चीन ने देप्सांग में किया 5 पैट्रोल प्वाइंट को ब्लॉक

नई दिल्ली। राज्यसभा में गुरुवार को रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास की स्थितियों पर भाषण देते हुए कहा कि “पैट्रोलिंग पैटर्न परंपरागत है और पहले से परिभाषित है…..धरती पर कोई ऐसी ताकत नहीं है जो पैट्रोलिंग से रोक दे।” और “पैट्रोलिंग पैटर्न में कोई बदलाव भी नहीं होने जा रहा है।”

लेकिन जमीन पर स्थिति खास कर उत्तरी लद्दाख के देप्सांग प्लेन में बहुत ही अलग है। क्योंकि पैंगांग त्सो के किनारे जहां भारतीय सैनिकों को एलएसी पर स्थित फिंगर 4 से लेकर फिंगर 8 तक नहीं जाने दिया जा रहा है, मई में गतिरोध शुरू होने से तकरीबन एक महीने पहले चीनी सैनिकों ने देप्सांग प्लेन में पांच परंपरागत पैट्रोलिंग प्वाइंटों तक भारतीय पहुंच को रोक दिया था।

इस बात की पुष्टि करते हुए सरकार के एक उच्च पदस्थ सूत्र ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि चीनियों ने इस साल के मार्च-अप्रैल में पीपी 10, 11, 11A, 12 और 13 को ब्लॉक कर दिया है।

सामरिक सब सेक्टर नार्थ रोड या दबरुक श्योक दौलत बेग ओल्डी (डीएसडीबीओ) के पूर्व में स्थित ये पांचों पीपी एलएसी के बिल्कुल करीब हैं लेकिन खुद एलएसी पर नहीं हैं। संक्षेप में कहें तो वे भारतीय क्षेत्र के तौर पर मार्क की गयी लाइन के भीतर स्थित हैं। हालांकि जिन क्षेत्रों में भारतीय सेना की पहुंच ब्लॉक किया गया है सरकारी सूत्र ने उस इलाके के बारे में बहुत विस्तार से नहीं बताया। चीनी स्टडी ग्रुप के एक पूर्व सदस्य ने इस इलाके के क्षेत्रफल को तकरीबन 50 वर्ग किमी के आस-पास बताया। यह सरकार की मुख्य सलाहकार बॉडी है जो इन पेट्रोलिंग प्वाइंट के लोकेशन को तय करती है। उन्होंने बताया कि इलाके के ‘टैक्टिकल और सामरिक महत्व’ को देखते हुए ‘यह एक वस्तुगत बदलाव’ है।

ये सभी पीपी बॉटिलनेक के पूर्व में स्थित हैं। यह एक चट्टानी हिस्सा है जो देप्सांग प्लेन के पार के हिस्से को जोड़ने का काम करता है। यह बर्ट्स से 7 किमी दूर है। आपको बता दें कि बर्ट्स डीएसडीबीओ रोड पर स्थित है और यहां भारतीय सेना का एक बेस है।

बर्ट्स से पूर्व की ओर जाने वाला रास्ता बॉटिलनेक पर पहुंचकर दो हिस्सों में बंट जाता है। इसी वजह से इसे वाई जंक्शन भी बोला जाता है। उत्तर का रास्ता राकी नाला होते हुए पीपी 10 तक जाता है। जबकि दक्षिण-पूर्व का रास्ता जीवन नाला होते हुए पीपी 13 तक जाता है। दक्षिण की ओर पैट्रोलिंग रूट पर चलते हुए पीपी 10 से लेकर पीपी 13 तक बने अर्धचंद्राकार की शक्ल में पीपी 11, 11A और 12 पड़ते हैं।

इन पीपी तक पहुंच न होने का मतलब है कि चीनी सैनिक भारतीयों को वहां पहुंचने से रोक रहे हैं। और उस इलाके पर अपना नियंत्रण स्थापित कर रहे हैं भारत के मुताबिक जो उसके एलएसी की तरफ है।

परिभाषा के मुताबिक एलएसी वह लाइन है जो भारत के नियंत्रण के तहत आने वाले क्षेत्र को दर्शाती है। पीपी का मतलब वहां पहुंचकर यह बताने के लिए है कि इन प्वाइंटों के बीच के इलाके और एलएसी तक जाया जा सकता है।

बॉटिलनेक तक भारतीय सैनिकों की पहुंच को रोकना और परंपरागत पैट्रोलिंग प्वाइंट रूट तक उनको जाने न देने की दिशा में पीएलए ने न केवल एलएसी बल्कि यहां तक कि पीपी को भी पार किया होगा।

भारतीय सूत्रों के मुताबिक चीनी सैनिकों ने अभी तक पीपी को ठिकाना नहीं बनाया हुआ है। लेकिन वे आते हैं और भारतीय सैनिकों के वहां जाने पर उन्हें रोक देते हैं। सूत्र का कहना है कि भारतीय सैनिक अगर चाहते हैं तो वो पैट्रोलिंग प्वाइंट तक जा सकते हैं लेकिन इसका मतलब होगा एक और झड़प।

लेकिन उस सेक्टर में काम कर चुके एक पूर्व आर्मी कमांडर ने बताया कि चीनी सेना के लिए यह संभव नहीं है कि वह बॉटिलनेक पर भारतीय सेना को रोक दे जब तक कि वे पूरे सर्विलांस सिस्टम के साथ वाई-जंक्शन के करीब अपना स्थाई ठिकाना न बना लें।

सेना की बोलचाल की भाषा में एलएसी के भीतर पैट्रोलिंग प्वाइंट और उसमें मिलने वाले परंपरागत रास्ते पैट्रोलिंग की सीमा के तौर पर जाने जाते हैं। देप्सांग में 5 पैट्रोलिंग प्वाइंट्स और उनमें मिलने वाली पैट्रोल लाइनें पैट्रोलिंग लिमिट के दायरे में आती हैं। कुछ आर्मी अफसर इन्हें एलएसी के भीतर एलएसी कह कर बुलाते हैं।

पूर्व कमांडर ने कहा कि पैट्रोलिंग की सीमा को ही वास्तविक एलएसी के तौर पर देखा जाता है क्योंकि सैनिकों को उनके आगे जाने की मनाही है।

लेकिन ऐसे लोग जो भारत-चीन मुद्दों से अच्छे से परिचित हैं और पीपीज को भी जानते हैं और उन्हें एलएसी के भीतर क्यों स्थापित किया गया यह भी समझते हैं। ये पैट्रोलिंग की लिमिट के लिए नहीं थे बल्कि पैट्रोलिंग की लाइन थे। इलाके की स्थितियों को देखते हुए वहां ढेर सारे पैट्रोलिंग रूट उन्हीं प्वाइंटों के बीच हो सकते थे। जो ग्राउंड पर रहने वाले कमांडरों द्वारा तय किया जाना था।

पीपी को 1975 में बने चीनी स्टडी समूह द्वारा 1970 के दशक में स्थापित किया गया था। इस स्टडी ग्रुप में गृह, रक्षा, विदेश मंत्रालय और खुफिया एजेंसियों के अधिकारी होते हैं। और इनका सेना और आईटीबीपी से हमेशा संपर्क रहता है। भारत के आधिकारिक तौर पर 1993 में एलएसी को स्वीकार करने से पहले 1970 के दशक में पैट्रोलिंग प्वाइंट को शुरू कर दिया गया था।

पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन ने अपनी किताब “च्वाइसेज: इनसाइड द मेकिंग ऑफ इंडियाज फॉरेन पॉलिसी” में बताया है कि “सीमा के संदर्भ में भारत को ज्यादा बेहतर सूचनाएं उपलब्ध रहने के आधार पर 1976 में राजनीतिक मामलों की कैबिनेट कमेटी ने विदेश सचिव के तहत चीनी स्टडी ग्रुप की स्थापना की। जिससे वह पैट्रोलिंग लिमिट में बदलाव, बातचीत के नियमों और चीन की सीमा पर भारतीय मौजूदगी के पैटर्न को निर्देशित कर सके।”

उस दौर में संसाधनों की सीमाओं के चलते पैट्रोल प्वाइंट की उपयोगिता का मतलब था कि कम से कम इंसानों और सामानों का इस्तेमाल करना क्योंकि 3488 किमी लंबी एलएसी पर प्रत्येक इंच पर सैनिकों से लेकर सामानों की तैनाती असंभव थी। 

जैसे-जैसे संसाधनों में वृद्धि हुई भारत के लाभ के हिसाब से समय-समय पर पैट्रोलिंग प्वाइंट में भी बदलाव किया गया। ज्यादातर स्थानों पर पीपी या तो एलएसी पर स्थित हैं या फिर उसके बहुत करीब। देप्सांग एक ऐसा इलाका है जहां पीपी एलएसी के काफी भीतर है।

एक पूर्व अधिकारी का कहना है कि देप्सांग में भी 70 के दशक के बाद कई बार पीपीज में बदलाव किया गया और प्रत्येक बार एलएसी की तरफ आगे बढ़ा गया।

जहां तक एलओपी (लिमिट्स ऑफ पैट्रोलिंग/लाइन) और एलएसी के बीच के इलाके की बात है तो उसका यह मतलब नहीं था कि उन्हें छोड़ दिया गया है। इसकी बजाय इन इलाकों में संसाधनों को विकसित करने के विचार के पीछे पैट्रोलिंग को बढ़ाना था और फिर उसे एलएसी तक ले जाना था।

इस सप्ताह के शुरू में एक सरकारी सूत्र ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि भारत 10-15 सालों तक एलओपी के आगे के इलाके तक पहुंच रखता था। लेकिन अब तकरीबन 972 वर्ग किमी इलाका उसकी पहुंच से दूर हो गया है। लेकिन दूसरों का कहना है कि बहुत पहले ही भारत की इन इलाकों तक पहुंच खत्म हो गयी थी। क्योंकि सैनिक केवल पैट्रोलिंग प्वाइंट और लाइन को ही फालो करते थे।  

पूर्व आर्मी कमांडर ने सुझाव दिया था कि भारत जहां तक अपने दावे को स्थापित कर सकता है उस इलाके में ये पैट्रोलिंग प्वाइंट सबसे व्यवहारिक मूल्यांकन साबित हो सकते हैं।

लद्दाख की रक्षा के लिहाज से देप्सांग पर नियंत्रण बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हाल में पूरा हुए डीएसडीबीओ रोड के लिहाज पर स्वच्छंद आवाजाही के लिहाज से जरूरी है। यह सभी मौसम में चलने वाली सड़क है और लेह से दौलत बेग ओल्डी के सबसे आखिरी पोस्ट एसएसएन तक जाती है और काराकोरम दर्रे के बेस के पास स्थित है जो चीन के जिंजियांग आटोनॉमस इलाके को लद्दाख से अलग करती है।

भारत के पक्ष वाले एलएसी के भीतर चीनी सैनिकों की मौजूदगी डीएसडीबीओ रोड  और उसके पश्चिम के इलाकों के लिए खतरा साबित हो सकती है। अपनी तरफ की एलएसी पर चीनियों ने तिब्बत से जिंगजियांग तक जाने वाला जी 219 हाईवे बना रखा है जो अक्साई चिन होकर जाता है। तिब्बत और जिंगजियांग भी विवादित क्षेत्र के तौर पर जाने जाते हैं। और चीन के लिए अक्सर परेशानी का सबब बनते हैं। वे भारत के डीएसडीबीओ रोड और दौलत बेग ओल्डी हवाई पट्टी को फिर से शुरू करने को जी 219 के लिए सीधे खतरा मानते हैं।

देप्सांग प्लेन तुलनात्मक रूप से समतल है और लद्दाख पर सीधे सैन्य हमले के लिए लांचपैड के तौर पर काम कर सकता है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक पीएलए ने अपने एलएसी क्षेत्र में दो ब्रिगेड सैनिकों का जमावड़ा कर रखा है। भारत ने भी एक ब्रिगेड से ज्यादा की यहां जुटान कर रखी है।

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