सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सुपर पावर बनी ईडी अब विधायिका पर भी भारी

धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) में संशोधन को उच्चतम न्यायालय ने संवैधानिक घोषित कर दिया है ! संशोधन के पहले तक धन शोधन एक स्वतंत्र अपराध की श्रेणी में नहीं आता था अपितु यह किसी अन्य अपराध पर निर्भर करता है जिसे ‘पूर्वगामी अपराध’ या ‘अनुसूचित अपराध’ के रूप में जाना जाता था। उच्चतम न्यायालय के जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ द्वारा पीएमएलए की धारा 5, 8(4), 15, 17 और 19 के प्रावधानों की संवैधानिक घोषित करने और ईडी को  गिरफ्तारी, कुर्की, तलाशी और जब्ती की शक्तियों को बरकरार रखने  के फैसले के बाद ईडी देश की सबसे शक्तिशाली जांच एजेंसी बन गई है, जिस पर आपराधिक न्याय प्रक्रिया संहिता के प्रावधान लागू नहीं होते। वह किसी को भी, कभी भी, कहीं भी, गिरफ्तार कर सकती है,उसकी संपत्ति जब्त कर सकती है और छापेमारी कर सकती है ।नतीजतन अब ईडी कार्यपालिका का अंग होते हुए भी विधायिका पर भारी पड़ती दिख रही है।

उपराष्ट्रपति का चुनाव दो दिन बाद होना होना था। संसद की कार्यवाही चल रही थी इसके बावजूद राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को ईडी ने समन भेजा सदन की कार्यवाही छोड़कर ईडी के सामने उपस्थित होने को मजबूर किया, 8 घंटे तक  पूछताछ की। यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि राज्यसभा के सभापति उपराष्ट्रपति होते हैं। यह मामला राज्यसभा और राज्यसभा सांसद के विशेषाधिकार से भी जुड़ा है।

गौरतलब है कि संविधान के अनुच्छेद 105 में संसद और सांसदों के अधिकार उल्लिखित हैं। एक सांसद को संसद सत्र चलने के 40 दिन पहले और 40 दिन बाद तक दीवानी मामलों में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। दीवानी या आपराधिक किसी भी मामले में एक सांसद पर कार्रवाई करने से पहले स्पीकर या सभापति या उपसभापति से अनुमति लेना जरूरी है।

नये संशोधन के बाद ईडी अदालत के समकक्ष हो गयी है क्योंकि समन भेजने से लेकर गिरफ्तार करने तक के अधिकार ईडी के पास होते हैं। बहुतेरे विशेषाधिकार और उन्मुक्तियों के रहते मल्लिकार्जुन खड़गे से ईडी ने जो पूछताछ की है उसमें राज्यसभा और राज्यसभा सांसद दोनों के विशेषाधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन होता दिखता है।

राज्यसभा की कार्यवाही शुरू होते ही मल्लिकार्जुन खड़गे ने सदन को बता दिया था कि उनके पास ईडी का समन है। सदन की कार्यवाही को छोड़कर उन्हें ईडी के समन का पालन करना है। पीठाधीश मौन रहे। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयलने कहा कि कोई गलत करेगा तो केंद्रीय एजेंसियां अपना काम करेंगी ही। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल को पता होना चाहिए कि केंद्रीय एजेंसियां क्या उच्चतम न्यायालय तक अपना काम नहीं कर सकतीं जब संसद और सांसद का विशेषाधिकार आड़े आ जाता है। यह विशेषाधिकार विधायिका का विशेषाधिकार है। यह लोकतंत्र में संसद की सर्वोच्चता का सबूत है।

अनुच्छेद 105 पूरी संसद-चाहे लोकसभा हो या राज्यसभा- के लिए इतना बड़ा रक्षा कवच है कि अंदर गोली भी चल जाए, हत्या भी हो जाए तो कोई अदालत इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती। स्पीकर या सभापति या उपसभापति का फैसला ही अंतिम होगा।

यह पब्लिक डोमेन में है कि अब ईडी का इस्तेमाल सदन के विशेषाधिकारों को भी खत्म करने के लिए किया जाने लगा है। यह बेहद गंभीर स्थिति है। ईडी कार्यपालिका का एक हिस्सा भर है जो अर्धन्यायिक भी है। दरअसल लोकतंत्र के विभिन्न अंगों पर सत्ताधारी दल के बहुसंख्यकवाद का असर साफ तौर पर दिखने लगा है। ईडी के दुरुपयोग की कहानी उसके अपने आंकड़े कहते हैं। 5422 मामलों में सिर्फ 23 को सज़ा दिला सकी है ईडी। 992 मामले अंडरट्रायल चल रहे हैं। इन मामलों में सत्ता पक्ष के लोग नहीं हैं। सिर्फ विपक्ष के नेता ही ईडी के निशाने पर हैं।

नेशनल हेराल्ड मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने करीब 8 घंटे तक कांग्रेस के सीनियर नेता मल्लिकार्जुन खड़गे से पूछताछ की।इसकी कांग्रेस ने निंदा की है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि यह राजनीतिक बदले की हद है।

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने ट्वीट करते हुए कहा कि मल्लिकार्जुन खड़गे आज शाम 7:30 बजे विपक्ष की उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार के लिए डिनर होस्ट करने वाले थे, लेकिन वह अभी भी ईडी के साथ हैं। यह मोदी सरकार के राजनीतिक प्रतिशोध की पराकाष्ठा है! इससे पहले उन्होंने अपने एक और ट्वीट में लिखा कि राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे से ईडी कई घंटे से पूछताछ कर रही है। उसकी अग्निपरीक्षा जारी है। पूरी कांग्रेस पार्टी एकजुटता के साथ उनके साथ खड़ी है।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने खड़गे को समन भेजने पर सवाल खड़े किए।उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि जब संसद चल रही हो, तब विपक्ष के नेता को ईडी  या अन्य इंवेस्टिगेशन एजेंसी द्वारा बयान देने के लिए बुलाया गया हो।अगर खड़गे जी को बुलाना था तो सुबह 11 बजे से पहले या शाम 5 बजे के बाद बुला लेते।दिग्विजय सिंह ने कहा कि आखिर मोदी इतने डरे हुए क्यों हैं?

वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने कहा, महंगाई को लेकर हम आवाज उठा रहे हैं और हमें रोका जा रहा है। हमारे नेता को बीच सदन में ईडी ने बुला लिया, जबकि संसद में उनको चर्चा करनी थी। यह इतिहास में कभी नहीं हुआ। सरकार चाहे जितना हमें डराने का प्रयास कर ले लेकिन कांग्रेस डट कर खड़ी रहेगी।

इस बीच राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने शुक्रवार को कहा कि आपराधिक मामलों में सांसद किसी आम नागरिक से अलग नहीं हैं। इसका मतलब यह है सांसदों के पास गिरफ्तार होने से बचने का कोई विशेषाधिकार नहीं है।’नायडू ने कहा कि उच्च सदन के सदस्यों को सिविल मामलों में ज़रूर कुछ विशेषाधिकार मिले हुए हैं लेकिन आपराधिक मामलों में उनके पास ऐसा कोई विशेषाधिकार नहीं है।

शिवसेना के सदस्य अपने नेता संजय राउत को ईडी द्वारा गिरफ्तार किए जाने का मुद्दा भी पिछले कुछ दिनों से उठा रहे हैं। शिवसेना की प्रियंका चतुर्वेदी ने भी यह मामला उठाया था कि संसद का सत्र चल रहा है और राउत को ईडी ने गिरफ्तार किया है। शुक्रवार की सुबह 11 बजे सदन की बैठक शुरू होने पर हंगामा कर रहे कांग्रेस सदस्यों ने कहा कि सत्र के दौरान खड़गे को ईडी का समन भेज कर उन्हें अपमानित किया गया।

विपक्षी नेताओं की इन बातों का संज्ञान लेते हुए नायडू ने सदन में ऐसे मामलों में कानूनी स्थिति और सदन में पूर्व में दी गई व्यवस्थाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि सदस्यों में एक गलत धारणा है कि एजेंसियों की कार्रवाई के खिलाफ उनके पास कोई विशेषाधिकार है। उन्होंने कहा, ‘संविधान के 105वें अनुच्छेद के मुताबिक संसद सदस्यों को कुछ विशेषाधिकार हैं। इनमें एक विशेषाधिकार यह है कि सत्र के आरंभ होने या समिति की बैठकों में शामिल होने के 40 दिन पहले और इसके समाप्त होने के 40 दिनों के भीतर किसी भी संसद सदस्य को सिविल मामले में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है’।

उन्होंने कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 135 के सेक्शन ‘ए’ में इसका उल्लेख भी है। सभापति ने कहा, ‘‘हालांकि आपराधिक मामलों में सांसद किसी आम नागरिक से अलग नहीं हैं। इसका मतलब यह है सत्र के दौरान या वैसे भी, सांसदों के पास गिरफ्तार होने से बचने का कोई विशेषाधिकार नहीं है।’’ उन्होंने इस बारे में आसन की ओर से पूर्व में दी गई कुछ व्यवस्थाओं का भी उल्लेख किया।

ऐसे ही एक मामले में वर्ष 1966 में तत्कालीन सभापति जाकिर हुसैन द्वारा दी गई एक व्यवस्था का जिक्र करते हुए सभापति नायडू ने कहा कि संसद सदस्यों के कुछ विशेषाधिकार हैं ताकि वे अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकें। पूर्व उपराष्ट्रपति हुसैन द्वारा दी गई व्यवस्था का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसा ही एक विशेषाधिकार है कि जब सत्र चल रहा हो तो सदस्यों को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता लेकिन यह स्वतंत्रता सिर्फ सिविल मामलों में है, आपराधिक कार्रवाइयों में नहीं है। नायडू ने कहा कि उन्होंने भी एक बार सदन में व्यवस्था दी है कि जांच एजेंसियां अगर किसी को बुलाती हैं तो सदस्यों को उसमें शामिल होना चाहिए ना कि सदन चलने को कारण बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि कानून का पालन करना सभी का कर्तव्य है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जेपी सिंह
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