700 शहादतें एक हत्या की आड़ में धूमिल नहीं हो सकतीं

11 महीने पुराने किसान आंदोलन जिसको 700 शहादतों द्वारा सींचा गया व लाखों किसानों के खून-पसीने के निवेश को एक धार्मिक मुद्दे को लेकर हुई हत्या की आड़ में खत्म नहीं किया।

हत्या की भर्त्सना करिये।आरोपी के लिए कड़ी से कड़ी सजा की मांग करिये लेकिन आंदोलन को धर्म विशेष का बताकर करोड़ों किसानों की भावनाओं व उनकी नस्लों को बर्बाद करने के सरकारी षड्यंत्र का हिस्सा मत बनिये।

अभी यह भी साफ नहीं हुआ है कि हत्या की असल वजह क्या है? आरोपी द्वारा कारण बताना व जांच के तथ्यों में कई बार अलग-अलग एंगल सामने आते रहे हैं।

जब असल जंग का मैदान सजता है तो सेक्युलर, नास्तिक और लिबरल लोगों की धूल झड़ने लगी है। सरकार आंदोलन को कुचलने का हर हथकंडा अपना रही है व जब 5 राज्यों का चुनाव माथे पर हो और सब कुछ खिलाफ नजर आए तो सरकार की मजबूरी है। धार्मिक विवाद पैदा करने की।

सिक्खी में भी तथाकथित हिन्दू जाति ढूंढ रहे हैं, जातिविहीन समाज की लड़ाई लड़ने का दावा करने वाले भी मृतक की जाति खोज लाएं हैं व जातिवादी मानसिकता का घिनौना स्वरूप बता रहे हैं। वैसे मृतक व मारने वाले की जाति एक ही है। जिस प्रकार मुस्लिम बहनों के इंसाफ के लिए तीन तलाक कानून वाली टोली संघर्ष कर रही थी उसी तरीके से सिक्खिज्म में भेदभाव के खिलाफ इंसाफ की लड़ाई लड़ने को मैदान में उतरी है।

जो लोग किसान आंदोलन से जुड़े हुए है व इसका शुरू से समर्थन कर रहे हैं उनको हर हाल में हौसला ऊंचा रखना होगा। ऊंची नैतिकता व आदर्शवाद के उड़ते झंडों की बदौलत यह आंदोलन नहीं जीता जा सकता क्योंकि तुम्हारा मुकाबला गुंडई सेना, लंपट संघों, मवाली संगठनों, आतंकी मीडिया व 2-2 रुपये में अपने माँ-बाप को गालियां देने वाले आईटी सेल के मानसिक दंगाइयों से है।

चरमपंथी समूहों व गद्दार गोदी मीडिया से दूर रहकर अपने मुद्दों पर ध्यान धरो। यह किसान आंदोलन सेक्युलरों, नास्तिकों, लिबरल लोगों का नहीं है बल्कि हर धर्म के किसानों का है। हिन्दू-मुस्लिम-सिख अर्थात सभी धर्मों में आस्था रखने वाले किसानों का है।

यहां हर-हर महादेव वाले किसान है, यहां अल्लाहु अकबर वाले किसान हैं और सत श्री अकाल वाले किसान हैं। इन सब धर्मों के किसानों का मुद्दा तीन कृषि कानूनों की वापसी व एमएसपी गारंटी का कानून है। हर धर्म के अंदर विवाद है, पाखंड है, कट्टरवाद है लेकिन ये सभी किसानी के मुद्दों को लेकर एकजुटता है।

गली का एक कुत्ता रात को भौंकता है तो बिना जाने पूरे मोहल्ले के कुत्ते भौंकने लग जाते हैं। गोदी मीडिया भौंकता है व उसकी राग में राग मिलाकर सोशल मीडिया के कुत्ते भौंकने लग जाते हैं। इसी शोरगुल में जब उलझ जाओगे तो दुश्मन पीछे से षड्यंत्र में कामयाब हो जाएगा।

दोषी को सजा की मांग के बजाय दलित बनाम नॉन-दलित बनाया जा रहा है, हिन्दू बनाम सिख बनाया जा रहा है और सबको धंधे पर लगाकर सुप्रीम कोर्ट से मांग करने पहुंच गए कि सिंघु बॉर्डर खाली कराओ। इस षड्यंत्र के खिलाफ डटकर खड़े हो जाओ। ऊंची नैतिकता के आकाश व आदर्शवाद के समुद्र में गोता लगाओगे तो रौंदे जाओगे।

(मदन कोथुनियां पत्रकार हैं और आजकल जयपुर में रहते हैं।)

मदन कोथुनियां
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मदन कोथुनियां