कृषि कानूनों के खिलाफ देश भर के किसान उतरे सड़कों पर, कृषि मंत्रालय के सामने भी हुआ प्रदर्शन

केंद्र सरकार से अलोकतांत्रिक तरीके से पास किए गए तीनों किसान मुखालिफ कानूनों का विरोध जारी है। आज बुधवार को देश भर में किसानों ने ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य अधिकार दिवस’ मनाया। इस दौरान किसानों और आदिवासियों ने कॉरपोरेट परस्त तीनों कानूनों को वापस लेने की मांग की। कई जगह पर किसानों की पुलिस से झड़प की भी खबरें हैं। पंजाब के किसानों ने कृषि मंत्रालय के सामने प्रदर्शन किया और तीनों कानून वापस लेने की मांग की। इन किसानों को केंद्र सरकार की तरफ से वार्ता के लिए बुलाया गया था। इस वार्ता में किसी केंद्रीय मंत्री के न आने से किसान भड़क गए और वार्ता का बहिष्कार कर दिया। किसान संगठनों ने कहा कि उनका यह आंदोलन कानून वापस होने तक जारी रहेगा।  

केंद्र सरकार की तरफ से बातचीत के लिए दिल्ली बुलाए गए आंदोलित पंजाब के 29 किसान संगठनों के साथ आज हुई वार्ता विफल हो गई है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय के सचिव के साथ हुई इस वार्ता में केंद्र सरकार ने तीनों किसान कानूनों पर कोई चर्चा करने के बजाए किसान नेताओं को पास कानूनों के पंजाबी अनुवाद की प्रतियां यह कह कर पकड़ा दीं कि इन्हें पढ़ो, क्योंकि ये कानून किसान हित में हैं। किसान नेताओं ने वार्ता में केंद्रीय मंत्रियों की अनुपस्थिति पर कड़ा एतराज जताया।

केंद्र के इस रवैये से वार्ता के लिए गए सभी केसान नेता भड़क गए। उन्होंने केंद्र सरकार के खिलाफ नारे लगाते हुए बैठक का बहिष्कार किया और बाहर आ गए। कृषि भवन के बाहर किसान नेताओं ने तीनों कृषि कानूनों की प्रतियां फाड़ी और काफी देर तक तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने और केंद्र सरकार के खिलाफ नारे लगाए। वहां किसान नेताओं की पुलिस से भी झड़प हुई।

तमाम किसान नेता चंडीगढ़ लौट गए हैं। कल गुरुवार को चंडीगढ़ में पंजाब के आंदोलित किसान संगठनों की संयुक्त बैठक है। उसमें आंदोलन की अगली रणनीति पर फैसला होगा।

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के आह्वान पर छत्तीसगढ़ के तमाम क्षेत्रों में किसानों और आदिवासियों ने जबरदस्त प्रदर्शन किया। मोदी सरकार द्वारा पारित किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ और न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था और खाद्यान्न आत्मनिर्भरता को बचाने और ग्रामीण जनता की आजीविका सुनिश्चित करने की मांग किसान कर रहे हैं। किसानों और आदिवासियों ने कृषि विरोधी कानूनों की प्रतियां और मोदी सरकार के पुतले जलाए।

छत्तीसगढ़ में इस मुद्दे पर 25 से ज्यादा संगठन एकजुट हुए हैं। कोरबा, सूरजपुर, सरगुजा, रायगढ़, कांकेर, चांपा, मरवाही सहित 20 से ज्यादा जिलों में अनेकों स्थानों पर हजारों की भागीदारी वाले विरोध-प्रदर्शन के कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं।

संगठनों ने आरोप लगाया कि इन कॉरपोरेटपरस्त और कृषि विरोधी कानूनों का असली मकसद न्यूनतम समर्थन मूल्य और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था से छुटकारा पाना है। कृषि व्यापार के क्षेत्र में मंडी कानून के निष्प्रभावी होने और निजी मंडियों के खुलने से देश के किसान समर्थन मूल्य से वंचित हो जाएंगे। चूंकि ये कानून किसानों की फसल को मंडियों से बाहर समर्थन मूल्य से कम कीमत पर खरीदने की कृषि-व्यापार करने वाली कंपनियों, व्यापारियों और उनके दलालों को छूट देते हैं और किसी भी विवाद में किसान के कोर्ट में जाने के अधिकार पर प्रतिबंध लगाते हैं, इसलिए ये किसानों, ग्रामीण गरीबों और आम जनता की बर्बादी का कानून है। उन्होंने कहा कि इन कानूनों को बनाने से मोदी सरकार की स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने और किसानों की आय दोगुनी करने की लफ्फाजी की भी कलई खुल गई है।

आज पूरे देश में किसानों और आदिवासियों के 300 से अधिक संगठनों द्वारा ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य अधिकार दिवस’ मनाने की घोषणा की गई थी। प्रदर्शन में शामिल संगठनों की मांग है कि घोषित समर्थन मूल्य से कम कीमत पर फसल की खरीदारी को कानूनन अपराध घोषित किया जाए। न्यूनतम समर्थन मूल्य सी-2 लागत का डेढ़ गुना घोषित करने का कानून बनाया जाए और इस मूल्य पर अनाज की खरीददारी करने के लिए केंद्र सरकार के बाध्य होने का कानून बनाया जाए। यह आंदोलन संसद से भाजपा सरकार द्वारा अलोकतांत्रिक तरीके से पारित कराए गए तीन किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ चलाए जा रहे देशव्यापी अभियान की एक कड़ी था।

स्वामीनाथन कमीशन के आधार पर किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने के दावे को लफ्फाजी और जुमलेबाजी करार देते हुए किसान नेताओं ने कहा है कि अपने सात सालों के राज में कभी भी मोदी सरकार ने सी-2 लागत को समर्थन मूल्य का आधार नहीं बनाया है, जिसकी सिफारिश स्वामीनाथन आयोग ने की है। आज तक जो समर्थन मूल्य घोषित किए गए हैं, वह लागत तो दूर, महंगाई में हुई वृद्धि की भी भरपाई नहीं करते।

किसान नेताओं ने अपने बयान के साथ पिछले छह वर्षों में खरीफ फसलों की कीमतों में हुई सालाना औसत वृद्धि का चार्ट भी पेश किया है। इसके अनुसार पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष खरीफ फसलों की कीमतों में मात्र 2% से 6% के बीच ही वृद्धि की गई है। उन्होंने बताया कि इसी अवधि में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई में 10% और डीजल की कीमतों में 15% की वृद्धि हुई है और किसानों को खाद, बीज और दवाई आदि कालाबाज़ारी में दोगुनी कीमत पर खरीदना पड़ा है।

उन्होंने कहा कि इसी प्रकार, धान का अनुमानित उत्पादन लागत 2100 रुपये प्रति क्विंटल बैठता है और सी-2 फार्मूले के अनुसार धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 3150 रुपये प्रति क्विंटल होना चाहिए, जबकि मोदी सरकार ने समर्थन मूल्य 1815 रुपये ही घोषित किया है। इस प्रकार, धान उत्पादक किसानों को वास्तविक समर्थन मूल्य से 1430 रुपये और 45% कम दिया जा रहा है। मोदी सरकार का यह रवैया सरासर धोखाधड़ीपूर्ण और किसानों को बर्बाद करने वाला है।

प्रदर्शन में छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, राजनांदगांव जिला किसान संघ, दलित-आदिवासी मंच, छग प्रदेश किसान सभा, जनजाति अधिकार मंच, छग किसान महासभा, छमुमो (मजदूर कार्यकर्ता समिति), परलकोट किसान कल्याण संघ, अखिल भारतीय किसान-खेत मजदूर संगठन, वनाधिकार संघर्ष समिति, धमतरी और आंचलिक किसान सभा, सरिया आदि की भागीदारी रही।

छत्तीसगढ़ में किसान संगठनों के साझे मोर्चे की ओर से विजय भाई, संजय पराते, ऋषि गुप्ता, बालसिंह, आलोक शुक्ल, सुदेश टीकम, राजिम केतवास, मनीष कुंजाम, रामा सोढ़ी, अनिल शर्मा, केशव शोरी, नरोत्तम शर्मा, रमाकांत बंजारे, आत्माराम साहू, नंदकिशोर बिस्वाल, मोहन पटेल, संतोष यादव, सुखरंजन नंदी, राकेश चौहान, विशाल वाकरे, कृष्ण कुमार लकड़ा, बिफन यादव, वनमाली प्रधान, लंबोदर साव, सुरेन्द्रलाल सिंह, पवित्र घोष, मदन पटेल का विशेष सहयोग रहा।

उधर, उत्तर प्रदेश के भी कई जिलों में तीनों कानून के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन किया गया। किसानों ने कृषि विरोधी तीनों कानूनों की मुखालफत की।

अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा के नेतृत्व में सैकड़ों किसानों और मजदूरों ने बारा तहसील पर किसान और मजदूर विरोधी तीनों कानून का विरोध किया और भारत सरकार से मांग की कि इसे वापस लिया जाए। इस आशय का ज्ञापन नायब तहसीलदार श्री रविकान्त द्विवेदी को सौंपा गया।

किसान नेताओं ने कहा कि इन तीन कानूनों के अमल के बाद विदेशी कम्पनियां, बड़े प्रतिष्ठान अनाज और अन्य फसलों के व्यापार में अपनी मंडियां स्थापित कर लेंगे। किसानों से ठेका खेती कराएंगे, लागत के सामान की बिक्री, भंडारण, शीत भंडारण, परिवहन, फसल और प्रसंस्कृत फसल की बिक्री पर अपना प्रभुत्व जमाएंगे। वे ये सारा काम तरह-तरह के बिचैलियों के माध्यम से करेंगे, जैसे- ठेके की खेती के लिए जमीन एकत्र करना और बिक्री के लिए फसल एकत्र करना एग्रीगेटर करेगा। लागत की आपूर्ति बिचैलिया करेगा। फसल की गुणवत्ता पारखी तय करेगा और निजी मंडिया अपना अलग से शुल्क वसूलेंगी। किसान को अपनी जमीन गिरवी रखनी पड़ेगी, मंहगी लागत खरीदनी पड़ेगी और खेती करने और फसल की बिक्री की स्वतंत्रता समाप्त हो जाएगी।

ये तीन कानून कारपोरेट को खाने की जमाखोरी और कालाबाजारी करने की पूरी छूट देगा, क्योंकि इन कानूनों के तहत भारत सरकार खाने को आवश्यक वस्तु नहीं गिनेगी।

प्रदर्शनकारियों ने यूपी सरकार को एक अलग ज्ञापन सौंपा, जिसमें मांग की कि गांव में सभी को मनरेगा के तहत पूरे महीने न्यूनतम मजदूरी दर पर काम दिया जाए और राशन में सभी को 15 किलो अनाज, एक किलो दाल, तेल, चीनी प्रति यूनिट दिया जाए। ज्ञापन में कहा गया है कि सरकार ने बड़े व्यापारियों और बालू माफियाओं के पक्ष में एक बेतुका और गैरकानूनी आदेश 24 जून 2019 को पारित किया था, जिसमें केवल यमुना नदी और प्रयागराज में पर्यावरण रक्षा के नाम पर नाव से बालू खनन पर रोक लगाई थी, ताकि माफिया के लोडर चल सकें। उन्होंने कहा कि सरकारी रवन्ने के सरकारी रेट 65 रुपये प्रति घनमीटर की जगह 700 रुपये घन मीटर की वसूली करा रही है, जिससे बालू की बिक्री प्रभावित है और यह अतिरिक्त कमाई पुलिस अफसरों और भाजपा नेताओं की जेब में जा रही है। उन्होंने मांग की कि इस आदेश को वापस लेकर नाव से बालू खनन का काम सुचारू रूप से चलाया जाए।

प्रदर्शन में भाग लेने वालों में कॉ. हीरालाल, राम कैलाश कुशवाहा, सुरेश निषाद, विनोद निषाद, पप्पू निषाद, मोतीलाल, रामबरन, सतीश पटेल, भैरोलाल पटेल, रामराज, रोहित आदि शामिल रहे।

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