न्यायपालिका संविधान और सिर्फ संविधान के प्रति उत्तरदायी है: चीफ जस्टिस

चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कहा है कि भारत में सत्ता में मौजूद कोई भी दल यह मानता है कि सरकार का हर कार्य न्यायिक मंजूरी पाने का हकदार है, जबकि विपक्षी दलों को यह उम्मीद होती है कि न्यायपालिका उनके राजनीतिक रुख और उद्देश्यों को आगे बढ़ाएगी लेकिन न्यायपालिका संविधान और सिर्फ संविधान के प्रति उत्तरदायी है। उन्होंने इस बात को लेकर निराशा जताई कि आजादी के 75 साल बाद भी लोगों ने संविधान द्वारा प्रत्येक संस्था को दी गई भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को नहीं समझा है।

(नोट-लाख टके का सवाल है कि इसके तहत कुछ भी किया जा रहा है या कोई फैसला किया जा रहा है उससे कोई अनुचित लाभ किसी भी पक्ष को नहीं मिलना चाहिए और हर बार यह लाभ सत्ता पक्ष को मिलेगा तो सवाल तो उठेंगे ।मसलन महाराष्ट्र के मुद्दे पर जो फैसला आया है उससे उद्धव सरकार गिर गयी क्योंकि उसके पास बहुमत नहीं था पर जो सरकार बनी शिंदे-भाजपा की उसकी संवैधानिकता से जुड़े मुद्दों पर 11 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है जिससे शिंदे और भाजपा को अनुचित लाभ मिल रहा है-जेपी)  

उन्होंने कहा कि इस तरह की विचार प्रक्रिया संविधान और लोकतंत्र की समझ की कमी से पैदा होती है। यह आम जनता के बीच प्रचारित अज्ञानता है जो ऐसी ताकतों की सहायता के लिए आ रही है जिनका उद्देश्य एकमात्र स्वतंत्र अंग यानी न्यायपालिका को खत्म करना है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि न्यायपालिका अकेले संविधान के प्रति जवाबदेह है। हमें भारत में संवैधानिक संस्कृति को बढ़ावा देने की जरूरत है ।

चीफ जस्टिस रमना ने कहा कि चूंकि हम इस साल आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं और देश के गणतंत्र हुए 72 साल हो गए हैं, ऐसे में कुछ अफसोस के साथ मैं यहां कहना चाहूंगा कि हमने संविधान द्वारा प्रत्येक संस्था को प्रदत्त भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को अब तक नहीं समझा है। उन्होंने एसोसिएशन ऑफ इंडियन अमेरिकंस इन सैन फ्रांसिस्को, यूएसए द्वारा आयोजित एक अभिनंदन समारोह में कहा कि सत्ता में मौजूद पार्टी यह मानती है कि सरकार का हर कार्य न्यायिक मंजूरी का हकदार है। वहीं, विपक्षी दलों को उम्मीद होती है कि न्यायपालिका उनके राजनीतिक रुख और उद्देश्यों को आगे बढ़ाएगी।

चीफ जस्टिस ने कहा कि यह त्रुटिपूर्ण सोच संविधान के बारे में और लोकतांत्रिक संस्थाओं के कामकाज के बारे में लोगों की उपयुक्त समझ के अभाव के चलते बनी है। उन्होंने कहा कि आम लोगों के बीच इस अज्ञानता को जोर-शोर से बढ़ावा दिये जाने से इन ताकतों को बल मिलता है, जिनका लक्ष्य एकमात्र स्वतंत्र संस्था, जो न्यायपालिका है, की आलोचना करना है। मुझे यह स्पष्ट करने दीजिए कि हम संविधान और सिर्फ संविधान के प्रति उत्तरदायी हैं।

चीफ जस्टिस ने कहा कि संविधान में प्रदत्त नियंत्रण और संतुलन की व्यवस्था को लागू करने के लिए, ‘हमें भारत में संवैधानिक संस्कृति को बढ़ावा देने की जरूरत है। हमें व्यक्तियों और संस्थाओं की भूमिकाओं के बारे में जागरूकता फैलाने की जरूरत है। लोकतंत्र भागीदारी करने की चीज है। उन्होंने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन को उद्धृत किया और कहा कि भारत के संविधान के तहत यह जनता है, जिसे प्रत्येक पांच साल पर शासकों पर निर्णय सुनाने की जिम्मेदारी दी गई है।

एनवी रमना ने कहा कि भारत के लोगों ने अब तक बखूबी उल्लेखनीय कार्य किया है। लोगों के सामूहिक विवेक के बारे में संदेह करने की हमारे पास कोई वजह नहीं होनी चाहिए। शहरी, शिक्षित और अमीर मतदाताओं की तुलना में ग्रामीण भारत में मतदाता यह जिम्मेदारी निभाने में अधिक सक्रिय हैं।’ उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका अपनी विविधता के लिए जाने जाते हैं, जिसका सम्मान करने और विश्व में हर जगह आगे बढ़ाने की जरूरत है।

उन्होंने प्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुए कहा कि ऐसा सिर्फ इसलिए है कि अमेरिका विविधता का सम्मान करता है, इसी कारण आप सब इस देश में पहुंच सके हैं और अपनी कड़ी मेहनत तथा असाधारण कौशल से एक पहचान बनाई है। कृपया याद रखें। यह अमेरिकी समाज की सहिष्णुता और समावेशी प्रकृति है, जो विश्व भर से मेधावी लोगों को आकर्षित करने में सक्षम है, जो बदले में इसकी (अमेरिका की) संवृद्धि में योगदान दे रहे हैं। चीफ जस्टिस ने कहा कि विविध पृष्ठभूमि के योग्य लोगों का सम्मान करना व्यवस्था में समाज के सभी तबके के विश्वास को कायम रखने के लिए जरूरी है।

चीफ जस्टिस ने कहा कि समावेशिता का यह सिद्धांत सार्वभौमिक है। भारत सहित विश्व में हर जगह इसका सम्मान करने की जरूरत है। समावेशिता समाज में एकता को मजबूत करता है, जो शांति और प्रगति के लिए जरूरी है। हमें खुद को एकजुट करने वाले मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है, ना कि हमें बांटने वालों पर। 21वीं सदी में हम तुच्छ, संकीर्ण और विभाजनकारी मुद्दों को मानव और सामाजिक संबंधों पर हावी नहीं होने दे सकते। हमें मानव विकास पर ध्यान केंद्रित रखने के लिए सभी विभाजनकारी मुद्दों से ऊपर उठना होगा। एक गैर-समावेशी रुख आपदा को न्योता देगा। ’

चीफ जस्टिस ने कहा कि वे भले ही करोड़पति-अरबपति बन गये हों लेकिन धन का सुख भोगने के लिए उन्हें अपने आस-पास शांति चाहिए होगी। उन्होंने कहा कि आपके माता-पिता के लिए भी घर पर (स्वदेश में) शांतिपूर्ण समाज रहना चाहिए, जो नफरत और हिंसा से मुक्त हो। यदि आप स्वदेश में अपने परिवार और समाज की भलाई का ध्यान नहीं रख सकते हैं तो यहां आपकी धन दौलत और ‘स्टेटस’ का क्या फायदा? आपको अपने तरीके से अपने समाज में बेहतर योगदान करना होगा। असल में सम्मान और आदर मायने रखता है, जो आप स्वेदश में दिला सकते हैं। यह आपकी सफलता की असली परीक्षा है।

गौरतलब है कि महाराष्ट्र में चल रहे घटनाक्रम ने एक बार फिर देश के सामने उस वास्तविकता को सामने ला दिया है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी गैर-सैद्धांतिक दलबदल की राजनीतिक बुराई के रूप में वर्णित किया है। लेकिन सबसे बड़ी विडंबना यह है कि सुप्रीम कोर्ट के 27 जून के आदेश में शिवसेना में असंतुष्टों की याचिकाओं पर असंतुष्ट विधायकों को अनुचित लाभ मिला है। न्यायालय ने उन्हें नियमों के शासनादेश की तुलना में उत्तर प्रस्तुत करने के लिए अधिक समय दिया है। यह आदेश कुछ राजनीतिक घटनाक्रमों को गति देने जा रहा है जो बड़े पैमाने पर पुनर्जीवित होंगे जिसे उच्चतम न्यायालय ने राजनीतिक बुराई के रूप में वर्णित किया है। इसे रोकने के लिए ही 1985 में दलबदल विरोधी कानून बनाया गया था।

महाराष्ट्र में राजनीतिक घटनाक्रम परेशान करने वाले सवाल उठाते हैं कि कैसे राजनीतिक वर्ग दल-बदल विरोधी कानून को कमजोर कर रहा है, जिसे भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा कुर्सी के लालच और मौद्रिक प्रलोभन से प्रेरित गैर-सैद्धांतिक दलबदल की विधायी रूप से कथित राजनीतिक बुराई के खिलाफ संवैधानिक सुधार” के रूप में वर्णित किया गया था। उच्चतम न्यायालय ने नागरिकों का ध्यान गैर सैद्धांतिक दलबदल द्वारा लोकतंत्र के विनाश के खतरे की ओर आकृष्ट किया है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जेपी सिंह
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