तेलंगाना में ताकतवर होती कांग्रेस, भाजपा में कलह, केसीआर बेचैन

नई दिल्ली। तेलंगाना के मुख्यमंत्री और बीआरएस पार्टी के प्रमुख के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) इस समय बैचैन और असमंजस की स्थिति हैं। कुछ महीने पहले उन्हें अपनी जीत पक्की लग रही थी। वे अपनी पार्टी बीआरएस का तेलंगाना से बाहर विस्तार करने में लग गए थे। लेकिन अब वे अपने ही प्रदेश में राजनीतिक तौर पर घिर गए हैं। तेलंगाना में कांग्रेस के नए सिरे से उभार ने उनके सामने दोहरी चुनौती प्रस्तुत कर दी है। वे पहले सिर्फ भाजपा को चुनौती मानकर चल रहे थे। लेकिन कर्नाटक चुनाव में जीत के बाद तेलंगाना में कांग्रेस नई ऊर्जा से भर गई है। कांग्रेस हाईकमान ने भी अपनी पूरी ताकत लगा दिया है। कांग्रेस कर्नाटक के बाद तेलंगाना में सरकार बनाने की तैयारी कर रही है। बीआरएस और भाजपा दोनों आंतरिक कलह से जूझ रहे हैं। दोनों पार्टियों से नेता कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं या शामिल होने की तैयारी कर रहे हैं।

केसीआर इस समय महाराष्ट्र में तीर्थयात्रा पर हैं लेकिन उनकी तीर्थयात्रा राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन बन गई है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव दो दिवसीय यात्रा पर हैं। सोमवार को वह महाराष्ट्र के पंढरपुर में भगवान विट्ठल मंदिर में दर्शन किया। केसीआर अपने कई मंत्रियों, विधायकों और बीआरएस पदाधिकारियों के साथ 600 कारों के काफिले में महाराष्ट्र पहुंचे। पंढरपुर में रात्रि विश्राम के बाद केसीआर और उनकी टीम ने विट्ठल मंदिर के दर्शन किए।

महा विकास अघाड़ी (एमवीए) ने केसीआर की इस यात्रा को महाराष्ट्र में दबाव बनाने की राजनीति मान रही हैं। कांग्रेस और एनसीपी ने भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) नेता के इरादों पर सवाल उठाते हुए कहाकि इससे भाजपा के खिलाफ विपक्ष की एकता की कोशिश कमजोर हो जाएगी। लेकिन केसीआर यह सब अपने राजनीतिक हित को ध्यान में रखते हुए कर रहे हैं। क्योंकि वह जानते हैं कि तेलंगाना में उन्हें भाजपा से नहीं कांग्रेस से खतरा है। और कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत होते देख वह हड़बड़ी में ऐसे कदम उठा रहे हैं।

बीआरएस ने इस दौरान विठ्ठल मंदिर जाने वाले तीर्थयात्रियों, वारकरियों पर गुलाब की पंखुड़ियां बरसाने की भी अनुमति मांगी थी। लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने इसके लिए अनुमति देने से इनकार कर दिया। सीएम एकनाथ शिंदे ने कहा कि “पंढरपुर मंदिर के दरवाजे सभी के लिए खुले हैं… कोई किसी को भगवान विट्ठल की पूजा करने से कैसे रोक सकता है?”

डिप्टी सीएम देवेंद्र फड़णवीस ने कहा कि “अगर कोई तीर्थयात्रा में हिस्सा लेने आ रहा है तो हम उसका स्वागत करते हैं। लेकिन उन्हें राजनीति से दूर रहना चाहिए।”

केसीआर की पंढरपुर यात्रा को ‘अबकी बार किसान सरकार’ के नारे के साथ तेलंगाना और आंध्र प्रदेश से परे बीआरएस का विस्तार करने के कदम के रूप में देखा जा रहा है। बीआरएस ने महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ क्षेत्र में रैलियां की हैं और आरएसएस मुख्यालय वाले शहर नागपुर में एक कार्यालय स्थापित किया है, साथ ही पुणे, औरंगाबाद और मुंबई में और कार्यालय खोलने की योजना बनाई है।

हालांकि इसे केसीआर की राष्ट्रीय ताकत के रूप में उभरने की कोशिश के हिस्से के रूप में देखा जा रहा था, लेकिन अब वह पार्टी के राष्ट्रीय विस्तार नहीं बल्कि कांग्रेस औऱ गठबंधन की राजनीति को कमजोर करने की चाल चल रहे हैं। कहा जा रहा है कि तेलंगाना में बीआरएस की मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस की कर्नाटक जीत के बाद उन्होंने अपनी योजनाओं को बदल दिया है।

विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया कि केसीआर “भाजपा की बी टीम” है। राकांपा ने कहा कि “बीआरएस की राजनीति एमवीए वोट बैंक में सेंध लगाने और महाराष्ट्र में भाजपा की संभावनाओं को बढ़ावा देने की कोशिश प्रतीत होती है।”

दरअसल, बीआरएस को तेलंगाना की सीमा से बाहर ले जाने की कवायद के बीच केसीआर को पार्टी में टूट की खबरों से भी दो चार होना पड़ रहा है। तेलंगाना के पूर्व सांसद पोंगुलेटी श्रीनिवास रेड्डी और तेलंगाना सरकार के पूर्व मंत्री जुपल्ली कृष्ण राव सहित 35 बीआरएस नेताओं के कांग्रेस में शामिल होने की तैयारी चल रही है। बीआरएस के ये नेता कांग्रेस महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल और तेलंगाना कांग्रेस प्रमुख ए रेवंत रेड्डी की मौजूदगी में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, पूर्व पार्टी प्रमुख राहुल गांधी से मुलाकात भी कर चुके हैं।

सूत्रों ने बताया कि भारत राष्ट्र समिति के नेता जुलाई के पहले सप्ताह में तेलंगाना के खम्मम में एक सार्वजनिक रैली में औपचारिक रूप से कांग्रेस में शामिल होंगे, जिसमें एआईसीसी महासचिव प्रियंका गांधी के उपस्थिति रहने की संभावना है। रेड्डी पिछले लोकसभा चुनाव में खम्मम से बीआरएस सांसद थे।

केसीआर की इस चाल से गठबंधन दलों को भले ही आश्चर्य हो रहा हो, लेकिन इसके पीछे केसीआर की मजबूरी है। टीआरएस (तेलंगाना राष्ट्र समिति) से रातोंरात बीआरएस (भारत राष्ट्र समिति) बनी पार्टी के सामने कुछ चुनौतियां हैं। जिसे वह चाहकर भी नजरंदाज नहीं कर सकती है। केसीआर ने अपने क्षेत्रीय दल टीआरएस को राष्ट्रीय दल- बीआरएस बनाने की घोषणा तो कर दी, लेकिन इससे जमीनी हकीकत में कोई बदलाव नहीं आना था। कल तक कांग्रेस विपक्षी दलों को गठबंधन में शामिल करने के लिए उनकी हर शर्त मानने को तैयार दिख रही था, लेकिन कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अभूतपूर्व सफलता मिलने के बाद अब कांग्रेस राज्यों में अपनी राजनीतिक जमीन को फिर से पाने की कोशिश में लग गई है। कांग्रेस की यही रणनीति कई क्षेत्रीय दलों के लिए संकट बन गया है।

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में सियासत के समीकरण बदल गए हैं। केसीआर और चंद्रबाबू नायडू कांग्रेस गठबंधन की बजाए एनडीए में शामिल होने में ज्यादा रुचि दिखा रहे हैं। आंध्र प्रदेश भाजपा बहुत बहुत कमजोर है। तेलंगाना में कांग्रेस बीआरएस और भाजपा दोनों के लिए चुनौती बनकर नए सिरे से उभर रही है।

तेलंगाना बीजेपी में अंदरूनी कलह

कुछ महीने पहले तक भाजपा को तेलंगाना इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन करने की उम्मीद थी। लेकिन पिछले महीने पड़ोसी राज्य कर्नाटक में हुए विधानसभा चुनाव में हार के बाद तेलंगाना में भाजपा की रफ्तार कमजोर पड़ गई है।

राज्य में कांग्रेस बढ़ते ग्राफ के बीच भाजपा में कलह शुरू हो गई है। पार्टी के दो वरिष्ठ नेता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष को हटाकर संगठन की जिम्मेदारी खुद लेना चाहते हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता ईटेला राजेंदर और कोमाटिरेड्डी राज गोपाल रेड्डी वर्तमान राज्य इकाई अध्यक्ष बंदी संजय कुमार को बाहर करना चाहते हैं। 2021 में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) से भाजपा में शामिल हुए राजेंद्र खुद को “ सीएम पद के उम्मीदवार” के रूप में पेश करना चाहते हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और तेलंगाना के प्रभारी भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव, तरुण चुघ जैसे नेता समस्याओं को सुलझाने और बीआरएस के खिलाफ एकजुट मोर्चा बनाने के लिए राजेंद्र और रेड्डी के संपर्क में हैं।

तेलंगाना भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने वर्तमान परिस्थितियों पर कहा कि “कर्नाटक विधानसभा परिणाम घोषित होने तक हम सातवें आसमान पर थे। उसके बाद, बादल फट गया और अब तेलंगाना में आंतरिक कलह और अहंकार की समस्याएं देखने को मिल रही हैं। बीआरएस को उखाड़ने के लिए हमने जो काम शुरू किया था, वह खत्म हो गया है। हालांकि ज़मीनी स्तर पर हमारे समर्थक आधार में कोई कमी नहीं आई है, लेकिन मनोबल थोड़ा गिरा हुआ है।”

राज्य भाजपा नेताओं ने कहा कि राजेंद्र और रेड्डी चुनाव से पहले सीएम उम्मीदवार को घोषित नहीं करने की रणनीति के खिलाफ हैं।

प्रदीप सिंह
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