दिल्ली ने यमुना को बेमौत मारा, अब उसका कहर झेल रही है

यमुना की बाढ़ से दिल्ली लगभग ठहर गई है। स्कूल, काॅलेज, ऑफिस आदि बंद कर दिये गए। एक हिस्से में यातायात बंद कर दिया गया। यमुना बाजार, सिविल लाइन्स, लाल किला, आईटीओ, भैरो मार्ग से लेकर जामिया नगर तक के इलाकों में पानी भर गया। लोगों को सुरक्षित स्थान पर ले जाने का सिलसिला अभी जारी है। कुल पेय जल आपूर्ति का 25 प्रतिशत हिस्सा प्रभावित हुआ है। कुछ अस्पताल बंद करने पड़े। प्रभावित इलाकों में बिजली की आपूर्ति भी बड़े पैमाने पर प्रभावित है। स्थिति बद से बदतर हो, इसके पहले यमुना में छोड़े जा रहे पानी को बहुत हद नियंत्रित किया गया और यमुना का बढ़ता जल स्तर थोड़ा नीचे की ओर खिसका है।

इस बाढ़ में यमुना के किनारे बसे यमुनानगर, करनाल, पानीपत जैसे शहरों और गांवों की विशाल आबादी पर क्या गुजर रही है, इसकी खबरें बेहद कम आईं। अंबाला में विशाल कपड़ा बाजार बाढ़ की चपेट में आ गया। करनाल शहर बाढ़ के पानी वजह से अस्तव्यस्त बना हुआ है। यही स्थिति पानीपत की भी रही। लेकिन, दिल्ली के बाढ़ की चर्चा सबसे ज्यादा हुई और अभी हो रही है।

यह सच है कि बाढ़ धनी और गरीब में भेद नहीं करती। लेकिन, इस बात से कौन इंकार कर सकता है कि सबसे पहले गरीब लोग ही बाढ़ के शिकार होते हैं। दिल्ली के यमुना के किनारों पर बसे लोगों में सबसे अधिक गरीब लोग हैं। यदि यमुना के किनारों पर बने विभिन्न परियोजनाओं और निर्माणों को उनके क्षेत्रफल और स्थायित्व के हिसाब से देखें, तब मेट्रो से लेकर अक्षरधाम मंदिर, काॅमनवेल्थ आवास परियोजना से लेकर सार्वजनिक संस्थाओं का निर्माण सबसे अधिक दिखेगा।

इनके निर्माण को लेकर बहुत सारे सवाल उठे, लेकिन इसे अतिक्रमण नहीं माना गया। केवल मिलेनियम बस अड्डे का निर्माण को लेकर ही राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने सरकार को कटघरे में खड़ा किया। दिल्ली में यमुना लगभग 22 किमी की यात्रा करती है। यह यमुना की कुल लंबाई का महज 2 प्रतिशत से भी कम है जबकि इसे गंदा करने में 80 प्रतिशत की भूमिका है। इस 22 किमी में 20 पुलों का निर्माण हुआ है। और, इसमें 40 से अधिक शहर का कचड़ा, गंदगी, रसायन और दुर्गंध से भरे हुए नाले गिरते हैं। आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली के 20 बड़े, 25 छोटे और 93 हजार छोटी फैक्टरियों को पानी इसमें गिरता है।

यह दो साल पहले का आंकड़ा है। ऐसा नहीं कि इसके पीछे हरियाणा के इलाके में गंदगी गिराने और यमुना के तटों पर निर्माण नहीं हुआ है। यह हुआ है, जिसकी वजह से हथिनीकुंड बैराज से छोड़ा गया पानी पहले से कम समय में यहां पहुंच रहा है। लेकिन, दिल्ली में यमुना का जो हाल बन गया है वह कहीं अधिक बदतर है। जिसकी वजह से विभिन्न आंकड़े बता रहे हैं कि 1970 के बाद दिल्ली में बाढ़ की संख्या में, खासकर सितम्बर के महीने में; बढ़ोत्तरी हो रही है।

पर्यावरणविदों की राय में किसी भी नदी का 50 प्रतिशत से अधिक जल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। भारत की नदियों में 80 प्रतिशत से अधिक जल मानसून से आता है। यह अपने बहाव के रास्तों से अपनी पर्यावरणीय क्षमता को बनाते हुए आगे जाती है और तटों के माध्यम से अपने रास्तों और पारिस्थितिकी का निर्माण करते हुए जीवनदायिनी की भूमिका में आती है। यमुना का कुल पानी का बहाव उसके पानी की क्षमता के साथ रखकर देखें, तो यह महज 30 प्रतिशत ही है। और, मानसून का हिस्सा निकाल दिया जाय तब यह महज 16 प्रतिशत रह जाता है।(देखेंः इंडियावाॅटरपोर्टल पर विक्रम सोनी, शशांक शेखर और दीवान सिंह का लेख)। पानी के कम बहाव में एल्गी का पनपना तय हो जाता है। उसी तरह से इसमें पानी के साथ आ रहे सामान्य कणों का बहाव कम होने से उनका तल की सतह पर जमने की रफ्तार भी बढ़ जाती है।

तटों पर निर्माण होने की वजह से मानसून के समय पानी के फैलाव के लिए जो 5 किमी का दायरा चाहिए वह घटते हुए 1 किमी रह गया है। यमुना को दिल्ली में घुसने के पहले पल्ला और फिर वजीराबाद में बैराज से रोका जाता है और यहां से नियंत्रित पानी ही आगे की ओर जाता है। दरअसल, यहां से यमुना का पानी गंदे पानी के बहाव में लुप्त हो जाता है। अभी हाल ही में, दिल्ली से यमुना में आ रहे नालों की कार्बनिक और अकार्बनिक तत्वों के लिए जरूरी आक्सीजन की मात्रा का पता लगाने के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने सैंपल सर्वे कराया था। वह रिपोर्ट बताता है कि विभिन्न परियोजनाओं के बावजूद यमुना में गिर रहा पानी भयावह तरीके से प्रदूषित है। प्रदूषित पानी, यमुना के मूल बहाव का नाममात्र हिस्सा और यमुना के तटों और उसके बहाव क्षेत्र में निर्माण वे बड़े कारण हैं जिसकी वजह यमुना का बहाव तल ऊपर की ओर उठा है और बहाव का क्षेत्र संकरा हुआ है।

ऐसे में यदि हथिनीकुंड बैराज से पानी का बहाव दिल्ली की बाढ़ का एक कारण हो सकता है, लेकिन सबसे बड़ा कारण दिल्ली में यमुना के साथ किया जाने वाला व्यवहार है। आप इसे आज के इंडियन एक्सप्रेस में उस मुख्य खबर से भी अनुमान लगा सकते हैं जिसमें बताया गया है कि हथिनीकुंड बैराज से ऐसे चरम स्थितियों में जो 3.59 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा जाता है उसकी जगह पर 1.50 लाख क्यूसेक पानी ही छोड़ा जा रहा था। वैसे भी किसी बैराज के पानी की रोक की क्षमता जितनी होती है, उससे अधिक रोकने पर उसके टूटने और टूट से कहीं भीषण विभीषिका के बनने की संभावना होती है।

यहां यह भी समझना है कि केंद्र और राज्य सरकार की टकराहट में नेता किस तरह एक दूसरे के ऊपर आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं। खासकर, अरविंद केजरीवाल द्वारा एक मुख्यमंत्री के बतौर गैर जिम्मेवार बयान और दिल्ली के बाढ़ के लिए हरियाणा सरकार पर दोषारोपण एक खतरनाक प्रवृत्ति को दिखाता है। जबकि हरियाणा के लोग बाढ़ की विभीषिका में दिल्ली से कहीं अधिक बुरी तरह फंसे हुए थे। दिल्ली में बाढ़ की जिम्मेवारी लेते हुए निर्णायक कदम उठाने की जगह पर ऐसे बयान जनता में भ्रम के सिवाय कुछ पैदा नहीं करते।

यहां, इस यह बात रेखांकित करना जरूरी है कि बाढ़ से निपटने और नदी के प्रति उचित रवैया न रखने की वजह से इसी दिल्ली ने एक पूरी नदी को मार दिया गया है। यह नदी मानेसर तक तो दिखती है लेकिन उसके बाद गुड़गांव के रास्ते धीमी गति से मरते हुए नजफगढ़ के ड्रेनेज में खत्म हो जाती है। वहां से जब वह निकलती है, तब सिर्फ एक रसायनिक पदार्थों, सीवेज की गंदगी और कूड़े-कचरे के साथ बहते हुए मुखर्जी नगर के पीछे से वजीराबाद के बैराज से यमुना में उतरती है। इस नदी का नाम है साहिबी नदी। इसे और भी कई नामों से जाना जाता है। यह नदी राजस्थान में जयपुर के ऊपरी हिस्से से निकलती है। अरावली निकलने वाली इस ऐतिहासिक नदी को रेवाड़ी से गुरूग्राम के बीच इसके सूखे पाटों पर आज औद्योगिक प्लांट से लेकर विशाल अपार्टमेंट और बेतरतीब मकानों का विशाल जंगल खड़ा हो गया है। 1967 और फिर 1977 में इस नदी से दिल्ली तक बाढ़ आई थी।

इस समय तक गुरूग्राम से लेकर नजफगढ़ के बीच तीन बंधे बनाये गये थे। इस नदी में 1980 तक पानी था। 1970 के दशक में साहिबी नदी से आने वाला पानी कई बांधों से नियंत्रित कर खेत के काम में लाया जाने लगा। वहीं रेवाड़ी से नीचे उतरते हुए यह नदी गुरूग्राम तक एक गंदे नाले में बदलती गई। नजफगढ़ के डेन तक आते आते यह नदी एक तरह से अपने गुणों को खो देती है। नजफगढ़ बंधे या बैराज से आगे दिल्ली की ओर बढ़ने के साथ ही यह नदी जिस तरह काले रसायनिक तरल पदार्थों के बहाव में बदलती है, उससे यहां के किनारों पर बसे लोग भी इस नदी का नाम भूल गये। नजफगढ़ के कुछ बूढ़े-बुजुर्ग ही बचे हैं जो इसे साहिबी नदी के नाम से जानते हैं।

बाकी तो, दिल्ली के लोग इसे बड़का नाला के सिवा कुछ नहीं जानते। यह दिल्ली में यमुना से मिलती है। लेकिन, यह मिलन दो नदियों का मिलन नहीं है। यह एक नाले एक नदी में गिरने जैसा है और जिसमें गिर रही है उसे भी नाले में बदलती जाती है। यह साहिबी नदी ही जिसे गुरूग्राम और रेवाड़ी के रास्ते के लोगों ने निगल लिया और हर मानसून में बारिश उन्हें उनके घरों में वापस ढकेलती है। सच तो यही है कि साहिबी नदी मरी नहीं है। नदिया मरती नहीं हैं। वे जीवन के जद्दोजहद में वैसा ही सैलाब लेकर आती हैं जैसा एक जीवित समाज एक क्रांतिकारी बदलाव का सैलाब लेकर आता है।

( अंजनी कुमार पत्रकार हैं।)

अंजनी कुमार
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