दोयम दर्जे की पीपीई किट और घटिया भोजन के सहारे कोरोना वारियर्स लड़ रहे हैं यूपी में कोरोना के खिलाफ युद्ध

नई दिल्ली। क्या कभी आपने कोई ऐसा भी युद्ध देखा है जिसमें बग़ैर सैनिकों और उनके साजोसामान की तैयारी के उसे जीत लिया गया हो। इतिहास में इस तरह के किसी युद्ध की चर्चा नहीं है। लेकिन हमारे देश में केंद्र से लेकर राज्य की सरकारों ने कुछ इसका मुग़ालता पाल रखा है। और मानो उन्होंने इतिहास बनाने की ठान ली है। लड़ाई में अग्रिम मोर्चे पर तैनात चिकित्सकों को न तो ज़रूरी साजो-सामान मुहैया कराए जा रहे हैं और न ही उनकी सुरक्षा की कोई व्यवस्था की जा रही है। यहाँ तक कि भोजन भी उन्हें घटिया क़िस्म का दिया जा रहा है।

तमाम राज्यों की इस तरह की शिकायतें मीडिया की ख़बर बन रही हैं। यूपी में स्वास्थ्य विभाग के महानिदेशक केके गुप्ता ने बाक़ायदा पत्र लिखकर तमाम मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों के निदेशकों, संचालकों और प्रधानाचार्यों को उन किटों का इस्तेमाल न करने की सलाह दी है जिनका दर्जा बेहद घटिया है। और वो किसी भी रूप में कोरोना से सुरक्षा का काम नहीं करेंगी।

केके गुप्ता ने अपने पत्र में कहा है कि “जीआईएमसी नोएडा के निदेशक एवं प्रधानाचार्य मेरठ द्वारा उनके कालेज/ संस्थान में यूपी मेडिकल सप्लाई कारपोरेशन द्वारा आपूर्ति की गयी पीपीई किट की गुणवत्ता को अधोमानक (यानी गुणवत्ता के मानकों पर खरा नहीं) बताया (गया) है। अत: आपको निर्देशित किया जाता है कि आपके कालेज/ संस्थान में अधोमानक पीपीई किट या अन्य सामग्री पाप्त होती है तो उसका उपयोग कदापि न किया जाए एवं भारत सरकार की गाइडलाईन का अनुश्रवण (पालन) किया जाए।“

इसके साथ ही इसमें आगे कहा गया है कि “उक्त अधोमानक सामग्री को अविलंब वापस कर उसके स्थान पर गुणवत्ता युक्त पीपीई किट या अन्य सामग्री प्राप्त की जाए।”

13 अप्रैल को केके गुप्ता का लिखा गया यह पत्र केजीएमसी लखनऊ, यूपी आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय सैफई,  इटावा, एसजीपीजीआई, लखनऊ, आरआरएमएल इंस्टीट्यूट लखनऊ, जीआईएमसी, गौतमबुद्धनगर, पीजीटीआई, नोएडा के अलावा कानपुर समेत तमाम मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्यों को भेजा गया है।

यही नहीं कोविड मरीज़ों के लिए अलग-अलग अस्पतालों में की गयी व्यवस्था की कलई भी खुल कर सामने आ गयी है। जिन मरीज़ों के लिए अलग से क्वारंटाइन सेंटर खोले जाने थे और उनमें वेंटिलेटर से लेकर तमाम आधुनिक सुविधाएँ मुहैया करायी जानी थीं इन आधुनिक सुविधाओं की बात तो दूर उनको न्यूनतम बुनियादी सुविधाएँ भी मयस्सर नहीं हैं। इस सिलसिले में ख़ुद चिकित्सकों के एसोसिएशन ने प्रशासन को पत्र लिखकर इस समस्या को संज्ञान में लेने की अपील की है। प्रोविंसियल मेडिकल सर्विसेज़ एसोसिएशन (पीएमएसए), यूपी की एटा ब्रांच ने इसी तरह का एक पत्र वहाँ के मुख्य चिकित्साधिकारी को लिखा है। इसमें कहा गया है कि  एल 1 कोविड हॉस्पिटल बागवाला में तीन कोरोना मरीज़ 19 अप्रैल को भर्ती हुए हैं।

लेकिन यहाँ मरीज़ों के लिए खाने-पीने की कोई व्यवस्था नहीं करायी गयी है। जिसके चलते मरीज़ भागने की धमकी दे रहे हैं। आलम यह है कि मरीज़ों को कोई खाना न दिए जाने के चलते उन्हें कोरोना से संबंधित कोई दवा भी नहीं दी जा सकती है। यहाँ तक कि मरीज़ों के नहाने-धोने तक की व्यवस्था नहीं है। स्टाफ़ के 25 सदस्यों के ठहरने के लिए जिन रूमों की व्यवस्था की गयी है वो रहने लायक नहीं हैं। 25 के स्टाफ़ में एन-95 मास्क की संख्या महज़ 15 है। इनमें स्टाफ़ कुछ सदस्य तो ऐसे भी हैं जिनको कोई ट्रेनिंग ही नहीं दी गयी है।

मेडिकल स्टाफ़ के सदस्य भोजन करते हुए।

कोरोना के इलाज में लगे चिकित्सकों और पूरी मेडिकल टीम को 28 दिनों तक क्वारंटाइन में रहना पड़ता है। इस दौरान उनके रहने और खाने की व्यवस्था सरकार को करनी होती है। लेकिन जगह-जगह से मिल रही रिपोर्टों के मुताबिक़ उन्हें बेहद घटिया खाना मुहैया कराया जा रहा है। चिकित्सकों का कहना है कि खाना ऐसा होता है जिसे कोई सामान्य आदमी नहीं खा सकता है। और खाना न खाने पर चिकित्साकर्मियों की प्रतिरोधक क्षमता पर भी असर पड़ रहा है। जिसके चलते उनके भी संक्रमण में आने का ख़तरा और ज्यादा बढ़ गया है।

पीएमएसए के अध्यक्ष सचिन वैश्य ने कहा कि इस तरह का खाना खाना बेहद जोखिम भरा है। हालाँकि देखने में उसे ज़रूर पकाया और फिर पैक किया गया है लेकिन इसमें बहुत गंदगी रहती है। पौष्टिकता तो भूल ही जाइये। उसे इस तरह के किसी भोजन से सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है।

(जनचौक ब्यूरो की रिपोर्ट।)

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