क्या योगी मॉडल की जोर-शोर से चर्चा मोदी मॉडल या मोदी को किनारे लगाने के लिए हो रही है?

जब नूंह और गुरुग्राम में दुर्भाग्यपूर्ण दंगे हुए और इसकी आग अभी ठीक से शांत भी नहीं हुई थी कि कई सारे चैनलों ने ‘दंगों को शांत करने के लिए योगी माॅडल की जरूरत’ को बड़े जोर-शोर से प्रचारित करना शुरू कर दिया। कई सारे आम लोगों के ऐसे इंटरव्यू चलाये जाने लगे जिसमें वक्ता बोल रहा है कि खट्टर-फट्टर से नहीं, अब तो यहां योगी जैसे मुख्यमंत्री की जरूरत है। यह बात प्रचारित की जाने लगी कि ट्विटर पर मेवात मागे बुलडोजर ट्रेंड कर रहा है। एक चैनल ने तो अपना शीर्षक ही लगा लिया- ‘मेवात-नूंह में भी चलेगा योगी का बुलडोजर माॅडल’।

कहने की जरूरत नहीं कि प्रशासनिक कार्रवाईयों में दोषियों की गिरफ्तारी के साथ-साथ बुलडोजर का प्रयोग शुरू हो गया। आमतौर पर ऐसे निर्माण को ढहाने का काम मुख्यतः राजनीतिक निर्णयों से होता है, लेकिन कानूनन यह अवैधानिक निर्माण कार्यों को खत्म करने के नाम पर किया जाता है। यह एक ऐसा माॅडल बन गया है जिसका प्रयोग अब धड़ल्ले से हो रहा है। ऐसा नहीं है कि इस तरह का काम और प्रयोग पहले नहीं हुआ है। खूब हुआ है और होता ही आ रहा था।

लेकिन इसका प्रयोग करते हुए माॅडल की दावेदारी अभी हाल की घटना है, खासकर भाजपा शासित राज्यों में यह खूब देखा गया। मामा का बुलडोजर भी खूब चला है। लेकिन योगी का बुलडोजर भाजपा शासित राज्यों में सबसे ‘लोकप्रिय’ की श्रेणी में आ गया है। चैनलों और मीडिया के ‘बाबा का बुलडोजर’ का जिस तरह से प्रचार किया, उससे योगी माॅडल के साथ-साथ योगी आदित्यनाथ को एक उभरते नेता, शासक की तरह स्थापित करने की ओर ले गया है। इसके लिए ये चैनल और मीडिया कई बार झूठी खबरों तक का सहारा लिया है।

ऐसा ही एक झूठ संभवतः महीने भर से थोड़े दिन पहले का है। ट्विटर पर एक झूठे नाम से पोस्ट डाली गई। उसमें कहा गया था कि भारत को योगी आदित्यनाथ को फ्रांस भेजना चाहिए। वहां दंगा नियंत्रण में नहीं आ रहा है, ‘कसम से वह इसे 24 घंटे में नियंत्रित कर देंगे’। यह जूठा पोस्ट डालने वाला नरेंद्र विक्रमादित्य यादव निकला। लेकिन पोस्ट प्रो. एन. जाॅन कैम नाम के एकाउंट से डाला गया था।

इस झूठे पोस्ट की ज्यादा खोजबीन किये बिना उत्तर-प्रदेश के मुख्यमंत्री ऑफिस ने जबाबी पोस्ट ट्वीट किया था- ‘जब भी कानून और व्यवस्था के हालात दुनिया के किसी भी हिस्से में उठेंगे, विश्व कानून और व्यवस्था को बदल देने वाले ‘योगी माॅडल’ की चाह होगी।’ यह योगी माॅडल की आधिकारिक स्वीकृति की तरह थी।

आगे बढ़ने के पहले यहां स्पष्ट कर दूं कि प्रो. एन. जाॅन कैम कोई झूठा नाम नहीं है। इन्होंने लंदन से डाॅक्टरी की पढ़ाई की और अमेरिका और यूरोप में रहे और मेडिकल क्षेत्र में बेहद अच्छा काम किये। उन्होंने 12 साल लंदन के प्रतिष्ठित सेंट बार्थोलोम्यू हॉस्पिटल में काम करते हुए गुजारा।

बहरहाल, ‘योगी माॅडल’ पर किया गया यह पोस्ट काफी चर्चित हुआ। इसे भारत में योगी की अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि के साथ जोड़कर प्रचारित किया गया। भेद खुला लेकिन तब तक ‘योगी माॅडल’ की चर्चा हो चुकी थी। और उसे एक ‘माॅडल’ की तरह देखने का नजरिया दे दिया गया था।

इसके थोड़ा और पहले जायें। यह दिसम्बर, 2020 और जनवरी, 2021 की बात है। उस समय प्रतिष्ठित अमेरीकी पत्रिका टाइम में उत्तर-प्रदेश सरकार ने योगी के फोटो वाला एक विज्ञापन दिया था। इसे भारत के चैनल और मीडिया ने योगी माॅडल के प्रचार का माध्यम बना लिया। यह वह समय था जब मोदी पर कोविड-19 से निपटने में हुई खामियों को लेकर आलोचना हो रही थी। उस समय विज्ञापन के आधार पर जिसे खुद उत्तर-प्रदेश की सरकार ने योगी की उपलब्ध्यिों को गिनाने के लिए टाइम को दिया था, योगी की सफलता के अंतर्राष्ट्रीय गुणगान की खबर की तरह चलाया।

कोविड-19 का प्रकोप जैसे-जैसे कम हुआ है, उत्तर-प्रदेश में अपराध को खत्म करने के लिए ‘अपराधियों’ के खात्मे का अभियान चलाया गया। इसमें विकास दुबे का ‘एनकाउंटर’ एक माॅडल बन गया। ‘गाड़ी पलटना’ को मीडिया ने योगी माॅडल की एक तकनीक की तरह पेश किया। अतीक अहमद को जब गाड़ी से एक शहर से दूसरे शहर लाया जा रहा था, बेहद बेशर्मी के साथ मीडिया चैनल अपने संवाददाताओं से पूछ रहा थे कि ‘कहीं गाड़ी पलट तो नहीं जायेगी’।

अतीक अहमद और उनके भाई को खत्म करने के लिए कुछ और ही तकनीक इस्तेमाल में आई। मुख्यमंत्री ने खुद कभी भी इन्हें माॅडल की तरह नहीं बताया। लेकिन, यह काम प्रचारतंत्रों के माध्यम से खूब चलता रहा है। बाद में अपराधियों की ‘अवैध जमीनों’ पर घर बनाकर गरीबों में बांटते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विज्ञापन दिया और इस विज्ञापन में एक नये विकास का माॅडल देने का दावा किया।

यह एक टाइमलाइन है जिसमें योगी आदित्यनाथ को एक माॅडल के साथ उभरते नेता की तरह देख सकते हैं। जिस ‘गुजरात माॅडल’ की दावेदारी पर भाजपा ने 2014 का चुनाव लड़ा उसमें इस माॅडल पर बात कम हो रही थी, और कांग्रेस के भ्रष्टाचार पर बात अधिक हो रही थी। उस समय बेहद कम मीडिया संस्थान, पत्रकार और बुद्धिजीवी थे, जो इस माॅडल पक्ष में बात कर रहे थे, और बात करते हुए गुजरात में हुए नरसंहार को एक गलती की तरह बोलते थे, या चुप रह जाते थे।

आज स्थिति बेहद अलग है। अब दंगों से निपटने, और यह कहने की जरूरत नहीं है कि किससे निपटने के लिए ‘योगी माॅडल’ की बात की जा रही है। खुद योगी आदित्यनाथ का ऑफिस ट्विट कर बता रहा है कि यह कानून व्यवस्था को ठीक करने, बनाने वाला माॅडल है।

ऐसा लग रहा है कि भाजपा के इतिहास में अब एक नया पन्ना जुड़ने जा रहा है। इसकी भूमिका तेजी से तैयार हो रही है। इसका यह भी अर्थ है कि जो अध्याय अभी चल रहा है, उसका एक सारांश लिखा जा रहा है। यह महज कुछ महीने भर की बात है। यह सारांश बेहद डरावने तरीके से आगे बढ़ रहा है। इन डरावने दृश्य में एक खतरनाक चुप्पी है। इस चुप्पी के कई अर्थ हैं। इसे पढ़ना आसान नहीं है।

यह संसदीय मान्यताओं, वैधानिकताओं, रिवाजों और उसकी संस्थाओं को अपनी जद में लिए हुए है। उसके सामने ही अब मोदी माॅडल की जरूरत नहीं रही, उसे मोदी के मुखौटों की जरूरत नहीं रही। वह अब योगी माॅडल की ओर बढ़ रहा है। किताब में अध्याय पलटना जितना आसान होता है, राजनीति में उतना ही कठिन होता है, इसे पलटने में बहुत कुछ पलट जाता है। उम्मीद है हाथियों के झगड़े या प्यार में हम घास का मैदान बनने से इंकार करेंगे।

(अंजनी कुमार पत्रकार हैं।)

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