दबंग जातियों के प्रवेश का रास्ता तो नहीं खोल देगा ओबीसी आरक्षण संशोधन एक्ट

राज्यों को आरक्षण के लिए ओबीसी  की लिस्टिंग करने का अधिकार देने वाला बिल बुधवार को राज्यसभा में भी सर्वसम्मति से पास हो गया। लोकसभा ने मंगलवार को इसे बिना किसी विरोध के मंजूरी दे दी थी। इसे राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद यह कानून बन जाएगा। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि यह ओबीसी के फायदे के लिए है या वोट की राजनीति के लिए इसमें भविष्य में शामिल की जाने वाली दबंग जातियों के प्रभुत्व से ओबीसी आरक्षण निरर्थक हो जायेगा और अब तक इससे लाभान्वित होने वाली ओबीसी जातियां एक बार फिर नौकरी के मामले में हाशिये पर चली जाएँगी।अति पिछड़ी जातियां तो पहले से ही हाशिये पर हैं।  

आरक्षण को लेकर कई राज्यों में आंदोलन चल रहे हैं। कर्नाटक में लिंगायत, गुजरात में पटेल, हरियाणा में जाट और महाराष्ट्र में मराठा समुदाय आरक्षण की मांग कर रहे हैं और इसे लेकर आंदोलन भी जारी हैं। सम्बंधित राज्य सरकारें वोट की राजनीति के चलते इन्हें ओबीसी में शामिल भी करना चाहती हैं पर उच्चतम न्यायालय के आड़े आने के कारण अभी तक शामिल नहीं कर पा रही थीं। अब ओबीसी की लिस्टिंग करने का अधिकार देने वाला बिल संसद से पारित हो चुका है और कर्नाटक में लिंगायत, गुजरात में पटेल, हरियाणा में जाट और महाराष्ट्र में मराठा समुदाय जैसी दबंग जातियों को ओबीसी आरक्षण का लाभ मिलता है तो फिर ये पहले से ही सिकुड़ गयी नौकरियों में से आरक्षित नौकरियों का अधिसंख्य हिस्से पर कब्जा जमा लेंगी। यह उल्लेखनीय है कि इन जातियों को ओबीसी में शामिल करने का विरोध सवर्ण जातियां नहीं कर रही हैं बल्कि अब तक आरक्षण से लभान्वित ओबीसी जातियां कर रही हैं।     

नये प्रावधान के तहत इसके तहत देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अपने स्तर पर ओबीसी आरक्षण के लिए जातियों की सूची तय करने और उन्हें कोटा देने का अधिकार होगा। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने यह बिल पेश किया था। राज्यसभा में इस बिल के पक्ष में 187 वोट पड़े जबकि विरोध में एक भी वोट नहीं पड़ा। लोकसभा में सोमवार को बिल पर वोटिंग के दौरान इसके पक्ष में 385 वोट पड़े। वहीं, विपक्ष में एक भी वोट नहीं पड़ा। संसद में 127वां संशोधन संविधान के अनुच्छेद 342A(3) में बदलाव के लिए लाया गया है। इसके बाद राज्य ओबीसी की लिस्ट अपने हिसाब से तैयार कर सकते हैं। खास बात यह है कि सदन में पेगासस, किसानों जैसे मुद्दों पर हंगामा कर रहे विपक्ष ने भी इस बिल को बगैर किसी शोरशराबे के पास होने दिया।

दरअसल इसी साल 5 मई को उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में मिले आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया था। यह आरक्षण आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर दिया गया था।न्यायालय ने कहा था कि 50 फीसद आरक्षण की सीमा तय करने वाले फैसले पर फिर से विचार की जरूरत नहीं है। मराठा आरक्षण 50 फीसद सीमा का उल्लंघन करता है।

फैसले में कहा गया था कि राज्यों को यह अधिकार नहीं कि वे किसी जाति को सामाजिक-आर्थिक पिछड़ा वर्ग में शामिल कर लें।राज्य सिर्फ ऐसी जातियों की पहचान कर केंद्र से सिफारिश कर सकते हैं। राष्ट्रपति उस जाति को राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के निर्देशों के मुताबिक सामाजिक आर्थिक पिछड़ा वर्ग की लिस्ट में जोड़ सकते हैं।मराठा समुदाय के लोगों को रिजर्वेशन देने के लिए उन्हें शैक्षणिक और सामाजिक तौर पर पिछड़ा वर्ग नहीं कहा जा सकता। मराठा रिजर्वेशन लागू करते वक्त 50 फीसद की लिमिट को तोड़ने का कोई संवैधानिक आधार नहीं था।

अभी भी राज्य सरकारें जिन जातियों को जोड़ेंगी उनको उच्चतम न्यायालय की कसौटी पर कसा जाना निश्चित है और ये आरक्षण की पूरी व्यवस्था खत्म करने का भी आधार बन सकता है।अभी तक लाभान्वित जातियां इसे उच्चतम न्यायालय में अवश्य चुनौती देंगी और तब क्रीमी लेयर का भी मामला उठेगा। सरकार क्रीमी लेयर की सीमा 8 लाख वार्षिक से बढ़ाने पर भी विचार कर रही है, इसे भी राष्ट्री य पर कैपिटा इनकम के अधर पर चुनौती मिल सकती है।   

गौरतलब है कि 1991 में पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने आर्थिक आधार पर सामान्य श्रेणी के लिए 10% आरक्षण देने का आदेश जारी किया था। इस पर इंदिरा साहनी ने उसे चुनौती दी थी।इस केस में नौ जजों की बेंच ने कहा था कि आरक्षित सीटों, स्थानों की संख्या कुल उपलब्ध स्थानों के 50 फीसद से अधिक नहीं होनी चाहिए। संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया गया है। तब से यह कानून ही बन गया।

इस संविधान संशोधन बिल की मदद से संविधान के आर्टिकल 342A, 338B और 366 में संशोधन किया गया है। मोदी सरकार का कहना है कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसइबीसी) की अपनी सूची तैयार करने और बनाए रखने के अधिकार के साथ-साथ भारत के संघीय ढांचे को बनाए रखने के लिए यह संविधान संशोधन आवश्यक है।

संविधान संशोधन की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि 2018 में पास किए गए 102वें संविधान संशोधन अधिनियम की मदद से संविधान में आर्टिकल 342A, 338B और 366(26C) को जोड़ा गया था।आर्टिकल 338B राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की संरचना, कर्तव्यों और उसकी शक्तियों से संबंधित है। आर्टिकल 342A राष्ट्रपति की शक्तियों, जिसके अनुसार राष्ट्रपति किसी विशेष जाति को एसइबीसी के रूप में नोटिफाई कर सकते हैं और ओबीसी लिस्ट में परिवर्तन करने की संसद की शक्तियों से संबंधित है। आर्टिकल 366(26C) एसइबीसी को परिभाषित करता है।

दरअसल 5 मई 2021 को महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के लिए एक अलग कोटा को निरस्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट के 5 सदस्यीय पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि 2018 के 102वें संविधान संशोधन के बाद केवल केंद्र सरकार ही किसी जाति को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के रूप में नोटिफाई कर सकती है, राज्य सरकार नहीं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 102वें संविधान संशोधन की इस व्याख्या ने पिछड़े वर्गों की पहचान करने और उन्हें आरक्षण का लाभ देने के राज्य सरकारों के अधिकारों को प्रभावी रूप से समाप्त कर दिया।

राजस्थान में गुर्जर, हरियाणा में जाट, महाराष्ट्र में मराठा, गुजरात में पटेल जब भी आरक्षण मांगते तो सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला आड़े आ जाता है। इसके बाद भी कई राज्यों ने इस फैसले की काट निकाल ली है। देश के कई राज्यों में अभी भी 50 फीसद से ज्यादा आरक्षण दिया जा रहा है। छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, हरियाणा, बिहार, गुजरात, केरल, राजस्थान जैसे राज्यों में कुल आरक्षण 50 फीसद से ज्यादा है।

हरियाणा में जाट हों या गुजरात के पटेल, कर्नाटक के लिंगायत हों या महाराष्ट्र के मराठा ये सभी अपने-अपने राज्य में निर्णायक भूमिका में हैं। इसलिए राजनीतिक पार्टियां इन जातियों को साधने की तरह-तरह की कोशिश करती रहती हैं। आरक्षण भी उसमें से एक है।

नया संविधान संशोधन विधेयक उच्चतम न्यायालय के फैसले को प्रभावी ढंग से बाईपास करने का उपाय है, जिसके कारण राज्य सरकार और ओबीसी समूहों ने देश भर में विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था। भारत में केंद्र और संबंधित हरेक राज्य द्वारा अलग-अलग ओबीसी लिस्ट तैयार की जाती है।यहाँ किसी राज्य का ओबीसी दुसरे राज्य में फारवर्ड क्लास में आता है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जेपी सिंह
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