इमरजेंसी डायल नंबर-112: संवाद अधिकारियों से योगी सरकार की संवादहीनता

नई दिल्ली/लखनऊ। उत्तर प्रदेश में इमरजेंसी डायल नंबर 112 किसी भी तत्काल सहायता- पुलिस, एम्बुलेंस, अग्निशमन और अन्य आपातकालीन सेवाओं के लिए मदद देती है। इस सर्विस में करीब 850 महिलाएं तैनात हैं और उन्हें ‘संवाद अधिकारी’ कहा जाता है। किसी भी दुर्घटना और तत्काल जरूरत के समय नागरिकों की सेवा में चौबीसों घंटे तत्पर रहने वाली संवाद अधिकारी इस समय आंदोलन की राह पर हैं। 7 नवंबर यानि चार दिन से वह लखनऊ के ईको गार्डन में धरना दे रही है। जहां उन्हें तरह-तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।  

सूचना के मुताबिक यूपी की डायल नंबर-112 में करीब 850 महिला कर्मचारी तैनात हैं। अधिकांश कर्मचारियों ने सोमवार से ही वेतन में बढ़ोतरी की मांग को लेकर काम करना बंद कर दिया था, जिसकी वजह से कई जिलों में डायल 112 की सेवाएं भी बाधित हो गईं। इसके अलावा ये नियुक्ति पत्र भी दिए जाने की मांग कर रही हैं। पिछले सात सालों से एक ही वेतन पर काम कर रही महिला कर्मचारियों का कहना है कि उनके वेतन और सेवा शर्तों में सुधार होना चाहिए। संविदा अधिकारियों की सिर्फ दो मांग है। विरोध-प्रदर्शन में शामिल एक कर्मचारी सोनल ने बताया कि  “हम पिछले सात सालों से एक ही वेतन (11,400 रुपये) पर काम कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि हमारा वेतन प्रतिमाह18,000 रुपये इन-हैंड, साप्ताहिक अवकाश और महीने में दो सवैतनिक अवकाश मिले।”

ऐसा नहीं है कि इमरजेंसी डायल नंबर में काम करने वाली 850 महिलाएं अचानक आंदोलन पर उतर आईं। पहले प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ से मिलकर अपनी समस्याओं को उनके समक्ष रखना चाहती थीं। यह मामला सोमवार, 6 नवंबर से शुरू होता है। सोमवार को जब संवाद अधिकारी लखनऊ के शहीद पथ स्थित अपने कार्यालय से मुख्यमंत्री आवास तक शांतिपूर्वक मार्च करना शुरू किया, तो पुलिस कर्मियों द्वारा उन्हें रोक दिया दिया। जिसके बाद महिला कर्मचारी मुख्यालय पर ही धरने पर बैठ गयीं।

महिला कर्मचारियों के मुख्यालय पर धरना शुरू करने के ऐलान के बाद पुलिस-प्रशासन अपने असली रूप में आ गया। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को सड़क पर घसीटकर बसों में डाला और ईको गार्डन भेज दिया। पुलिस के बलप्रयोग से एक महिला बेहोश हो गई और एक गर्भवती की हालत बिगड़ गई। कई महिलाओं के चोटिल होने की भी बात कही जा रही है। मुख्यालय पर धरना दे रही महिलाओं को हटाने के लिए पुलिस ने अमानवीय तरीके अपनाए। सोमवार रात में न सिर्फ उन्हें पानी लेने से रोक दिया, बल्कि उनके वॉशरूम पर ताला भी लगा दिया गया।

यही नहीं पुलिस ने प्रदर्शनकारी कर्मचारियों के खिलाफ नामजद और 200 अज्ञात महिलाओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है, जिसमें उन पर बलवा भड़काने, प्रदर्शन कर मार्ग बाधित करने, आपातकालीन सेवा बाधित करने और सरकारी निर्देशों के उल्लंघन के आरोप लगाए गए हैं।

बैंगनी और पीले रंग की वर्दी पहने सैकड़ों महिलाएं पिछले चार दिनों से इको गर्डन में विरोध प्रदर्शन कर रही हैं। पुलिसिया उत्पीड़न के बावजूद अब उनका इरादा पीछे हटने का नहीं है।   

विरोध स्थल पर प्रिया तिवारी (26), जिन्होंने पूर्वांचल विश्वविद्यालय से गणित में एमएससी की है, ने कहा कि “हम पांच साल से 11,400 रुपये के समान वेतन पर काम कर रहे हैं। हमारी मांग है कि हमारा वेतन 18,000 रुपये किया जाए। जब हमने विरोध प्रदर्शन शुरू किया, तो हमारे कार्यालय के अधिकारियों ने बाहरी प्रवेश बंद कर दिया और यहां तक कि शौचालयों पर भी ताला लगा दिया, यह कहते हुए कि हमें ऐसी सुविधाओं के बिना विरोध करना चाहिए।”

आज़मगढ़ की रहने वाली प्रिया अपने चार लोगों के परिवार के लिए एकमात्र कमाने वाली हैं। उसके पिता की कुछ साल पहले मृत्यु हो गई थी। “मुझे घर पैसे भेजने हैं और यहां किराए पर रहना है। मेरी 22 और 16 साल की दो छोटी बहनें अपने स्कूल और कॉलेज की फीस के लिए मेरे वेतन पर निर्भर हैं।”

अपनी बात आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि “जिस अनुबंध कंपनी के पास हमारी नौकरियों के लिए टेंडर था, वह इस महीने बदल गई। नई निजी कंपनी ने यह स्पष्ट नहीं किया कि हमारी नौकरियां सुरक्षित हैं या नहीं। साथ ही, उन्होंने कहा कि हमारा वेतन वही रहेगा। हम प्रति माह 11,400 रुपये में गुजारा नहीं कर सकते।”

कर्मचारी, अपनी नौ घंटे की शिफ्ट के दौरान, पूरे उत्तर प्रदेश से संकट संबंधी कॉलों को संभालते हैं। उनका काम आपातकालीन स्थिति का विवरण प्राप्त करना है। सड़क दुर्घटनाओं से लेकर महिलाओं के खिलाफ अपराध और उत्पीड़न तक की जानकारी इकट्ठा करना और उस जानकारी को राज्य भर में विभिन्न स्थानों पर तैनात पुलिस कर्मियों के साथ डायल 112 वाहनों तक पहुंचाना है। औसतन, एक संचार अधिकारी एक दिन में लगभग 600 कॉल संभालता है। त्योहारों के दौरान इसकी आवृत्ति बढ़ जाती है। राज्य में ऐसे लगभग 850 कर्मचारी हैं, जिनमें लखनऊ में 750, प्रयागराज में 50 और गाजियाबाद में 50 कर्मचारी शामिल हैं।

एक अन्य संचार अधिकारी, रायबरेली जिले की नेहा पाल (25) ने फिरोज गांधी कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर किया है। उन्होंने कहा कि 11,400 रुपये 15 दिनों से ज्यादा नहीं चलते।

“मैं यहां चार साल से समान वेतन पर काम कर रही हूं। मैं दो घर संभालती हूं – एक यहां और एक वापस घर। महंगाई इतनी अधिक है- एक गैस सिलेंडर की कीमत मेरे वेतन का दसवां हिस्सा है। मुझे अपनी मां के इलाज के लिए भी पैसे भेजने हैं। मेरा बड़ा भाई नौकरी की तलाश में है, और मेरे पिता बेरोजगार हैं। कोरोना महामारी के बाद से स्थिति और भी खराब हो गई है। मुझे सिर्फ एक कमरे के लिए 3,500 रुपये का भुगतान करना होता है। ”

नेहा ने कहा कि “केवल हम ही जानते हैं कि हम हर महीने के आखिरी 15 दिन कैसे जीते हैं। हमें कई रातें भूखा रहना पड़ता है।”

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए नेहा ने कहा कि “मैं आपको एक बात बताना चाहती हूं – मैं तीन दिनों तक ठीक से खाना नहीं खा सकी क्योंकि मेरे पास पैसे नहीं थे। चौथे दिन जब मैं अपने ऑफिस गयी तो मैं खाना मिला क्योंकि तब मेरे सहकर्मियों ने मुझे खाना दिया। महंगाई बढ़ने के बावजूद हमारी तनख्वाह वही है..मैंने यहां अपने लिए या रायबरेली में अपने घर के लिए दीये तक नहीं खरीदे हैं।”

मंगलवार को प्रदर्शनकारी महिलाओं पर कथित लाठीचार्ज के दौरान रिंकी यादव (26) के बाएं पैर में चोट लग गई। पैर पर पट्टी बांधकर वह प्रदर्शन स्थल पर बैठ गईं और कहा, “पुलिस कर्मियों ने मेरे पैर और हाथों पर मारा। मुझे कई चोटें लगी हैं। यह सोमवार को हुआ।”

हालांकि, डीसीपी (लखनऊ) विनीत जयसवाल ने कहा कि प्रदर्शनकारियों पर कोई बल प्रयोग नहीं किया गया।

बुधवार को लखनऊ पुलिस ने प्रदर्शनकारी महिलाओं के खिलाफ दंगे भड़काने के आरोप में एफआईआर दर्ज की थी। मंगलवार को जब महिलाएं मुख्यमंत्री आवास की ओर मार्च कर रही थीं, तो पुलिस ने यह कहते हुए उन्हें तितर-बितर कर दिया कि राज्य की राजधानी में सीआरपीसी की धारा 144 के तहत आदेश लागू हैं।

बुधवार को पांच नामित और 200 अज्ञात महिलाओं के खिलाफ आईपीसी की धारा 147 (दंगा), 283 (खतरा या बाधा), 341 (गलत तरीके से रोकना), और 188 (लोक सेवक द्वारा विधिवत आदेश की अवज्ञा) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

पुलिस अधीक्षक (डायल 112) सुशील कुमार शुक्ला ने कहा कि प्रदर्शनकारी कार्यकर्ताओं के साथ बुधवार शाम को तीन घंटे तक चर्चा हुई। “कुछ मुद्दों का समाधान किया जा रहा था लेकिन किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सका। उनका मुख्य मुद्दा वेतन में बढ़ोतरी है। हम बीच का रास्ता निकालेंगे और अधिक चर्चा के बाद मुद्दों का समाधान करेंगे। बुधवार की बातचीत सकारात्मक रही।”

यह पूछे जाने पर कि इतनी सारी महिलाओं के विरोध में होने के बावजूद आपातकालीन सेवा का काम कैसे चल रहा है, शुक्ला ने कहा, “जिस नई कंपनी को टेंडर मिला है, उसने कुछ नई महिलाओं को काम पर रखा है और कुछ महिला कांस्टेबल हैं जो पहले से ही प्रशिक्षित थीं। तो, काम संभाला जा रहा है।”

हालांकि, एक प्रदर्शनकारी ने कहा, “यह एक तकनीकी काम है और बहुत सारी कॉलें आती हैं। हमारी जगह नये लोगों को लाना आसान नहीं है।”

(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)

प्रदीप सिंह
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