किसानों ने ठुकराया गृह मंत्री शाह के बातचीत का प्रस्ताव

बर्बरता झेलते हुए राजधानी के दर तक पहुंचे किसानों के साथ सत्ता पूरी छल भरे रवैये पर उतारू है। आंदोलन को भयानक ढंग से बदनाम करने और चारों तरफ़ से हमलों की बौछारों के बीच भारतीय किसान यूनियन के नेता फूंक-फूंक कर क़दम रख रहे हैं। यही वजह है कि भारतीय किसान यूनियन के नेताओं ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के मीडिया के जरिए भेजे गए बातचीत के प्रस्ताव को यह कहकर ठुकरा दिया है कि एक बड़े और सामूहिक आंदोलन के बारे में चुनिंदा किसान नेताओं को फ़ैसला लेने का अधिकार नहीं हो सकता है।

तीन नए कृषि क़ानून जब प्रस्तावित थे, तब से ही देश भर के किसान ज़बरदस्त विरोध कर रहे हैं। सरकार हर विरोध को दरक़िनार कर इन क़ानूनों को लेकर बज़िद है। मंडियों में न्यूनतम समर्थन मूल्य के जैसे-तैसे कवच को ख़त्म कर देने और खेती के कॉरपोरेट की झोली में चले जाने की आशंका के चलते इन क़ानूनों का असर किसानों के साथ ही हर तबके पर बुरी तरह पड़ना तय माना जा रहा है।

पिछले तीन-चार दिनों से पंजाब और हरियाणा के किसानों ने भाजपा की केंद्र और हरियाणा सरकार द्वारा खड़ी की गई भयानक बाधाओं से टकराते हुए दुनिया भर की नज़रें अपनी तरफ़ खींची हैं। दिल्ली की सीमा पर जमा हो रहे किसानों के इन विशाल समूहों को हटाने के लिए फ़िलहाल केंद्र सरकार की तरफ़ से कुछ किसान नेताओं को बातचीत का `अपनी तरह` का न्यौता भेजा गया है, जिसे इन किसान नेताओं ने अपने तर्क स्पष्ट करते हुए फ़िलहाल खारिज कर दिया है।

गौरतलब है कि शुक्रवार शाम को गृह मंत्री अमित शाह ने मीडिया के जरिए किसान यूनियनों से अपील जारी की थी कि उन्होंने तीन किसान नेताओं भाकियू उग्राहान के अध्यक्ष जोगिंदर सिंह उग्राहान, भाकियू सिद्धपुर के अध्यक्ष जगजीत सिंह डालेवाल और भाकियू राजेवाल क अधय्क्ष बलबीर सिंह राजेवाल को व्यक्तिगत रूप से बातचीत के लिए आमंत्रित किया है।

हरियाणा के जींद जिले की तरफ़ से खन्नौरी बॉर्डर पार कर एक विशाल और अनुशासित स्त्री-पुरुष और बच्चों के समूह के साथ दिल्ली पहुंच रहे भाकियू नेता उग्राहान ने कहा कि गृह मंत्री चाहते हैं कि किसान दिल्ली की सीमाएं सील करने के बजाय बुराड़ी के निरंकारी मैदान में जमा हो जाएं। हम सड़क जाम होने से पैदा होने वाली दिक्कतें समझ सकते हैं, पर  किसानों को दिल्ली में बुराड़ी मैदान में जाने के लिए कहने के बजाय जंतर-मंतर पर प्रदर्शन की अनुमति देनी चाहिए।

दिल्ली पुलिस ने अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के किसानों को जंतर-मंतर पर जाने देने के अनुरोध को ठुकरा क्यों दिया है? जब वहां सब को प्रदर्शन का अधिकार है तो किसानों को क्यों नहीं है? जोगिंदर सिंह अग्राहान ने बताया कि पंजाब के किसानों से बातचीत के लिए गठित किए गए बीजेपी के आठ सदस्यीय पैनल के चेयरमैन सुरजीत कुमार जयंती ने उन्हें कहा था कि उनकी यूनियन का पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल अमित शाह से बातचीत कर सकता है, पर मैंने साफ़-तौर पर यह कहते हुए इनकार कर दिया कि इस मसले पर सिर्फ़ हमारी यूनियन ही आंदोलन नहीं कर रही है। केंद्र को अपने प्रस्ताव की जानकारी देनी चाहिए जिस पर सभी यूनियनें विचार कर कोई सामूहिक फ़ैसला ले सकती हैं।

गौरतलब है कि जयंती पंजाब में भाजपा-शिरोमणि अकाली दल की गठबंधन सरकार में मंत्री रहे चुके हैं और उन्हें शुक्रवार को इस मसले में हस्तक्षेप के लिए दिल्ली बुलाया गया था। ख़बरों के मुताबिक, उनकी कल गृह मंत्री से कई बैठकें हुईं। भाकियू दकौंदा के अध्यक्ष और 30 किसान संगठनों के समूह के प्रतिनिधि बूटा सिंह बुर्जगिल ने कहा कि वे ख़ुद सिंघू बॉर्डर पर हैं, जबकि विभिन्न सहयोगी संगठनों के नेताओं में से कोई रास्ते में है तो कोई अलग जगह। फ़िलहाल बुराड़ी न जाने और दिल्ली बॉर्डर पर जमे रहने का फैसला हुआ है।

अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति के प्रतिनिधि जगमोहन सिंह पटियाला ने कहा कि 30 किसान यूनियनों के अगले सामूहिक फैसले तक किसान दिल्ली की सीमाओं पर ही रहेंगे। समिति के अध्यक्ष सतनाम सिंह पन्नू ने कहा कि 100 ट्रैक्टर-ट्रोलियों में उनका जत्था सिंघू बॉर्डर पहुंचा है और अभी यहीं डेरा डाले रहना है।      

गौरतलब है कि सरकार एक तरफ़ किसान नेताओं से बातचीत के प्रस्ताव की मुद्रा में है तो दूसरी तरफ़ आंदोलनकारियों पर गंभीर धाराओं में मुक़दमे किए जा रहे हैं। मीडिया को भयानक दुष्प्रचार में लगा दिया गया है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी लगातार इस तरह की बयानबाज़ी कर रहे हैं। इस तरह की स्थितियों के बीच किसान नेताओं के सामने आगामी निर्णयों को लेकर कम संकट नहीं है। 

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