरसंहार के चलते हजारों कूकी बेघर हो गए थे।

इस घटना के बाद कूकी-जोमी समूह हथियारबंद हो गया। ठीक यही समय था जब मैतेयी और मैतेई पंगल्स (मुस्लिम) के बीच भी उसी तरह से झगड़े हो रहे थे। इस घटना ने इस्लामिक समूह पीपुल्स यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट के गठन का रास्ता साफ कर दिया। तमाम दूसरे संगठनों की तरह इलाके में ये संगठन भी अब सक्रिय नहीं हैं।

सरकार की प्रतिक्रिया
नगाओं की अलगाववादी गतिविधियों को देखते हुए भारत सरकार ने 1958 में आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट को लागू कर दिया था। शुरुआत में इसे पूरे नगालैंड और मणिपुर के कुछ हिस्सों में लगाया गया था। वैली के आंदोलन के बढ़ने के साथ ही इसे पूरे राज्य में विस्तारित कर दिया गया। 1980 के दशक में मणिपुर को अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया गया। ढेर सारी त्रिपक्षीय शांति वार्ताओं के बाद केंद्र, राज्य और कूकी-जोमी 2008 में सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन (एसओओ) के समझौते पहुंचे।

जैसे-जैसे लॉ एंड ऑर्डर की स्थितियां ठीक हुईं विभिन्न इलाकों से अफ्सा हटता गया। इसके साथ ही हम लोगों को यह भी जानना जरूरी है कि वैली के चरमपंथी समूह कभी भी केंद्र के साथ किसी समझौते पर नहीं पहुंचे और न ही उन्होंने किसी शांति वार्ता में हिस्सा लिया। इस तरह से तकनीकी रूप से वे अभी भी सक्रिय हैं।

कूकी-जोमी समूह
कूकी-जोमी आंदोलन सबसे पहले दूसरे समूहों के हमलों से अपना बचाव करने के लिए रक्षात्मक संगठन के तौर पर सामने आया। लेकिन बहुत जल्द ही यह कूकीलैंड की एक मांग में तब्दील हो गया। इसे उन्होंने एक ऐसे काल्पनिक देश के तौर पर पेश किया जिसके दायरे में भारत, म्यानमार और बांग्लादेश के बाशिंदे इलाके आते हैं। हालांकि कुछ समय बाद यह सामान्य तौर पर महज एक राज्य की मांग तक सीमित होकर रह गया। मणिपुर के चुरचंदपुर जिले में सबसे ज्यादा अतिवादी समूह हैं। इसमें एसओओ के तहत 24 ऑपरेशनल ग्रुप हैं।

लेकिन भारत सरकार द्वारा चिन्हित किए गए कैंप चुरचंदपुर के साथ कनकोपकी, चंदेल और टेंगनौपाल जिले में स्थित हैं। इन कैंपों में दोहरे ताले वाले आर्म्स सेफ्टी रूम हैं जिनकी एक चाभी कैंप लीडर के पास होती है जबकि दूसरी भारतीय सुरक्षा बलों के पास। कैंप के भीतर हथियारबंद कैडर होते हैं। इलाके के प्राथमिक समूहों में केएनओ और उसकी हथियारबंद इकाई, कूकी रिवोल्यूशनरी आर्मी, जोमी रियूनीफिकेशन आर्गेनाइजेशन, जोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी शामिल हैं।

प्रभुत्वशाली समूह
यूएनएलएफ को सारे मैतेयी अतिवादी समूहों की मां के तौर पर देखा जाता है। हाल के दिनों तक यह सबसे शक्तिशाली समूह था। ऐसा माना जाता है कि यूएनएलएफ ने अपना प्राथमिक प्रशिक्षण एनएससीएन-आईएम से हासिल किया है। इसके अलावा समय के साथ केसीपी और केवाईकेएल जैसे शक्तिशाली समूह भी सामने आए हैं। अब वे बर्मा के इलाके में स्थित कैंपों के बाहर काम करते हैं।

अतिवादी समूह और राजनीति
वैली समूह और उनमें भी खास कर यूएनएलफ समय-समय पर हड़ताल करते रहते हैं। मैतेई ग्रुप वैली के मोरल कोड को निर्धारित करने का काम करता है। इसके तहत वह कभी हिंदी फिल्मों और संगीत पर पाबंदी लगाता है। तो कभी भारतीय पहनावे पर रोक और कभी मैतेई फिल्मों में क्या दिखाया जा सकता है इसका रेगुलेशन करने का काम करता है। इसके साथ ही अल्कोहल पर पाबंदी आदि जैसी गतिविधियां भी उसी के हिस्से हैं। समूह जनता पर ‘टैक्स’ भी लगाने का काम करते हैं।

लेकिन जहां आजकल ये समूह सबसे ज्यादा दिखते हैं वह है राजनीतिक जीवन। विद्रोही समूहों के समर्थन के साथ सभी दलों के प्रत्याशी चुनावों में खड़े होते हैं। और समूह मतदाताओं को इस बात का निर्देश देते हैं कि वो किसको जिताएं। पिछले विधानसभा चुनाव के पहले एनपीपी और कूकी पीपुल्स एलायंस जैसे दल चुरचंदपुर में अपना आधार बनाना शुरू कर दिए थे। केएनओ अध्यक्ष द्वारा बीजेपी को वोट देने के निर्देश का नतीजा था कि मतदाता पार्टी के पक्ष में मुड़ गए।
(इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित लेख का हिन्दी अनुवाद।)

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