एकता तोड़ने की सरकारी साजिश के खेल से क्या निपट पाएंगे किसान संगठन?

पंजाब और हरियाणा के किसान सरकार द्वारा रास्ते में खड़ी की गई भयानक बाधाओं को पार कर दिल्ली पहुंचे हैं, पर सवाल यह है कि क्या उनके नेता सरकार की चालाकियों से पार पा पाएंगे। बातचीत के लिए आज तीसरे पहर के न्योते में सिर्फ़ पंजाब के किसान नेताओं के नाम होने के पीछे क्या सरकार का कोई बड़ा खेल है? माना जा रहा है कि नाकेबंदियों को तोड़कर आगे बढ़ने की पहल करने वाले हरियाणा के भाकियू नेता गुरनाम सिंह चढूनी का नाम बातचीत के लिए प्रतिनिधिमंडल में शामिल करने का फ़ैसला लिया जा सकता है।

केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने सोमवार शाम को किसान संगठनों को बातचीत के लिए पत्र भेजा था। यह बातचीत आज शनिवार तीसरे पहर तीन बजे दिल्ली के विज्ञान भवन में होनी है। इस बातचीत के लिए बुलाए गए 32 किसान प्रतिनिधि पंजाब के संगठनों से हैं। इससे पहले भी पंजाब के कुछ किसान नेताओं की तरफ़ से बातचीत का प्रस्ताव बढ़ाया गया था, पर उन्होंने इसे यह कहकर खारिज कर दिया था कि आंदोलन में बहुत सारे समूह हैं, तो केवल कुछ चुनिंदा लोग फ़ैसला नहीं ले सकते हैं।

आज की प्रस्तावित बातचीत को लेकर भी इन्हीं वजहों से तमाम तरह की चर्चाएं और अटकलें जारी हैं। आरोप है कि वार्ता रद्द होने की सुनियोजित अफवाह भी फैला द गई थी, लेकिन सवाल यही है कि इस संवेदनशील मसले पर किसान यूनियनें और संगठन किस तरह समन्वय क़ाएम कर सकती हैं।

एक तर्क यह दिया जा रहा है कि सरकार ने उन्हीं संगठनों के प्रतिनिधियों को बुलावा भेजा है, जिनके साथ अक्तूबर और नवंबर में बातचीत हुई थी, लेकिन, किसान संगठनों और उनके कार्यकर्ताओं को यह आशंका भी है कि सरकार की चाल किसान संगठनों की एकता तोड़ने की हो सकती है। पहले ही सरकार यह कह रही है कि आंदोलन सिर्फ़ पंजाब के किसान संगठनों का है, जिन्हें पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह उकसा रहे हैं।

हालांकि, हरियाणा के किसान आंदोलन में बढ़-चढ़ कर मदद कर रहे हैं और दुश्मन देश की सीमाओं जैसी बाधाओं को तोड़कर पंजाब से दिल्ली की तरफ़ बढ़ने का हौसला भी हरियाणा के अंबाला इलाक़े से नाक़ेबंदी तोड़कर हरियाणा की चढ़ूनी यूनियन ने ही पैदा किया। हैरानी की बात यह है कि चढूनी भी इस आंदोलन के दिल्ली पहुंचने के बाद अलग-थलग से नज़र आ रहे हैं। बताया जाता है कि आंदोलन में शामिल नेता इस बात को भांप रहे हैं और चढ़ूनी का नाम प्रतिनिधिमंडल में शामिल कराने की कोशिशें जारी हैं।

गौरतलब है कि समन्वय समिति के दो बड़े नाम योगेंद्र यादव और वीएम सिंह भी दो दिनों से विवादों में हैं। आरोप है कि ये दोनों नेता किसानों को पुलिस और सरकार की इच्छा के मुताबिक हरियाणा-दिल्ली सीमाओं से उठाकर बुराड़ी के निरंकारी मैदान में ले जाने की कोशिशें कर रहे थे। इस बीच हरियाणा और पंजाब के बीच एक लगभग कागज़ी और रस्मी रह गए पुराने एसवाईएल पानी के बंटवारे के मसले को भी सतह पर लाने की कोशिशें जारी हैं, ताकि हरियाणा और पंजाब के किसानों की एकता को तोड़ा जा सके।

गौरतलब है कि पंजाब की किसान यूनियनों और दूसरे संगठनों के विशाल समूहों ने ही इस आंदोलन को इतना ताक़तवर बना रखा है कि सरकार के साथ हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दूसरे किसान संगठनों पर भी दबाव बना है, लेकिन यह भी सच है कि मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और दूर-दराज के राज्यों से भी किसानों के जत्थे बड़ी संख्या में इस आंदोलन में शामिल हैं। राजस्थान से ख़ासकर गंगानगर इलाक़े के किसानों की तो संख्या खासी बड़ी है और ऐसे में एक बड़े फ़लक वाले सामूहिक नेतृत्व पर बहुत कुछ निर्भर रहना है।

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