बिहार में सांप्रदायिकता की नहीं गल रही दाल! लेकिन योगी हैं कि मानने को तैयार नहीं

पटना। बिहार विधान सभा चुनाव अब दूसरे चरण के मतदान की तरफ बढ़ चला है। मुख्यतया एनडीए व महागठबंधन के बीच छिड़े चुनावी समर में फायर ब्रांड नेताओं के दौरे व उनकी जुबानी जंग से गुलाबी ठंड में भी एक गर्मी का एहसास होने लगा है। यहां हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सभाओं की। यूपी से सटे बिहार के सीमावर्ती जिलों में हर दिन योगी आदित्यनाथ एनडीए प्रत्याशियों के समर्थन में चुनावी सभाओं को संबोधित करते हैं।

इन सभाओं में राम मंदिर निर्माण व जम्मू कश्मीर में धारा 370 हटाने, तीन तलाक जैसे मुद्दों पर चर्चा करते हुए विजय की वीर गाथा के रूप में इसे  सुनाया जा रहा है। गुजरात के बाद भगवा एजेंडे की प्रयोग स्थली बने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बिहार चुनाव में पार्टी नेतृत्व फायर ब्रांड नेताओं के रूप में प्रस्तुत कर रहा है। इनकी आधा दर्जन सभाओं का चुनावी इंपैक्ट के लिहाज से विश्लेषण करें तो बेरोजगारों व कामगारों के सवाल के आगे उनका कोई असर नहीं दिख रहा है।

यहां भगवा एजेंडे पर चर्चा करने के पहले मौजूदा चुनाव में प्रमुखता से उठ रहे मुद्दों व बिहार की सामाजिक व राजनीतिक प्रकृति को भी समझना जरूरी है।

लंबे समय से भूमि सुधार आंदोलन का केंद्र रहे बिहार में बड़ी संख्या में खेतिहर मजदूरों, कामगारों की तादाद है, जो रोजगार की तलाश में महानगरों व कृषि संबंधी कार्यों के लिए पंजाब व हरियाणा जाते हैं। इसके अलावा पढ़े-लिखे नौजवानों को यहां से रोजगार की तलाश में राज्य से पलायन करना पड़ता है। ऐसे में कह सकते हैं कि सबसे अधिक मजदूर व  बेरोजगार नौजवान बिहार से देश के विभिन्न कोनों में काम की तलाश में जाते हैं। कोरोना काल में नौकरी छीने जाने का दर्द व लॉकडाउन में शासकीय मशीनरी के उत्पीड़न के चलते दोहरी मार उन्हें झेलना पड़ा था। हजारों किलोमीटर का सफर पैदल चल कर तय करने वाली उन तस्वीरों को याद कर मन आज भी सिहर जाता है।

कोरोना काल के  सर्वाधिक प्रभावित राज्य में यह चुनाव चल रहा है। ऐसे में रोजगार का सवाल मुद्दा बनना स्वाभाविक है। इसे और रफ्तार दिया है दस लाख युवाओं को रोजगार देने का वादा कर आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने। अब इसी एजेंडे पर महागठबंधन चुनाव लड़ रहा है। इस मुद्दे के प्रसार और गहराई का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बीजेपी और उसके स्थापित नेता चाहकर भी सांप्रदायिकता से जुड़े मुद्दों को नहीं उठा पा रहे हैं। आलम यह है कि पाकिस्तान और मुसलमान से कम बात नहीं करने वाले बीजेपी नेता गिरिराज सिंह तक को रोजगार पर बोलना पड़ रहा है। यह बात अलग है कि वह अल्ल की बल्ल बोल रहे हैं। लेकिन वह बोल वही रहे हैं। इन विपरीत परिस्थितियों में भी योगी अपना पुराना राग छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। इसके पीछे दो बातें हो सकती हैं।

एक यह कि इसके अलावा योगी कुछ और बोल ही नहीं सकते। क्योंकि जीवन भर गोरखनाथ में घंटी बजाने वाले इस कथित योगी को उसके अलावा कुछ आता भी नहीं है। या फिर पार्टी ने रणनीति के तहत उन्हें यूपी की सीमा से जुड़े इलाकों में अपने सांप्रदायिक एजेंडे के प्रचार-प्रसार की छूट दे रखी है। जिसमें उसको कुछ ध्रुवीकरण हो जाने की उम्मीद है। लेकिन अभी तक उन इलाकों से आयी रिपोर्टों पर अगर भरोसा करें तो ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा है। और लोगों ने भी तेजस्वी के वादों की डोर में अपनी उम्मीदों का कांटा फंसा दिया है। ऐसे में सांप्रदायिकता के इस विष के खरीदार बहुत कम हैं।  फिर भी योगी हैं कि मान ही नहीं रहे हैं।

शायद योगी अतीत भूल गए। या फिर उसे याद नहीं रखना चाहते हैं। सच यह है कि बिहार की सामाजिक – राजनीतिक प्रकृति बिल्कुल अलग है। विपरीत हालात से लड़ना व परिवर्तन के लिए आवाज बुलंद करना यहां के लोगों की रगों में समाया हुआ है। भगवा एजेंडे की बात की जाए और उस कड़ी में यहां के अतीत के पन्नों को पलटा जाए तो बीसवीं सदी के आखिरी दशक में जब पूरे देश में भगवा आंदोलन का उभार था, उस समय बिहार में ही भगवा रथ का पहिया थम गया था। ऐसे में कहा जा सकता है कि बिहार में कभी भी धार्मिक कट्टरता को जगह नहीं मिल पायी। इसलिए ही यूपी से बिहार में प्रवेश करते ही भगवा का रंग फीका पड़ने लगता है।

अंत में यह कह सकते हैं कि बिहार की तासीर को बीजेपी व उसका भगवा ब्रिगेड समझ नहीं पा रहा है। चुनाव के प्रमुख मुद्दा बन चुके रोजगार के सवाल को समझने में शुरुआती गलती कर चुके एनडीए के लिए अब संभलना मुश्किल हो रहा है। हालांकि महागठबंधन के दस लाख युवाओं को रोजगार देने के वादे से आगे निकलने की कोशिश भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में 19 लाख लोगों को काम देने का वादा कर की है। लेकिन एनडीए के प्रमुख घटक जदयू नेता व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में समुद्र न होने के चलते कोई बड़ा उद्योग लगाने में असमर्थता व्यक्त करने जैसे हास्यास्पद बयान देकर खुद ही फंसते नजर आए।

(पटना से स्वतंत्र पत्रकार जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट।)

जितेंद्र उपाध्याय
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