मोदी ने बना लिया है देश के लोकतंत्र को बंधक

पेगासस गेट और कुछ नहीं देश की तबाही की घंटी है। यह बताता है कि मोदी-शाह ने पूरे लोकतंत्र को बंधक बना लिया है। इस देश में लोगों की अब कोई निजता नहीं रही। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और बोलने की आजादी जैसी बातें इतिहास का विषय हो गयी हैं। उनका न तो संविधान से कोई रिश्ता है और न ही देश की जनता से। 40 से ज्यादा पत्रकारों की स्नूपिंग बताती है कि वो कल क्या अखबार में छापेंगे और किस स्टोरी पर काम कर रहे हैं सरकार पहले से ही जानती है। इस चीज को समझ पाना किसी के लिए कठिन नहीं है कि एकबारगी अगर किसी की कोई कमजोर नस सरकार ने पकड़ ली तो फिर उसके लिए स्वतंत्र रूप से काम करना मुश्किल हो जाएगा। लोकतंत्र में मीडिया तो देश का फेफड़ा होता है जिसके जरिये उसके नागरिक सांस लेते हैं। लेकिन यहां तो पूरी मीडिया को ही खत्म करने की साजिश रची जा रही है।

इसने तो संवैधानिक संस्थाओं तक को नहीं छोड़ा। आखिर चुनाव आयुक्त लवासा ने क्या गलती की थी। उन्होंने 2019 के आम चुनाव के दौरान पीएम मोदी के चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायत पर संवैधानिक नजरिये से विचार ही तो किया था। अभी उन्होंने अपनी मंशा जाहिर ही की थी कि उनके पीछे पेगासस को लगा दिया गया।

देश के विपक्ष के सर्वोच्च नेता तक को नहीं बख्शा गया। राहुल गांधी को पप्पू साबित करने के मद में संघ-बीजेपी के खर्च किए गए हजारों करोड़ रुपये भी शायद कम पड़ गए तब उन्हें इस तरह के हथकंडे में जाना पड़ा। अकेले राहुल गांधी ही नहीं निजी सचिव समेत उनके पांच निजी दोस्तों तक के फोन टैप किए गए। अब कोई पूछ सकता है कि जिस राहुल को पप्पू घोषित किए हो उससे भला क्या डर? लेकिन सच्चाई यह है कि यह सत्ता विपक्ष के अगर किसी एक नेता से सबसे ज्यादा डरती है तो वह राहुल गांधी हैं। क्योंकि राहुल ने इस सत्ता की मर्ज पहचान ली है। और उनके पास इसका इलाज भी है और उससे बड़ी बात यह है कि वह उसको छुपाते भी नहीं हैं। उन्होंने जान लिया है कि बीजेपी की घृणा और नफरत की बीमारी का जड़ संघ है। लिहाजा उस रावणी नाभि का इलाज करना होगा। इसी बात का सबसे ज्यादा डर बीजेपी और संघ को है। इसीलिए वो राहुल पर हमले का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं।

किसी ने ठीक ही कहा था कि अगर कोई इस नतीजे पर पहुंचे कि राम मंदिर का फैसला न केवल राज्यसभा की सीट का प्रलोभन देकर कराया गया बल्कि उसके पीछे इस बात की पूरी संभावना है कि सरकार का न्यायपालिका पर दबाव भी काम कर रहा था और वह दबाव बेहद व्यक्तिगत था, तो कोई अतिश्योक्ति बात नहीं होगी। जिस तरह से जस्टिस रंजन गोगोई के यौन उत्पीड़न मामले से जुड़ी महिला के पति और देवर समेत 11 लोगों के फोनों की जासूसी की गयी है उससे यह बात साबित होती है कि सरकार ने गोगोई को अपने तरीके से ‘बंधक’ बना लिया था। और यह मामला अगर न्यायपालिका और सरकार ने मिलकर सुलझा लिया और बाद में महिला की न केवल बहाली हुई बल्कि उसे हर तरीके से खुश किया गया। तो यह सब कुछ बगैर सरकार की सहमति या फिर मिलीभगत के संभव नहीं था। ऐसे में इस बात का पूरा शक है कि सरकार ने उसकी पूरी कीमत वसूली होगी। ये कीमत किस रूप में वसूली गयी यह एक बड़े जांच का विषय बन जाता है।

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से लेकर विरोध में उठने वाली हर आवाज को बंद करने के लिए पेगासस का इस्तेमाल किया गया। इस देश के भीतर से न केवल नागरिक बल्कि उसके पूरे बोध को खत्म करने की कोशिश की गयी है। हमें यह समझना चाहिए कि जिस दिन नागरिक बोध खत्म हो जाएगा उसके बाद लोकतंत्र भी चंद दिनों का मेहमान होगा। दरअसल यह सारी कवायदें उसी लिए की जा रही हैं। अनायास नहीं देश को देखते-देखते रवांडा और हैती की श्रेणी में खड़ा कर दिया गया। दुनिया के जिन 36 देशों में पेगासस का इस्तेमाल हुआ है उसमें वो देश शामिल हैं जहां लोकतंत्र नहीं है या फिर वो देश हैं जो बेहद पिछड़े हैं या फिर वहां तानाशाही है। कभी हम अपने लोकतंत्र को लेकर अमेरिका समेत पश्चिमी देशों से तुलना कर उस पर गर्व करते थे।

चीन से भले ही आर्थिक तौर पर कमजोर थे लेकिन लोकतंत्र के लिहाज से उससे आगे खड़े होने का गर्वीला एहसास होता था। लेकिन अब तो आलम यह है कि हम अफ्रीका के कबीलाई मुल्कों की श्रेणी में खड़े हो गए हैं। और सरकार संघ के नेतृत्व में जिस रास्ते पर आगे बढ़ रही है एक दिन ऐसा आएगा जब हम अल्जीरिया, इराक, सीरिया जैसे तबाह मुल्कों की कतार में खड़े मिलेंगे। जो अफगानिस्तान कभी एक खूबसूरत मुल्क हुआ करता था और उसमें लड़कियां भी हाफ पैंट पहनकर सड़कों पर चला करती थीं। उसको किस तरह से जाहिल तालिबानों ने एक मध्ययुगीन कबीलाई मुल्क में तब्दील कर दिया। यह पूरी दुनिया ने देखा। संघ का आदर्श भी है वही अफगानिस्तान और उसकी मध्ययुगीन संस्कृति है।

कहते हैं फासिस्ट किसी पर भी भरोसा नहीं करते। यह बात एक बार फिर साबित हुई है जब पीएम मोदी द्वारा अपने ही मंत्रियों की जासूसी करने का मामला सामने आया है। क्या अजीब विडंबना है जो शख्स सुबह संसद के भीतर इस मसले पर सरकार का बचाव कर रहा था शाम को उसी का नाम सूची में शामिल मिला। उसे इसके पीछे लोकतंत्र और उसकी संस्थाओं को ध्वस्त करने की साजिश दिख रही थी। लेकिन सच्चाई यह है कि यह सिलसिला अगर आगे बढ़ा तो यह खुद लोकतंत्र को खत्म करने का औजार साबित होगा। यहां बात हो रही थी नये आईटी मिनिस्टर अश्विनी वैष्णव की। जिन्हें रविशंकर प्रसाद की जगह अभी-अभी बैठाया गया है। दूसरे मंत्री प्रहलाद सिंह हैं जो मध्य प्रदेश से आते हैं। मोदी उनके पीछे क्यों पड़े थे और उनकी व्यक्तिगत चीजें क्यों जानना चाहते थे। यह सब कुछ अभी सामने आना बाकी है। लेकिन कहा जाता है कि कैबिनेट लोकतंत्र की आत्मा होती है। उसमें व्यक्तिगत स्तर पर कोई भेदभाव नहीं होता है। वह एक ऐसी कोहेसिव बॉडी होती है जिसमें सब एकसाथ समाहित होते हैं। लेकिन मोदी ने अपने ही मंत्रियों की स्नूपिंग कर यह साबित कर दिया है कि उन्हें लोकतंत्र की इस कार्यप्रणाली में कोई विश्वास नहीं है।

सब कुछ सामने आने के बाद सरकार अब थेथरई पर उतर आयी है। वह यह मानने के लिए तैयार ही नहीं है कि किसी तरह की स्नूपिंग हुई है। उसकी मानें तो यह किसी ‘द वायर’ की कारगुजारी है और चूंकि वह सरकार विरोधी रहा है इसलिए उसकी किसी बात पर भरोसा नहीं किया जाना चाहिए। जबकि सच्चाई यह है कि इजराइल स्थित पेगासस स्पाईवेयर की कंपनी एनओएस अपना यह साफ्टवेयर केवल और केवल सरकारों या फिर उससे जुड़ी संस्थाओं को ही बेचती है। लिहाजा बगैर सरकार की सहमति के यह जासूसी उपकरण भारत में आ ही नहीं सकता है। इस बीच कंपनी ने न तो अपने नियम बदले हैं और न ही किसी तरह की उसमें कोई तब्दीली की है। ऐसे में अगर यह स्पाईवेयर भारत में है तो यह 100 फीसदी दावे के साथ कहा जा सकता है कि उसके पीछे सरकार की रजामंदी है।

दिलचस्प बात यह है कि कंपनी के मुताबिक उसने इसे दुनिया में आतंकवाद के खात्मे या फिर अपराध से लड़ने के लिए बनाया है। और उन्हीं देशों और सरकारों को दिया जाता है जिनकी इसको जरूरत होती है। अब अगर सरकार ने आतंकवाद और अपराध खत्म करने के नाम पर इसे लाया है तो क्या स्नूपिंग के शिकार लोग उसकी श्रेणी में आते हैं? राहुल गांधी कितने बड़े आतंकवादी हैं? जगदीप छोकर जो कि देश में लोकतंत्र के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिए हैं वह आतंकवादी दिखते हैं? या फिर वह जरायमपेशे से ताल्लुक रखते हैं? आखिर किसलिए उनकी जासूसी की गयी? तमाम मानवाधिकार और सामाजिक कार्यकर्ता जिन्होंने अपना पूरा जीवन समाज की सेवा में लगा दिया वो सब आतंकी हैं? और आपने उनकी जासूसी करनी शुरू कर दी।

शायद इस सरकार और उसके मंत्रियों की याददाश्त बहुत कमजोर है। उन्हें नहीं भूलना चाहिए कि 2019 में भी यह मामला सामने आया था जब ह्वाट्सएप के सीईओ ने कहा था कि ह्वाट्सएप के जरिये तकरीबन 1400 लोगों की जासूसी की जा रही है। जिसका खुद सरकार ने संज्ञान लिया था। और यही रविशंकर प्रसाद उस समय आईटी मंत्री थे जिन्होंने राज्यसभा में कहा था कि वह एनओएस को नोटिस भेजेंगे और इसके बारे में जानकारी हासिल की जाएगी। लेकिन उस नोटिस का क्या हुआ और अगर गयी तो क्या जानकारी मिली उसके बारे में देश को कुछ नहीं पता। प्रसाद जी संसद कोई खिलौना नहीं है।

और न ही वह लफ्फाजी का अड्डा है कि वहां जो चाहें आप बोलकर आ जाएं। उसमें बोली और कही गयी एक-एक बात की जवाबदेही होती है। वह पूरे देश के मानस का प्रतिनिधित्व करती है और उसमें अगर आप इस तरह के झूठ बोलते हैं तो जनता के पूरे भरोसे को तोड़ते हैं। लेकिन गोयबेल्स के इन चेलों को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि इन्हें झूठ को भी सच में बदलने की महारत हासिल है। ये पहले झूठ गढ़ते हैं, फिर उसको फैलाते हैं और फिर इतनी बार बोलते हैं कि वह सच जैसा दिखने लगता है। यही है इनकी मोडस आपरेंडी। लेकिन यह देश इतना कमजोर नहीं है न ही इसका लोकतंत्र इतना कमजोर हुआ है। यह खुद को कभी खत्म नहीं होने देगा। इस बात का हमें पूरा भरोसा है।

(महेंद्र मिश्र जनचौक के संस्थापक संपादक हैं।)

महेंद्र मिश्र
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