अनुच्छेद 370 के खात्मे के बाद घाटी में 17 साल के बच्चे की पहली मौत, पैलेट गन से 13 घायल

नई दिल्ली/श्रीनगर। अनुच्छेद 370 खत्म करने के केंद्र के फैसले के बाद कश्मीर में पहली जान गयी है। मरने वाला 17 साल का एक किशोर बताया जा रहा है। जिसका नाम ओसैब अल्ताफ है और वह श्रीनगर के पालपोरा इलाके में रहता था।

हफिंगटन पोस्ट के हवाले से यह खबर आयी है। महाराजा हरिसिंह अस्पताल के अधिकारियों से बातचीत के बाद पता चला है कि वहां पैलेट गन के 13 मामले आए हैं। उनका कहना है कि इनमें से कुछ को सीधे आंखों में चोट लगी है।

अल्ताफ के परिजनों ने हफिंगटन पोस्ट को बताया कि वह बच्चों के एक समूह में था जिसे सीआरपीएफ के जवानों ने किनारे कर लिया। यह घटना 5 अगस्त 2019 की दोपहर की है। उनका कहना है कि बच्चे उस समय प्लेग्राउंड में खेल रहे थे। गौरतलब है कि उसी दिन राज्यसभा के भीतर गृहमंत्री अमित शाह ने सूबे के दो हिस्सों में बंटवारे का ऐलान किया था।

अल्ताफ के पिता मोहम्मद अल्ताफ मरजई ने बताया कि “वो सभी एक फुट ओवर ब्रिज पर सीआरपीएफ के जवानों द्वारा घेर लिए गए थे क्योंकि जवान ब्रिज के दोनों तरफ थे (लिहाजा बच्चों के निकलने के लिए कोई रास्ता नहीं बचा था)। लिहाजा बचने का कोई भी रास्ता न देख पाने के चलते बच्चे नदी में कूद गए। हालांकि नदी के किनारे बालू निकाल रहे मजदूरों ने दूसरों को जल्दी कार्रवाई कर बचा लिया। लेकिन ओसैब को नहीं बचाया जा सका। क्योंकि वह तैरना नहीं जानता था। वह तकरीबन 20 मिनट तक पानी के भीतर ही रह गया।”

स्थानीय लोगों द्वारा दो बच्चों को अस्पताल में भर्ती करा दिया गया जबकि अल्ताफ के शव को घर ले आया गया। इस बीच सूबे में संचार के सभी साधनों को ठप कर दिया गया है। मोबाइल, लैंडलाइन से लेकर इंटरनेट तक कुछ काम नहीं कर रहा है। यहां तक कि स्थानीय स्तर पर चलने वाली वेबसाइट और प्रकाशन भी दो दिन से ठप पड़े हैं।

सोमवार से ही नागरिकों की आवाजाही बिल्कुल खत्म हो गयी है। ज्यादातर लोग अपने घरों के भीतर ठहरे हैं।

लेकिन हफिंगटन पोस्ट का रिपोर्टर दिन में कई नाकाम कोशिशों के बाद मंगलवार की रात में किसी तरीके से श्रीनगर स्थित अल्ताफ के घर पहुंच गया।

श्री महाराजा हरि सिंह अस्पताल के अधिकारियों ने कहा कि वो सरकार और पुलिस बलों से जुड़े किसी भी तरह की हिंसा के मामले में मीडिया से बातचीत करने के लिए अधिकृत नहीं हैं।

एसएमएचएस अस्पताल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि “मैं आपके साथ सूचना नहीं साझा कर सकता हूं क्योंकि इससे हम लोगों को समस्या होती है।” “मुझे मीडिया से कोई भी सूचना साझा करने से मना किया गया है।”

“हमें न्याय की उम्मीद नहीं है”  

मरजई ने बताया कि उनके बेटे को अनुच्छेद 370 खत्म करने के सरकार के फैसले की कोई सूचना नहीं थी। और घटना के समय इलाके में कोई विरोध-प्रदर्शन नहीं हो रहा था।

पेशे से ड्राइवर मरजई ने कहा कि “वह अभी कक्षा 10 का छात्र था और क्रिकेट खेलना पसंद करता था। वह अनुच्छेद 370 के बारे में कुछ जानता भी नहीं था। और वास्तव में केंद्र के फैसले के बारे में हमें जानने का कोई रास्ता नहीं था क्योंकि हमारे घर में टेलीविजन या रेडियो कुछ नहीं है।”

मरजई ने कहा कि उन्होंने अपने बेटे को आखिरी बार जिंदा रविवार को दोपहर में देखा था।

उन्होंने कहा कि “मैं रविवार को दोपहर में काम के लिए चला गया था और फिर वापस सोमवार की सुबह आया। मैं सोमवार की दोपहर तक सोता रहा और ओसैब सुबह ही खेल के मैदान में चला गया था।”

परिवार को पुलिस द्वारा दर्ज किए गए किसी केस के बारे में कुछ पता नहीं है। और ऐसा भी लगता है कि उन्हें न्याय की कोई उम्मीद नहीं है।

मरजई ने कहा कि “हमें कौन न्याय देगा? हम लोगों का दमन हो रहा है। दमन में कोई न्याय नहीं होता है।”

हफिंगटन पोस्ट के रिपोर्टर ने सफा कदाल पुलिस स्टेशन जिसके अधिकार क्षेत्र में यह मामला आता है, जाने की कई बार कोशिश की लेकिन रास्ते में मौजूद सुरक्षा बलों ने आगे जाने से रोक दिया।

घाटी में हिंसा

हालांकि सरकार ने मौजूदा संकट के दौरान अभी तक किसी तरह की मौत या फिर किसी के घायल होने की किसी खबर की पुष्टि नहीं की है। संचार के पूरी तरह से ठप हो जाने के चलते घायल नागरिकों और मौतों के बारे में कुछ भी पता कर पाना मुश्किल हो रहा है।

हालांकि बाद में जब रिपोर्टर किसी तरीके से मंगलवार की रात में अस्पताल पहुंचने में कामयाब हो गया तो वहां बुलेट और पैलेट गन से 8 लोग घायल मिले जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

श्रीनगर ओल्ड सिटी के नवा कदल के रहने वाले ओवैस अहमद ने कहा कि “जब सीआरपीएफ के जवानों ने मुझ पर पैलेट गन से फायरिंग की उस समय मैं एक लेन में अपने घर पैदल जा रहा था। उसके बाद सब कुछ काला हो गया और मैं गिर गया। मुझे नहीं पता कि कैसे मैं यहां पहुंचा।”

बुधवार को दोपहर में एसएमएचएस अस्पताल के अधिकारियों ने बताया कि श्रीनगर और गैंदरबल जिले से आंखों में पैलेट इंजरी के 13 मामले मामले आए हैं। इनमें से दो की दोनों आंखों में चोट है। हालांकि इनमें से कोई भी ज्यादा गंभीर मामला नहीं है। और वो अपनी दृष्टि भी नहीं खोएंगे।

(हफिंगटन पोस्ट के लिए श्रीनगर से सफवात जरगर की रिपोर्ट को यहां हिंदी में दिया गया है।)

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