मेरी रॉयः एक विदुषी जो सामाजिक योद्धा भी थीं

केरल की विख्यात शिक्षाविद् और महिला अधिकार कार्यकर्ता मेरी रॉय (1933-2022) नहीं रहीं। वह सुप्रसिद्ध अंग्रेजी लेखिका और विचारक अरुंधति रॉय की मां थीं। 

मेरी रॉय से हमारी पहली मुलाकात सन् 2006 में हुई। उनका लंबा इंटरव्यू किया, जो उसी साल अप्रैल महीने में किसी दिन हिन्दी अखबार-‘हिन्दुस्तान’ में छपा। उन दिनों मैं इसी अखबार के लिए काम करता था और केरल सहित दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में चुनाव ‘कवर’ करने गया था। 

मेरी राय से मुलाकात की एक कोशिश मैंने अपनी पहली केरल यात्रा के दौरान सन् 1997 में भी की थी। पर उस समय वह कहीं बाहर थीं। पूरे नौ साल बाद केरल में चुनाव की रिपोर्टिंग के सिलसिले में जब केरल पहुंचा तो अलग-अलग हलकों में घूमते हुए एक दिन कोट्टायम पहुंचा। अचानक ख्याल आया, इस बार मिसेज रॉय से मिलते हैं। मलयालम के बड़े अखबार मातृभूमि के एक वरिष्ठ पत्रकार से उनका फोन नंबर हासिल किया। फोन किया तो उन्होंने उसी दिन का वक्त दे दिया। खूब बातें हुईं। उन्हें सुनना एक दिलचस्प और ज्ञानवर्धक सत्र जैसा था। मेरी रॉय से उस मुलाकात का जिक्र मैंने अपने नये यात्रा वृत्तांत-‘मेम का गांव गोडसे की गली’ ( प्रकाशन वर्ष-2022, संभावना प्रकाशन) में भी किया है।

मेरी रॉय केरल में घर-घर जानी जाती रही हैं। सीरियन क्रिश्चियन महिलाओं को परिवार की सम्पत्ति में अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने लंबा संघर्ष किया और अंतत: जीत हासिल की। उनकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक बन गया। शिक्षा क्षेत्र में उनका उल्लेखनीय काम समूचे केरल में प्रशंसित रहा है।

जिस वक्त मेरी रॉय से मेरी मुलाकात हुई, उनकी उम्र तकरीबन 72 साल थी। लेकिन वह खूब सक्रिय थीं और अपने शिक्षण संस्थान का अच्छी तरह संचालन कर रही थीं। जहां तक याद आ रहा है, उस शिक्षण संस्थान के परिसर में ही उनका निवास था। थोड़ी ऊंचाई पर। साफ-सुथरे साधारण घर में सब कुछ सामान्य सा था। बातचीत के शुरू में ही उन्होंने कहा कि वह मुझसे सिर्फ शैक्षिक-सामाजिक मसलों पर ही बातचीत करेंगी, राजनीतिक मसलों पर नहीं। पर बातचीत जब शुरू हुई तो मेरे उकसाये बगैर वह राजनीतिक और आर्थिक मसलों पर भी खूब खुलकर बोलीं और उनका विचार बहुत सारगर्भित और मौलिक था।

मेरी रॉय की कुछ बातें चमत्कृत करने वाली थीं। मुझे अपनी रिपोर्टिंग करने के लिए वह विचारणीय सामग्री और मुद्दे दिये जा रही थीं। उनकी कुछ बातें मुझे आज भी याद हैं। उन्होंने केरल की अर्थव्यवस्था की चुनौतियों की चर्चा करते हुए कहा: ‘केरल में उद्योग-धंधे या प्रमुख उपक्रम के नाम पर हमारा सबसे बड़ा क्षेत्र हैः प्लांटेशन। भौगोलिक परिस्थितियों और अन्य कारणों से हमारे यहां आधुनिक उद्योग-धंधों का विस्तार नहीं हो सका। पर हमें अब छोटे-मझोले उद्योगों और आईटी क्षेत्र के विस्तार पर जोर देना चाहिए। इस मामले में हमारे लिए जापान का मॉडल अनुकरणीय हो सकता है।’ 

शिक्षा के क्षेत्र में केरल की उपलब्धियों की चर्चा करते हुए उन्होंने इसके लिए तीन तरह की शक्तियों के योगदान की विस्तार से चर्चा की। उनका कहना था कि केरल के कामयाब शिक्षा मॉडल के विकास और लोगों को शिक्षित बनाने में हमारे अपेक्षाकृत परिष्कृत सोच वाले कुछ पुराने राजा-महाराजों की भी भूमिका रही। फिर ईसाई मिशनरियों के सुधारात्मक कार्यक्रम और कम्युनिस्टों के शासन के दौरान अपनायी नीतियों का अमूल्य योगदान रहा। अनेक सामाजिक सुधारकों की भी अहम् भूमिका रही। 

मेरे एक सवाल के जवाब में श्रीमती रॉय ने कहा: ‘केरल सहित देश की कम्युनिस्ट राजनीति के नेतृत्व में अच्छे पढ़े-लिखे लोगों की बहुतायत है। पर उनमें ज्यादातर उच्च वर्णीय या अपेक्षाकृत भद्रलोक से आये हैं। बंगाल आदि के मुकाबले केरल में कुछ शानदार अपवाद भी हैं, जैसे नयनार और अच्युतानंदन आदि। ये लोग साधारण पृष्ठभूमि से आय़े। इसीलिए ये सोच और मिजाज के स्तर पर ज्योति बसु या बुद्धदेव भट्टाचार्य से अलग रहे हैं। बसु या भट्टाचार्य की बौद्धिकता या ईमानदारी पर शक नहीं करती पर सोच और मिजाज के स्तर पर केरल के कुछ बड़े कम्युनिस्ट नेताओं से अंतर ज़रूर करती हूं।’

उन्होंने एक अन्य सवाल के जवाब में केरल में चर्च और कम्युनिस्टों द्वारा अतीत में उठाये महान् कदमों की प्रशंसा के साथ उनकी कुछ मामलों में आलोचना भी की। उनका कहना था: ‘ये दोनों शक्तियां जनता की बात करती हैं। सबके बीच बराबरी की बात करती हैं पर नेतृत्व के लिए हमेशा बड़े लोगों या उच्च सामाजिक पृष्ठभूमि से आये लोगों को आगे रखती हैं। ये अजीब विडम्बना है।’

मेरी रॉय जैसी विदुषी ने मुझे सचमुच प्रभावित किया, ठीक उसी तरह जैसे उनकी साहसी और प्रतिभासंपन्न पुत्री अरुंधति अपने लेखन और वक्तृता से प्रभावित करती रहती हैं। 

मेरी राय के निधन से देश और समाज की बड़ी क्षति हुई है। 

दिवंगत रॉय को हमारी सादर श्रद्धांजलि। Arundhati और पूरे परिवार के प्रति शोक-संवेदना।

(उर्मिलेश वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं। आप आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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