बजरंग पुनिया ने पीएम आवास के सामने रखा ‘पद्मश्री’

नई दिल्ली। शुक्रवार 22 दिसंबर को ओलंपिक कांस्य पदक विजेता बजरंग पुनिया ने सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम एक पत्र लिखकर पोस्ट किया जिसपर उनके हस्ताक्षर भी थे और यह घोषणा की कि वे अपना पद्मश्री सम्मान वापस कर रहे हैं। कुछ ही देर बाद, उन्होंने कर्तव्य पथ पर एक फुटपाथ पर अपना पद्मश्री रख दिया क्योंकि उन्हें पीएम के निवास की ओर जाने से रोका गया था। ऐसा करने के बाद पुनिया वहां से चले गए।

पहलवान भाजपा सांसद बृज भूषण शरण सिंह के करीबी संजय सिंह को रेसलिंग फेडरेशन का नया अध्यक्ष चुने जाने का विरोध कर रहे थे। बृज भूषण शरण सिंह पर महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न का आरोप है और वे रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रह चुके हैं।

यह पहली बार नहीं है कि विरोध जताने के लिए शीर्ष पुरस्कारों को या तो अस्वीकार कर दिया गया है या लौटा दिया गया है। 1974 में पूर्व सांसद ओपी त्यागी ने राज्यसभा में बताया था कि स्वतंत्रता सेनानी आशादेवी आर्यनयकम और सामाजिक कार्यकर्ता अमलप्रोवा दास ने पद्मश्री सम्मान को अस्वीकार कर दिया था।

पत्रकार और लेखक खुशवंत सिंह को 1974 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था जिसे उन्होंने 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में लौटा दिया था। उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार ने राज्यसभा में नामित किया था और वे 1980 से 1986 तक सांसद थे। उन्हें बाद में 2007 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।

अपनी आत्मकथा सत्य, प्रेम और एक छोटे से द्वेष में, उन्होंने लिखा है कि, “मैंने माना (खालिस्तानी नेता जरनल सिंह भिंडरावाले) एक बुरे व्यक्ति थे लेकिन ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ भिंडरावाले की हत्या से परे चला गया था। मैंने दृढ़ता से महसूस किया कि मुझे अपना विरोध दर्ज करना चाहिए। तब राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने मुझसे कहा था कि ‘मुझे पता है कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं, लेकिन जल्दबाजी में कुछ मत करो। कुछ दिनों के लिए मामले पर सोचें और फिर तय करें कि आपको क्या करना चाहिए।‘

वे लिखते हैं कि “मैं अपने मन को बदलने के लिए खुद को समय नहीं देना चाहता। मैंने शपथ ली थी कि अगर सेना मंदिर में प्रवेश करती है तो इस सरकार ने मुझे जो भी सम्मान दिए हैं वो सब मैं लौटा दूंगा।”

रामकृष्ण मिशन के स्वामी रंगनाथानंद ने भी वर्ष 2000 में पुरस्कार को अस्वीकार कर दिया था क्योंकि उन्हें एक व्यक्ति के रूप में सम्मानित किया गया था न कि मिशन को।

इतिहासकार रोमिला थापर ने भी पद्म भूषण सम्मान दो बार स्वीकार करने से मना कर दिया था। एक बार 1992 में और फिर 2005 में उन्होंने सम्मान लेने से इनकार कर दिया था।

सितंबर और नवंबर 2015 के बीच जब नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल को एक साल हुआ था तब 33 लेखकों और बुद्धिजीवियों ने अपने साहित्य अकादमी पुरस्कार वापस कर रहे थे। 9 सितंबर को हिंदी लेखक उदय प्रकाश ने अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार वापस कर दिया था जो उन्हें उनके उपन्यास मोहनदास के लिए वर्ष 2010 में मिला था। ये सभी प्रसिद्ध कन्नड़ लेखक एमएम कलबुर्गी की हत्या का विरोध कर रहे थे।

लगभग एक महीने बाद, कृष्णा सोबती, शशि देशपांडे, नयनतारा सहगल और अशोक वाजपेयी ने भी अपने-अपने पुरस्कार लौटा दिए। नए लेखकों ने लगभग हर दिन विरोध में शामिल होकर अपने पुरस्कारों को वापस कर दिया। पंजाबी के लेखक दलीप कौर तिवाना ने भी अपना पद्म श्री सम्मान लौटा दिया।

सईद मिर्जा, कुंदन शाह, और दिबाकर बनर्जी और वृत्तचित्र फिल्म निर्माता आनंद पटवर्धन ने भी अपने-अपने राष्ट्रीय पुरस्कार वापस कर दिए।

अगर हाल की बात करें तो जनवरी 2022 में पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ सीपीआई(एम) नेता बुद्धदेब भट्टाचार्य ने अपना पद्म भूषण सम्मान ठुकरा दिया था। जिसके बाद भट्टाचार्य केरल के पहले सीएम और कम्युनिस्ट आइकन ईएमएस नंबूदिरिपाद की कतार में शामिल हो गए। जिन्होंने पीवी नरसिंह राव सरकार की ओर से सम्मानित पद्म विभूषण पुरस्कार को ठुकरा दिया था।

पंजाब के पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल ने भी 2020 में तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध प्रदर्शनों के मद्देनजर अपना पद्म विभूषण सम्मान लौटा दिया था।

(जनचौक की रिपोर्ट)

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