मथुरा जेल से रिहाई के बाद डॉ. कफील ने कहा- मैं झुकूंगा नहीं! यूपी से बाहर राजस्थान में बिताएंगे कुछ दिन

नई दिल्ली। ‘मैं झुकूंगा नहीं’ मथुरा जेल से निकलने के बाद डॉ. कफील खान के पहले वाक्य थे। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद कल देर रात वह जेल से रिहा कर दिए गए। उन्हें यूपी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत गिरफ्तार किया था जिसे कोर्ट ने अवैध करार दे दिया और सरकार को उन्हें तत्काल रिहा करने का आदेश दिया।

‘द हिंदू’ से फोन पर बात करते हुए डॉ. कफील ने बताया कि यूपी सरकार उन्हें निशाना बना रही थी और उसकी योजना उन्हें अनिश्चितकाल तक जेल में बंद रखकर 2017 में गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में हुए आक्सीजन हादसे के बारे में सवाल पूछते रहने की थी। उन्होंने कहा कि वह आक्सीजन हादसे में मरे 70 बच्चों पर सवाल उठाने का खामियाजा भुगत रहे हैं।

डॉ. कफील ने कहा कि “ मुझसे सिर्फ एक ही सवाल पूछा जा रहा था कि अगर मैं हत्यारा नहीं हूं तो फिर कौन है”? रिहा होने के तुरंत बाद डॉ. खान को उनके परिवार वाले गोरखपुर ले जाने के बजाय राजस्थान ले गए। जहां उनके अगले कुछ सप्ताह तक रुकने की संभावना है। उनके परिवार वालों ने कहा कि सुरक्षा कारणों और गलत तरीके से फंसाए जाने की आशंकाओं के चलते वे कुछ समय के लिए यूपी से बचना चाहते हैं।

उन्होंने कहा कि “जब मुझे मुंबई में गिरफ्तार किया गया था उस समय भी मैंने यही कहा था कि मुझे एनकाउंटर में मार दिया जाएगा। इसी वजह से हम कुछ दिन उत्तर प्रदेश के बाहर बिताएंगे।” 

इसके पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डॉ. खान पर लगे राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को अवैध करार दे दिया था। कोर्ट का कहना था कि डॉ. खान को जिस भाषण के लिए गिरफ्तार किया गया है वह तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है। डॉ. खान ने ऐसी कोई आपत्तिजनक बात नहीं कही है जिससे उन्हें एनएसए के तहत बंद किया जाए। इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस गोविंद माथुर की अध्यक्षता वाली दो जजों की बेंच ने डॉ. कफील की मां के बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह भी कहा कि बंदी रहने के दौरान उनके खिलाफ एनएसए का दो बार विस्तार भी अवैध था। बेंच में दूसरे जज सौमित्र दयाल सिंह थे।

बीजेपी सरकार ने फरवरी, 2020 में डॉ. खान पर एनएसए लगा दिया था। जिसमें उसने दिसंबर, 2019 में सीएए आंदोलन के दौरान अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दिए गए उनके भाषण को भड़काऊ करार दिया था। डॉ. खान की जिस दिन जमानत पर रिहाई होनी थी उसी दिन उनके खिलाफ और कड़े कानून लगाकर उनको जेल में बनाए रखा गया।

डॉ. खान ने बताया कि उन्हें यूपी पुलिस ने केवल इसी लिए गिरफ्तार किया था क्योंकि गोरखपुर अस्पताल केस की दूसरी जांच की 23 जनवरी को आई रिपोर्ट में उन्हें निर्दोष करार दिया गया था। डॉ. खान ने कहा कि और जब मैंने 12 दिसंबर, 2019 को सीएए पर एएमयू में भाषण दिया तब उस समय उन्होंने मुझे गिरफ्तार नहीं किया। जब दूसरी जांच ने भी मुझे पाक-साफ करार दिया तो उनके पास आधारहीन आरोपों में फंसाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था।

डॉ. खान पर एएमयू में सीएए मुद्दे पर 12 दिसंबर के भाषण के दौरान मुस्लिम छात्रों की धार्मिक भावनाओं को भड़काने का आरोप लगाया गया था। हालांकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि “भाषण को पूरा पढ़ने पर प्रथम दृष्ट्या किसी भी तरह की हिंसा या फिर घृणा फैलाने जैसी बात नहीं दिखती है।” इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसा लगता है कि अलीगढ़ के जिला अधिकारी ने भाषण की सच्ची भावना को दरकिनार करते हुए उसके कुछ चुनिंदा हिस्सों को पढ़ा और उनका जिक्र किया है।

कोर्ट ने कहा कि संबोधन नागरिकों के बीच राष्ट्रीय एकता और अखंडता का आह्वान करता है। भाषण किसी तरह की हिंसा को भी खारिज करता है।

डॉ. खान ने कोर्ट के इस मत का भी संज्ञान लिया। उन्होंने कहा कि मेरे भाषण के किसी एक छोटे हिस्से में भी घृणा या फिर हिंसा का जिक्र नहीं है। मैंने एकता और लोकतंत्र के तहत शांतिपूर्ण प्रदर्शन की बात कही थी।

उन्होंने कहा कि वह जल्द ही असम, केरल और बिहार के बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा करेंगे और वहां गरीबों के लिए मेडिकल कैंप लगाएंगे। इसके साथ ही कोविड-19 पर रिसर्च करने के लिए भी उन्होंने स्वैच्छिक योगदान देने का प्रस्ताव दिया।

उनका दावा था कि यूपी सरकार इसलिए भी उन्हें जेल के भीतर रखना चाहती थी क्योंकि उसे पता था कि कोविड-19 को जिस तरह से सूबे में हैंडल किया जा रहा है उसके बारे में भी वो खुल कर बोलेंगे।

डॉ. खान ने कहा कि “यूपी में स्वास्थ्य की व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गयी है। वो जानते हैं कि मैं स्वास्थ्य के मसले पर बोलता हूं। यही एक वजह थी कि वो मेरा मुंह बंद रखना चाहते थे।” उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि वो मुझे 2022 तक जेल में रखना चाहते थे। 

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