एक ही घटना की कई एजेंसियों के जरिये जांच से चीफ जस्टिस असहमत, कहा- अम्ब्रेला संस्थान की जरूरत

किसी भी भी घटना की पहले सीबीआई जाँच या एनआईए जाँच फिर ईडी ,उसके बाद आयकर फिर किसी सरकारी एजेंसी से जाँच कराकर किसी को लम्बे समय से उत्पीड़ित करते रहने की वर्तमान प्रवृत्ति पर देश के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कड़ा एतराज जताया है और कहा है कि इन दिनों एक ही घटना की कई एजेंसियों द्वारा जांच की जाती है, जिससे अक्सर सबूत कमजोर पड़ जाते हैं, बयानबाजी में विरोधाभास, बेगुनाहों को लंबे समय तक जेल में रहना पड़ता है। चीफ जस्टिस रमना ने कहा कि एक ऐसे संस्थान की तत्काल आवश्यकता है, जो सीबीआई, एसएफआईओ, ईडी जैसी विभिन्न एजेंसियों को एक छत के नीचे ला सके। उन्होंने सुझाव दिया कि एक बार एक घटना की सूचना मिलने के बाद, यह संस्थान तय करेगा कि किस विशेष विंग को जांच करनी चाहिए। चीफ जस्टिस ने कहा कि यह जाँच एजेंसियों को उत्पीड़न के साधन के रूप में दोषी ठहराए जाने से भी बचाएगा।

चीफ जस्टिस रमना ने कहा कि एक ऐसे संस्थान की तत्काल आवश्यकता है, जो सीबीआई, एसएफआईओ, ईडी जैसी विभिन्न एजेंसियों को एक छत के नीचे लाया जा सके। इस निकाय को एक कानून के तहत बनाया जाना आवश्यक है। स्पष्ट रूप से इसकी शक्तियों , कार्य और अधिकार क्षेत्र को परिभाषित करना आवश्यक है। चीफ जस्टिस ने कहा कि हमारी जांच एजेंसियां अभी भी एक सामान्य कानून द्वारा निर्देशित नहीं हैं। 

सीबीआई, एसएफआईओ, ईडी जैसी जांच एजेंसियों के लिए एक कॉमन संस्थान के निर्माण की तत्काल आवश्यकता है। इस निकाय को एक क़ानून के तहत आने की आवश्यकता है और इसे विधायी निरीक्षण के तहत होना चाहिए। इसका नेतृत्व सीबीआई निदेशक के रूप में नियुक्त व्यक्ति द्वारा किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस तरह का एक छाता संगठन कार्यवाही की बहुलता को समाप्त कर देगा। यह जाँच एजेंसियों को उत्पीड़न के साधन के रूप में दोषी ठहराए जाने से भी बचाएगा।

चीफ जस्टिस रमना ने शुक्रवार को सीबीआई और पुलिस को लेकर खरी-खरी बात कही। उन्होंने कहा कि सीबीआई की विश्वसनीयता पर कुछ वर्षों के दौरान आंच आई है। वहीं पुलिस के संबंध में कहा कि भ्रष्टाचार के कारण इसकी छवि प्रभावित हुई है और लोग पुलिस के पास जाने से कतराने लगे हैं। चीफ जस्टिस  सीबीआई के 19वें डीपी कोहली मेमोरियल लेक्चर में “लोकतंत्र: भूमिका और जांच एजेंसियों की जिम्मेदारियां” पर बोल रहे थे।

चीफ जस्टिस ने कहा कि सीबीआई की विश्वसनीयता समय बीतने के साथ सार्वजनिक जांच के दायरे में आ गई है, क्योंकि इसके कार्यों और निष्क्रियता ने कुछ मामलों में सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने विभिन्न जांच एजेंसियों को एक छत के नीचे लाने के लिए एक स्वतंत्र जांच संस्था बनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, जब सीबीआई की बात आती है, तो अपने शुरुआती दौर में इस पर जनता का अत्यधिक विश्वास था। वास्तव में न्यायपालिका सीबीआई को जांच सौंपने के अनुरोधों से भर जाती थी, क्योंकि यह निष्पक्षता और स्वतंत्रता का प्रतीक थी।

जस्टिस रमना ने कहा, जब भी नागरिकों ने अपनी राज्य पुलिस के कौशल और निष्पक्षता पर संदेह किया, उन्होंने सीबीआई से जांच की मांग की, क्योंकि वे न्याय चाहते थे। लेकिन समय बीतने के साथ अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों की तरह सीबीआई भी गहरी सार्वजनिक जांच के दायरे में आ गई है। इसके कार्यों और निष्क्रियता ने कुछ मामलों में इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि विभिन्न एजेंसियों जैसे सीबीआई, एसएफआईओ, ईडी, आदि को एक ही छत के नीचे लाने के लिए एक स्वतंत्र संस्थान के गठन की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि इस संगठन के प्रमुख को विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ प्रतिनिधि द्वारा सहायता प्रदान की जा सकती है। यह संगठन कार्यवाही की बहुलता को समाप्त कर देगा। इन दिनों एक ही मामले की कई एजेंसियों द्वारा जांच की जाती है, जिससे अक्सर सबूत कमजोर पड़ जाते हैं, बयानों में विरोधाभास, बेगुनाही साबित करने में लंबा समय लगता है। यह संस्थानों को उत्पीड़न के हथियार के रूप में आरोपित होने से भी बचाएगा।

जस्टिस रमना ने कहा कि लोग निराशा के समय पुलिस से संपर्क करने से हिचकिचाते हैं क्योंकि भ्रष्टाचार, ज्यादतियों, निष्पक्षता की कमी और राजनीतिक वर्ग के साथ घनिष्ठता के कारण इसकी छवि धूमिल हो रही है। लोग निराशा के समय पुलिस से संपर्क करने से हिचकिचाते हैं। भ्रष्टाचार, पुलिस ज्यादतियों, निष्पक्षता की कमी और राजनीतिक वर्ग के साथ घनिष्ठता के आरोपों से पुलिस संस्था की छवि खेदजनक रूप से धूमिल होती है । अक्सर पुलिस अधिकारी हमसे शिकायत करते हैं कि शासन में बदलाव के बाद उन्हें परेशान किया जा रहा है। जब आप सत्ता से प्यार करने लग जाते हैं तो आपको परिणाम भी भुगतने होते हैं।

जस्टिस रमना ने कहा कि अक्सर सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाएं मान्यता और प्रशंसा की उम्मीद में इस प्रणाली में प्रवेश करती हैं। लेकिन, अगर संक्रमण का खतरा बड़ा हो जाता है, तो ईमानदार अधिकारियों को अपनी शपथ के साथ डटे रहना मुश्किल लगता है। सच्चाई यह है कि अन्य संस्थाएं कितनी भी कमजोर और असहयोगी क्यों न हों, यदि आप सभी अपनी नैतिकता के साथ खड़े हों और सत्यनिष्ठा के साथ खड़े हों, तो कुछ भी आपके कर्तव्य के रास्ते में नहीं आ सकता। वास्तव में सभी संस्थानों के लिए यही सच है। यहीं पर नेतृत्व की भूमिका आती है। संस्था उतनी ही अच्छी या उतनी ही बुरी होती है, जितना उसका नेतृत्व। उन्होंने कहा कि कुछ ईमानदार अधिकारी व्यवस्था के भीतर क्रांति ला सकते हैं। हम या तो प्रवाह के साथ जा सकते हैं या हम एक आदर्श बन सकते हैं। चुनाव हमारा है।

यह रेखांकित करते हुए कि लोकतंत्र भारत जैसे देश के लिए सबसे उपयुक्त है, चीफ जस्टिस  रमना ने कहा कि तानाशाही शासन के माध्यम से देश की समृद्ध विविधता को कायम नहीं रखा जा सकता है। लोकतंत्र के साथ हमारे अब तक के अनुभव को देखते हुए यह संदेह से परे साबित होता है कि लोकतंत्र हमारे जैसे बहुलवादी समाज के लिए सबसे उपयुक्त है।उन्होंने कहा कि तानाशाही शासन के माध्यम से हमारी समृद्ध विविधता को कायम नहीं रखा जा सकता है। लोकतंत्र के माध्यम से ही हमारी समृद्ध संस्कृति, विरासत, विविधता और बहुलवाद को कायम रखा और मजबूत किया जा सकता है। लोकतंत्र को मजबूत करने में हमारा निहित स्वार्थ है, क्योंकि हम अनिवार्य रूप से जीने के लोकतांत्रिक तरीके में विश्वास करते हैं। हम भारतीय अपनी स्वतंत्रता से प्यार करते हैं। जब उनसे आजादी छीनने की कोशिश की गई तो हमारे सतर्क नागरिकों ने निरंकुश लोगों से सत्ता वापस लेने में संकोच नहीं किया।

चीफ जस्टिस रमना ने कहा कि सीबीआई की विश्वसनीयता पर अक्सर सवाल उठाए गए हैं। अब उसकी साख पर सवाल है। केंद्रीय एजेंसी के एक समारोह में उन्होंने यह सुझाव दिया कि लोगों का विश्वास हासिल करना समय की मांग है और इसके लिए पहला कदम पॉलिटिकल और एग्‍जीक्‍यूटिव नेक्‍सस को तोड़ना होगा। जस्टिस रमना ने बताया कि भारत में पुलिस प्रणाली ब्रिटिश काल से कैसे विकसित हुई। मुख्य न्यायाधीश रमना ने कहा कि भ्रष्टाचार आदि के आरोपों से पुलिस की छवि धूमिल होती है। 

अक्सर पुलिस अधिकारी यह कहते हुए हमारे पास आते हैं कि उन्हें सत्ता में बदलाव के बाद परेशान किया जा रहा है। समय के साथ राजनीतिक लोग बदल जाएंगे, लेकिन आप स्थायी हैं। इस संदर्भ में, चीफ जस्टिस ने स्वीकार किया कि पुलिस के विपरीत, जांच एजेंसियों को संवैधानिक समर्थन नहीं होने का नुकसान होता है। उन्होंने कहा कि पुलिस प्रणाली को इसकी वैधता संविधान से मिलती है। दुर्भाग्य से जांच एजेंसियों को अभी भी कानून द्वारा निर्देशित होने का लाभ नहीं है।

चीफ जस्टिस  रमना ने सीबीआई को एजेंसी की निष्पक्षता को लेकर एक बड़ा संदेश दिया है। उन्होंने कहा है कि समय के साथ राजनीतिक कार्यकारिणी बदल जाएगी, लेकिन आप एक संस्था के रूप में स्थायी हैं। चीफ जस्टिस का सीबीआई के लिए यह संदेश काफी अहम इसलिए है कि इस केंद्रीय एजेंसी पर राजनीतिक इस्तेमाल के आरोप लगते रहे हैं। हाल में तो ये आरोप और भी ज़्यादा लग रहे हैं। विपक्षी दलों के नेता आरोप लगाते रहे हैं कि राजनीतिक बदले की भावना से सीबीआई का ग़लत इस्तेमाल किया जा रहा है। वैसे, यह वही एजेंसी है जिसके बारे में 2013 में सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि सीबीआई पिंजरे में बंद ऐसा तोता बन गई है जो अपने मालिक की बोली बोलता है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जेपी सिंह
Published by
जेपी सिंह