ज्ञानवापी मामले को अब जिला जज सुनेंगे, सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश लागू रहेगा

उच्चतम न्यायालय के जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ,जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस पी एस नरसिंह की पीठ ने शुक्रवार को ज्ञानवापी मामले पर मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए इसे ट्रांसफर कर दिया है। केस को सिविल जज सीनियर डिवीजन वाराणसी के बजाय अब जिला जज वाराणसी सुनेंगे। पीठ ने भरोसा दिलाया कि सभी पक्षों के हित सुरक्षित रखे जाएंगे। पीठ ने वाराणसी के जिला अधिकारी को मस्जिद में वजू की व्‍यवस्‍था करने के भी निर्देश दिए। मामले में मुस्लिम पक्ष ने दावा किया कि स्‍थानीय अदालत के आदेश का गलत इस्‍तेमाल हो रहा है। पीठ ने कमिश्‍नर की रिपोर्ट को यह कहते हुए देखने से मना कर दिया कि इसे जिला जज देखने में सक्षम हैं।

उच्चतम न्यायालय ने हिंदू भक्तों द्वारा दायर ज्ञानवापी मस्जिद मुकदमा सिविल कोर्ट में स्थानांतरित किया है। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ,जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस पी एस नरसिंह की पीठ ने यह भी आदेश दिया कि मस्जिद समिति द्वारा निचली अदालत के समक्ष दायर कानून में वर्जित होने के कारण मुकदमा खारिज करने के लिए आदेश 7 नियम 11 सीपीसी के तहत दायर आवेदन पर जिला जज प्राथमिकता के आधार पर निर्णय लिया जाएगा। इस बीच, इसका 17 मई का अंतरिम आदेश आवेदन पर निर्णय होने तक और उसके बाद आठ सप्ताह की अवधि के लिए लागू रहेगा। साथ ही संबंधित जिलाधिकारी को प्रभावित पक्ष से बातचीत करके वुजू के पालन की समुचित व्यवस्था करने का निर्देश दिया गया है।

उच्चतम न्यायालय ने 17 मई के अपने आदेश में स्पष्ट किया था कि वाराणसी में सिविल जज सीनियर डिवीजन द्वारा उस स्थान की रक्षा के लिए पारित आदेश जहां ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वेक्षण के दौरान शिवलिंग पाए जाने का दावा किया गया था, प्रतिबंधित नहीं होगा। मुसलमानों को नमाज अदा करने और धार्मिक अनुष्ठान करने के लिए मस्जिद में प्रवेश करने का अधिकार है। कोर्ट ने संबंधित जिला मजिस्ट्रेट को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया था कि मस्जिद के अंदर जिस स्थान पर काठी शिव लिंग पाया गया है, वह सुरक्षित किया जाए।

पीठ ने आज आदेश दिया कि दीवानी मुकदमे में शामिल जटिलताओं और संवेदनशीलता के संबंध में हमारा विचार है कि न्यायाधीश, वाराणसी के समक्ष मुकदमे की सुनवाई उत्तर प्रदेश उच्च न्यायिक सेवा के एक वरिष्ठ और अनुभवी न्यायिक अधिकारी के समक्ष की जानी चाहिए। हम तदनुसार आदेश देते हैं और निर्देश देते हैं कि सिविल सूट सिविल जज सीनियर डिवीजन वाराणसी के समक्ष जिला न्यायाधीश वाराणसी को स्थानांतरित किया जाएगा और सभी अंतःक्रियात्मक आवेदन स्थानांतरित हो जाएंगे। आदेश 7 नियम 11 सीपीसी के तहत दायर आवेदन पर जिला न्यायाधीश द्वारा प्राथमिकता पर निर्णय लिया जाएगा। इस न्यायालय के 17 मई के अंतरिम आदेश आदेश 7 नियम 11 तय होने तक और उसके बाद आठ सप्ताह की अवधि के लिए बरकरार यानि लागू रहेंगे।

पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि वह अभी तीन सुझावों पर कुछ कर सकती है। पहला, वह कह सकती है कि ऑर्डर 7 रूल 11 के तहत फाइल की गई याचिका पर ट्रायल कोर्ट फैसला दे। दूसरा, उसने अंतरिम आदेश दिया है जिसे मामले के निस्‍तारित या फैसला आ जाने तक जारी रखा जा सकता है। तीसरी चीज जो बेंच कर सकती है वह यह है कि मामले की पेचदगी और संवेदनशीलता को देखते हुए इसकी सुनवाई जिला जज करें। ऐसा करते हुए पीठ ट्रायल जज पर किसी तरह का आरोप या दोष नहीं मढ़ रही है। बस, इतनी सी बात है कि कोई ज्‍यादा अनुभवी इस मामले को सुने। इससे सभी पार्टियों के हितों की सुरक्षा की जा सकेगी।

ट्रायल कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन एक वादी की ओर से पेश हुए हैं। उन्‍होंने पीठ को बताया कि उनके अनुसार, जहां तक आदेश 7 नियम 11 के आवेदन पर निर्णय लेने की बात है, तो संपत्ति के धार्मिक स्वरूप को देखना होगा। इसके लिए आयोग की रिपोर्ट देखनी होगी। वैद्यनाथन ने दलील दी कि ऐसे में आयोग की रिपोर्ट देखने के उस सीमित उद्देश्य के लिए ट्रायल कोर्ट को मामले को देखने दिया जाए। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हमें आपकी बात समझ में आ गई। हम इसे जिला जज पर छोड़ देंगे, जो 20-25 साल का अनुभव रखते हैं। वे जानते हैं कि इसे कैसे संभालना है।

मस्जिद समिति की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कहा कि इन सभी में गंभीर शरारत की आशंका है। इस पर शुरू में ही अंकुश लगाना होगा। आयोग की नियुक्ति से लेकर सभी आदेश अवैध हैं। उन्हें शून्य घोषित किया जाना चाहिए। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आदेश 7 नियम 11 को आपके अनुसार पहले लेना चाहिए था और ऐसा नहीं किया गया। अब हम जो करने का इरादा रखते हैं वह यह तय करना है कि क्या कमीशन का आदेश अधिकार क्षेत्र में था या नहीं, हमें योग्यता में जाना होगा। जस्टिस जे चंद्रचूड़ के मुताबिक, अंतरिम आदेश का उद्देश्य कुछ हद तक संतुलन लाना था।

अहमदी ने कहा कि हमारी एसएलपी आयोग की नियुक्ति के खिलाफ है। इस प्रकार की शरारत को रोकने के लिए ही 1991 का अधिनियम बनाया गया था। कहानी बनाने के लिए आयोग की रिपोर्ट को चुनिंदा तरीके से लीक किया गया है। यह कुछ ऐसा है जिसमें आपको हस्तक्षेप करना चाहिए।

अहमदी ने कहा कि यथास्थिति को पहले ही बदला जा चुका है। वे ऐसी जगह को सील करवाने में कामयाब हो रहे हैं जिसे एक पक्ष 500 साल तक इस्‍तेमाल करता आया है।

अहमदी ने आशंका जताई कि इस मामले का असर दूरगामी होगा। उन्‍होंने कहा कि जब तक आवेदन पर फैसला होगा, जमीन पर क्‍या होगा? आपको देखना होगा कि इस मामले का इस्‍तेमाल देश में 4-5 मस्जिदों के लिए हो रहा है, इससे सार्वजनिक शांति भंग हो सकती है।

पीठ ने मुस्लिम पक्ष के वकील से कहा कि आपके तर्क में दम देखते हुए हम ट्रायल कोर्ट को इजाजत नहीं दे रहे। अगर आपके पास जमीन पर शांति बनाए रखने के लिए आदेश में किसी बदलाव का सुझाव है तो दीजिए। इस पर अहमदी ने कहा कि हाईकोर्ट ने गलती करते हुए आयोग के सर्वे करने को सही ठहराया है। कृपया 1991 का ऐक्‍ट देखिए।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि एक और रास्‍ता है। आपने (मुस्लिम पक्ष) आयुक्‍त की नियुक्ति के आदेश को चुनौती दी है अगर हम एसएलपी का निस्‍तारण कर दें तो वह आदेश अनंतिम हो जाएगा। लेकिन अगर आप ऑर्डर 7 रूल 11 को चुनौती देने में फेल होते हैं तो हम इस एसएलपी को लंबित रख सकते हैं, हम वेकेशन के बाद इस एसएलपी पर सुनवाई कर सकते हैं।

पीठ ने कहा कि ये जटिल सामाजिक समस्‍याएं हैं किसी इंसान का सुझाया हल परफेक्‍ट नहीं हो सकता। हमारा आदेश कुछ हद तक शांति व्‍यवस्‍था बनाए रखने का है। हम यहां देश में एकता की भावना बरकरार रखने के संयुक्‍त मिशन पर हैं।

मुस्लिम पक्ष के वकील ने कहा कि दूसरे पक्ष को बताया जाना चाहिए कि जान-बूझकर लीक्‍स न किए जाएं। प्रेस में चीजें न लीक हों। मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट में कहा कि शिवलिंग मिलने का दावा किया जा रहा है, हमारे हिसाब से यह फव्‍वारा है। इस पर वैद्यनाथन ने आपत्ति जताई। अहमदी ने कहा कि उनकी आवाज दबाने की कोशिश हो रही है, इसपर पीठ ने वैद्यनाथन से दो मिनट रुकने को कहा।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा कि पूरा इलाका सील है तो नमाज की अनुमति कैसे है? इस पर अहमदी ने कहा कि नमाज की अनुमति है लेकिन वह इलाका वजू के लिए इस्‍तेमाल होता था। पूरा एरिया सील कर दिया गया है। सब तरफ पुलिस और लोहे के गेट हैं। यथास्थिति बदल दी गई है।

पीठ में यूपी सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वजू के लिए इंतजाम किए गए हैं। इस पर अहमदी ने कहा कि आप ने यथास्थिति बदल दी है। अहमदी और एसजी के बीच बहस हुई। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर वजू नहीं हो पा रहा है तो हम आदेश जारी कर सकते हैं।

मुस्लिम पक्ष के वकील ने प्‍लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्‍ट, 1991 पर बहस करते हुए कहा कि आपने (निचली अदालत) आयोग की नियुक्ति क्‍यों की? यह पता लगाने के लिए कि वहां देवता हैं या नहीं। यह सेक्‍शन 3 के तहत प्रतिबंधित है। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि धार्मिक चरित्र का आंकलन प्रतिबंधित नहीं है।

इस बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट में आज काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद केस की सुनवाई शुक्रवार को दोपहर 12 बजे के बाद में शुरू हुई। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू पक्ष की बहस पूरी होने के बाद 6 जुलाई को अगली सुनवाई की तिथि दे दी है। हाईकोर्ट के जस्टिस प्रकाश पाडिया की पीठ में मामले की सुनवाई हुई। सबसे पहले हिंदू पक्ष अपनी बची हुई बहस पूरी की। स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर पक्षकार की तरफ से उनके वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने बहस की। हिंदू पक्ष की बहस पूरी होने के बाद यूपी सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता पुनीत गुप्ता ने भी बहस की। लेकिन, हिंदू पक्ष की ओर से बहस पूरी होने के बाद कोर्ट ने अगली तारीख का निर्धारण कर दिया।

हाईकोर्ट में वाराणसी की अदालत में 31 साल पहले 1991 में दाखिल मुकदमे की सुनवाई हो सकती है या नहीं, इस मामले पर बहस चल रही है। हाईकोर्ट को मुख्य रूप से तय करना है कि एएसआई से खुदाई कराकर सर्वेक्षण कराए जाएं या नहीं। अब अदालत को यह तय करना है कि 31 साल पहले 1991 में वाराणसी जिला कोर्ट में दायर वाद की सुनवाई हो सकती है या नहीं।

ज्ञानवापी मस्जिद परिसर पर लंबे समय से विवाद चल रहा है। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि प्लेसेज आफ वरशिप एक्ट 1991 के तहत यह वाद नहीं चल सकता है। इसके तहत अयोध्या को छोड़कर देश के किसी भी दूसरे धार्मिक स्थल के स्वरूप में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है। इस एक्ट के तहत देश की आजादी के समय 15 अगस्त 1947 को जिस धार्मिक स्थल की जो स्थिति थी वही स्थिति बरकरार रहेगी।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जेपी सिंह
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